" आजकल बहू हमसे पूछती ही कहां है, जो हम उसे बताएं। हमारी दी हुई सलाह तो उसे बेकार लगती है। घर में सास ननद सब है। लेकिन मजाल है कि बहू हम में से किसी से पूछ तो ले"सास ममता जी दूसरों से बहु मिताली की बुराई करते हुए बोली" और नहीं तो क्या? आजकल की लड़कियां तो खुद को ही समझदार समझती है। और बाकी दुनिया को बेवकूफ। बड़ों की सलाह तो उन लोगों को जैसे काटने दौड़ती है। एक तो खुद पूछेंगे नहीं। और ऊपर से फिर बाद में कोई समझाएगा
तो काटने दौड़ेंगी। इसलिए तो हमने बोलना ही बंद कर दिया"
बड़ी ननद राखी भी कहां कम थी ,उन्होंने भी कहा।" सच में। मेरे मम्मी पापा का ही जी जानता है कि वह कैसे निभा रहे हैं भाभी के साथ। वरना ऐसी बहू के साथ निभाना हर किसी के बस की बात नहीं है। मुझे तो मेरे मम्मी पापा की चिंता ही लगी रहती है"
छोटी ननद चंचल भी बोली।
" रहने देना बेटा। तू क्यों दिल पर ले रही है। तुझे तेरा ससुराल भी संभालना है। तू तो बस उसे अच्छे से संभाल। अब जो हमारी किस्मत में लिखा है वो तो होकर ही रहेगा। अब ऐसी बहू पल्ले पड़ी है तो उसी के साथ निभाना पड़ेगा" सास बेचारी बनते हुए बोली।" इतनी बेकार है क्या तुम्हारी बहू? यकीन नहीं होता। हम सब से तो कैसे हंस हंस कर बोलती है। देखकर लगता है कि उसके जैसी तो कोई बहू होगी ही नहीं "मामी सास ने कहा।
" अरे इसके मां-बाप कुछ नहीं कहते हैं क्या"मासी सास ने कहा। " अरे मां-बाप क्या कहेंगे। वो तो उसी का पक्ष लेंगे ना। आखिर खून तो उन्ही का है"
सास ममता जी दोबारा बोली।
" अरे इसका भी एक ही बेटा है। सब पता चल जाएगा, जब खुद सास बन जाएगी। इसको भी इसके जैसी ही बहू मिले। लेकिन एक बात समझ में नहीं आई। जीजा जी तो बड़े खुश रहते हैं इससे। हर जगह बस अपनी बहू की तारीफ करते रहते हैं"
मासी सास दोबारा बोली।
" अब पापा को तो इसी घर में रहना है ना मौसी। अपने घर की बात कोई बाहर बताना चाहता है क्या। और आपको तो पता ही है मेरे पापा तो शुरू से ही सीधे-साधे रहे हैं। जैसा मिल रहा है उसी में खुश रह लेते हैं। और फिर ले दे करके आगे और पीछे यही बहू है। कोई दूसरा बेटा भी नहीं कि और दूसरी बहू आ जाएगी"बड़ी ननद ने जवाब दिया।आज मिताली और समीर के बेटे का पांचवा जन्मदिन था। मिताली और समीर ने मिलकर काफी अच्छा आयोजन किया था। लेकिन इस बार अपनी सास ममता जी से उसने कुछ
नहीं पूछा।इसका कारण भी खुद ममता जी और उनकी दोनों बेटियां थी। मिताली की जब पहली संतान बेटी हुई थी। तब भी उनका ऐसा ही आयोजन करने का मन था। उसने और समीर ने जब ममता जी से इस बारे में कहा तो ममता जी सीधे दोनों की इज्जत उतारते हुए बोली थी। "मुझसे क्या पूछ रहे हो? लड़की ही तो हुई है उसमें इतना क्या तमाशा करना। और इतने ही तमाशे का शौक है तो अपने दम पर करो। ये उम्मीद मत करना कि मैं पैसे लगाऊंगी। जैसी तुम्हारी हैसियत हो वैसा प्रोग्राम करो"एक पल के लिए तो अपनी मम्मी की बात सुनकर समीर भी झेंप गया कि उसकी मम्मी कैसे जवाब दे रही है। वो भी उसकी पत्नी के सामने ही। पर फिर हिम्मत करके बोला,
" मम्मी पैसा तो मैं लगा दूंगा। उसके लिए मना थोड़ी ना कर रहा हूं। पर आप ही तो बताओगे कि कैसे क्या करना है। आखिर आप बड़ी है"" अगर मेरे से ही पूछ कर कर रहा है तो प्रोग्राम कर ही मत। बेटियों के लिए कोई प्रोग्राम नहीं करता। और अगर किसी और की मर्जी से कर रहा है तो उससे पूछ। वो और उसकी मां बता देंगे कैसे करना है"
ममता जी ने ये बात कह कर बात को वही खत्म कर दिया।
आखिरकार ससुर जी ने कहा,
" बेटा जो करना है कर लो। आखिर बेटी हो या बेटा। परिवार तो बढ़ा है ना हमारा। जिसे बुलाना है उसे बुला लो। मुझसे जो बन पड़ेगा, मैं तुम्हारी मदद कर दूंगा"आखिर पापा का आश्वासन पाकर समीर ने ज्यादा नहीं सत्तर अस्सी लोगों का प्रोग्राम ऑर्गेनाइज किया था।
आखिर पहली बार उन लोगों ने अपने दम पर कोई प्रोग्राम ऑर्गेनाइज किया था। बार-बार वो लोग मम्मी से पैसों की नहीं बल्कि काम में मदद की उम्मीद करते। लेकिन मम्मी ने कोई मदद नहीं की और हर बार एक ही जवाब देती," मेरी तरफ क्या देख रहे हो। जब सब कुछ खुद ही करना है तो खुद ही संभालो"
यहां तक की दोनों बहनों ने भी समीर को परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। नेग लेने के लिए तो दोनों आगे से आगे आ गई। यहां तक कि उल्टा मांग मांग कर ले गई। लेकिन मदद कुछ नहीं कराई। यहां तक की जाने से पहले मिताली और समीर से लड़ भी पड़ी, "जब मम्मी ने मना किया था तुम दोनों को प्रोग्राम करने से, तो फिर क्यों जबरदस्ती की तुम लोगों ने। यही इज्जत है तुम लोगों की नजर में मम्मी की। और ये क्या दिया है तुम लोगों ने हमें। प्रोग्राम करने के लिए पैसे थे। लेकिन बहनों को नेग देकर खुश करने के लिए पैसे नहीं थे""अरे और क्या देगा। इतना कुछ तो दे दिया दोनों बहनों को। पांच-पांच साड़ियां दे दी। तुम्हारे पति और बच्चों के कपड़े दे दिए। और दोनों को चांदी की पायल बनवा दी। अब इससे ज्यादा क्या देगा। प्रोग्राम कोई इतने बड़े लेवल पर तो किया नहीं था। छोटा सा ही तो प्रोग्राम था"पापा ने बीच में ही कहा।" हां, हमारी तो नाक कटा दी ना ससुराल में। ये इतना सा सामान ले जाकर दिखाएंगे हम उन्हें। ऊपर से न्योता भी सिर्फ हम लोगों को दिया। हमारी ननद, जेठ जेठानी के परिवार
को तो बुलाया तक नहीं"" बेटा अगर तारीफ नहीं कर सकती हो ना तो बीच में मीन मेख भी मत निकालो। तुम्हारे भाई भाभी ने पहली बार अपने दम पर कोई प्रोग्राम किया है। वो भी एक छोटे लेवल पर। और मेरी नजर में जो किया है बहुत ही अच्छा किया है"आखिर पापा ने कहकर वही बात को खत्म कर दिया।
लेकिन उसके बाद बेटी के पहले जन्मदिन पर और बेटे के जन्म पर भी यही हंगामा हुआ। आखिर हर बार जब एक ही जवाब सुनने को मिले तो इंसान कितना पूछेगा। इस कारण इस बार जब बेटे का पांचवा जन्मदिन मनाया गया तो समीर और मिताली ने अपनी मम्मी और बहनों से बिल्कुल भी नहीं पूछा।बस, पापा के सामने ही सारी रूपरेखा तैयार हुई। अब अपने बेटे को तो कौन सी मां बुरा बताएगी। इसलिए सारा ठीकरा फोड़ दिया मिताली के सिर पर। और इसीलिए आज सभी रिश्तेदारों के बीच बैठकर उसकी बुराई कर रही थी।
अभी सब लोग बैठकर बुराई कर ही रहे थे कि इतने में ससुर जी उनके पास आकर बैठे। और मौसी सास से पूछा, " तो बताओ साली साहिबा, कैसा लगा आपको प्रोग्राम। समीर और मिताली ने अच्छे से किया है ना प्रोग्राम। कहीं कोई कमी लगी हो तो बताओ। आगे से उस चीज का ध्यान रखेंगे" "क्या जीजा जी आप अभी भी अपने बेटे बहू की तारीफ कर रहे हो। जबकि आपकी बहू इतनी बुरी है। हमें तो पता ही नहीं था" उनके मुंह से यह बात सुनकर ससुर जी हैरान हो गए। पर वहां अपनी पत्नी और बेटियों को बैठा देखकर समझ गए कि ये लोग यहां बैठकर बहू की बुराई कर रही है।
इसलिए वो बोले," देखो साली साहिबा, ऐसा है कि मेरे बेटे बहु में कोई कमी नहीं है। दोनों बहुत अच्छे से अपना परिवार संभालते हैं। और हमारी सेवा भी करते हैं। लेकिन कुछ लोगों को अगर सब कुछ मिलता है तो वो रास नहीं आता। अब आपकी बहन को ही देख लो। बच्चे आगे से आगे उससे पूछते हैं कि मम्मी क्या करना है। तो ये मुंह तोड़ कर उनको जवाब देती है कि अपनी हैसियत के अनुसार करो। मुझसे क्या पूछते हो। अब तुम बात बात में बच्चों को इस तरह से बोलोगे। तो बच्चे भी कब तक आपको पूछेंगे। इसलिए इस बार उन लोगों ने नहीं पूछा। और मेरी नजर में ये बिल्कुल गलत नहीं है। अपनी इज्जत करवाना आपके हाथ में है। जब आप ही अपनी इज्जत घटा रहे हो तो दूसरे से आप क्या उम्मीद करोगे। कब तक वो झुकता रहेगा आपके सामने। आखिर एक दिन तो पलट कर जवाब दे ही देगा। अब आप लोग ही बताओ इसमें गलती किसकी है" " जीजी ये तो गलत बात है। जब बेटे बहु आपसे पूछ रहे थे तो आप उन्हें समझा सकती थी कि कैसे क्या करना है। ना कि इस तरह से मुंह तोड़कर जवाब देती। जब आप खुद ही ऐसा कर रहे हो तो बच्चे कब तक आपके सामने झुकते रहेंगे" मामी सास ने कहा। " हां बस मैं ही गलत हूं। बाकी तो सब सही है" सास मुंह फुला कर बोली। " देख लिया तुमने। इसका स्वभाव ही इसका दुश्मन है। बेटे बहु में तो कहीं कोई कमी नहीं
है "आखिर ससुर जी ने कहा और अपने काम में लग गए।
और सास और ननद इसी तरह मुंह फुलाए बैठी रही। जिन्हें समझ में आ गया कि गलती सास और ननद की है वो लोग तो वहां से उठ कर चली गई। और जिन्हें सिर्फ मनोरंजन करना था, वो उनके पास बैठकर बुराई पुराण का आनंद लेने लगी।
पर ससुर जी और बेटे बहु ने कुछ नहीं कहा। जानते थे कि कुछ लोग कभी नहीं बदलना चाहते।
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