.संतोष.
एक बार एक संत किसी नदी के किनारे खड़े अत्यंत ध्यान से उसकी लहरो को देख रहे थे , इतने मे एक दरिद्र व्यक्ति उनके पास पहुंचा और बोला "हे महान संत ! मै धन के अभाव मे दर दर भीख मांग रहा हूं । मेरे बच्चे भूख से बिलख रहे है । मेरा जीवन अत्यंत दुःख मय हो गया हैं ।
यदि आप जैसे तपस्वी संत की कृपा द्रष्टि हो जाये तो मेरी स्थिति सुधर सकती है ।" संत ने अत्यंत स्नेह से पूछा बताओ मैं तुम्हारी किस प्रकार सहायता कर सकता हूँ निर्धन व्यक्ति ने कहा आप मेरे लिए कुछ धन की व्यवस्था करा दीजिये । संत ने कहा , मेरे पास तो ऐसा धन हैं नही लेकिन नदी के उस पार जहाँ बालू का ढेर हैं, वहाँ जाकर देखो ,शायद तुम्हारा भाग्य चमक जाये । कल मैंने वहाँ पारस मणि पड़ी देखी थी ।
निर्धन व्यक्ति यह जानकारी पाकर अत्यंत प्रसन्न हुआ तुरंत बालू के ढेर की ओर दौड़ गया । वहां जाकर वह पारसमणि को खोजने लगा । थोड़ी देर में उसे वास्तव में वह मणि पड़ी हुयी मिल गयी ।
उस गरीब व्यक्ति के हाथ मे लाठी थी, जिसके किनारे पर थोड़ा लोहा लगा हुआ था । उसने उस लोहे को पारसमणि से छुवा दिया, सारा लोहा , सोने मे बदल गया । उस निर्धन के आनंद की सीमा न रही , वह ख़ुशी से नाचने लगा ।
लेकिन तभी अचानक उसके मन मे एक ख्याल आया, आखिर संत के पास ऐसी कौन सी चीज या पारस है, जिसकी वजह से उन्हें पारसमणि भी व्यर्थ जान पड़ी । वह फिर संत के पास वापस पहुंचा और बोला
"करुणामय संत जी । इस बार मै कुछ मांगने नहीं आया हूँ, सिर्फ एक जानकारी चाहता हूँ । कृपया यह बता दीजिये की वह कौन सी चीज हैँ जिसे पाकर आपने पारसमणि को भी पत्थर की तरह तुच्छ समझा और उसे आप वही छोड़कर आ गए?
इसके उत्तर मे संत ने केवल तीन अक्षरों का एक छोटा सा शब्द अपने मुख से निकाला - "संतोष"..!!
लगभग दस साल का अख़बार बेचने वाला बालक एक मकान का गेट बजा रहा है।(उस दिन अखबार नहीं छपा होगा)
मालकिन - बाहर आकर पूछी "क्या है ? "
बालक - "आंटी जी क्या मैं आपका गार्डेन साफ कर दूं ?"
मालकिन - नहीं, हमें नहीं करवाना।"
बालक - हाथ जोड़ते हुए दयनीय स्वर में.. "प्लीज आंटी जी करा लीजिये न, अच्छे से साफ करूंगा।"
मालकिन - द्रवित होते हुए "अच्छा ठीक है, कितने पैसा लेगा ?"
बालक - पैसा नहीं आंटी जी, खाना दे देना।"
मालकिन- ओह !! आ जाओ अच्छे से काम करना..!
(लगता है बेचारा भूखा है पहले खाना दे देती हूँ..मालकिन बुदबुदायी।)
मालकिन- ऐ लड़के..! पहले खाना खा ले, फिर काम करना।
बालक -नहीं आंटी जी, पहले काम कर लूँ फिर आप खाना दे देना।
मालकिन - ठीक है ! कहकर अपने काम में लग गयी।
बालक - एक घंटे बाद "आंटी जी देख लीजिए, सफाई अच्छे से हुई कि नहीं।
मालकिन -अरे वाह! तूने तो बहुत बढ़िया सफाई की है, गमले भी करीने से जमा दिए। यहां बैठ, मैं खाना लाती हूँ।
जैसे ही मालकिन ने उसे खाना दिया! बालक जेब से पन्नी निकाल कर उसमें खाना रखने लगा।
मालकिन - भूखे काम किया है, अब खाना तो यहीं बैठकर खा ले। जरूरत होगी तो और दे दूंगी।
बालक - नहीं आंटी, मेरी बीमार माँ घर पर है।सरकारी अस्पताल से दवा तो मिल गयी है,पर डाॅ साहब ने कहा है दवा खाली पेट नहीं खाना है।
मालकिन रो पड़ी..और अपने हाथों से मासूम को उसकी दुसरी माँ बनकर खाना खिलाया..
फिर... उसकी माँ के लिए रोटियां बनाई .. और साथ उसके घर जाकर उसकी माँ को रोटियां दे आयी ..
और कह आयी .. बहन आप बहुत अमीर हो ..
जो दौलत आपने अपने बेटे को दी है वो हम अपने बच्चों को नहीं दे पाते हैं!
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