नया वसंत


नया वसंत


वसंत का मौसम अनिका के लिए सबसे खूबसूरत मौसम हुआ करता था। इसी मौसम में यो पहली बार राज से मिली थी। हालांकि यह रिश्ता अनिका के माता-पिता ने ही तय किया था। परंतु फिर भी अनिका की राज से मिलने के बाद जो एहसास हुआ वह बिल्कुल नया और खूबसूरत था। अनिका तब केवल 21 साल की थी और राज उसका पहला प्यार। फिर वसंत पंचमी के दिन वे दोनों विवाह के बंधन में बंध गए।


अनिका ने राज और राज के परिवार को कभी भी शिकायत का कोई मौका नहीं दिया। राज अवसर अपने काम में बहुत व्यस्त रहता था। अनिका ने राज के परिवार को जिस तरह अपनाया था। लगता ही नहीं था कि वह राज का परिवार है। सब रिश्ते नाते अनिका के अपने लगते थे। राज के माता-पिता की सेवा हो या बच्चे की परवरिश। अनिका ने सब इतनी लगन और ईमानदारी से किया था कि जिसकी मिसाल दी जा सकती थी। अनिका ने अपने जीवन के 24 वसंत राज को निस्वार्थ और सच्चा प्रेम किया।


और अब वह काफी जिम्मेदारियों से मुक्त हो गई थी। राज के माता-पिता अब नहीं रहे थे। अनिका और राज का बेटा भी विदेश के अच्छे कॉलेज में पढ़ रहा था। इस बार पहली बार अनिका ने अपने लिए कुछ सोचा। वह अपनी शादी की 25वीं सालगिरह धूमधाम से मनाना चाहती थी।


वो बहुत ज्यादा उत्साहित थी। अपने प्यार के 25वें वसंत को लेकर। जैसे-जैसे वसंत पंचमी की तारीख करीब आ रही थी। अनिका की तैयारियां भी जोर शोर से चल जा रही थीं। तभी अनिका के सपनों पर ऐसा कहर टूटा जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी। राज ने अनिका को कहा, 'शादी की सालगिरह मनाने की कोई आवश्यकता नहीं।


वो काफी दिनों से अनिका को बताना चाह रहा था कि वह किसी और से प्यार करता है। और अब वह उसी के साथ रहना चाहता है। और अनिका को इस बात से कोई आपत्ति ना हो तो वह इस घर में आराम से रह सकती है। अन्यथा वह जैसा चाहे।' राज ने इतने साफ शब्दों में अपनी बात कह दी अनिका को कुछ समझ ही नहीं आया कि वह क्या करे।


अनिका के लिए यह गहरे सदमे से कम नहीं था। उसे लगा उसका अब तक का सारा जीवन अर्थहीन हो गया। उसकी सारी भावनाएं अपने आप को छला हुआ महसूस कर रही थी। वो कुछ भी नहीं कह पाई और चुपचाप अपना सामान उठाकर मायके चली आई। उसे समझ नहीं आ रहा था किसी से क्या कहें?


उसके जीवन में तो वसंत की जगह पतझड़ आ गया। मां भी अब नहीं रही। पिता और छोटे भाई को यह कैसे कहेगी और मायके भी कब तक रह पाएगी। और वापस राज के पास जाना मतलब अपने आत्मसम्मान से समझौता करना। उसे कुछ भी नहीं सूझ रहा था। इस तरह अचानक अनिका का मायके आ जाना।


और उसके चेहरे का उड़ा रंग देखकर पिताजी ने उससे पूछ ही लिया। 'बेटा क्या बात है?' अनिका अपना दर्द कहने से खुद को रोक नहीं पाई।


पिता के सामने सारा दर्द आंसू बनकर बह गया। पिता को सुनकर बहुत धक्का लगा।


उम्र के इस पड़ाव पर यह सब तो उनकी सोच से भी परे था। उन्होंने अनिका को संभालते हुए कहा, 'बेटा में दामाद जी से बात करूंगा। वो ऐसा नहीं कर सकते।'


पर आनिका ने सोच लिया था। जहां उसके प्रेम का ऐसा तिरस्कार हुआ है। वहां वो कभी वापस नहीं जाएगी। पर रास्ता भी नजर नहीं आ रहा था। कोई दूसरा


पिछले 24 सालों से तो उसने राज के घर परिवार को संभालने के अलावा कुछ सोचा भी नहीं था।


अगले दिन वसंत पंचमी थी और अनिका के पिता ने राज को समझा-बुझाकर अनीता को वापस ले जाने के लिए बुला लिया था। परंतु अनिका का मन इस समझौते के लिए तैयार नहीं था। जैसे ही आनिका के मायके में मां सरस्वती की पूजा समाप्त हुई। राज अनिका को लेने पहुंच चुका था।


पिता ने अनिका को समझाया, 'बेटा इस उम्र में अब कहां जाओगी। समझदारी से काम लो सब ठीक हो जाएगा।'


जैसे ही अनिका राज के साथ जाने के लिए तैयार हुई, तभी अनिका को मां कहते हुए बेटे ने उसे कसकर गले लगा लिया।


दरअसल, अनिका के छोटे भाई ने फोन करके अनिका के बेटे को सब कुछ बता दिया था।


बेटे ने मां के आंसू पूछते हुए कहा, 'मां आपका प्यार, आपकी भावनाएं कभी व्यर्थ नहीं हो सकती। आपको कोई आवश्यकता नहीं है अपने आत्मसम्मान से समझौता करने की। आप मेरे साथ चलिए। में वादा करता हूं। मैं आपके जीवन में वसंत का मौसम कभी खत्म नहीं होने दूंगा।'


अनिका की आंखों में खुशी की चमक थी। उसका निश्चल प्रेम राज को चाहे समझ ना आया हो पर उसकी संतान उसके साथ खड़ी थी।


*आप चाहे किसी भी समाज से हो, अगर आप अपने समाज के किसी उभरते हुए व्यक्तित्व से जलते हो या उसकी निंदा करते हो तो आप निश्चित रूप से उस समाज के लिए कलंक हो ।*


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