समझ की चुप्पी

समझ की चुप्पी

जिसको जितनी दुनिया समझ आती जाती है,

उसके भीतर की कोई परत खो जाती है।

जो बचपन में हँसी थी बिना वजह के,

अब सोच में डूबे सवाल हो जाती है।


पहले "दोस्ती" थी बस एक मुस्कान से,

अब पूछते हैं—"कितना फायदा है पहचान से?"

पहले "रिश्ता" था आँखों के इशारे में,

अब शर्तें हैं हर जज़्बात के सहारे में।


जैसे-जैसे जीवन की चाल तेज़ हुई,

मुलाक़ातों में वो पुरानी खनक कमज़ोर हुई।

जो अपने थे, अब "ज़रूरत" में ढले,

और जो अजनबी थे, अक्सर दिल में पलते चले।


अब "प्रेम" भी व्यापार सा लगता है,

देवता से, वो बाज़ार सा लगता है।

तोलते हैं लोग शब्दों में एहसास,

हर 'आई लव यू' में छुपा होता है कोई इतिहास।


समझदारी अब इमोशन्स को तौलती है,

वो मासूमियत, अब सवालों में डोलती है।

"क्यों किया?", "क्या मिलेगा?" बन गए हैं मानक,

दिल की बातों पर अब तर्कों का है शासन।


"अपनेपन" की परिभाषा बदल गई है,

अब साथ देने की जगह, दूरी सहज लगती है।

जो कभी आँखों में पढ़ लेते थे दर्द,

अब 'Seen' कर देना ही बन गया है मर्म।


"विश्वास" अब शब्दों का खेल हो गया है,

हर रिश्ता संदिग्ध और संदेह से मेल हो गया है।

दिल से निभाने वाले अब कम होते हैं,

स्वार्थ में उलझे लोग ही ज़्यादा दिखते हैं।


लेकिन इस समझ के भी दो चेहरे हैं,

एक वो जो टूटता है, दूसरा जो निखरता है।

कुछ लोग इस दुनिया की चाल में खो जाते हैं,

कुछ लोग उसी चाल में खुद को फिर से पाते हैं।


इसलिए, जब दुनिया ज़्यादा समझ आने लगे,

तो थोड़ा खुद को भी समझने लगे।

कभी-कभी नादानी ही सच्चा सुख देती है,

और मासूमियत में ही रिश्तों की धूप रहती है।


न मापो हर भाव को तर्क की कसौटी पर,

कुछ चीजें बस दिल से होती हैं बेहतर।

दुनिया भले ही सीमाएं खींच दे विश्वास की,

तुम अपने मन में बसा लो सच्चाई की प्यास ही..!!


समुद्र के किनारे जब एक तेज़ लहर आयी तो एक बच्चे का चप्पल ही अपने साथ बहा ले गयी..

बच्चा रेत पर अंगुली से लिखता है... "समुद्र चोर है

उसी समुद्र के दूसरे किनारे पर एक मछुवारा बहुत सारी मछलियाँ पकड़ लेता है....

वह उसी रेत पर लिखता है..."समुद्र मेरा पालनहार है"

एक युवक समुद्र में डूब कर मर जाता है....

उसकी मां रेत पर लिखती है... "समुद्र हत्यारा है"

एक दूसरे किनारे एक गरीब बूढ़ा टेढ़ी कमर लिए रेत पर टहल रहा था...उसे एक बड़े सीप में एक अनमोल मोती मिल गया, 

वह रेत पर लिखता है... "समुद्र बहुत दानी है

....अचानक एक बड़ी लहर आती है और सारे लिखा मिटा कर चली जाती है 

मतलब समंदर को कहीं कोई फर्क नहीं पड़ता कि लोगों की उसके बारे में क्या राय हैं ,वो हमेशा अपनी लहरों के संग मस्त रहता है

अगर विशाल समुद्र बनना है तो जीवन में क़भी भी फ़िजूल की बातों पर ध्यान ना दें....अपने उफान,उत्साह,शौर्य,पराक्रम और शांति समुंदर की भांति अपने हिसाब से तय करें ।

लोगों का क्या है .... उनकी राय परिस्थितियों के हिसाब से बदलती रहती है।अगर मक्खी चाय में गिरे तो चाय फेंक देते हैं और शुद्ध देशी घी मे गिरे तो मक्खी फेंक देते हैं..!!

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