इश्वर में विश्वास

इश्वर में विश्वास


_एक सन्त कुएं पर स्वयं को लटका कर ध्यान किया करते थे और कहते थे, जिस दिन यह जंजीर टूटेगी, मुझे ईश्वर के दर्शन हो जाएंगे।_


_उनसे पूरा गांव प्रभावित था। सभी उनकी भक्ति, उनके तप की तारीफें करते थे। एक व्यक्ति के मन में इच्छा हुई कि मैं भी ईश्वर दर्शन करूँ।_


_वह रस्सी से पैर को बांधकर कुएं में लटक गया और कृष्ण जी का ध्यान करने लगा।_ 


_जब रस्सी टूटी, उसे कृष्ण ने अपनी गोद में उठा लिया और दर्शन भी दिए।_ 


_तब व्यक्ति ने पूछा- आप इतनी जल्दी मुझे दर्शन देने क्यों चले आये, जबकि वे संत महात्मा तो वर्षों से आपको बुला रहे हैं।_


_कृष्ण बोले, वो कुएं पर लटकते जरूर हैं, किंतु पैर को लोहे की जंजीर से बांधकर। उसे मुझसे ज्यादा जंजीर पर विश्वास है।_


_तुझे खुद से ज्यादा मुझ पर विश्वास है, इसलिए मैं आ गया।_


_आवश्यक नहीं कि दर्शन में वर्षों लगें। आपकी शरणागति आपको ईश्वर के दर्शन अवश्य कराएगी और शीघ्र ही कराएगी।_ 


_प्रश्न केवल इतना है आप उन पर कितना विश्वास करते हैं।_


_ईश्वर सभी प्राणियों के हृदय में स्थित हैं। शरीररूपी यंत्र पर चढ़े हुए सब प्राणियों को,वे अपनी माया से घुमाते रहते हैं,इसे सदैव याद रखें और बुद्धि में धारण करने के साथ व्यवहार में भी धारण करें..!!

   

_मन और माया का खेल_


विषयों की इच्छा,, उसका भोग करने की इच्छा,, उसको ग्रहण करने की इच्छा जिस पर हम आकर्षित हो जाते हैं, यह इच्छा जहां उत्पन्न होती है जिसको होती है वह मन है,,, 


लेकिन इच्छा उत्पन्न हो क्यों रही है, इसका कारण है उसका भ्रम,,, मन अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए जहां प्रयत्न करती है जहां-जहां उनकी आसक्ति हो जाती है ! जहां से वह अपने अंदर ग्रहण करती है! वह सब माया है! स्वयं को सुखी करने के लिए जहां भटकती रहती है! जहां विचरण करती है वह माया है!


जो आपको भ्रमित कर रही है आकर्षित कर रही है वह माया है और जो आकर्षित हो रहा है वह मन है!,, जैसे सामने अप्सरा खड़ी है,,,, वह कौन है? माया जो तुम्हें भ्रमित करने के लिए भेजी गई है लेकिन फंसना नहीं है जो आकर्षित होकर फस जाता है वह मन है जो उस पर आकर्षित हो रहा वह मन है! माया का स्वरूप सबके लिए एक समान है लेकिन किसका मन उसमें आकर्षित होगा और किसका नहीं यह उस स्वयं पर निर्भर करता है! अगर आत्मज्ञान, तत्वज्ञान उनका मजबूत है तो वह इस माया को भी परास्त कर सकता है! और बड़े-बड़े ऋषि मुनियों ने किया है! माया को देखते ही झट से समझ गए कि हमें फसाया जा रहा है फंसना नहीं है तो वह जन्म मृत्यु के बंधन से मुक्त हो गए!

माया की चाल बाजी को जो नहीं समझ पाए वह जन्म मृत्यु के बंधन में फंसे हुए हैं और फंसे रहेंगे! माया हमें अपनी जाल में कैसे फंसाती है पहले तो इसको जानना होगा! जो माया को जान लेता है वह माया अधिपति ब्रह्म को जानकर माया से मुक्त हो जाता है! और वह ब्रह्म स्वरूप हो जाता है! वेद कहते हैं!


ऐसे ही उस अप्सरा की तरह यह संपूर्ण जगत एक माया है! जो प्रतिपल जीव को फसाने में लगी है! जो उनको प्रभावित करती है वह माया,,, लेकिन जिसको प्रभावित होता है,, जिनका प्रभाव जिस पर पड़ता है,, वह मन है! माया का प्रभाव मन, बुद्धि, चित, अहंकार इन चारों पर ही पड़ता है! क्योंकि यही 4 माया का स्वरूप है!


इस संपूर्ण माया से अलग-अलग चीज उठाकर जीव अलग-अलग चीजों में आकर्षित होती है, वह उसके मन पर निर्भर करता है! 


माया का काम है जीव को भ्रमित करना,,, उसको आकर्षित करना और अपने जाल में उसको फसाना,,,,, लेकिन मन अपनी अज्ञानता वश उसमें फिसल जाता है! यह नहीं देख पाता कि यह स्थाई नहीं है, हमें ठगी जा रही है!


उस प्रचंड आकर्षण के वेग के प्रबल होने के कारण जीव स्वयं को भूल जाती है नहीं जान पाती मैं कौन हूं? यह भूलकर संसार में भ्रमित हो जाती है! हम स्वयं आत्म स्वरूप हैं ना हमारा कोई बंधन है ना हमें किसी सुख की आवश्यकता है हम स्वयं आनंद स्वरूप हैं उसको नहीं जान पाती! और उसमें लटक जाती है!


Download

टिप्पणियाँ