मुश्किल दौर

मुश्किल दौर



एक बार की बात है, एक कक्षा में गुरूजी अपने सभी छात्रों को समझाना चाहते थे कि प्रकृति सभी को समान अवसर देती है और उस अवसर का इस्तेमाल करके अपना भाग्य खुद बना सकते हैं। इसी बात को ठीक तरह से समझाने के लिए गुरूजी ने तीन कटोरे लिए। पहले कटोरे में एक आलू रखा, दूसरे में अंडा और तीसरे कटोरे में चाय की पत्ती डाल दी। अब तीनों कटोरों में पानी डालकर उनको गैस पर उबलने के लिए रख दिया। 

 

सभी छात्र ये सब हैरान होकर देख रहे थे, लेकिन किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। बीस मिनट बाद जब तीनों बर्तन में उबाल आने लगे, तो गुरूजी ने सभी कटोरों को नीचे उतारा और आलू, अंडा और चाय को बाहर निकाला।

 

अब उन्होंने सभी छात्रों से तीनों कटोरों को गौर से देखने के लिए कहा। अब भी किसी छात्र को समझ नहीं आ रहा था।


आखिर में गुरु जी ने एक बच्चे से तीनों (आलू, अंडा और चाय) को स्पर्श करने के लिए कहा। जब छात्र ने आलू को हाथ लगाया तो पाया कि जो आलू पहले काफी कठोर हो गया था और पानी में उबलने के बाद काफी मुलायम हो गया था। 


जब छात्र ने, अंडे को उठाया तो देखा जो अंडा पहले बहुत नाज़ुक था उबलने के बाद वह कठोर हो गया है। अब बारी थी चाय के कप को उठाने की। जब छात्र ने चाय के कप को उठाया तो देखा चाय की पत्ती ने गर्म पानी के साथ मिलकर अपना रूप बदल लिया था और अब वह चाय बन चुकी थी। 


अब गुरु जी ने समझाया, हमने तीन अलग-अलग चीजों को समान विपत्ति से गुज़ारा, यानी कि तीनों को समान रूप से पानी में उबाला लेकिन बाहर आने पर तीनों चीजें एक जैसी नहीं मिली। 


आलू जो कठोर था वो मुलायम हो गया, अंडा पहले से कठोर हो गया और चाय की पत्ती ने भी अपना रूप बदल लिया। उसी तरह यही बात इंसानों पर भी लागू होती है। 

 

शिक्षा

सभी को समान अवसर मिलते हैं और मुश्किलें आती हैं लेकिन ये पूरी तरह आप पर निर्भर है कि आप परेशानी का सामना कैसा करते हैं और मुश्किल दौर से निकलने के बाद क्या बनते हैं।


माँ लक्ष्मी कहाँ रहती है।

एक निर्धन व्यक्ति था। वह नित्य भगवान विष्णुजी और लक्ष्मीजी की पूजा करता था। एक बार जब दीपावली के दिन उसने भगवती लक्ष्मी की श्रद्धाभक्ति से पूजा अर्चना की, तो उसकी आराधना से लक्ष्मी प्रसन्न होकर उसके सामने प्रकट हुईं और उसे एक अंगूठी भेंट देकर अदृश्य हो गईं।


अंगूठी सामान्य नहीं थी। उसे पहनकर जैसे ही अगले दिन उसने धन पाने की कामना की तो उसके सामने धन का ढेर लग गया। वह ख़ुशी के मारे झूम उठा। इसी बीच उसे भूख लगी, तो मन में अच्छे पकवान खाने की इच्छा हुई। कुछ ही पल में उसके सामने पकवान आ गए।


अंगूठी का चमत्कार मालूम पड़ते ही उसने अपने लिए आलीशान बंगला, नौकर-चाकर आदि तमाम सुविधाएं प्राप्त कर लीं। वह भगवती लक्ष्मी की कृपा से प्राप्त उस अंगूठी के कारण अब सुख से रहने लगा।


अब उसे किसी प्रकार का कोई दु:ख, कष्ट या चिंता नहीं थी। नगर में उसका बहुत नाम हो गया।


एक दिन उस नगर में जोरदार तूफ़ान के साथ बारिश होने लगी। कई निर्धन लोगों के मकानों के छप्पर उड़ गए। लोग इधर-उधर भागने लगे। तभी एक बुढ़िया उसके बंगले में आई। उसे देख वह व्यक्ति गरज कर बोला- 'ऐ बुढ़िया कहां चली आ रही है बिना पूछे।'


बुढ़िया ने कहा, 'कुछ देर के लिए तुम्हारे यहां रहना चाहती हूं।'


लेकिन उसने उसे बुरी तरह डांट-डपट दिया।


उस बुढ़िया ने कहा, 'मेरा कोई आसरा नहीं है। इतनी तेज बारिश में मैं कहां जाऊंगी? थोड़ी देर की ही तो बात है।'


लेकिन उसकी किसी भी बात का असर उस व्यक्ति पर नहीं पड़ा।जैसे ही सेवकों ने उसे द्वार से बाहर किया, वैसे ही जोरदार बिजली कौंधी।


देखते ही देखते उस व्यक्ति का मकान जलकर खाक़ हो गया। उसके हाथों की अंगूठी भी गायब हो गई। सारा वैभव पल भर में राख के ढेर में बदल गया।


उसने आंख खोल कर जब देखा, तो सामने लक्ष्मीजी खड़ी थीं। जो बुढ़िया कुछ देर पहले उसके सामने दीन-हीन होकर गिड़गिड़ा रही थीं, वही अब लक्ष्मीजी के रूप में उसके सामने मंद-मंद मुस्कुरा रही थीं। वह समझ गया उसने बुढ़िया को नहीं, साक्षात लक्ष्मीजी को घर से निकाल दिया था। वह भगवती के चरणों में गिर पड़ा। देवी बोलीं, 'तुम इस योग्य नहीं हो। जहां निर्धनों का सम्मान नहीं होता, मैं वहां निवास नहीं कर सकती।'


यह कहकर लक्ष्मीजी उसकी आंखों से ओझल हो गईं।


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