सरला एक विधवा महिला थी

सरला एक विधवा महिला थी, और उसकी एक प्यारी बेटी कविता थी। कविता के पिता, रघुवीर, का दो साल पहले अचानक निधन हो गया था। रघुवीर ने अपनी बेटी की पढ़ाई के लिए काफी कर्ज लिया था, ताकि वह अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सके। लेकिन उनकी असामयिक मृत्यु के बाद सरला और कविता पर घर चलाने के साथ-साथ उस कर्ज को चुकाने का भारी बोझ आ गया।


सरला: "बेटी, अब क्या होगा? हम कैसे कर्जा चुकाएंगे और अपना पेट कैसे पालेंगे?"


कविता: "माँ, तुम चिंता मत करो। मैंने एमबीए किया है। मुझे किसी कंपनी में नौकरी मिल जाएगी, और फिर हम बैंक से लोन लेकर सारा कर्ज चुका देंगे।"


कविता दिन-रात नौकरी ढूंढती रही, लेकिन उसे कहीं भी नौकरी नहीं मिली। एक दिन जब वह घर लौटी, तो उसने देखा कि एक आदमी उसकी माँ से लड़ रहा था। कविता को देखते ही वह आदमी घर से बाहर चला गया।


कविता: "माँ, ये कौन था और तुमसे क्या कह रहा था?"


सरला: "बेटी, यही आदमी है, जिससे तेरे पापा ने उधार लिया था। अब ये धमकी दे रहा है कि अगर हमने पैसे नहीं चुकाए, तो यह हमारे मकान पर कब्जा कर लेगा।"

कविता: "माँ, तुम चिंता मत करो। हम अब नौकरी के भरोसे नहीं बैठ सकते। मैंने काफी कोशिश की, लेकिन नौकरी नहीं मिली। अब मैंने बिजनेस करने का सोचा है।"


सरला: "बेटी, जब खाने के लिए भी पैसे नहीं हैं, तो बिना पैसों के बिजनेस कैसे करोगी?"


कविता: "माँ, तुम बस मुझ पर भरोसा रखो। सब हो जाएगा। बस एक बार मुझे करने दो।"


अगले दिन, कविता दोपहर में एक हाथ ठेला लेकर घर आई।


सरला: "ये क्या है? इसे क्यों लाईं?"


कविता: "माँ, इसी ठेले से हम अपना बिजनेस शुरू करेंगे।"


सरला: "लेकिन, तुम करोगी क्या?"


कविता: "माँ, तुम्हें तो पता है कि मुझे कुकिंग का कितना शौक है। मैंने एमबीए भी किया है, तो बिजनेस की समझ भी है। हम दोनों मिलकर टिक्की और चाट का ठेला लगाएंगे। मैंने एक दुकान वाले से बात की है, जो पापा को अच्छे से जानता था। वह हमें एक महीने के लिए सामान उधार देगा। बाद में हम उसे पैसे चुका देंगे।"


सरला: "मैंने और तेरे पापा ने तुझे इसी दिन के लिए पढ़ाया था कि तू बाजार में ठेली लगाए? समाज में हमारी इज्जत धूल में मिल जाएगी। यह सब बंद कर और कोई छोटी-मोटी नौकरी कर ले। मैं यह नहीं करने दूंगी।"


कविता: "माँ, मेरी पढ़ाई बेकार नहीं जाएगी। उसी पढ़ाई के दम पर मैं एक बिजनेस खड़ा करूंगी और दूसरों को नौकरी दूंगी। मुझे बस एक साल यह करने दो, अगर यह नहीं चला, तो मैं नौकरी कर लूंगी।"


सरला: "नहीं, मैं तुझे यह सब नहीं करने दूंगी।"


कविता: "माँ, मुझ पर भरोसा करो। आपको पापा की कसम है।"


आखिरकार, सरला मान गई और एक शर्त रखी कि अगर एक साल बाद बिजनेस नहीं चला, तो कविता को नौकरी करनी पड़ेगी। अगले दिन से सरला और कविता ने मिलकर टिक्की बेचने का काम शुरू किया।


संघर्ष की शुरुआत:

पहले दिन बहुत कम टिक्की बिकीं, और काफी सामान खराब होकर फेंकना पड़ा। अगले दिन भी ज्यादा कमाई नहीं हुई।


सरला: "मैंने पहले ही कहा था कि यह नहीं चलेगा।"


कविता: "माँ, देखती जाओ। मैं कुछ नया करके दिखाऊंगी।"


अगले दिन कविता ने ठेले पर एक बड़ा बैनर लगवाया, जिस पर लिखा था—'एमबीए टिक्की वाली: एक टिक्की के साथ एक फ्री'।


सरला: "अरे, इससे तो बहुत नुकसान हो जाएगा।"


कविता: "नहीं माँ, यह बिजनेस का एक तरीका है। पहले हम लोगों को फ्री देंगे, जिससे वे हमारे स्वाद को पसंद करेंगे। बाद में, यह स्कीम बंद कर देंगे और तब तक लोग हमारे ग्राहक बन जाएंगे। वैसे भी, जो सामान बचता है, वह फेंक ही देते हैं।"


कुछ दिनों के भीतर, कविता की टिक्कियां मशहूर हो गईं। लोग फ्री वाली स्कीम के बाद भी उसकी टिक्कियों के दीवाने हो गए और रोज़ ठेले पर लाइन लगने लगी।


मुसीबत का सामना:

एक दिन, जब सरला और कविता टिक्कियां बना रही थीं, वही आदमी फिर से आ धमका।


आदमी: "तुम यहां मजे से दुकान चला रही हो, और मेरे पैसे देने का नाम नहीं ले रही हो?"


सरला: "आप नाराज मत होइए। हम धीरे-धीरे पैसे इकट्ठे कर रहे हैं और जल्द ही आपका कर्ज चुका देंगे। थोड़ा समय दीजिए।"


आदमी: "कल तक मेरे पैसे नहीं मिले, तो मैं ठेला फेंक दूंगा।"


तभी एक नौजवान लड़का, राहुल, वहां आया और बोला—


राहुल: "माँजी, ये आदमी आपको क्यों परेशान कर रहा है?"


आदमी: "तुझे क्या मतलब? चल भाग यहां से।"


राहुल: "माँजी, क्या बात है?"


सरला ने राहुल को सारी बात बताई।


राहुल: "देखो, कल तक पैसे तैयार रहेंगे। इसके बाद अगर तुमने इन्हें फिर से तंग किया, तो मैं तुम्हें पुलिस के हवाले करवा दूंगा।"


आदमी ने धमकी दी, "कल मेरे पैसे तैयार रखना, वरना अंजाम बुरा होगा।" कहकर वह चला गया।


सरला चिंता में डूब गई।


सरला: "बेटा, कल कहां से पैसे आएंगे?"


राहुल: "माँजी, चिंता मत करो। मैं आपके कर्ज का भुगतान करूंगा, और इसके साथ ही मैं आपके बिजनेस में भी पैसा लगाऊंगा।"


राहुल ने सारा कर्ज चुका दिया और कविता के बिजनेस में भी पैसा लगाना शुरू कर दिया। उसकी मदद से कविता ने पूरे शहर में टिक्की की छोटी-छोटी दुकानों की श्रृंखला शुरू कर दी। कुछ ही समय में उनका बिजनेस तेजी से बढ़ने लगा और उन्हें बहुत मुनाफा हुआ।


नई शुरुआत:

समय के साथ, सरला और कविता का बिजनेस बहुत सफल हो गया। राहुल की मदद से उन्होंने अपने सपने को साकार किया। एक दिन सरला ने राहुल से बात की और उसे अपनी बेटी के लिए सबसे अच्छा जीवन साथी माना।


जल्द ही, सरला ने राहुल और कविता की शादी करा दी। दोनों ने मिलकर अपने टिक्की बिजनेस को और भी ऊँचाइयों तक पहुंचाया, और वे शहर के मशहूर उद्यमी बन गए।


निष्कर्ष:

यह कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में कठिन परिस्थितियां कितनी भी बड़ी क्यों न हों, मेहनत, विश्वास और सही सोच से सबकुछ हासिल किया जा सकता है। कविता ने अपने पिता के कर्ज को चुकाने और समाज की बाधाओं के बावजूद सफलता हासिल की। उसने साबित कर दिया कि सही दृष्टिकोण से किसी भी सपने को साकार किया जा सकता है।


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