लालची प्रिंसिपल
एक छोटे से कस्बे में " उच्च माध्यमिक" नामक विद्यालय था। यह विद्यालय पढ़ाई-लिखाई के लिए तो प्रसिद्ध था, लेकिन वहाँ के प्रिंसिपल प्रकाश जी अपनी लालच और स्वार्थ के कारण अक्सर चर्चा में रहते थे।
प्रकाश जी हमेशा दानदाताओं से विद्यालय के लिए आने वाले पैसे का कुछ हिस्सा अपनी जेब में रख लेते थे। अभिभावक फीस जमा करने आते तो वह तरह-तरह के बहाने बनाकर उनसे अतिरिक्त रुपये भी वसूल लेते। जैसे—कभी विकास शुल्क, कभी पुस्तकालय शुल्क, तो कभी भवन मरम्मत शुल्क।
शुरू-शुरू में लोगों को कुछ पता नहीं चला, पर धीरे-धीरे बच्चों के अभिभावकों को शक होने लगा। वे देख रहे थे कि विद्यालय में कोई विशेष सुधार नहीं हो रहा, न नई किताबें आतीं, न भवन की मरम्मत होती। लेकिन फीस और दान में पैसे लगातार बढ़ते जा रहे थे।
विद्यालय में पढ़ाने वाले कुछ ईमानदार शिक्षक भी प्रकाश जी के इस लालच से दुखी रहते थे। उनमें से एक अध्यापक, अशोक सर, ने ठान लिया कि अब सच्चाई सबके सामने लानी होगी। उन्होंने गुप्त रूप से सभी रसीदों और हिसाब-किताब की कॉपियाँ सुरक्षित कर लीं।
एक दिन विद्यालय में वार्षिक उत्सव आयोजित किया गया। उसी अवसर पर स्थानीय विधायक और कई गणमान्य व्यक्ति भी आमंत्रित थे। मंच पर भाषण देते हुए प्रकाश जी अपने विद्यालय की “तरक्की” और “ईमानदारी” की लंबी-चौड़ी बातें कर रहे थे। तभी अशोक सर खड़े हो गए। उन्होंने हाथ में ली हुई फाइल सभी मेहमानों के सामने खोल दी।
फाइल में दर्ज था कि पिछले तीन वर्षों में लाखों रुपये विकास कार्यों के नाम पर लिए गए, लेकिन विद्यालय में एक भी सुधार नहीं हुआ। इसके साथ ही उन्होंने उन गरीब बच्चों का भी ज़िक्र किया जिनसे प्रकाश जी ने फीस माफ करने के बजाय रिश्वत के रूप में पैसे लिए थे।
यह सब सुनकर सभा में हंगामा मच गया। विधायक ने तुरंत जाँच समिति गठित की। जाँच के बाद पता चला कि सचमुच प्रकाश जी ने विद्यालय के लिए आए लगभग आधे पैसे अपने निजी खाते में जमा किए हैं।
समिति की रिपोर्ट के आधार पर प्रकाश जी को उनके पद से हटा दिया गया। उनकी जगह अशोक सर को नया प्रिंसिपल नियुक्त किया गया। अशोक सर ने विद्यालय में तुरंत सुधार कार्य शुरू किए। नई किताबें खरीदी गईं, गरीब बच्चों की फीस माफ की गई और भवन की मरम्मत कराई गई। अब विद्यालय सचमुच बच्चों के लिए एक आदर्श स्थान बन गया।
प्रकाश जी की लालच ने उन्हें बदनामी और अपमान दिया, जबकि अशोक सर की ईमानदारी और साहस ने उन्हें सम्मान और आदर दिलाया।
शिक्षा:
लालच चाहे छोटा हो या बड़ा, अंततः मनुष्य को पतन की ओर ही ले जाता है। ईमानदारी और निष्ठा ही वह गुण हैं जो व्यक्ति को सच्चा सम्मान दिलाते हैं।
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