यह कहानी पढ़ लो आंखे खुल जायेगी आपकी ! एक समय की बात है, एक छोटे से गाँव में एक बूढ़े व्यक्ति #गोपल जी रहते थे। वे अपने आस-पास के लोगों को बहुत प्रेम करते थे और उन्हें हर दिन कुछ नया सिखाने की और खुद भी कुछ नया सीखने की कोशिश करते थे। एक दिन, एक बच्चे ने उनसे पूछा, "आपका इतना ज्ञान कहाँ से आया है, #गोपल जी?"
#गोपल जी ने मुस्कराते हुए कहा, "बेटा, मेरा #ज्ञान #विश्वास और #संघर्ष से आया है। जब मैं तुम्हारी उम्र का था, तब मुझे गाँव के एक पेड़ के नीचे एक #पुस्तक मिली थी। मैंने उस पुस्तक को पढ़ना शुरू किया और उसमें अनेक रोचक कहानियाँ, विज्ञान, और धर्म से संबंधित बातें थीं। उससे मुझे अनंत ज्ञान की खोज में लगाव हुआ।"
बच्चे ने पूछा, "फिर आपने क्या किया, #गोपल जी?"
#गोपल जी ने कहा, "मैंने उस पुस्तक को पढ़ने में अपना समय लगाया और फिर #गुरुकुल जाने का संकल्प किया। गुरुकुल में मेरे ज्ञान का विस्तार हुआ और मैंने अनेक शिक्षाएँ प्राप्त कीं। वहाँ मेरे गुरुओं ने मुझे #अध्यात्म और #विज्ञान का ज्ञान दिया। अपने समय के साथ, मैंने जीवन के हर क्षेत्र में अनुभव प्राप्त किए और नए ज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रयास किए।"
बच्चे ने पूछा, "तो ज्ञान विकसित करने के लिए #जिम्मेदारी और #प्रयास बहुत मायने रखते हैं?"
#गोपल जी ने हाँ करते हुए कहा, "हां, बेटा। ज्ञान के अनंत समुद्र में सफलता के लिए #प्रयास, संघर्ष, और समर्पण जरूरी होते हैं। ज्ञान की कहानियों से हम अपने जीवन में सीख लें, और सभी से प्रेम और समझदारी से व्यवहार करें।"
बच्चे ने आभार व्यक्त किया और उनके इस ज्ञानवर्धक संवाद से उसने जीवन में नई दिशा देखी। उस दिन से, वह भी ज्ञान की तलाश में जीवन बिताने लगा और उसका संबंध ज्ञान के साथ गहरा हो गया।
तो दोस्तों, बड़ी सिंपल सी ये #कहानी सिंपल सी सीख भी देती है कि जीवन में अच्छी #किताबें पढ़नी चाहिए क्योंकि किताबों में पूरा जीवन बदलने की शक्ति होती है।
आपका इस बारे क्या मानना है कमेन्ट बॉक्स में जरूर बताएं!
कहानी: राजा दशरथ की सीख
शीर्षक पढ़कर आप लोगों को पता चल ही गया होगा कि आज की कहानी रामायण काल की है। सीता-राम के विवाह से जुड़ीं ये प्रेरक कहानी है। जब श्रीराम और सीता का विवाह हो रहा था, तब #अयोध्या से #राजा दशरथ, जो कि #भगवान राम के पिता थे, वे अपने नगरवासियों के साथ बारात लेकर जनकपुर आए थे।
अलग-अलग जगह रहनेवाले लोगों में आदतें अलग-अलग होती हैं। एक तरफ अयोध्या के लोग थे जो काफी #मृदुभाषी थे, वहीं दूसरी तरफ उस समय मिथिला के लोग अपशब्द कहने में बड़े माहिर थे।
जनकपुर में बारात आई हुई थी। ऐसा कहा जाता है कि सभी को वहां छे व्यंजन परोसे गए थे। राजा दशरथ और उनके सभी बेटे और बाकी के बाराती जबर भोजन कर रहे थे, उस समय जनकपुर की स्त्रियां अपने मधुर कंठ से #अयोध्यावासियों का नाम लेकर अपशब्द गुनगुनाने लगीं।
एक बार तो #राजा जनक डर गए कि कहीं किसी बाराती को बुरा न लग जाए।
लेकिन राजा दशरथ और सभी राजकुमार अपशब्द को सुनकर जोर-जोर से हंसने लगे। जनक उनके ऐसे व्यवहार से काफी अचंभित रह गए। तब दशरथ ने उन्हें समझाते हुए कहा कि 'इनके अपशब्द सुनकर हमें इसलिए अच्छा लग रहा है क्योंकि अवसर विवाह का है। अपशब्द का अर्थ होता है, व्यक्ति कुछ ऐसे शब्द कहता है, जिसमें सामने वाले की #खिल्ली उड़ाई जाती है, या #व्यंग्य किया जाता है, और कई मौकों पर उसे #अपमानित किया जाता है, लेकिन विवाह का प्रसंग हो तो अपशब्द भी अच्छे लगते हैं, बस उनमें सामने वाले का अपमान करने का भाव न हो।'
सीख: राजा दशरथ ने हमें सिखाया कि अच्छे अवसर पर अपशब्द भी हंसने का काम कर सकते हैं, सिर्फ ध्यान रखना चाहिए कि उनमें व्यंग्य हो, तर्क हो, ध्यान रखें, ऐसे अपशब्द कभी न कहें जिनसे सामने वाला व्यक्ति अपमानित होकर गुस्सा कर जाए।
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