दोस्तों जैसा की आप सभी जानते है हमारा प्रिय ग्रुप बचपन की यांदे किनी कारणों वश उपलब्ध नहीं रहा, उस ग्रुप को बनाने और ग्रो करने मे सालो लगे लेकिन किनी कारणों की वजह से ग्रुप अब उपलब्ध नहीं रहा, हमरे सभी मित्रो की समस्या के समाधान के लिए एक नया ग्रुप बनाया है, जिसमे धीरे धीरे वो सभी सामग्री उपलब्ध करा दी जाएगी जो बचपन की यांदे ग्रुप मे था, आपके साथ के लिए तहे दिल से शुक्रिया
पाखंडी को परमात्मा नहीं मिलते
श्री कृष्ण के प्रति गोपियों का प्रेम इतना अधिक बढ़ गया था कि वह उनका वियोग एक क्षण भी नहीं सह सकती थी । श्री कृष्ण के वियोग में मूर्छित होने लगी ।
श्री कृष्ण ने अपने बाल मित्रों से कह दिया था कि किसी गोपी को मूर्छा आए तो मुझे बुलाना । मैं मूर्छा उतारने का मंत्र जानता हूं ।
किसी गोपी को मूर्छा आती तो शीघ्र ही कृष्ण को बुलाया जाता । श्री कृष्ण जानते थे कि इस गोपी के प्राण अब मुझ में ही अटके हैं । इसे कोई वासना नहीं है । यह जीव अत्यंत शुद्ध हो गया है एवं मुझसे मिलने के लिए आतुर है । अतः श्री कृष्ण उसके सिर पर हाथ फेरते और कान में कहते , शरद पूर्णिमा की रात्रि को तुझसे मिलूंगा। तब तक धीरज रख और मेरा ध्यान कर । यह सुनकर गोपी की मूर्छा दूर हो जाती ।
वृंदावन में एक वृद्धा गोपी थी, उसे लगा कि इसमें कुछ गड़बड़ अवश्य है । इन छोकरियों को मूर्छा आती है तो कन्हैया इनके कान में कुछ मंत्र पढता है । मैं भी यह मंत्र जानना चाहती हूं ।
बुढ़िया ने मूर्छित होने का ढोंग करके मंत्र जानने का निश्चय किया । काम करते-करते वह एकदम गिर गई । उसकी बहू को बहुत दुख हुआ । वह कन्हैया को बुलाने दौड़ी ।
श्री कृष्ण ने कहा-- सफेद बाल वाले पर मेरा मंत्र नहीं चलता है । बाल सफेद होने पर भी दिल सफेद न हो , प्रभु के नाम की माला न जपे , तो ऐसा जीव मरे या जिए--- इसमें कोई फर्क नहीं पड़ता । मैं नहीं जाऊंगा । तू किसी दूसरे को बुला ले ।
किंतु गोपी ने बहुत आग्रह किया । गोपी का शुद्ध प्रेम था, अतः उसके आग्रह को मानकर श्री कृष्ण घर आए और बुढिया को देखकर बोले , इसको मूर्छा नहीं आई है । इसे तो भूत लगा है । किंतु घबराओ मत नवनीत। भूत उतारने का मंत्र भी मुझे आता है । एक लकड़ी ले आओ।
बुढिया घबराई कि अब तो मार पड़ेगी । यह ढोंग तो मुझे ही भारी पड़ जाएगा।
कृष्ण ने लकड़ी के दो चार हाथ मारे कि बुढिया बोल उठी, मुझे मत मारो ,, मत मारो ,, मुझे न मूर्छा आई है , न भूत लगा है ।मैंने तो ढोंग किया था।
*पाखंड भूत है । अभिमान भी भूत है । पाखंडी को परमात्मा नही मिलते
दोहरा दोहन
एक दिन मेरा एक दोस्त मुझसे मिलने के लिए घर आया, मैंने उसी वक्त लंच करना चालु किया था, मैंने अपनी थाली में एक रोटी ही रखी थी, मैं एक-एक कर के रोटी खाना पसंद करता हूँ, खैर मैंने दोस्त के हालचाल पूंछे और लंच का पूछा तो उसने कहा उसका लंच हो चुका है, फिर बात करते हुए मैं लंच करने लगा, तभी मेरी रोटी खत्म हो गई, और मैं दूसरी रोटी किचिन से ले कर आ गया, फिर मेरी दूसरी रोटी खत्म हो जाने के बाद एक-दो बार और मैं किचिन से रोटी ले कर आया,
इस पर मेरा दोस्त कहने लगा, तुम खुद क्यों रोटी-सब्जी लेने जाते हो, रोटी तो खुद आ जाएगी, इस पर मैंने पूछा कि कैसे आएगी रोटी खुद, क्या उसके पैर हैं कि वो खुद चल कर आएगी?
इस पर मेरा दोस्त हल्का-सा भड़क उठा और बोला, “तुम बहुत सीधे हो, खुद खाना लेने किचिन तक दौड़ते हो, मैं तो बस एक बार जोर से आवाज देता हूँ, घर की महिलाएं थाली लेकर जाती है, खुद ही रोटी-सब्जी–दाल, जो भी चाहिए, भर कर ले आती हैं।”
मुझसे सुन कर रहा नहीं गया, तो मैंने भी कटाक्ष भरी शैली में कह दिया, कि फिर तुम्हारे पिताजी खाना बनाते होंगे, तभी तो घर की महिलाएं तुम्हें सर्व करने के लिए दौड़-भाग करती होंगी।
आखिर मेरा दोस्त भी सुन कर चुप बैठने वाला नहीं था, वह बोला, “भैया तुम्हें पता नहीं है क्या, घर में औरतें ही खाना बनाना, और परोसना(सर्व करना) जैसे काम करती हैं, यह महिलाओं की जिम्मेदारी होती है कि, घर में सभी को बना कर खिलाएं, तुम्हें भी यूं बार-बार खुद परेशान न हो कर घर की महिलाओं से कहना चाहिए कि तुम्हें जो भी चाहिए हो, वे ला कर आराम से सर्व करें.”
तब मैंने उसे कह ही दिया कि, महिलाएं अगर बना कर खिला देती हैं, तो हमें गर्मी-सर्दी में उनके योगदान की कद्र करनी चाहिए, और फिर वह पुरूष ही क्या जो, पुरूषत्व पर घमंड करे, महिलाएं तो अब घर के काम के अलावा बाहर जाकर भी कमाती हैं, तो उन्हें तो घमंड में चूर हो ही जाना चाहिए, कि हम हर क्षेत्र में अग्रणी हैं, मैंने उसे साफ कह दिया कि, अगर औरतें खाना बनाती हैं, तो कम से कम हम खुद के लिए खाना, और पानी तो खुद ही सर्व कर सकते हैं, पुरूष हैं हम अपाहिज़ तो नहीं हैं, और सबसे बड़ी बात घर संभालना महिलओं की जिम्मेदारी नहीं हैं, क्योंकि वे इंसान हैं और अपना निर्णय लेने के लिए मुक्त हैं, बस जो शुरू से चला आ रहा है, तो वही चलन में है, यह बाकई दुख की बात है, कि आज की मॉडर्न लड़कियां नौकरी के साथ-साथ घर के काम को भी करती रहती हैं, और दोहरा दोहन होने देती हैं, क्योंकि उनके अंदर यह बात बैठा दी गई है कि खाना-पकाना, साफ-सफाई औरत का फर्ज है।
इस छोटी सी घटना से उस मानसिकता का मालुम होता है, जो कि औरत को घर-गृहस्थी में बांधने, और गुलामी को आगे पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित करने में सहायक है, और रोटी खुद नहीं आएगी, जब महिलाएं यह बात समझेंगी कि, उनके काम के बदले कोई रिवार्ड नहीं है, बल्कि ताना, और फर्ज की जड़ें समाज में बैठी हई हैं, तो रोटी आयेगी नहीं, बल्कि हर एक पुरूष के द्वारा बनाई जाएगी।
बस जरूरत हैं उनमें अच्छे संस्कार व नैतिक
मूल्यों की जिससे बच्चे गलत रास्ते नहीं चुने l
ध्यान रखियेगा की आपके बच्चे भी आपसे ही सीखेंगे अब ये आपके ऊपर निर्भर है कि आप उन्हें क्या सिखाना पसन्द करेंगे...I
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