बन्द मुठ्ठी लाख की..

 बन्द मुठ्ठी लाख की..

एक समय एक राज्य में राजा ने घोषणा की कि वह राज्य के मंदिर में पूजा अर्चना करने के लिए अमुक दिन जाएगा। इतना सुनते ही मंदिर के पुजारी ने मंदिर की रंग रोगन और सजावट करना शुरू कर दिया, क्योंकि राजा आने वाले थे। इस खर्चे के लिए उसने बड़ी रकम का कर्ज लिया।


नियत तिथि पर राजा मंदिर में दर्शन, पूजा, अर्चना के लिए पहुंचे और पूजा अर्चना करने के बाद आरती की थाली में चार आने दक्षिणा स्वरूप रखें और अपने महल में प्रस्थान कर गए, पूजा की थाली में चार आने देखकर पुजारी बड़ा नाराज हुआ, उसे लगा कि राजा जब मंदिर में आएंगे तो काफी दक्षिणा मिलेगी पर चार आने, बहुत ही दुखी हुआ कि कर्ज कैसे चुका पाएगा, इसलिए उसने एक उपाय सोचा।


गांव भर में ढिंढोरा पिटवाया की राजा की दी हुई वस्तु को वह नीलाम कर रहा है। नीलामी पर उसने अपनी मुट्ठी में चार आने रखे पर मुट्ठी बंद रखी और किसी को दिखाई नहीं। लोग समझे की राजा की दी हुई वस्तु बहुत अमूल्य होगी इसलिए बोली एक निश्चित रकम से शुरू हुई और बोली बढ़ते बढ़ते एक बड़ी रकम तक पहुंची और पुजारी ने वो वस्तु फिर भी देने से इनकार कर दिया। यह बात राजा के कानों तक पहुंची।


राजा ने अपने सैनिकों से पुजारी को बुलवाया और पुजारी से निवेदन किया कि वह मेरी वस्तु को नीलाम ना करें मैं तुम्हें उतनी रकम के बजाय, अत्यधिक रकम देता हूं और इस प्रकार राजा ने सवा लाख रुपए देकर अपनी प्रजा के सामने अपनी इज्जत को बचाया तब से यह कहावत बनी बंद मुट्ठी सवा लाख की खुल गई तो खाक की यह मुहावरा आज भी प्रचलन में है।


" एक भूखे बच्चे की मुस्कान..."


शहर की सबसे भीड़भाड़ वाली सड़क पर, एक बच्चा फटे कपड़ों में खाली कटोरा लेकर बैठा था।

लोग आते-जाते रहे। किसी ने देखा नहीं, किसी ने देखा… लेकिन नज़रें फेर लीं।


मैंने पूछा – "क्यों बैठा है यहां?"

वो बोला – "मम्मी बोली थी रोटी लानी है… और जब तक ना लाऊं, घर मत आना…"


मैं चुप था…

क्योंकि मेरे पास उसके लिए कोई ज्ञान नहीं था, कोई उपदेश नहीं था — सिर्फ दो समोसे थे।


मैंने उसे वो समोसे दिए,

उसकी आंखों में जो चमक आई,

वो शायद मैंने किसी बड़े होटल में खाना खाते हुए बच्चों में कभी नहीं देखी।


उस दिन समझ आया –

"सेवा कोई संस्था नहीं होती, सेवा दिल से होती है।

और मदद कोई करोड़ों की ज़रूरत नहीं होती, कभी-कभी दो समोसे ही काफी होते हैं।"


बस किसी एक की भूख मिटा दें, एक ज़रूरत पूरी कर दें,

शायद भगवान उसी में मिल जाए...


*!! अष्टावक्र का ज्ञान !!*


ऋषि को अपने शिष्य कहोड़ की प्रतिभा से प्रभावित होकर उन्होंने अपनी पुत्री सुजाता का विवाह कहोड़ से कर दिया। सुजाता के गर्भ ठहरने के बाद ऋषि कहोड़ सुजाता को वेदपाठ सुनाते थे। तभी सुजाता के गर्भ से बालक बोला - ‘पिताजी! आप गलत पाठ कर रहे हैं। इस पर कहोड़ को क्रोध आ गया और शाप दिया तू आठ स्थानों से वक्र (टेढ़ा) होकर पैदा होगा। कुछ दिन बाद कहोड़, राजा जनक के दरबार में एक महान विद्वान बंदी से शास्त्रार्थ में हार गए और नियम अनुसार, कहोड़ को जल समाधि लेनी पड़ी। कुछ दिनों बाद अष्टावक्र का जन्म हुआ।


एक दिन माँ से पिता की सच्चाई पता चली, तो अष्टावक्र दुखी हुआ और बारह साल का अष्टावक्र बंदी से शास्त्रार्थ करने के लिए राजा जनक के दरबार में पहुंचा। सभा में आते ही बंदी को शास्त्रार्थ के लिए चुनौती दी, लेकिन अष्टावक्र को देखकर सभी पंडित और सभासद हंसने लगे, क्योंकि वो आठ जगह से टेढ़े थे, उनकी चाल से ही लोग हंसने लगते थे। सभी अष्टावक्र पर हंस रहे थे और अष्टावक्र सब लोगों पर। जनक ने पूछा- ‘हे बालक! सभी लोगों की हंसी समझ आती है, लेकिन तुम क्यों हंस रहे हो?


अष्टावक्र बोले - महाराज आपकी सभा चमारों की सभा है, जो मेरी चमड़ी की विकृति पर हंस रहे हैं, इनमें कोई विद्वान नहीं! ये चमड़े के पारखी हैं। मंदिर के टेढ़े होने से आकाश टेढ़ा नहीं होता है और घड़े के फूटे होने से आकाश नहीं फूटता है। इसके बाद शास्त्रार्थ में बंदी की हार हुई। अष्टावक्र ने बंदी को जल में डुबोने का आग्रह किया। बंदी बोला मैं वरुण-पुत्र हूं और सब हारे ब्राह्मणों को पिता से पास भेज देता हूं। मैं उनको वापस बुला लेता हूं। सभी हारे हुए ब्राह्मण वापस आ गए, उनमें अष्टावक्र के पिता कहोड़ भी थे। इसके बाद राजा जनक ने अष्टावक्र को अपना गुरु बना लिया और उनके आत्मज्ञान प्राप्त किया। राजा जनक और अष्टावक्र के इस संवाद को अष्टावक्र गीता के नाम से जाना जाता है।


*शिक्षा :-*

जैसे आभूषण के पुराने या कम सुंदर होने से सोने की कीमत कम नहीं हो जाती, वैसे शरीर की कुरूपता से आत्म तत्व कम नहीं होता। कभी किसी व्यक्ति के शरीर की सुंदरता को देखकर प्रभावित या किसी की कुरूपता को देखता घृणा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि शरीर तो हाड़-मांस से बना है। देखना है तो उसका ज्ञान, प्रेम और दिव्यता देखो, क्योंकि आत्मा सबका समान है।


*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*

*जिसका मन मस्त है, उसके पास समस्त है।।*

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