एक विद्वान और दो चालाक बच्चे
एक बार नयासर गाँव के दस बारह साल के दो शरारती बच्चों ने एक आदमी की परीक्षा लेना तय किया। ऐसे मुश्किल प्रश्न पूछना इन बच्चों ने तय किया जिनका उत्तर देना उसे कभी भी संभव नहीं होगा. बहुत सोच विचार कर इन दो बच्चों ने तीन प्रश्न ढूंढ़ निकाले। इन बच्चों ने तय किया कि हम एक छोटी चिड़िया को पीठ के पीछे पकड़कर उससे पूछें, हमारे हाथ में क्या है? वह बूढ़ा आदमी जवाब देगा, 'पक्षी है'. 'लेकिन यह कोई मुश्किल सवाल नहीं हुआ, वे लड़के एक दूसरे से बोले.
इसके बाद दूसरा प्रश्न हम यह पूछेगे, हमारे हाथ में कौन सा पक्षी है? वह कहेगा,
चिड़िया है. लेकिन यह भी आसान सवाल है', वे दोनों फिर एक । से बोले. लेकिन इसके बाद का तीसरा प्रश्न निश्चित ही इम्तहान लेने वाला होगा. इसके बाद हम पूछेंगे, यह चिड़िया जीवित है या मरी हुई है?
अब अगर नवनीत उसने जवाब दिया कि मरी हुई है तो जवाब गलत होगा, क्योंकि चिड़िया तो जीवित रहेगी. और अगर उसने कहा कि जीवित है तो फिर जवाब गलत होगा. क्योंकि तब हम उस चिड़िया को वहीं के वहीं दबा कर मार डालेंगे. दोनों बहुत प्रसन्न हुए. क्योंकि उन्हें प्रश्न ही ऐसा मिला था जिसका कोई भी उत्तर गलत होने वाला था।
फिर एक छोटी सी चिड़िया लेकर ये बच्चे उस वृद्ध आदमी के पास पहुँचे. और तयशुदा तरीके से पीठ के पीछे हाथ रखकर उन्होंने पहला प्रश्न पूछा, 'हमारे हाथ में क्या है?' उस आदमी ने तुरंत बताया, 'पक्षी है।
उत्तर सुनकर बालको को अचरज नहीं हुआ. उन्होंने दूसरा प्रश्न पूछा, 'कौन सा पक्षी?' तुरंत उत्तर मिला, 'चिड़िया है'. इस उत्तर ने भी लड़कों को चकित नहीं किया। क्योंकि उन्हें पूछना था तीसरा प्रश्न और उसी प्रश्न का उत्तर सुनना था. फिर लड़कों ने पूछा, हमारे हाथ की यह चिड़िया मरी हुई है या ज़िंदा?"
पहले दो प्रश्नों के उत्तर तुरंत देने वाला वह अनुभवी आदमी इस बार थोड़ा सा रुका - शायद सोचने के लिये. फिर बोला, वह तुम्हारे हाथ में है। वह वृद्ध आदमी अनुभव से बोल रहा था. उसे मालूम था कि चिड़िया को मारना या जिंदा रखना उन लड़कों के ही हाथ में था !!
यहां उस वृद्ध आदमी की विकेक और ज्ञान का पता चलता है और हमारे अपने जीवन मे भी लगभग सारी चीजे हमारे ही हाथो में तो रहती है लेकिन हम अपने आप को किस तरह बनाना चाहते है और हम अपना आने वाला कल, आज से ही कैसे तैयार कर सकते है ये सब " हमारे हाथ मे ही है ।
*आप चाहे किसी भी समाज से हो, अगर आप अपने समाज के किसी उभरते हुए व्यक्तित्व से जलते हो या उसकी निंदा करते हो तो आप निश्चित रूप से उस समाज के लिए कलंक हो ।*
जैसे को तैसा – पंचतंत्र की कहानी
प्राचीन समय में एक नगर में जीर्णधन नाम का एक बनिया रहता था। वह अकेले ही अपना जीवन यापन करता था क्योंकि उसके आगे पीछे कोई नहीं था। बनिए ने धन अर्जित करने के लिए विदेश जाने का सोचा। वैसे तो उसके पास कोई विशेष संपत्ति नहीं थी, केवल एक मन (चालीस किलोग्राम) भारी लोहे की तराजू थी।
उस तराजू को महाजन के यहां धरोहर के रूप में रखकर बनिया विदेश चला गया। विदेश से वापस लौट कर जब बनिए ने महाजन से तराजू मांगी तो महाजन ने कहा “उस लोहे की तराजू को तो चूहे खा गए।”
बनिया समझ गया कि महाजन उसे तराजू नहीं देना चाहता। बनिया ने धैर्य और विनम्रता से कहा “उस तराजू को चूहों ने खाया है तो चूहों की गलती है, तुम्हारी गलती नहीं है। तुम व्यर्थ में ही चिंता मत करो।”
कुछ समय पश्चात बनिए ने कहा “मैं नदी किनारे स्नान करने के लिए जा रहा हूं। तुम अपने पुत्र धनदेव को मेरे साथ भेज दो वह भी नहा के आ जाएगा।”
महाजन बनिए की बातों से प्रभावित हो गया था, इसलिए उसने अपने पुत्र को बनिए के साथ स्नान करने के लिए भेज दिया।
बनिए ने महाजन के पुत्र को वहां से कुछ दूर ले जाकर एक गुफा में बंद कर दिया और गुफा के द्वार पर एक बड़ी सी शीला रख दी ताकि महाजन का पुत्र वहां से भाग ना सके। वहां से बनिया जब महाजन के घर आया तो महाजन ने पूछा कि “मेरा पुत्र कहां है, वह आपके साथ स्नान करने गया था ना?”
बनिया – “उसे तो चील उठाकर ले गई।”
महाजन – “यह कैसे हो सकता है? कभी चील इतने बड़े बच्चे को उठाकर ले जा सकती हैं?
बनिया – “मित्र! यदि चील इतने बड़े बच्चे को उठाकर नहीं ले जा सकती तो चूहे भी एक मन भारी तराजू को नहीं खा सकते। तुझे अपना पुत्र चाहिए तो मुझे अपना तराजू दे दो।”
इस तरह विवाद बढ़ गया। वे दोनों इस समस्या को लेकर राजमहल पहुंच गए। वहां न्याय अधिकारी के सामने महाजन ने अपने दुख भरी कथा सुनाई और बनिए पर आरोप लगाया इसने मेरे बच्चे को चुरा लिया है।
धर्म अधिकारी ने बनिए से कहां “इसका लड़का इसे दे दो।”
बनिया – राजन उसे तो चील उड़ा कर ले गई।
धर्माधिकारी – “क्या कभी कोई चील इतने बड़े इंसान को उड़ा कर ले जा सकती हैं?”
बनिया – “यदि मेरे एक मन भरी तराजू को चूहे खा सकते हैं तो इनके बच्चे को चील उड़ा कर ले जा सकती है। इसके पश्चात धर्माधिकारी के प्रश्न पर बनिए ने अपनी सारी कथा सुनाएं।
शिक्षा:- जैसी करनी वैसी भरनी..!!
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