संस्कार
प्रीति और कुणाल का 6 साल के प्रेम संबंध ने आज एक मोड़ पर आकर दम तोड़ दिया। मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लेते ही प्रथम वर्ष में ही दोनों की दोस्ती हुई। दोनों को धीरे-धीरे समझ में आने लगा कि एक दूसरे को चाहने लगे हैं। दोनों एक दूसरे को डेटिंग करने लगे। कभी किसी कॉफी हाउस में बैठकर घंटों करते तो कभी किसी थिएटर में बैठकर कोई मनपसंद मूवी देखते। कॉलेज में भी दोनों के रिश्ते की चर्चा होने लगी। सभी बातों से बेफिक्र दोनों अपने में मस्त थे।
देखते ही देखते 4 साल कैसे गुजर गए पता नहीं चला। दोनों एमबीबीएस डॉक्टर हो गये। पीजी करने के लिए दोनों को अलग-अलग शहर जाना पड़ा। दोनों एक दूसरे को बहुत मिस करने लगे। फिर भी छुट्टियों में कभी-कभी दोनों एक दूसरे से मिल लेते और घंटों बैठ कर बात करते। आखिर में दोनों ने यह फैसला लिया कि एक ही शहर में कोई हॉस्पिटल ज्वाइन करेंगे। आखिर में दोनों ने दिल्ली का एक हॉस्पिटल ज्वाइन किया।
जब किराए के फ्लैट में रहने की बात आई तो दोनों ही परेशान थे क्योंकि दिल्ली जैसे शहर में किराया बहुत अधिक होता है। ऐसे में कुणाल ने प्रीति को एक साथ रहने का ऑफर दिया।
"एक साथ रहना अर्थात लिव इन रिलेशनशिप में?" प्रीति ने पूछा।
"हां.. शादी से पहले एक साथ रहने का अर्थ तो लिव इन रिलेशनशिप ही होता है प्रीति।"
"परंतु मेरे घर वाले पसंद नहीं करेंगे!"
"घरवालों को बताने की आवश्यकता ही क्या है? कह देना अलग फ्लैट में रहते हैं!"
"मैं घर वालों से झूठ नहीं बोल सकती.. मुझे ऐसे संस्कार नहीं मिले हैं!"
"झूठ बोलने की आवश्यकता ही क्या है? उनको पता ही नहीं चलेगा!"
"कभी अगर मेरे मॉम डैड मुससे मिलने आए तब क्या कहूंगी? तब तो पता चल जाएगा। मैं अपने मॉम डैड से झूठ नहीं बोल सकती। और न ही मेरा मन लिव इन रिलेशनशिप के लिए मान रहा है!"
"तुम कितनी कंजरवेटिव ख्याल की हो। इस युग की लड़कियां तो ऐसी नहीं होती है। आजकल इस रिलेशन को तो बहुत ही नॉर्मल तरीके से लिया जाता है। छोटे-छोटे शहरों में भी लड़कियां लिव इन रिलेशनशिप में रहती है और हम तो महानगर में हैं। कम ऑन प्रीति.. कैसे घिसे पिटे विचार लेकर चलती हो तुम।"
"घिसे पीटे ही सही.. जो संस्कार मेरे मॉम डैड ने मुझे दिए हैं.. मैं उन संस्कारों का दिल से इज्जत करती हूं! और शादी से पहले किसी लड़के से शारीरिक संबंध बनाने में परहेज करती हूं क्योंकि मैं खुद का इज्जत करना जानती हूं। एक काम क्यों नहीं करते हो तुम्हारे मॉम डैड से कहो कि मेरे मोम डैड से शादी की बात करें। हम दोनों ही अब डॉक्टर बन गए हैं अब तो शादी कर ही सकते हैं। शादी हो जाएगी तो फिर कोई प्रॉब्लम ही नहीं है रहेगा।"
"क्या... इतनी जल्दी शादी? अभी अभी तो हम डॉक्टर बने हैं और एक दूसरे को इतने अच्छे से समझ भी नहीं पाए!"
"6 साल हो गए हमारे रिलेशन को! तुम कह रहे हो एक दूसरे को समझ नहीं पाए और क्या समझना चाहते हो?"
"मैं तो एक साथ रहकर ही समझना चाहता हूं कि हम एक दूसरे के लायक है कि नहीं। लिव इन रिलेशनशिप में रह कर यही तो समझा जाता है।"
"फिर अगर लगेगा कि हम एक दूसरे के लायक नहीं है या एक दूसरे से मन भर जाएगा तो.. तो क्या करेंगे!" प्रीति का प्रश्न।
"तो अलग हो जाएंगे.. दूसरा जीवन साथी ढूंढ लेंगे!"
"व्हाट.. आर यू मैड कुणाल? तुम्हें पता भी है तुम क्या कह रहे हो?"
"हां.. हां.. अच्छी तरह पता है!"
"तो.. अब तक क्या तुम मुझसे प्यार का नाटक करते रहे?"
"बस.. तुम्हें समझ रहा था परंतु अभी तक कुछ समझ में नहीं आया!"
"तो..एक साथ रहने से समझ में आ जाएगा तुम्हें? तुम ये क्यों नहीं कहते कि तुम मुझसे शारीरिक संबंध बनाना चाहते हो इसलिए एक साथ रहना चाहते हो परंतु शादी नहीं करना चाहते। शादी करके जिम्मेदारी नहीं उठाना चाहते! इसे एक्सप्लोइटेशन कहते हैं और मैं जानबूझकर खुद को एक्सप्लोइट होने नहीं दे सकती। मेरे संस्कार और मेरा एजुकेशन इस बात की इजाजत नहीं देता।"
"हां यही समझ लो.. किसी लड़की को अच्छे से जाने बिना उसकी जिम्मेदारी नहीं उठा सकता।"
"तुम लड़के लोग हम लड़कियों को क्या समझते हो? केवल खिलौना? क्या हमारा कोई मन नहीं है? कोई भावना नहीं है? हमारा समाज इतना शिक्षित हो गया परंतु अभी भी स्त्रियों को लेकर उनकी मानसिकता नहीं बदली। स्त्रियों को भोग्या समझना तुम जैसों की मानसिकता है! तुम अच्छे से समझ लो.. मैं उन लड़कियों में से नहीं हूं कि तुम मुझे एक्सप्लोइट कर सको। मैं तुम्हें अपना दोस्त समझती रही परंतु तुम तो आस्तीन का सांप निकले। तुमने अपने बुरे विचारों की ज़हर से मेरी भावना को आहत कर दिया। खिलवाड़ किया मेरी भावना से परंतु..मुझे अपनी भावनाओं पर पूरा नियंत्रण है। मॉम डैड ने मुझे बचपन से यह शिक्षा दी है! मुझे लड़की होने पर गर्व है, हीन भावना नहीं है मुझ में। अच्छा हुआ ईश्वर ने मुझे लड़की बनाकर जन्म दिया वरना तुम्हारी जैसी सोच वाला लड़का बनकर जन्म लेने से मुझे अफसोस होता! खैर..
जन्म से कोई बुरा नहीं होता.. परवरिश में कोई कमी रह जाती है तभी तुम जैसे लोग दिशाहीन भागते हैं! गुड बाय!! अब मैं चलती हूं और अपने शहर का कोई हॉस्पिटल ज्वाइन करूंगी!"
बहुत दृढ़ता से निर्णय लेकर प्रीति ने आगे कदम बढ़ा दिए और वह मन ही मन सोचने लगी.."थैंक्स मॉम डैड.. आप लोगों ने मुझे इतने अच्छे संस्कार दिए! इसके लिए दिल से आभार! काश कि सभी पेरेंट्स अपने बच्चों को चाहे लड़का हो या लड़की दोनों को अच्छे संस्कार देकर बड़ा करें तो ऐसी स्थिति उत्पन्न ही नहीं होगी।"
कुणाल, प्रीति और उसके कॉन्फिडेंस को पीछे से केवल देखता रह गया। उसे रोकने का उसमें साहस नहीं था..!!
“फिर से सोच लीजिए रमलेश बाबू, बेटे की शादी की बात है। उसकी पढ़ाई लिखाई पर आपने इतना खर्च किया है और वो आपका इकलौता बेटा है। ये लोग बहुत गरीब हैं और आठवीं संतान है ये इनकी। शादी में कुछ नहीं दे पाएंगे। आपके और भाभी जी के सारे मनोरथ धरे के धरे रह जाएंगे।”
धीरे से पंडित गंगाराम ने कहा था उनके कान में… जिन्हें अपने बेटे की कुंडली दिखवाई थी रमलेश ने और योगेश बाबू की बेटी राधा से उनके बेटे की शादी की बात आगे बढ़ाने के लिए कहा था।
“हमें बस संस्कारी बहु चाहिए जिसे हम अपनी बेटी की तरह रखेंगे। सिर्फ शादी के जोड़े में उसे लिवा लाएंगे, वो जोड़ा भी हम भिजवा देंगे। आप लोगों को बिल्कुल चिंता करने की जरूरत नहीं है। हमें लड़की और उसका परिवार पसंद आया और कुछ नहीं चाहिए। हमारा बेटा अच्छा खासा कमाता है और फिर मेरा वेतन भी अच्छा है। मैं दहेज मुक्त विवाह ही करवाऊंगा अपने बेटे का। मुझे सिर्फ योगेश बाबू आपकी लड़की चाहिए।”
“यह हमारी खुशकिस्मती है जो आप से हमारा रिश्ता जुड़ेगा,पर आप तो हमें शर्मिंदा कर रहें हैं। अपनी बेटी की शादी का जोड़ा तो हम बनवा ही सकते हैं बस कन्यादान के लिए सोने के सिक्के का इंतजाम करना मुश्किल होगा।”
“कोई जरुरत नहीं है आपको सोना दान करने की आपकी बेटी ही सोना है। आप बस उसका हाथ मेरे बेटे के हाथ में दे दीजिए।”
योगेश बाबू अपनी बेटी राधा का रिश्ता रमलेश के बेटे गोपाल से तय करके अपनी बेटी की किस्मत पर नाज़ कर रहे थे।
” मेरी बेटी बहुत ही किस्मत वाली है जो खुद चलकर इतना अच्छा रिश्ता उसके लिए आया।”
उन्हें अपनी बेटी के विवाह की चिंता सता रही थी। अपनी सात बेटियों के विवाह में अपनी सारी जमीन और पत्नी के गहने बेच चुके थे। अब उनके पास ऐसा कुछ था ही नहीं जिसे बेचते, घर भी गिरवी पर था।
“क्या सोच रहे हैं जी? बेटी की शादी का खर्च हम कैसे उठाएंगे। बेटी का कन्यादान कैसे करेंगे। मेरे पास तो अब एक भी सोने चांदी का गहना बचा ही नहीं है।”
घर आकर जब योगेश ने अपनी पत्नी को बताया तो उन्हें अपनी परंपरा के अनुसार बेटी के विवाह में सोने से कन्यादान की चिंता सताने लगी। अपने गले में काले मोती की माला को निहारने लगी थी वो। अपने इस मोतियों की माला में लगा सोने का वो लॉकेट भी तो उसने पिछले वर्ष ही अपनी सातवीं बेटी को शादी में दे दिया था।
” राधा की मां वो लोग ही सारा खर्च उठाने को तैयार हैं। बस लाल जोड़े का इंतजाम करना होगा। बहुत बड़ा घर है शहर में उनका और बड़े लोग हैं रमलेश बाबू उनका दिल भी उतना ही बड़ा है। घमंड तो छूकर नहीं गया है।वो तो शादी का जोड़ा भी राधा के लिए खरीदने को तैयार हैं जिसे पहनकर वो शादी के मंडप पर बैठे पर मैंने ही मना कर दिया। इतना तो हमें करना ही होगा।”
“हां मैं खुद उसके लिए साड़ी तैयार करूंगी, कुछ पैसे जोड़ रखें हैं उनसे आज ही लाल साड़ी और गोटे किनारी ले आऊंगी पर गिन्नी कहां से लाएंगे। सोना खरीदने की हमारी औकात अब कहां है।”
“तूं वो सब चिंता छोड़ बस शादी की तैयारी शुरू कर।”
रात भर योगेश अपनी टूटी हुई खपरैल की छत को निहारता रहा। गरीब के घर की बेटियों की किस्मत ऊपर वाला अच्छा ही लिखकर भेजता है। भगवान की दया से सभी बेटियों की शादी अच्छे घर में हो गई बस सबसे छोटी बेटी राधा की चिंता भी दूर कर दी। वंश बढ़ाने के लिए बेटे की लालसा में एक के बाद एक आठ बेटियां योगेश के आंगन की रौनक बढ़ाने लगी। बेटियों की शादी का दहेज सोचकर ही डर जाया करता था। जैसे-तैसे सात बेटियों का विवाह तो करवा दिया अब सबसे छोटी बेटी राधा का कन्यादान बांकी था।
खाली हाथ कैसे दान दूंगा उसे। सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी प्रथा चली आ रही थी बेटी का हाथ जमाई के हाथ में देते समय उसके हाथ में गिन्नी यानी सोने का सिक्का देने की।
उनकी नजर मंदिर में रखे गुल्लक पर पड़ी जिसमें वो कभी कभार एक दो रुपए का सिक्का डाल देता था। मन ही मन हिसाब लगाया पांच सौ रुपए से ज्यादा तो हो ही गए होंगे। वो बिस्तर से उठा और गुल्लक तोड़ कर पैसे गिनने लगा। पांच सौ एक रुपए थे पूरे। इन पैसों से एक चांदी का सिक्का ही खरीद लेगा यही सोचकर पैसों को सिरहाने में रख सो गया।
अगले दिन जब उठा तो विचार किया कि ये पैसों की थैली ही दे देगा।
रमलेश शहर में रहते थे । गांव किसी काम से आए थे वहीं राधा को अपने किसी रिश्तेदार के घर शादी में काम करवाते और गीत गाते देख पहली ही नजर में अपने बेटे के लिए पसंद कर लिया था। राधा के संस्कार और उसका रंग रूप उसकी सुरीली आवाज ने मोहित कर दिया था रहलेश को। तभी उन्होंने मन में निश्चय कर लिया था कि राधा को अपने घर की बहू बनाने का। जिस घर में उसके कदम पड़ेंगे वो घर स्वर्ग समान हो जाएगा। उनके बेटे गोपाल को भी राधा बहुत पसंद आई थी।
हफ्ते भर बाद ही शादी का मुहूर्त निकला। बहुत ही कम लोगों को बरात में लाए थे रमलेश बाबू। जितने मुंह उतनी बातें और बस कमियां ही तो निकालतें हैं लोग एक दूसरे की। कोई कहता..
” गांव की लड़की ही पसंद आई रमलेश बाबू आपको अपने बेटे के लिए। एक पैसा इसके बाप के पास नहीं है शादी में खर्च करने के लिए और आपके बेटू के लिए तो शहर में भी एक से बढ़कर एक रिश्ता आएगा। काहे गांव देहात की लड़की को अपने घर की बहू बना रहे हैं।”
तो कोई कहता…
“समाज सेवा का ठेका ले के बैठे हैं।”
रमलेश बाबू एक कान से सुनते उनकी बातें और बिना किसी प्रतिक्रिया के उनकी किसी बात पर ध्यान ही नहीं देते।
शादी का पूरा खर्च उन्होंने ही उठाया।
जब कन्यादान का समय आया तो योगेश बाबू ने वो पांच सौ एक सिक्कों से कन्या दान करना चाहा तो रमलेश जी ने उनमें से सिर्फ आठ सिक्के ही रखे।
“आपकी आठवीं संतान मेरे घर की पहली बहू है हमें सिर्फ आपकी बेटी चाहिए आप बाकी सिक्कों को रख लीजिए।”
“लोग क्या कहेंगे। सोने के सिक्के का तो इंतजाम नहीं कर पाया पर ये पांच सौ एक तो रख लीजिए।”
अपनी पगड़ी उतारते हुए योगेश जी बोले।
बड़े प्यार से रमलेश ने उनके सिर पर पगड़ी पहनाई और उन आठ सिक्कों को अपने माथे से लगा लिया।
“कहने दीजिए लोगों को मुझे फर्क नहीं पड़ता। मैं अनमोल खजाना आपके घर की लक्ष्मी अपने घर ले जा रहा हूं।”
खुशी के आंसू लुढ़क आए थे योगेश की आंखों में।
बेटी का कन्यादान संपन्न हुआ उन आठ सिक्कों से बाकी के सारे सिक्के पंडित गंगाराम जी को थमाते हुए रमलेश बोले “दान दक्षिणा की चिंता मत कीजिएगा” और अपनी तरफ से भी उन्होंने पैसों की गड्डी पंडित जी के हाथ में थमा दी।
उन आठ सिक्कों को लाल कपड़े में बांध कर अपनी जेब में ऐसे रखा जैसे कोई बहुत बड़ा खजाना उनके हाथों लग गया हो।
राधा को बहु बनाकर लाए और अपनी बेटी की तरह मानने लगे। राधा भी अपने सास ससुर की सेवा बड़े मन से करती हुई अपनी किस्मत पर नाज़ करती।
शिप्रा का रिजर्वेशन जिस बोगी में था, उसमें लगभग सभी लड़के ही थे ।
टॉयलेट जाने के बहाने शिप्रा पूरी बोगी घूम आई थी, मुश्किल से दो या तीन औरतें होंगी । मन अनजाने भय से काँप सा गया ।
पहली बार अकेली #सफर कर रही थी, इसलिये पहले से ही घबराई हुई थी। अतः खुद को सहज रखने के लिए चुपचाप अपनी सीट पर मैगज़ीन निकाल कर पढ़ने लगी ।
नवयुवकों का झुंड जो शायद किसी कैम्प जा रहे थे, के हँसी - मजाक , चुटकुले उसके हिम्मत को और भी तोड़ रहे थे ।
शिप्रा के भय और घबराहट के बीच अनचाही सी रात धीरे - धीरे उतरने लगी ।
सहसा सामने के सीट पर बैठे लड़के ने कहा --
" हेलो , मैं साकेत और आप ? "
भय से पीली पड़ चुकी शिप्रा ने कहा --" जी मैं ........."
"कोई बात नहीं , नाम मत बताइये । वैसे कहाँ जा रहीं हैं आप ?"
शिप्रा ने धीरे से कहा--"इलाहबाद"
"क्या इलाहाबाद... ?
वो तो मेरा नानी -घर है। इस रिश्ते से तो आप मेरी बहन लगीं ।" खुश होते हुए साकेत ने कहा ।और फिर #इलाहाबाद की अनगिनत बातें बताता रहा कि उसके नाना जी काफी नामी व्यक्ति हैं , उसके दोनों मामा सेना के उच्च अधिकारी हैं और ढेरों नई - पुरानी बातें ।
शिप्रा भी धीरे - धीरे सामान्य हो उसके बातों में रूचि लेती रही । शिप्रा रात भर साकेत का हाथ पकड़ के सोती रही
रात जैसे कुँवारी आई थी , वैसे ही पवित्र कुँवारी गुजर गई ।
सुबह शिप्रा ने कहा - " लीजिये मेरा पता रख लीजिए , कभी नानी घर आइये तो जरुर मिलने आइयेगा ।"
" कौन सा नानीघर बहन ? वो तो मैंने आपको डरते देखा तो झूठ - मूठ के रिश्ते गढ़ता रहा । मैं तो पहले कभी इलाहबाद आया ही नहीं ।"
"क्या..... ?" -- चौंक उठी शिप्रा ।
"बहन ऐसा नहीं है कि सभी लड़के बुरे ही होते हैं, कि किसी अकेली लड़की को देखा नहीं कि उस पर गिद्ध की तरह टूट पड़ें । हम में ही तो पिता और भाई भी होते हैं ।"
कह कर प्यार से उसके सर पर हाथ रख मुस्कुरा उठा साकेत ।
शिप्रा साकेत को देखती रही जैसे कि कोई अपना भाई उससे विदा ले रहा हो शिप्रा की आँखें गीली हो चुकी थी
काश इस संसार मे सब ऐसे हो जाये
न कोई अत्याचार ,न व्यभिचार ,भय मुक्त समाज का स्वरूप हमारा देश,हमारा प्रदेश, हमारा शहर,हमारा गांव
जहाँ सभी बहन ,बेटियों,खुली हवा में सांस ले सकें
निर्भय होकर कहीं भी कभी भी आ जा सके जहाँ जर कोई एक दूसरे का मददगार हो 🤔
तब रिक्से वाले ने आवाज लगाई #बहन कहा चलना है
कॉलेज तक चलना है भाई ले चलोगे आज वो डरी नहीं ।
भाई जो साथ मे था.
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें