सुमन के पति मेरिन इंजीनियर थे

डिफेंस कॉलोनी में अधिकतर ऐसी फैमली है जिनके बच्चे बाहर कहीं पढ़ाई कर रहे हैं या पति शिप पर हैं छः महीने के लिए.. या फिर जिनके बच्चे नौकरी कर रहे हैं.. और ये वही महिलाएं हैं जो अपने पतियों को बच्चों को तनाव मुक्त कर कर्म क्षेत्र में खुशी खुशी भेज देती है..


अपने नाम के अनुसार हीं डिफेंस कॉलोनी सुरक्षित और पॉश इलाके में थी.. महिलाएं चैरिटी संस्था समाज सेवा एनजीओ किट्टी पार्टी आदि में बहुत सक्रिय भूमिका निभाती थी.. क्योंकि उनके पास समय और पैसा दोनो था...


सुमन के पति मेरिन इंजीनियर थे..सुमन अपनी बेटी श्रेया और बेटा शौर्य के साथ रहती थी.. डिफेंस कॉलोनी में रहकर भी सबसे कटी हुई.. अपने बच्चों में लगी रहती.. शादी के पहले सेंट्रल स्कूल में कुछ महीने पढ़ा चुकी थी.. बच्चों का साइंस खुद पढ़ाती थी.. और इंग्लिश भी.. दसवीं के बाद श्रेया डीपीएस आरके पुरम से प्लस टू करने चली गई.. शौर्य रह गया..


अगले साल शौर्य भी चला गया…. सुमन के पति रंजय साल में छः महीने शिप पर रहते... बाकी समय में दोस्तों रिश्तेदारों और सुमन के साथ बिताते.. उनके चले जाने पर सुमन को अकेलापन महसूस होना लगा...


सुमन के पापा और मम्मी दोनो एसबीआई में थे.. बचपन से सुमन मां को बैंक जाते देखती.. स्कूल से लौटने पर दोनो बहनें ताला खोलती.. सुमन को लगता काश मां मेरी सहेलियों की मां की तरह गरम गरम कुछ खाने का बना कर देती.. पर मां पांच बजे के बाद थकी हारी आती.. यही छोटी छोटी बातें उसको हाउस वाईफ बनने के लिए प्रेरित किया.. पढ़ी लिखी होने के बाद भी मां कुछ पूछने पर बोलती ट्यूशन वाले सर से पूछ लो बेटा मैं बहुत थकी हूं... उमा आंटी के हाथ का खाना खा कर उब गई थी पर मां से कहने पर उनका जवाब होता आंटी से जो पसंद हो बोलकर बनवा लो.


और सुमन रंजय से शादी के बाद नौकरी छोड़ दी..


छुट्टियों में दो बार से सुमन गौर कर रही थी दोनो बच्चे आते तो दोस्तों में मोबाइल में व्यस्त हो जाते..


सोच के रखती ये बनाऊंगी खिलाऊंगी बच्चों को.. साथ मूवी देखने जाऊंगी.. कहीं घूमने साथ साथ जायेंगे.. एक महीने में एक साल की कसर पूरी कर लूंगी पर…..


उनके कपड़े धोना सुखाना प्रेस करना.. कमरे ठीक करना.. मेरे हिस्से में यही सुख आया.. इतने पैसे चाहिए...सुमन की आत्मा #छलनी हो जाती #और फिर सुमन घर की चहारदीवारी से निकलने का दृढ़ संकल्प ले लिया…


डिफेंस कॉलोनी में चर्चा का विषय हो गया सुमन किट्टी से लेकर हर एक्टिविटी से जुड़ गई और पूरी सक्रियता से लग गई... श्रेया इंजीनियरिंग कर रही थी और शौर्य जेएनयू में पढ़ रहा था..


छुट्टियों में बच्चे घर आए तो सुमन पांडिचेरी गई थी ग्रुप के साथ.. चार दिन बाद आई चाभी बगल में देकर गई थी.. श्रेया और शौर्य गुस्से से भरे बैठे थे.. फट पड़े... दोनो दम भर सुमन पर अपना गुस्सा निकाला.. सुमन शांति से सब कुछ सुनती रही …फिर कहा अब मैं बोलूं.. मैने अपनी खुशी इच्छाएं सपने सब कुछ तुम दोनो की परवरिश और पढ़ाई को भेंट चढ़ा दी.. तुम्हारे पापा की कमी को भी पूरा किया क्योंकि छः महीने वो घर से बाहर रहते हैं.…


तुम दोनो जब बाहर चले गए पढ़ने तो एक एक पल तुम्हारे इंतजार में बिताया और जब तुम दोनो आए तो तुम्हारे नजर में मैं घर में रखी बेकार की वस्तु बन गई थी... मुझे इग्नोर कर दोस्तों के साथ समय बिताना और घर में रहने पर फोन पर व्यस्त रहना... मुझे कितना छलनी करता #था कभी तुमने सोचा.. मैं नौकरी नहीं की बच्चों को पूरा समय प्यार दे सकूं.. और इसका फल मुझे क्या मिला.. 


अब तुम दोनो मेरे हिसाब से एडजस्ट करो क्योंकि कल तुम्हारी नौकरी लग जायेगी और मैं यहां अकेले रह जाऊंगी.. डिप्रेशन की शिकार बनने से पहले संभाल लिया है खुद को.. मेरी भी जिंदगी है...मुझे भी अपने तरीके से जीने का पूरा अधिकार है, ये कहकर सुमन दोनो का गाल थपथपाकर कॉफी बनाने किचेन में चली गई...और दोनो बच्चे मां का ये नया रूप देखकर अवाक थे..


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