कहां जा रही है बहू?"

 कहां जा रही है बहू?"

"मम्मी जी मैं आ कर बताती हूं"


"अरे बता कर तो जा"


रमा दौड़ती- भागती अपना बैग उठाया और जल्दी से गाड़ी निकालती है।


" अरे इतने दिनों बाद गाड़ी से ?"


" बस मैं आती हूं" कहकर रमा बिना बताए घर से चली जाती है ।


रमा के घर में रमा उसके सास, ससुर और पति अमित रहते हैं जो अक्सर ही अपने काम से घर के बाहर रहते हैं। रामा की एक ही नंद है जो की बड़ी है और उसकी शादी हो चुकी है।रमा की शादी को 2 साल हो गए हैं। रमा अपने परिवार के साथ बहुत खुश है। उसके सास -ससुर अधिक उम्र के हैं ससुर राकेश जी रिटायर्ड और स्वस्थ हैं पर सासू मां सुधा जी को दिल की बीमारी है।


4 घंटे बाद रमा घर लौटी। उसके ससुर उसके साथ थे जो की बुरी तरह से घायल थे। माथे पर पट्टी बंधी हुई थी हाथ में फ्रैक्चर हो गया था। सुधा जी अपने पति की ऐसी हालत देखकर बिल्कुल घबरा गई।


"अरे आपको यह सब क्या हुआ? कैसे हुआ? कब हुआ? बदहवास वह एक के बाद एक प्रश्न करती जा रही थी। "


"अरे मम्मी जी अब सब ठीक है। आप घबराइए नहीं। आप बैठ जाइए.. सब बढ़िया है।" रमा ने उन को समझाते हुए बोला।


राकेश जी भी बोले "मैं बिल्कुल ठीक हूं बस यह हेयरलाइन फ्रैक्चर है जो कि जल्दी ही ठीक हो जाएगा। सिर पर थोड़ी गहरी चोट है कुछ टांके आए हैं जो कुछ दिनों में कट जाएंगे।"राकेश जी ने सुधा जी को बोला।


सुधा जी घबराहट के मारे रोने लगी। फिर बोली "अरे पर यह सब कैसे हो गया। मुझे तो किसी ने कुछ बताया ही नहीं।"


रमा जल्दी से पानी लेकर आई और वह अपने सास-ससुर को पानी देते हो बोली इसीलिए मम्मी जी मैं आपको कुछ भी नहीं बता कर गई दी थी क्योंकि आप घबरा जाती।


फिर रमा ने बताया "मुझे एक अनजान व्यक्ति का फोन आया ...जो कि पापा जी के मोबाइल से कर रहा था और कह रहा था कि सड़क पर इनका एक्सीडेंट हो गया है। उन्होंने यह नंबर दिया है आपसे बात करने को। तो मैं आपको फोन कर रहा हूं। मम्मी जी इसीलिए बिना बताए आपको मैं चली गई। यदि मैं आपको बताती तो आप घबराती रहती। घबरा तो मैं भी गई थी लेकिन मुझे तो हिम्मत दिखानी थी ना। वैसे भी अमित शहर में नहीं है।" सुधा अपनी प्यारी बहू रमा की बातें सुन बहुत ही गर्व महसूस कर रही थी‌।


उन्होंने कुछ सोचते हुए लंबी सांस भरते हुए कहा "अच्छा है तूने साल भर पहले ड्राइविंग सीख ली थी। देख काम आ ही गई।"


"हां मम्मी जी कुछ दिनों से मुझे गाड़ी चलाने से मुझे कॉन्फिडेंस भी आ गया था। और पापा जी का एक्सीडेंट वीरान जगह हुआ था। वहां पर आने-जाने के ज्यादा साधन नहीं दिख रहे थे। और हां अपनी गाड़ी से मैं सही समय पर पहुंच गई। 


डॉक्टर ने बोला "आप इनको और थोड़ा देर मे लाती तो काफी बिल्डिंग हो जाती। फिर इनको कोमा में जाने का डर था। सर पर गहरा घाव है पर चिंता की कोई भी बात नहीं है। डॉक्टर ने सिटी स्कैन करके बता दिया है सब सही है।"रमा ने हंस के समझाते हुए अपनी सासु मां को बताया।


सुधा जी भी रमा को देखकर खुशी से मुस्कुराने लगी। आज उनकी बहू ने इतनी समझदारी से एक बेटे जैसा काम किया।राकेश जी को देखने दो दिन बाद पड़ोस के वर्मा जी आए। उनकी बहू बैंक में जॉब करती थी। उनको अपनी बहू के इस बात पर बड़ा गर्व था कि मेरे बेटा बहू दोनों ही कमाते हैं। और वह बातों -बातों में अपनी बहू की कमाने की तारीफ करते ही रहते। और कहीं ना कहीं रामा को नीचा दिखाने की कोशिश करते थे।अमित की बिल्कुल भी इच्छा नहीं थी कि रमा नौकरी करें। पढ़ी-लिखी तो थी वह। पर अमित कहता था तुम घर में ही रहो। नौकरी करने के लिए मैं काफी हूं। तुम मेरे मां-बाप और अपना ध्यान रखो। खुश रहो और जिंदगी का मजा लो। मेरे लिए यही काफी है।रमा को भी नौकरी करने की कोई खास इच्छा नहीं थी। उसे अपनी सीधी- सरल जिंदगी पसंद थी इसलिए उसने भी नौकरी करने की कोई भी जिद नहीं की। वह अपने सास-ससुर के साथ मजे से घर में आराम से रहती थी। 


उस दिन भी वर्मा जी अपनी बहू की तारीफ कर रहे थे। उनकी बातों से अब रमा थोड़ी हर्ट होती थी। यह बात सुधा जी को भी महसूस होने लगी थी। इसलिए सुधा जी बातों ही बातों में उस दिन वर्मा जी को बोली कि "मेरी बहू नौकरी नहीं करती है तो क्या हुआ? वैसे तो बहुत ही सुशील, संस्कारी तथा होशियार है। समय के साथ सही निर्णय लेकर हम लोगों का पूरा ध्यान रखती है। आज राकेश जी हम लोग के सामने हैं तो सिर्फ रमा की वजह से है। डॉक्टर ने बताया कि यदि थोड़ी और देर हो जाती तो राकेश जी का बचना मुश्किल था वह कोमा में भी जा सकते थे। और रमा नौकरी नहीं करती। उसमें उसकी और अमित दोनों की इच्छा है। जरूरी नहीं है कि घर में सभी लोग नौकरी करें। राजेश जी कि इतनी अच्छी पेंशन आती है। साथ ही मेरा बेटा भी इतना अच्छी नौकरी में है। गांव में हमारी इतनी प्रॉपर्टी भी है तो हमें नहीं लगता कि रमा को नौकरी करना जरूरी है।" आज सुधा जी की बात सुनकर वर्मा जी अपना सा मुंह लेकर रह गए।


सबके सामने सुधा जी के मुंह से अपनी बड़ाई सुन रमा अंदर ही अंदर बहुत ही खुश और गौरवान्वित महसूस कर रही थी। उसे लगा जब मेरे परिवार वाले मुझसे खुश है तो मुझे और कुछ नहीं चाहिए।


दोस्तों! आज समाज का प्रचलन हो गया है कि जो लोग नौकरी करते हैं लोग उसको ऊंचा दर्जा देते हैं। पर ये मन की इच्छा और पति- पत्नी का मिलकर लिया गया फैसला होता है। यदि किसी महिला की इच्छा नहीं है तो नौकरी करना जरूरी भी नही।


अभी दो दिन पहले ही असेंबली का चुनाव हुआ है 

हमारे लोकल एरिया के इलेक्शन में बहुत जम कर चुनाव प्रचार हुआ 


कल तक रिजल्ट भी आ जाएगा 


आइये आपको मैं आज के 44 साल पहले 1980 के चुनाव की आँखों देखा हाल बताता हूँ 


उस समय मेरी उम्र बहुत कम थी 


14-15 साल का था मैं 

उस जमाने में कांग्रेस का candidate काफ़ी मज़बूत माना जाता था 

और दूसरी मज़बूत पार्टी थी जनता पार्टी 


इलेक्शन का दिन था 

मैं भी इलेक्शन सेंटर पर गया 

उस जमाने में चुनाव में कोई ID नहीं लगती थी

जिसको गाँव क़स्बे वाले लोग कह दें उसकी identity वही होती थी 


बैलेट पेपर से चुनाव होते थे 

मेरा पास के गाँव का एक लड़का जिसकी उम्र क़रीब 14 साल थी वह भी वोट देने के लिये लाइन में लगा था 


उसके पिताजी गाँव के बाहर किसी शहर में रहते थे 

पोलिंग बूथ पर उस लड़के को उसके गाँव वालों ने उसके पिताजी के नाम पर वोट देने के लिए अंदर बुला लिया 


चुनाव ड्यूटी पर तैनात सरकारी अधिकारी ने कहा कि ये तो बच्चा है 

लेकिन लेकिन पेपर पर तो उम्र 35 साल लिखी हुई है


उसके गाँव वालों ने कहा कि ये लड़का नहीं है

ये वही आदमी है 

इसके दाढ़ी मूँछ नहीं आयी है इस लिये यह लड़के के जैसा दिख रहा है


चुनाव अधिकारी के पास इस जुगाड़ का कोई तोड़ नहीं था 

और उसने चुनाव बूथ के अंदर लड़के को जाने दिया 


और लड़के ने जाकर अपने पिताजी के नाम पर वोट दे दिया


चुनाव केंद्र के बाहर कुछ और गाँव वाले वोट देने के लिए आये हुए थे 


बाहर कुछ लोग खड़े होकर उनको कह रहे थे कि अपने अपने घर जाओ तुम्हारा वोट पड़ गया है

वे सभी लोग चुप चाप वापस चले गये


उस जमाने में सभी पार्टियाँ प्रचार करती थीं और लोग जिनको वोट देना होता था देते थे 


उस जमाने में चुनाव में पैसे का उतना ज़ोर नहीं था जैसे आजकल है 

कम पैसे वाला भी चुनाव लैड कर जीत सकता था 


आजकल तो पैसे के बिना चुनाव लड़ना असंभव है 

और आजकल बहुत खर्च करना पड़ता है

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