अरे! ये क्या कपड़े पहन लिए तुमने

" अरे! ये क्या कपड़े पहन लिए तुमने। सारी शर्म और हया


बेच खाई क्या बहू। हमारे घर में इस तरह के कपड़े कोई नहीं

पहनता। जाओ जाकर साड़ी पहनो"सास डांटते हुए बोली। 

"लेकिन मम्मी जी हम लोग पार्टी में जा रहे हैं। इन्होंने ही कहा है कि तुम्हें गाउन पहनना पड़ेगा। और खुद ये गाउन वो खरीद कर लाए हैं " बहू नेहा ने कहा।

" मैं अपने बेटे को तुझसे बेहतर जानती हूं। वो तो बड़ा सीधा-साधा है। तूने ही कहा होगा कि तुझे गाउन पहननी है। तो मजबूरी में उसे लानी पड़ गई होगी। सब जानती हूं मैं तुम आजकल की लड़कियों के पति से बात मनवाने के तरीके "

सास मानने को ही तैयार नहीं थी। बस बहू पर इल्जाम लगा रही थी। " पर मम्मी जी..."

" पर वर कुछ नहीं। अभी भी जबान पर जबान चलाए जा रही है। जा जाकर कपड़े बदलकर आ। ऐसे कपड़े पहन कर तो मैं तुझे घर के बाहर न निकलने दूं "

सास चिल्लाते हुए बोली।

आखिर बहू अपना सा मुंह लेकर अपने कमरे में आ गई। पर हैरानी उसे इस बात की हुई कि पति सोमेश भी वहीं खड़ा हुआ था। पर अपनी मां के सामने उसने एक शब्द तक नहीं कहा।

आखिर थोड़ी देर में साड़ी पहन कर वो बाहर आ गई। जैसे ही बाहर आई, तब तक ननद पाखी भी अपनी सहेली के यहां से आ चुकी थी। वो भी अपनी भाभी को देखते ही बोली," अरे! ये क्या पहन लिया। आप पार्टी में जा रही हो या किसी मंदिर में। भला साड़ी पहनकर आजकल कौन जाता है पार्टी में। कल आपको इतना अच्छा डिजाइन का सूट लाकर दिया था। वो क्यों नहीं पहना। सही में भाभी, आप

कितनी ओल्ड फैशन हो। बेचारा मेरा भाई वहां सबके सामने

शर्मिंदा हो जाएगा" ननद हंसते हुए बोली। बहू ने सास और पति की तरफ देखा। लेकिन दोनों ही चुप थे। "अब यही खड़ी रहोगी या जाओगी भी। पार्टी के लिए देर नहीं हो रही है"तब तक सास भी बोल पड़ी। थोड़ी देर बाद दोनों पति-पत्नी पार्टी के लिए रवाना हो गए। सोमेश कुछ नहीं बोला। सिर्फ कार ड्राइव कर रहा था। और नेहा? वो उसे घूरे जा रही थी। आखिर थोड़ी देर बाद सोमेश बोला, "तुम में जरा सी अकल नहीं है। क्या जरूरत थी मम्मी के सामने ये गाउन पहन कर आने की। लो, अब साड़ी पहन कर जाओ पार्टी में" " तो गाउन पहनकर कहां से निकल कर आती मैं। मम्मी जी तो हमेशा घर के दरवाजे पर ही बैठी मिलती है। गायब तो नहीं हो सकती थी ना मैं "नेहा ने जवाब दिया।" हां तो बस। अब मैं तुम्हें तुम्हारी सहेली के घर छोड़कर अपनी पार्टी में जा रहा हूं। मुझे नहीं ले जाना तुम्हें पार्टी में।

वहां सब की पत्नियां गाउन पहन कर आई होगी। और मेरी वाली को देखो। मुझे अपनी इज्जत का फालूदा नहीं करवाना" सोमेश झल्लाते हुए बोला। सोमेश की बात सुनकर नेहा हैरानी से उसकी तरफ देखने लगी। उसे अपनी तरफ देखते देखकर वो बोला, " अब ऐसे क्या देख रही हो मेरी तरफ‌। बिल्कुल भी पता नहीं है तुम्हें कि पति को कैसे खुश किया जाता है। गंवार की 

गंवार ही रहोगी तुम" " तुमने और तुम्हारे घरवालों ने मुझे समझ क्या रखा है। एक चाहता है कि मैं साड़ी पहन कर ही रहूं। और दूसरा चाहता है कि मैं सूट पहन कर रहूं। और तीसरा चाहता है कि मैं नए जमाने कपड़े पहन कर घूमूं। अरे तुम लोग मिलकर ही क्यों नहीं डिसाइड कर लेते हो कि आखिर तुम लोग चाहते क्या हो। तीनों ने मिलकर मेरी जिंदगी खराब कर रखी है। ऊपर से मुझे अपना पंचिंग बैग और बना लिया है। जो आकर मुझे सुना कर चले जाते हो। अपनी मम्मी के सामने तो तुम्हारी जबान तक नहीं खुलती है‌। और यहां मुझे सुनाए जा रहे हो। और तुम तीनों को खुश करते-करते मैं कहां खुश हो पाती हूं। मैं क्या चाहती हूं उसका तो तुम लोगों को ख्याल ही नहीं होता। तीनों की तीनों बस ऐसे सिखाने में लगे रहते हो जैसे मुझे कपड़े पहनना ही नहीं आता। एक अकेली बहु आखिर कैसे सबको खुश कर सकती है। बस, बहुत हो गया। अब से मैं वही पहनूंगी जो मुझे पसंद है। और आपकी जबान नहीं खुलती हैं अपनी मम्मी के सामने तो जवाब मैं दे दूंगी। तुम एक अच्छे बेटे बन कर रहो। मैं ही बुरी बहू बन जाऊंगी" नेहा अपनी भड़ास निकाल रही थी और उसकी बात सुनकर 

सोमेश चुप हो गया। रास्ते में उसकी सहेली के घर पर उसे 

छोड़कर अपनी पार्टी के लिए रवाना हो गया। दो घंटे बाद पार्टी कर सोमेश नेहा को सहेली के घर से लेता हुआ घर आ गया। घर आते ही सास ने पूछा,

" कैसी रही पार्टी" " मम्मी जी मुझे नहीं पता। मैं तो अपनी सहेली के घर पर थी" नेहा ने कहा। " लेकिन क्यों? तुम तो पार्टी में गई थी ना" सास ने हैरानी से पूछा। " मम्मी जी मेरे कपड़े पार्टी के लायक नहीं थे। आपके बेटे को शर्मिंदा नहीं होना पड़े इसलिए वो मुझे मेरी सहेली के घर छोड़ गए थे" नेहा ने साफ-साफ कहा। सास ने हैरानी से अपने बेटे की तरफ देखा। लेकिन बेटा अभी भी चुप था।

" तू ही जानबूझकर अपनी सहेली के घर गई होगी। और मेरे बेटे पर झूठा इल्जाम लगा रही है। मैं अपने बेटे को बहुत अच्छे से जानती हूं" सास ने कहा।

" आपको जो सोचना है वो सोचिए मम्मी जी। मैं आपकी सोच को नहीं बदल सकती। वैसे भी एक बेटा अपनी मां के सामने कुछ और होता है और अपनी पत्नी के सामने कुछ और। और ना ही मैं अब सबको खुश कर सकती हूं। मुझे भी पता है कि आखिर कौन सी जगह पर कैसे कपड़े पहने जाते हैं। तो मुझे मेरी मर्जी से कपड़े पहन लेने दीजिए। हां, अगर मर्यादा तोड़ती हूं तो बिल्कुल टोकिए। लेकिन मैं तो मर्यादा में रहकर ही कपड़े पहन रही हूं ना। फिर हर कोई मुझे कपड़े पहनना क्यों सीखा है। मेरी पसंद जैसे कोई मायने नहीं रखती। प्लीज आइंदा से किसी को कोई जरूरत नहीं है मुझे यह बताने की कि मुझे कब कहां और क्या पहनना है? इतनी समझदारी मेरे अंदर है। तो हर कोई मेरे सामने खुद को मुझसे अधिक समझदार साबित करने की कोशिश ना करें।"

बहु कह कर अपने कमरे में चली गई। सास ने बेटे की तरफ देखा तो उसने कहा, " मम्मी कुछ पार्टीयों में ड्रेस कोड होता है। वहां की पार्टी में साड़ी नहीं चलती। इसलिए मैं तुम्हारी बहू को उसकी सहेली के घर छोड़ गया था" आखिर बेटे की बात सुनकर सास चुप हो गई। बोलती भी क्या? गलती बहू की थी ही नहीं। हां इतना था कि आइंदा उन्होंने बहू को कपड़ों के लिए नहीं टोका। आखिर बहू भी तो 

मर्यादा में रहकर ही कपड़े पहन रही थी। 

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