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अहसान


एक बहेलिया था। एक बार जंगल में उसने चिड़िया फंसाने के लिए अपना जाल फैलाया। थोड़ी देर बाद ही एक उकाब उसके जाल में फंस गया।


वह उसे घर लाया और उसके पंख काट दिए। अब उकाब उड़ नहीं सकता था, बस उछल उछलकर घर के आस-पास ही घूमता रहता।


उस बहेलिए के घर के पास ही एक शिकारी रहता था। उकाब की यह हालत देखकर उससे सहन नहीं हुआ।


वह बहेलिए के पास गया और कहा-"मित्र, जहां तक मुझे मालूम है, तुम्हारे पास एक उकाब है, जिसके तुमने पंख काट दिए हैं। उकाब तो शिकारी पक्षी है।


छोटे-छोटे जानवर खा कर अपना भरण-पोषण करता है। इसके लिए उसका उड़ना जरूरी है। मगर उसके पंख काटकर तुमने उसे अपंग बना दिया है। फिर भी क्या तुम उसे मुझे बेच दोगे?"


बहेलिए के लिए उकाब कोई काम का पक्षी तो था नहीं, अतः उसने उस शिकारी की बात मान ली और कुछ पैसों के बदले उकाब उसे दे दिया।


शिकारी उकाब को अपने घर ले आया और उसकी दवा-दारू करने लगा। दो माह में उकाब के नए पंख निकल आए। वे पहले जैसे ही बड़े थे। अब वह उड़ सकता था।


जब शिकारी को यह बात समझ में आ गई तो उसने उकाब को खुले आकाश में छोड़ दिया। उकाब ऊंचे आकाश में उड़ गया। शिकारी यह सब देखकर बहुत प्रसन्न हुआ। उकाब भी बहुत प्रसन्न था और शिकारी बहुत कृतज्ञ था।


अपनी कृतज्ञता प्रकट करने के लिए उकाब एक खरगोश मारकर शिकारी के पास लाया।


एक लोमड़ी, जो यह सब देख रही थी,


लोमड़ी उकाब से बोली-"मित्र! जो तुम्हें हानि नहीं पहुंचा सकता उसे प्रसन्न करने से क्या लाभ?"


इसके उत्तर में उकाब ने कहा-"व्यक्ति को हर उस व्यक्ति का एहसान मानना चाहिए, जिसने उसकी सहायता की हो और ऐेसे व्यक्तियों से सावधान रहना चाहिए जो हानि पहुंचा सकते हों।"


 शिक्षा

व्यक्ति को सदा सहायता करने वाले का कृतज्ञ रहना चाहिए।



एक नाविक की सच्ची कहानी


मित्रो! हम सबके कुछ सपने होते हैं जिन्हें साकार करने के लिए हम कोई कसर बाकी नहीं रख छोड़ते। हम जैसे-जैसे अपने लक्ष्य को पाने के लिए आगे बढ़ते हैं हमारे प्रयास और अधिक तेज़ हो जाते हैं।


लक्ष्य के अत्यधिक निकट पहुंचने पर हमें अपने लक्ष्य के अतिरिक्त और कुछ भी दिखलाई नहीं पड़ता। यह स्वाभाविक ही है। सफलता का मूल मंत्र भी यही है। ओलंपिक खेलों को ही लीजिए। दशकों तक कठिन परिश्रम करने के बाद ही कोई खिलाड़ी पदक हासिल करने के लिए आगे आ पाता है।


वर्ष 1988 में सियोल में आयोजित ओलंपिक मुकाबलों में नौकायन की एकल प्रतिस्पर्धा में भाग लेने के लिए कनाडा के लॉरेंस लेम्यूक्स एक दशक से भी अधिक समय से कठोर प्रशिक्षण ले रहे थे। उनका सपना साकार होने में बस थोड़ा सा ही समय शेष रह गया था।


लॉरेंस लेम्यूक्स के गोल्ड मेडल जीतने की प्रबल संभावना थी। वह तेजी से अपने लक्ष्य कि ओर बढ़ रहे थे और दूसरी पोजीशन पर बने हुए थे; अब उनका कोई न कोई पदक जीतना पक्का था।


लेकिन तभी उन्होंने देखा कि एक दूसरी प्रतिस्पर्धा के नाविकों की नाव बीच समुद्र में उलटी पड़ी है। एक नाविक किसी तरह नाव से लटका हुआ था जबकि दूसरा समुद्र में बह रहा था। दोनों बुरी तरह से घायल थे।


लॉरेंस ने अनुमान लगाया कि सुरक्षा नौका अथवा बचाव दल के आने में देर लगेगी और यदि तत्क्षण सहायता नहीं मिली तो इनका बचना असंभव होगा।


अब उनके सामने दो विकल्प थे... 


पहला विकल्प था इस दुर्घटनाग्रस्त नाव के चालकों को नज़रंदाज़ करके अपना पूरा ध्यान केवल अपने लक्ष्य को पाने के लिए अपनी नौका और रेस पर केंद्रित करना


और दूसरा विकल्प था दुर्घटनाग्रस्त नाव के चालकों की मदद करना।


लॉरेंस लेम्यूक्स ने बिना किसी हिचकिचाहट के फ़ौरन अपनी नाव उस दिशा में मोड़ दी जिधर उलटी हुई दुर्घटनाग्रस्त नाव समुद्र की विकराल लहरों में हिचकोले खा रही थी। लेम्यूक्स ने बिना देर किए दोनों घायल नाविकों को एक एक करके अपनी नाव में खींच लिया और तब तक वहीं इंतज़ार किया जब तक कि कोरिया की नौसेना आकर उन्हें सुरक्षित निकाल नहीं ले गई।


प्रश्न उठता है कि लॉरेंस लेम्यूक्स ने अपने जीवन की एकमात्र महान उपलब्धि को अपने हाथ से यूँ ही क्यों फिसल जाने दिया?


वास्तव में लॉरेंस लेम्यूक्स के जीवन मूल्य इस तथ्य पर निर्भर नहीं थे कि विजेता होने के लिए किसी भी कीमत पर ओलंपिक मेडल प्राप्त करना ही एकमात्र विकल्प है।


लॉरेंस लेम्यूक्स को प्रतिस्पर्धा में तो कोई पदक नहीं मिल सका लेकिन अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी द्वारा लॉरेंस लेम्यूक्स को उनके साहस, आत्म-त्याग और खेल भावना के लिए पियरे द कूबर्तिन पदक प्रदान किया जो अत्यंत सम्मान का सूचक है।


हमारे जीवन में भौतिक लक्ष्य भी हों और उन्हें पाने के लिए हम सदैव प्रयासरत रहें लेकिन जीवन का एकमात्र लक्ष्य भौतिक उपलब्धियाँ ही न हों। करुणा के वशीभूत होकर जब हम हर हाल में दूसरों की मदद के लिए प्रस्तुत हो जाते हैं तभी हम वास्तविक विजेता बन पाते हैं। लॉरेंस लेम्यूक्स की करुणा की भावना व वास्तविक मदद ने उसे अपने देश के लोगों के दिलों का ही नहीं दुनिया के लोगों के दिलों का सम्राट बना दिया।



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