नवरात्रि का महत्व|Significance Of Navratri

नवरात्रि का महत्व|Significance Of Navratri 

नवरात्रि अर्थात्‌ दिव्य नौ रातें, गहरे विश्राम और शरीर तथा मन को पुनः ऊर्जावान बनाने का उत्तम समय होता है। इसमें प्रत्येक दिन देवी माँ के नौ रूपों में से एक रूप को समर्पित किया जाता है। अंतिम दिन, अर्थात् दसवें दिन, जिसे विजयदशमी कहा जाता है, को लोक मान्यता के अनुसार बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक रूप में मनाया जाता है, परंतु वास्तव में इसका गहरा अर्थ है, सतोगुण की अन्य गुणों पर विजय, अर्थात्‌ उसी एक चेतना का प्रकट होना।


नवरात्रि का महत्व – नौ दिव्य रातें


रात्रि शब्द का अर्थ है, वह जो हमें तीनों प्रकार की ताप से राहत या गहरा विश्राम देती है। ताप का अर्थ है तीन प्रकार की ज्वाला/अग्नि या तीन परेशानियाँ- स्थूल, सूक्ष्म और करणीय। तीन प्रकार की परेशानियाँ हैं : आदि भौतिक – सांसारिक परेशानियाँ, आदि दैविक – लौकिक देवदूतों अथवा देवताओं के स्तर की परेशानियाँ और तीसरी आत्मा के स्तर की परेशानियाँ। नवरात्रि का समय गहन विश्राम का समय होता है, जो हमें इन तीनों परेशानियों से मुक्त कर सकता है, इसलिए यह समय प्रार्थना और पुनः ऊर्जावान बनने का समय होता है। 


नवरात्रि में आपका मन दैवीय चेतना में डूबा होना चाहिए। एक शिशु को भी जन्म लेने में नौ महीने का समय लग जाता है। उसी प्रकार यह नौ दिन भी वैसे हैं, जैसे हम माँ के गर्भ से पुनः बाहर आ रहे हों, एक नए जन्म का समय। इन नौ दिन और रातों में हमें अपने भीतर जाकर अपने मूल का स्मरण करना चाहिए। स्वयं से यह प्रश्न करो, “मेरा जन्म कैसे हुआ?”, “मेरा मूल स्रोत क्या है?” आपको अपनी चेतना पर चिंतन करना चाहिए और इन नौ दिनों को नौ महीनों की भांति देखना चाहिए। 


नवरात्रि के प्रथम तीन दिन तमोगुण या जड़ता को, अगले तीन दिन रजोगुण या बेचैनी और कार्यशीलता को और अंतिम तीन दिन सतोगुण या पवित्रता और उच्च स्तरीय प्राण शक्ति को समर्पित होते हैं। हमारे भीतर तीनों गुण होते हैं : सत्व, रजस और तमस। और इन तीनों गुणों पर विजय पाने अर्थात् केंद्रित रह कर जीवन का उत्सव मनाने के प्रतीक – अंतिम दिन को विजयदशमी कहते हैं।


गहरा विश्राम करने का समय: अपने स्रोत की ओर जाना


इन नौ दिनों के उत्सव का उद्देश्य व्यक्ति को उसके अंतःकरण में ले जाना और उसकी चेतना को ऊपर उठाना है – यह आंतरिक और उपरगामी यात्रा है। इन नौ पवित्र दिनों में ध्यान रखें कि छोटी छोटी बातें आपको अपने लक्ष्य से विमुख न करें। हमारा मन इतना कपटी है कि यह हमें हमारे लक्ष्य से हटा कर छोटी छोटी बातों में उलझा देता है। हमारे आसपास किसी के छींकने से या खर्राटे लेने भर से यह हमें मार्ग से भटका सकता है। और जब हम सजग रहकर यह जान लेते हैं कि हमारा मन नकारात्मकता के दुष्चक्र में जा रहा है, तो हम सजग हो जाते हैं। तब हम इधर उधर भटकते अपने छोटे मन को वश में कर सकते हैं। इसलिए यह नौ रातें हमारे लिए विश्राम का समय हैं। यदि कोई द्वंद्व उत्पन्न होता भी है तो उन सब को एक ओर रखकर अपने भोलेभाले मूल स्वभाव में वापस आ जाओ।



यह सम्पूर्ण ब्रह्मांड एक ही ऊर्जा, एक ही शक्ति से बना है, जिसे देवी कहते हैं। पूरा ब्रह्मांड उसी एक तरंगित और अदृश्य दिव्य चेतना से बना है, जिसमें हमारे शरीर किसी सागर में तैरते हुए शंखों और सीपों की भाँति हैं। आप उसे देख नहीं सकते, किंतु अनुभव कर सकते हो। इसलिए इन नौ दिनों में आपको उस अगोचर शक्ति का अनुभव करना चाहिए। यह यात्रा उस अदृश्य की ओर ही है। 


मन और शरीर को इन्द्रियों को उत्तेजित करने वाले बाह्य उत्प्रेरकों की बौछारों से बचाना चाहिए। आर्ट ऑफ लिविंग अन्तर्राष्ट्रीय केंद्र बेंगुलूरु में मंत्रोच्चार किया जाता है। और अंतिम दिन, जब यज्ञ आयोजित किए जाते हैं (आप इन्हें ऑनलाइन या ऑफलाइन देख सकते हैं), तब आप आराम से बैठकर मंत्रोच्चार की दिव्य तरंगों में स्नान कर सकते हैं। इसे मन्त्रस्नान कहा गया है अर्थात् मंत्रों की मधुर ध्वनियों में स्नान!


पहला दिन – शैलपुत्री: दुर्गा का प्रथम रूप

शैलपुत्री का उदय शैल से हुआ है, जिसका अर्थ होता है, वह जो अद्वितीय है, वह जो शैलपुत्री के चरम शिखर के अनुभव से उत्पन्न हो। 


दूसरा दिन – ब्रह्मचारिणी: द्वितीय रूप

ब्रह्म का अर्थ है, अनंत और ब्रह्मचारिणी वह है, जो अनंतता में विचरण करती है।


इसका एक अन्य अर्थ है देवी माँ का कुंवारा पक्ष – यह ऊर्जा पवित्र, अक्षत है, जो सूर्य की रश्मियों की भाँति, वैसे तो प्राचीन है किंतु हर पल निर्मल और नूतन भी है। दुर्गा के द्वितीय रूप में यह नयापन दर्शाया गया है।


तीसरा दिन – चन्द्रघंटा: तृतीय रूप

चन्द्रघंटा का अर्थ है, चन्द्र, चाँद या वह जिसका संबंध मन से हो, वह जो मन को आनंदित करता है, वह जो सौन्दर्य का साकार रूप है। जहाँ कहीं भी आपको कुछ भी सुंदर दिखता या लगता है तो वह देवी माँ की ऊर्जा के कारण ही है।


चौथा दिन – कूष्मांड: चतुर्थ रूप

कूष्मांड का अर्थ है ऊर्जा का गोला, प्राण शक्ति। जब भी आप प्रचण्ड ऊर्जा या प्राण शक्ति अनुभव करते हो, तो जान लो कि यह देवी माँ, दुर्गा का ही एक रूप है।


पाँचवा दिन – स्कंदमाता: पंचम रूप


स्कंदमाता, माँ जैसी ऊर्जा है, वह आपकी अपनी माँ जैसी है। स्कंदमाता अर्थात् ज्ञान के सभी छ: दर्शन शास्त्रों – न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, वेदान्त और उत्तर मीमांसा; वेदों के छ: अँग या शाखाएं या षड् दर्शन। ज्योतिष शास्त्र, संगीत, छन्द स्वरविज्ञान और बहुत से अन्य दर्शनशास्त्र, कला और विज्ञान, ज्ञान, के 64 विभिन्न विषय ये सब इसमें सम्मिलित हैं। स्कंदमाता इस सब ज्ञान की माँ हैं।


छठा दिन – कात्यायनी: छठा रूप


कात्यायनी, देवी का वह रूप है, जो चेतना के साक्षी पक्ष से उदय होती है; वह चेतना जिसमें अंतर्ज्ञान की योग्यता है।


सातवाँ दिन – कालरात्रि: सप्तम् रूप


कालरात्रि घोर, घुप्प अँधेरी ऊर्जा है, वह गहरा स्याह पदार्थ जिसमें अनंत ब्रह्मांड समाया हुआ है, और जो प्रत्येक जीवात्मा को शांति देने वाला है। यदि आप प्रसन्न और सुखी महसूस करते हैं, तो यह रात्रि के आशीर्वाद के कारण ही है। कालरात्रि, देवी माँ का वह रूप है जो इस ब्रह्मांड से भी परे है और वह प्रत्येक हृदय और आत्मा को ढाढ़स बंधाता है।


आठवाँ दिन – महागौरी: अष्टम रूप


महागौरी, देवी का वह रूप है, जो अति सुंदर है, जो जीवन को गति और परम मुक्ति देती है। यह आपको परम मुक्ति देने वाली है।


नौवाँ दिन – सिद्धिदात्री: नवम् रूप


सिद्धिदात्री जीवन में पूर्णता और सिद्धियाँ लाती है। देवी माँ का आशीर्वाद जीवन में अनेक चमत्कार लाता है। हमारे लिए जो असंभव दिखता है, माँ उसको संभव करती है।


और अंतिम दिन अर्थात्‌ दसवें दिन विजयदशमी होती है – नवरात्रि का समापन उत्सव से होता है और आप स्वयं को भावनात्मक, आध्यात्मिक तथा बौद्धिक स्तर पर ऊर्जावान अनुभव करते हैं।



भारतीय त्यौहार विश्व स्तर पर जीवन के रंगीन और जीवंत उत्सव के रूप में जाने जाते हैं। ऐसा ही एक त्यौहार जिसकी हम सभी उत्सुकता से प्रतीक्षा करते हैं, वह है देवी की दिव्य शक्ति की पूजा और उत्सव मनाने की नौ रातें, जिन्हें लोकप्रिय रूप से ‘नवरात्रि‘ (‘नव’ का अर्थ है नौ या नया, ‘रात्रि’ का अर्थ है रातें) के रूप में जाना जाता है। इस त्यौहार को आध्यात्मिक तपस्या या उपवास सहित उत्सवों द्वारा परिभाषित किया जाता है, एक ओर मौन रखना और दूसरी ओर पवित्र होम अनुष्ठान, विविध व्यंजन, नृत्य, संगीत, रंगीन सजावट और रंग-बिरंगे परिधान।

नवरात्रि में देवी माँ के नौ विभिन्न पहलुओं का उत्सव मनाया जाता है और उन्हें सम्मान दिया जाता है, जिन्हें नव दुर्गा के नाम से भी जाना जाता है।

क्या आप जानते हैं कि चमकदार रंगों और नवरात्रि के बीच एक सुंदर संबंध है? नवरात्रि की प्रत्येक रात्रि एक विशेष रंग से जुड़ी हुई है, क्योंकि वह रंग किसका प्रतीक है।

नवरात्रि के नौ रंग (Navratri Colours in Hindi)
नवरात्रि 2025 के नौ रंग सफेद, लाल, गहरा नीला, पीला, हरा, स्लेटी (ग्रे), नारंगी, मोरपंखी हरा और गुलाबी हैं।

हर साल रंग एक जैसे ही रहते हैं, लेकिन नवरात्रि के दिनों के हिसाब से इनका क्रम बदलता रहता है। नवरात्रि के रंगों की एक सूची दी गई है:

प्रथम दिन – 22 सितंबर, 2025 (सोमवार) – प्रतिपदा – सफेद
दूसरा दिन – 23 सितंबर, 2025 (मंगलवार) – द्वितीया – लाल
तीसरा दिन – 24 सितंबर, 2025 (बुधवार) – तृतीया – गहरा नीला (रॉयल ब्लू)
चौथा दिन – 25 सितंबर, 2025 (गुरुवार) – चतुर्थी – पीला
पांचवा दिन – 26 सितंबर, 2025 (शुक्रवार) – पंचमी – हरा
छठा दिन – 27 सितंबर, 2025 (शनिवार) – षष्ठी – स्लेटी (ग्रे)
सातवाँ दिन – 28 सितंबर, 2025 (रविवार) – सप्तमी – नारंगी
आठवां दिन – 29 सितंबर, 2025 (सोमवार) – अष्टमी – मोरपंखी हरा (पीकॉक ग्रीन)
नौवां दिन – 30 सितंबर, 2025 (मंगलवार) – नवमी – गुलाबी

नवरात्रि के रंगों का महत्व 
नवरात्रि के नौ रंगों में से प्रत्येक रंग देवी के एक विशिष्ट गुण का प्रतीक है।

सफेद: सफेद रंग शांति, पवित्रता और देवी की पूजा करते समय भक्तों के हृदय में प्रार्थना का प्रतीक है।
लाल: लाल रंग क्रियाशीलता और उत्साह का प्रतीक है। यह देवी के उग्र रूप का प्रतीक है।
गहरा नीला (रॉयल ब्लू): गहरा नीला रंग शांति और गहरे नीले आकाश की गहराई का प्रतीक है। यह देवी के ज्ञान की गहराई का प्रतिनिधित्व करता है।
पीला: पीला रंग चमक, खुशी और उत्साह का रंग है – जो देवी का गुण है।
हरा: हरा रंग हर क्षेत्र में सफलता के लिए आवश्यक विकास और उर्वरता का प्रतीक है।
स्लेटी: स्लेटी संतुलन का प्रतिनिधित्व करता है।
नारंगी: नारंगी रंग चमक और ऊर्जा का प्रतीक है।
मोरपंखी हरा: मोरपंखी हरा रंग विशिष्टता और वैयक्तिकता का प्रतिनिधित्व करता है।
गुलाबी: गुलाबी रंग प्रेम, स्नेह और सद्भाव का प्रतीक है।
इस वर्ष जब आप किसी समारोह में भाग लें तो इन रंग को ध्यान में रखें और हर दिन अलग अलग परिधान पहनें तथा उसके साथ अन्य आभूषण भी पहनें। नवरात्रि के रंगों के महत्व के ज्ञान के साथ, आप अपने वस्त्रों से भी अभिव्यक्ति कर सकते हैं।

भोजन, शराब, प्याज, लहसुन, आदि का सेवन नहीं करना चाहिए तथा खाना पकाने में सामान्य नमक की जगह सेंधा नमक का उपयोग करना चाहिए।

उपवास कैसे तोड़ें
साँयकल या रात्रि में जब अपना व्रत तोड़ते हैं तो आप विशेष भोजन करते हैं। उस समय आप भारी भोजन करने से बचें क्योंकि वैसा भोजन न केवल हमारे पाचन तंत्र के लिए पचाना कठिन होता है अपितु उससे व्रत से होने वाली शरीर की शुद्धीकरण प्रक्रिया तथा व्रत के सकारात्मक लाभ पर भी विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। हमें लघु मात्रा में और शीघ्र पचने वाला भोजन ही ग्रहण करना चाहिए।

उपवास के साथ योग व ध्यान भी करें
हल्के योगासन, खिंचाव, मुड़ने तथा झुकने वाले व्यायाम व्रत की प्रक्रिया को परिष्कृत करते हैं। यह शरीर में शुद्धीकरण प्रक्रिया को गति देते हैं और आप उन्नत तथा ऊर्जावान अनुभव करते हैं।

नवरात्रि में उपवास करने के लाभ
आपको नवरात्रि में उपवास क्यों करना चाहिए?
रंगों, रीति रिवाजों, गाने बजाने तथा नृत्य जैसी पारंपरिक कृत्यों से भरपूर, नवरात्रि का पर्व हमारे लिए विश्राम करने, अंतर्मुखी होने तथा स्वयं को फिर से ऊर्जावान बनाने का समय भी है। नवरात्रि में उपवास करने से परम आनंद तथा आनंदोल्लास की दिशा में हमारी अंतर्यात्रा सुगम हो जाती है। इससे मन की बेचैनी कम होती है और सजगता तथा प्रसन्नता बढ़ती है।

विषैले तत्व बाहर निकल जाते हैं तो शारीरिक निरुत्साहता तथा आलस्य भी दूर होता है। शरीर का कण कण, सभी कोशिकाएँ पुनर्जीवित हो उठती हैं। इसलिए, उपवास करना शरीर शुद्धि के लिए एक प्रभावशाली उपचार है। जब शरीर शुद्ध हो तो मन अधिक शांत हो जाता है क्योंकि शरीर और मन में गहरा संबंध है।

जैसे जैसे उपवास से जठराग्नि पुनः प्रज्वलित होती है, हमारे मानसिक तनाव में कमी आती है तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है।

आमतौर पर, हममें से ज्यादातर लोग भूख लगने का इंतजार नहीं करते। भूख वह तरीका है जिससे हमारा शरीर संकेत देता है कि वह भोजन पचाने के लिए तैयार है। भूख लगने से पहले ही भोजन करने से पाचन तंत्र कमजोर हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप तनाव और कमजोर प्रतिरक्षा होती है। चूंकि उपवास पाचन अग्नि को फिर से प्रज्वलित करता है, यह तनाव दूर करने और प्रतिरक्षा का निर्माण करने में मदद करता है।

नवराती उपवास के साथ साथ गहरे ध्यान में उतरें
नवरात्रि का समय स्वयं के संग होने, ध्यान करने तथा सृष्टि के स्रोत से जुड़ने का अवसर होता है। उपवास करने से व्याकुलता कम होती है तो मन के लिए अंतर्मुखी होकर ध्यान में उतरना सुगम हो जाता है। तथापि, सुनिश्चित करें कि आप स्वयं को ऊर्जावान रखने के लिए उपयुक्त मात्रा में ताजे फलों तथा सात्विक भोजन का सेवन कर रहे हैं।

सत्व खिलने से होने वाले लाभ प्राप्त करें
उपवास के साथ ध्यान करने से सत्त्व, अर्थात् हमारे भीतर विश्रांति और सकारात्मकता की गुणवत्ता में आशातीत वृद्धि होती है। सत्व बढ़ने से हमारा मन अधिक सजग तथा सतर्क हो जाता है। परिणाम स्वरूप, हमारे आशय और प्रार्थनाएँ अधिक सशक्त हो जाती हैं। सत्त्व बढ़ने और खिलने से हमारा शरीर हल्का तथा अधिक ऊर्जावान हो जाता है। हमारी कार्यकुशलता में वृद्धि होती है। इसके परिणाम स्वरूप हमारी मनोकामनाएँ फलीभूत होने लगती हैं और कार्य सुगमता से संपन्न होने लगते हैं।

समूचे विश्व में और सभी धर्मों में उपवास के संग ध्यान करने की परम्परा है क्योंकि जब आप उपवास करते हैं तो आपके शरीर का शुद्धीकरण होता है और आपकी प्रार्थनाएँ अधिक प्रामाणिक और गहरी होती हैं।

– गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर

नोट: कुछ विशेष शारीरिक गठन वाले तथा स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रस्त व्यक्तियों को उपवास नहीं करना चाहिए। इसलिए यह आवश्यक है कि उपवास करने से पहले आप किसी योग्य आयुर्वेदिक चितिस्कक से परामर्श कर लें। यह भी ध्यान रखें कि उतना ही उपवास करें जितना आपकी शारीरिक क्षमता के अनुसार सुविधाजनक हो।


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