घर के दरवाजे पर ही ठिठक गई थी

घर के दरवाजे पर ही ठिठक गई थी तपस्या जब उसके कानों में अपनी मां की आवाज़ गूंजी..”बिना बात ये लड़की उस दिन लड़के वालों के सामने आ गई और वो सुगंधा की जगह उसे पसंद कर गए,कितनी मुश्किल से एक अच्छा रिश्ता हाथ आया था और इस लड़की ने सब गुड गोबर कर दिया।”


“पर तपस्या कौन पराई है छोटी?”,उसकी मौसी की आवाज आई थी,”देखा जाए तो वो सुगंधा से बड़ी है,पहले उसीकी शादी होनी चाहिए,तुम इतना गुस्सा क्यों हो?”


“ये नियम कानून मुझे न सिखाओ जीजी,इस तपस्या को मैंने कभी अपना न समझा,इसको देखते ही मुझे अपनी सौतन की याद आ जाती है और इसके पापा जो इस पर जान छिड़कते थे,खुद तो चले गए,मेरी छाती पर इसे छोड़ गए।”


“लेकिन मत भूलो ! उस बेचारी ने,शशांक जी के जाने के बाद पूरे घर की जिम्मेदारी अपने कोमल कंधों पर लाद रखी है,फिर ये सब शिकायत क्यों?”


तभी,तपस्या के पैर से ठोकर लगने से कोई गिलास गिरने की आवाज हुई और वो दोनो चौंक कर चुप हो गई।


“आ गई बेटा?”मौसी जी ने कहा तो तपस्या ने उन्हें प्रणाम किया।


गर्मी के दिन थे,झुलसती धूप में खुद को सूरज के कहर से बचाती,सिर पर मलमल की चुन्नी लपेटे तपस्या का हलक सूख कर कांटा हो रहा था और मां की ऐसी बातों से उसे चक्कर ही आ गए थे।


गर्मी से कुम्हलाया चेहरा और बदरंग हो उठा जब मां ने जलती निगाहों से उसे घूरा।


अंदर से सुगंधा ने आकर अलग बम फोड़ दिया,”मां!इनसे कह दो,ये ही शादी कर लेंगी अमित से, उस दिन उसे लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी इन्होंने।”


सूखे होंठों पर जीभ फेरते तपस्या ने कुछ बोलना चाहा था पर तभी उसका छोटा भाई परेश बोला,”दीदी!मैंने आप से चार हजार रुपए मांगे थे और आपने सिर्फ दो ही दिए,इतने कम पैसों में पिकनिक पर कैसे जा पाऊंगा मै?”


“कैसे लोग हैं ये सब?न कोई पानी को पूछता,न कोई सहानुभूति रखता मुझसे,हरेक को शिकायत है मुझसे जैसे मैंने कोई जुर्म किया हो,पिछले ही वर्ष जब मेरे लिए शादी का प्रस्ताव आया था तो मां ने ये कहकर कि अभी क्या जल्दी है शादी की? उस रिश्ते से इंकार कर दिया था और आज सुगंधा के लिए आए लड़के वाले मुझे पसंद कर गए तो लाल पीली हो रही हैं!”


“मां!आप उन्हें मना कर दें अगर वो मेरे लिए कह रहे हैं,अब उन्होंने मुझे पसंद किया तो इसमें मेरी क्या खता?आप ही बताओ मौसी जी?” तपस्या ने मौसी जी की तरफ देखते हुए कहा।


“सही तो कह रही है बेचारी!” मौसी जी ने उसका पक्ष लिया।


“बस आपको भी ये ही सही लगती है,बड़ी चालाक है ये,सबके सामने भोली बनी रहती है जैसे उस दिन लड़के वालों के सामने भाग भाग कर सब काम कर रही थी, मैं क्या समझती नहीं कि ये ऐसा क्यों कर रही थी?”


तपस्या डबडबाई आंखों से कमरे में जाकर बिस्तर पर ढेर हो गई,सामने उसकी मां और पिता की तस्वीर लगी थी,वो फूट फूट कर रो पड़ी,”पिताजी!कैसा वादा लेकर चले गए मुझसे आप?जब ये लोग मुझे अपना ही नहीं समझते तो मै कब तक इस बोझ भरी जिंदगी को जीती रहूं? मैं कुछ भी करूं,इन्हें खोट निकालना है उसमे लेकिन अब मुझसे सहन नहीं होता और।”


रो धोकर हल्की होकर, वो रसोई में घुस गई शाम का खाना तैयार करने।


अगले दिन,ऑफिस पहुंची तो उसकी पुरानी दोस्त सुधा मिल गई। उस समय तो दुआ सलाम ही किया दोनो ने लेकिन लंच पर दोनो निकल पड़ी थीं पास ही एक रेस्त्रां में जहां दोनो के मनपसंद डोसे बनते थे,कितने दिनों से प्रोग्राम बना रही थीं वो दोनो।


हालांकि मौसम गर्म था पर पैदल ही चलती पहुंच गई थीं वो।


“कितनी कमजोर ही गई तपस्या तू?बिलकुल ध्यान नहीं रखती अपना?” वो बोली थी।


“मैं तो वैसी ही हूं,तेरा प्यार छलक रहा है तेरी चिंता में..” तपस्या हंसी थी।


“और तेरे लव अफेयर का क्या हुआ? मिस्टर बोस का प्रस्ताव स्वीकार किया या नहीं अभी?”


“कैसे करूं यार! तू जानती है घर के हालात,अभी बहुत जिम्मेदारी हैं मुझपर ,”


“और वो लोग क्या कर रहे हैं तेरे लिए?सिर्फ तानेबाजी…तेरी शक्ल देखकर पता चल रहा है कितना ख्याल रखते हैं वो तेरा”,


“छोड़ भी,कोई और बात करते हैं…” तपस्या ने टालना चाहा।


“नहीं तप्पू, तू बहुत भोली है,ये दुनिया बहुत जालिम है यार! तू कहां इस मायाजाल में फंस गई है…वो लोग तेरा बेवकूफ बना रहे हैं।”


“कोई नहीं,हैं तो मेरे अपने ही..!” वो धीमे स्वर में बोली।


तेज कदमों से अब वो लौट रही थीं अपने ऑफिस की तरफ…तभी सुधा बोली…


“ये गुलमोहर देख रही है सामने!”


“कितने प्यारे लग रहे हैं!लाल लाल,मुस्कराते हुए,जबकि इतनी तेज धूप है,कोई भी झुलस जाए पर इन्हें ये गर्म थपेड़े कुछ नहीं कहते,देख इनकी जिजीविषा विपरीत परिस्थितियों से जूझने की!!”तपस्या बोली।


“बिलकुल तेरी तरह हैं ये…तू भी तो गुलमोहर जैसी ही है,हर परिस्थिति में मुस्कुराती हुई, अडिग खड़ी है, उन लोगों के लिए कुछ सुनने को भी तैयार नहीं।”


“तो क्या बुरी हूं?आज से मुझे गुलमोहर ही बुलाया कर…” तपस्या हंसी।


“नहीं…तू गुलमोहर है पर अगर वो तेरी कद्र नहीं करते ,तुझे उनके लिए घुलने की जरूरत नहीं, तू आज ही मिस्टर बोस को हां कहेगी,तुझे मेरी कसम!”


“लेकिन…मां,सुगंधा और…”


“कहीं नहीं भागे जा रहे वो सब…बल्कि तेरी ज्यादा इज्जत करेंगे और कह देना अपनी मां से कि अमित की शादी सुगंधा से ही करवा दें अगर करा सकती हैं तो…तू मिस्टर बोस से शादी कर उस घर को छोड़ दे,बहुत कर चुकी उन सबके लिए।”


“परंतु ये क्या नीति संगत होगा?”तपस्या हकला रही थी।


“तू उनकी बेटी है,मानती हूं तूने अपने पिता को वचन दिया था उन सबका साथ देने के लिए,उनका ध्यान रखने के लिए पर किसी की गलत बातें सहना भी गलती को बढ़ावा देना ही होता है तपस्या!सोच!!वो मां होकर अपना फर्ज नहीं निभा रहीं तो तू कब तक उनकी फरमादार बेटी बनी रहेगी? न तेरे छोटे बहन भाई तेरी कोई इज्जत करते।फिर तू अपना घर ही तो बसा रही है,उनकी सहायता बाद में भी कर सकती है वैसे ही जैसे आज कर रही है,मिस्टर बोस बहुत सुलझे हुए हैं।”


हम्मम…तपस्या सोच में पड़ गई।


“ज्यादा मत सोच और आज ही ये सुअवसर अपना ले,कल को वो भी कहीं हाथ से निकल जाए,सुनहरे रिश्ते और प्यार करने वाले तकदीर से मिलते हैं तप्पू!देखना फिर ये घरवाले भी तेरी कद्र करने लगेंगे।”


सुधा ने समझाया तो तपस्या को उसकी बात में वजन नजर आया,कभी बहुत छोटी थी तो उसकी मां कहा करती थी उससे,ये जिंदगी एक नाटक है और यहां हम सब कलाकार हैं, पर्दा उठता है हम अपना किरदार निभाते हैं,भगवान निर्देशक हैं,वो जैसा कहते हैं ,करते जाओ,बस इस मायाजाल में फंसना नहीं है किसीको,तुम तो फूल हो,खिल कर ,मुस्करा कर रहो,अपनी सुगंध बिखेरो और काम खत्म,फिर वो तो गुलमोहर के फूल जैसे है,जैसा सुधा कहती है…तपस्या मुस्कराई थी दिल में,”क्या सच में? मै गुलमोहर हूं” जो भले ही घने जंगल में खिले या शमशान घाट में,जहां प्रचंड सूरज की किरणें सब को झुलसा रही हैं,मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, मै तो तब भी खिल रही हूं,मुस्करा रही हूं,दमक रही हूं,मेरी जिजीविषा ही मुझे जीवित रखेगी और खिल कर बिखरने का हौसला देगी।


तपस्या के कदमों में तेजी आ गई थी,आज वो अपने दिल की बात मिस्टर बोस यानि अपने प्यार सुशांत को बतला ही देगी जो कब से उसकी एक हां के इंतजार में कुआंरा बैठा था।


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