भलाई और शिकायत
एक बार एक केकड़ा समुद्र किनारे अपनी मस्ती में चला जा रहा था और बीच बीच में रुक कर अपने पैरों के निशान देख कर खुश होता।
*आगे बढ़ता पैरों के निशान देखता और खुश होता,,,,,*
इतने में एक लहर आई और उसके पैरों के सभी निशान मिट गये।
इस पर केकड़े को बड़ा गुस्सा आया, उसने लहर से कहा
"ए लहर मैं तो तुझे अपना मित्र मानता था, पर ये तूने क्या किया ,मेरे बनाये सुंदर पैरों के निशानों को ही मिटा दिया।
*कैसी दोस्त हो तुम"*
तब लहर बोली "वो देखो पीछे से मछुआरे पैरों के निशान देख कर केकड़ों को पकड़ने आ रहे हैं।
हे मित्र, तुमको वो पकड़ न लें ,बस इसीलिए मैंने निशान मिटा दिए।
ये सुनकर केकड़े की आँखों में आँसू आ गये ।
हमारे साथ भी तो ऐसा ही होता है ज़िन्दगी अच्छी खासी चलती रहती है, और हम उसे देखते रहने में ही इतने ज्यादा मगन हो जाते हैं कि सोचते हैं कि बस इसी तरह ही ज़िन्दगी चलती रहे ।
लेकिन जैसे ही कोई दुःख या मुसीबत आती है या कोई काम हमारी सोच के मुताबित नही होता तो हम ऊँगली उस मलिक की तरफ उठाना शुरू कर देते हैं, लेकिन ये भूल जाते हैं कि शायद ये दुःख या तकलीफ जो उसने दी हुई है, इसके पीछे भी हमारे भले का कोई राज छिपा होगा ।
जब तक समय और काम हमारी मर्ज़ी से चलते रहते है , तब हम खुश रहते है, और जब काम उस मालिक की मर्ज़ी से होता है, तो हम क्यों उसकी तरफ मुँह बना कर शिकायत करने पर आ जाते हैं। जबकि हमे तो खुश होना चाहिए कि जब मैं अपनी मर्ज़ी से इतना खुश था तो अब मुझे मलिक की मर्ज़ी कितना खुश रख सकती है ।
*उसकी मौज दिखती नही, लेकिन दिखाती बहुत है ।*
*उसकी मौज बोलती नही, लेकिन करती बहुत है*
सबसे बड़ा गुण
एक राजा को अपने लिए सेवक की आवश्यकता थी। उसके मंत्री ने दो दिनों के बाद एक योग्य व्यक्ति को राजा के सामने पेश किया। राजा ने उसे अपना सेवक बना तो लिया पर बाद में मंत्री से कहा, ‘‘वैसे तो यह आदमी ठीक है पर इसका रंग-रूप अच्छा नहीं है।’’ मंत्री को यह बात अजीब लगी पर वह चुप रहा।
_एक बार गर्मी के मौसम में राजा ने उस सेवक को पानी लाने के लिए कहा। सेवक सोने के पात्र में पानी लेकर आया। राजा ने जब पानी पिया तो पानी पीने में थोड़ा गर्म लगा। राजा ने कुल्ला करके फेंक दिया। वह बोला, ‘‘इतना गर्म पानी, वह भी गर्मी के इस मौसम में, तुम्हें इतनी भी समझ नहीं।’’ मंत्री यह सब देख रहा था। मंत्री ने उस सेवक को मिट्टी के पात्र में पानी लाने को कहा। राजा ने यह पानी पीकर तृप्ति का अनुभव किया।_
_इस पर मंत्री ने कहा, ‘‘महाराज, बाहर को नहीं, भीतर को देखें। सोने का पात्र सुंदर, मूल्यवान और अच्छा है, लेकिन शीतलता प्रदान करने का गुण इसमें नहीं है। मिट्टी का पात्र अत्यंत साधारण है लेकिन इसमें ठंडा करने की क्षमता है। कोरे रंग-रूप को न देखकर गुण को देखें।’’_
*गुरुजी ने कहा है कि मनुष्य गुणों से उत्तम बनता है*
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