मेंढकों का समूह एक प्रोत्साहन कहानी
एक बार हरे-भरे जंगल में, मेंढकों का एक समूह था, जिन्होंने एक ऊंची संरचना को देखकर खुद को एक चुनौती देने का फैसला किया: इस चुनौतीपूर्ण टावर के शीर्ष पर चढ़ने के लिए।
उनकी चुनौती की बात तेजी से फैल गई और जल्द ही पूरे जंगल से जानवर देखने के लिए इकट्ठा हो गए। दौड़ उत्साह के साथ शुरू हुई, जैसे ही मेंढकों ने भीड़ की जयकार और उत्साह के बीच अपनी चढ़ाई शुरू की।
हालाँकि, जैसे-जैसे टॉवर आकाश की ओर ऊँचा होता गया, चढ़ाई कठिन होती गई। शुरू में समर्थन देने वाली जानवरों की भीड़ को मेंढकों की शीर्ष तक पहुँचने की क्षमता पर संदेह होने लगा। "यह काफी ऊंचा है!" उन लोगों ने चिल्लाया। “आप इसे कभी नहीं बना पाएंगे। यह नामुमकिन है!"
एक-एक करके, इन हतोत्साहित करने वाले शब्दों को सुनकर, मेंढक हिम्मत हारने लगे। संदेह और थकावट के बोझ तले दबे, वे दौड़ से बाहर होने लगे, शीर्ष पर पहुंचने के उनके सपने छूट गये।
एक को छोड़कर सभी. यह छोटा मेंढक नीचे से उठ रहे नकारात्मक शोर से विचलित हुए बिना, चढ़ना जारी रखा। भीड़ अविश्वास से उसे देखती रही जैसे वह ऊँचे और ऊँचे चढ़ रहा था, उसने हार मानने से इनकार कर दिया।
"वह जारी क्यों रखता है?" उन्हें आश्चर्य हुआ. "क्या वह हमें नहीं सुन सकता?"
अंततः, सभी बाधाओं के बावजूद, छोटा मेंढक शिखर पर पहुंच गया। उसने असंभव कार्य किया था। भीड़ आश्चर्य और प्रशंसा से भर उठी।
तब पता चला कि सफल मेंढक बहरा था; उसने हतोत्साहित करने वाले शब्द नहीं सुने थे। उनका मानना था कि भीड़ उनका उत्साहवर्धन कर रही थी, जिससे उनके सफल होने के दृढ़ संकल्प को बढ़ावा मिल रहा था।
कहानी का नैतिक
मेंढकों के समूह की कहानी का नैतिक स्पष्ट है:
अपने आप पर विश्वास रखें और अपने लक्ष्यों पर दृढ़ रहें, तब भी जब दूसरे आप पर संदेह करें। कभी-कभी, नकारात्मकता और निराशावाद की ओर ध्यान न देना आपके सपनों को प्राप्त करने की कुंजी हो सकता है।
The Group of Frogs An Encouragement Story
Once in a lush green forest, there was a group of frogs who, upon seeing a towering structure, decided to set themselves a challenge: to climb to the top of this daunting tower.
Word of their challenge spread quickly, and soon animals from all over the forest gathered to watch. The race began with enthusiasm, as the frogs started their ascent amidst the cheers and excitement of the crowd.
However, as the tower stretched higher towards the sky, the climb became tougher. The crowd of animals, initially supportive, started to doubt the frogs’ ability to reach the top. “It’s too high!” they shouted. “You’ll never make it. It’s impossible!”
One by one, hearing these discouraging words, the frogs began to lose heart. Weighed down by doubt and exhaustion, they started to drop out of the race, their dreams of reaching the top abandoned.
All except for one. This little frog continued to climb, undeterred by the negative chorus rising from below. The crowd watched in disbelief as he climbed higher and higher, refusing to give up.
“Why does he continue?” they wondered. “Can’t he hear us?”
Finally, against all odds, the little frog reached the summit. He had done the impossible. The crowd erupted in amazement and admiration.
It was then revealed that the successful frog was deaf; he had not heard the discouraging words. He believed the crowd was cheering him on, fueling his determination to succeed.
Moral Of The Story
The moral of The Group of Frogs story is clear:
Believe in yourself and remain steadfast in your goals, even when others doubt you. Sometimes, turning a deaf ear to negativity and pessimism can be the key to achieving your dreams.
आज का प्रेरक प्रसंग
बढ़े गिद्ध की सलाह
एक बार गिद्धों (Vultures) का झुण्ड उड़ता-उड़ता एक टापू पर जा पहुँचा. टापू समुद्र के बीचों-बीच स्थित था. वहाँ ढ़ेर सारी मछलियाँ, मेंढक और समुद्री जीव थे. इस प्रकार गिद्धों को वहाँ खाने-पीने को कोई कमी नहीं थी. सबसे अच्छी बात ये थी कि वहाँ गिद्धों का शिकार करने वाला कोई जंगली जानवर नहीं था. गिद्ध वहाँ बहुत ख़ुश थे. इतना आराम का जीवन उन्होंने पहले देखा नहीं था.
उस झुण्ड में अधिकांश गिद्ध युवा थे. वे सोचने लगे कि अब जीवन भर इसी टापू पर रहना है. यहाँ से कहीं नहीं जाना, क्योंकि इतना आरामदायक जीवन कहीं नहीं मिलेगा. लेकिन उन सबके बीच में एक बूढ़ा गिद्ध भी था. वह जब युवा गिद्धों को देखता, तो चिंता में पड़ जाता. वह सोचता कि यहाँ के आरामदायक जीवन का इन युवा गिद्धों पर क्या असर पड़ेगा? क्या ये वास्तविक जीवन का अर्थ समझ पाएंगे? यहाँ इनके सामने किसी प्रकार की चुनौती नहीं है. ऐसे में जब कभी मुसीबत इनके सामने आ गई, तो ये कैसे उसका मुकाबला करेंगे?
बहुत सोचने के बाद एक दिन बूढ़े गिद्ध ने सभी गिद्धों की सभा बुलाई. अपनी चिंता जताते हुए वह सबसे बोला, “इस टापू में रहते हुए हमें बहुत दिन हो गए हैं. मेरे विचार से अब हमें वापस उसी जंगल में चलना चाहिए, जहाँ से हम आये हैं. यहाँ हम बिना चुनौती का जीवन जी रहे हैं. ऐसे में हम कभी भी मुसीबत के लिए तैयार नहीं हो पाएंगे.”
युवा गिद्धों ने उसकी बात सुनकर भी अनसुनी कर दी. उन्हें लगा कि बढ़ती उम्र के असर से बूढ़ा गिद्ध सठिया गया है. इसलिए ऐसी बेकार की बातें कर रहा है. उन्होंने टापू की आराम की ज़िन्दगी छोड़कर जाने से मना कर दिया.
बूढ़े गिद्ध ने उन्हें समझाने की कोशिश की, “तुम सब ध्यान नहीं दे रहे कि आराम के आदी हो जाने के कारण तुम लोग उड़ना तक भूल चुके हो. ऐसे में मुसीबत आई, तो क्या करोगे? मेरी बात मानो, मेरे साथ चलो.” लेकिन किसी ने बूढ़े गिद्ध की बात नहीं मानी. बूढ़ा गिद्ध अकेला ही वहाँ से चला गया. कुछ महीने बीते. एक दिन बूढ़े गिद्ध ने टापू पर गये गिद्धों की ख़ोज-खबर लेने की सोची और उड़ता-उड़ता उस टापू पर पहुँचा.
टापू पर जाकर उसने देखा कि वहाँ का नज़ारा बदला हुआ था. जहाँ देखो, वहाँ गिद्धों की लाशें पड़ी थी. कई गिद्ध लहू-लुहान और घायल पड़े थे. हैरान बूढ़े गिद्ध ने एक घायल गिद्ध से पूछा, “ये क्या हो गया? तुम लोगों की ये हालत कैसे हुई?”
घायल गिद्ध ने बताया, “आपके जाने के बाद हम इस टापू पर बड़े मज़े की ज़िन्दगी जी रहे थे. लेकिन एक दिन एक जहाज़ यहाँ आया. उस जहाज से यहाँ चीते छोड़ दिए गए. शुरू में तो उन चीतों ने हमें कुछ नहीं किया. लेकिन कुछ दिनों बाद जब उन्हें आभास हुआ कि हम उड़ना भूल चुके हैं. हमारे पंजे और नाखून इतने कमज़ोर पड़ गए हैं कि हम तो किसी पर हमला भी नहीं कर सकते और न ही अपना बचाव कर सकते हैं, तो उन्होंने हमें एक-एक कर मारकर खाना शुरू कर दिया. उनके ही कारण हमारा ये हाल है. शायद आपकी बात न मानने का फल हमें मिला है.”
*शिक्षा:-*
अक्सर कम्फर्ट जोन (Comfort Zone) में जाने के बाद उससे बाहर आ पाना मुश्किल होता है. ऐसे में चुनौतियाँ आने पर उसका सामना कर पाना आसान नहीं होता. इसलिए कभी भी कम्फर्ट ज़ोन (Comfort Zone) में जाकर ख़ुश न हो जाएं. ख़ुद को हमेशा चुनौती (Challenge) देते रहे और मुसीबत के लिए तैयार रहें. तब आप चुनौती का सामना करते रहेंगे, आगे बढ़ते रहेंगे.
*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
Bhai mujhe unblock kardo 😢 हमसे बुरा ना कोई group me please 🙏
जवाब देंहटाएंMy username 👉 @dkborkar358
T.me/dkborkar358
Please unblock kardo 🙏
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जवाब देंहटाएंअविनाश?? Mujhe unki I'd bataiye mai msg krt hu
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