बार्बी_डॉल

बार्बी_डॉल

"मालकिन!.यह गुड़िया बाजार में कितने की आएगी?"

रागिनी के ड्राइंग रूम के शोकेस में सजे ढेर सारे महंगे खिलौनों में से बड़ी साइज की बार्बी डॉल की ओर इशारा करती माला ने रागिनी से पूछ लिया।

"क्या करेगी इस गुड़िया की कीमत जानकर?"

 माला के हाथों से बनी चाय की चुस्कियां लेती रागिनी को आश्चर्य हुआ।

"वह क्या है ना मालकिन कि,.कल मेरी मुन्नी का जन्मदिन है!.मैंने कुछ रुपए जोड़ रखे हैं सोच रही थी कि उन रुपयों से मुन्नी को एक गुड़िया खरीद कर दूं।"

"कितने रुपए जोड़ रखे हैं तुमने?" रागिनी माला से यूंँही पूछ बैठी।

"पाँच सौ रुपए जोड़ रखे हैं मैंने मालकिन!.दो सौ की मिठाई ले आऊंगी और तीन सौ रुपए की एक गुड़िया लाऊंगी!" 

माला के चेहरे पर अपनी बिटिया के जन्मदिन के प्रति उत्साह देखते बन रहा था।

माला के चेहरे को निहारती उसके भीतर उमड़ते खुशी‌ का अंदाजा लगाती रागनी को वह दिन याद हो आए जब उसकी अपनी बिटिया सौम्या का जन्मदिन आने पर वह भी ऐसे ही उत्साहित हो उठती थी। 

तरह-तरह के पकवान और मिठाइयों की खुशबू से पूरा घर महक उठता था।

सैकड़ों मेहमान आते थे और जन्मदिन की शुभकामनाओं के साथ-साथ नन्हीं सी सौम्या को तरह-तरह के तोहफे भी दे जाते थे।

लेकिन हर बार सौम्या के जन्मदिन पर सबसे महंगा तोहफा रागिनी ही खरीद कर लाती थी अपनी प्यारी बिटिया के लिए।

रागिनी को याद है सौम्या के पांचवे जन्म दिवस पर उसने एक काफी महंगी बार्बी डॉल खरीदा था जो वर्षो बीत जाने के बाद भी उसके ड्राइंग रूम के शोकेस में ही सजी थी। 

आज उसी बार्बी डॉल की कीमत अचानक माला उससे पूछ रही थी।

असल में रागिनी ने उस महंगी बार्बी डॉल से सौम्या को कभी खेल नहीं नहीं दिया था।

यह कह कर हमेशा उसने उस गुड़िया को शोकेस में सजाए रखा की,.यह बहुत महंगी है!

बीतते वक्त के साथ सौम्या बड़ी हो गई लेकिन गुड़िया हमेशा शोकेस में ही सजी रही।

सौम्या अब कॉलेज में पढ़ने लगी थी!.अब उसका खेल खिलौनों से कोई वास्ता नहीं रहा लेकिन वो गुड़िया अभी भी शोकेस में यूंही अनछुई पड़ी थी।

उस महंगी बार्बी डॉल को निहारती रागिनी का ध्यान माला की आवाज सुनकर अचानक भंग हुआ..

"बताइए ना मालकिन!.कितने की आएगी ये गुड़िया?"

"बहुत वर्ष हो गए इस गुड़िया को खरीदे हुए,.कीमत याद नहीं है!.लेकिन तुम्हें ऐसी ही गुड़िया खरीदने की क्या जरूरत?"

रागिनी ने माला को टालना चाहा लेकिन माला उसे बताने लगी..

"याद है मालकिन!.एक दिन मैं मुन्नी को यहां लेकर आई थी!"

"हांँ!.लेकिन अब तुम उसे यहां क्यों नहीं लाती?"

रागिनी ने माला की बात बीच में ही काट दी लेकिन माला आगे बताने लगी..

"मालकिन यहां शोकेस में लगे ढेर सारे खिलौने देखकर वह मचल उठती है!. उस दिन उसने यह गुड़िया देखा था और मुझसे जिद कर बैठी कि,.उसे ऐसी ही गुड़िया से खेलना है।"

रागिनी माला के बातों को गौर से सुन रही थी और माला बताती रही..

"उस दिन मैंने उसे यह कह कर समझा दिया था कि,.मैं उसके जन्मदिन पर ऐसी ही गुड़िया उसे उपहार में दूंँगी और उसी दिन से वह भी उम्मीद लगाए बैठी है।" नवनीत

माला की बातें सुनती रागिनी सोच में पड़ गई क्योंकि उस गुड़िया की कीमत वर्षों पहले ही लगभग हजार रुपए से भी अधिक थी और अब बरसों बीतने के बाद तो उसकी कीमत बाजार में शायद दुगनी से भी अधिक हो चुकी होगी।

रागिनी गहरी सोच में डूबी थी लेकिन रागिनी की मन:स्थिति से अनभिज्ञ माला वहींं फर्श की सफाई करती मानो अपने आप से बातें किए जा रही थी..

"अब आप ही बताइए मालकिन!.अगर अब जब कल उसके जन्मदिन पर मैं उसे गुड़िया नहीं दूंगी तो बच्ची का दिल टूट जाएगा ना!"

माला की बात सुनती रागिनी अपने हाथ में थामी चाय की प्याली वहीं मेज पर रख उठ खड़ी हुई..

"मैं तुम्हें इस गुड़िया की कीमत तो नहीं बता पाऊंगी माला!.लेकिन तुम्हारी बिटिया के जन्मदिन पर उपहार स्वरूप उसे यह गुड़िया दे जरूर सकती हूँ।"

यह कहते हुए रागिनी ने शोकेस के शीशे को खिसका कर हाथ बढ़ा उस बार्बी डॉल को शोकेस से बाहर निकाल लिया।


वर्षों बाद शीशे की दीवारों से बाहर आई इंसानी छुअन को तरसती वह बार्बी डॉल रागिनी के चेहरे की मुस्कान संग मानो वास्तव में मुस्कुरा उठी।

"लेकिन मालकिन!.यह गुड़िया तो"..

अपनी मालकिन की दरियादिली से स्तब्ध घरेलू सहायिका माला की जुबान लड़खड़ा गई।

रागिनी ने आगे बढ़कर गुड़िया माला के हाथ में रख दिया..

"मुन्नी से कहना कि इससे खूब खेलें!"

उस बार्बी डॉल को अपने घर से विदा करती रागिनी का गला रूंध गया।

इधर अपनी मालकिन की भावनाओं को समझने की कोशिश करती माला अपनी मुन्नी के जन्मदिन पर उसका मनपसंद उपहार बेमोल पाकर अचानक नि:शब्द हो गई।



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