आज घर में काफी चहल-पहल थी। छोटी ननद मेघा की शादी पंद्रह दिन बाद ही थी तो सब उसकी तैयारियों में लगे हुए थे। बड़ी ननद वाणी और उसके पति हेमंत घर आए हुए थे। सब लोग पापा जी के कमरे में बैठकर इसी बारे में डिस्कस कर रहे थे। जबकि घर की बहू नित्या सबके लिए चाय नाश्ते की तैयारी कर रही थी।
जैसे ही चाय नाश्ता तैयार हुआ वो सबका चाय नाश्ता लेकर उनके कमरे में आ गई। लेकिन उसके कमरे में प्रवेश करते ही सब लोग चुप हो गए।
नित्या को ये बात बहुत अजीब लगी पर फिर भी उस ने सबको चाय नाश्ता परोसा और खुद भी अपना चाय नाश्ता लेकर बैठ गई। लेकिन तभी मम्मी जी ने उसके पति समीर को नित्या को बाहर भेजने का इशारा किया। जिसे नित्या ने देख भी लिया लेकिन अनजान होने का नाटक करती हुई वो चुपचाप बैठी रही।
आखिर समीर ने नित्या से कहा,
"नित्या हम लोग कुछ जरूरी बात कर रहे हैं। प्लीज तुम अपने कमरे में जाकर नाश्ता कर लो"
नित्या ने प्रश्न भरी नजरों से समीर की तरफ देखा। जैसे कह रही हो कि मैं भी तो इस घर की सदस्य हूं। भला मेरे सामने बात क्यों नहीं हो सकती। मुझे भी तो इस घर में क्या चल रहा है वो सब बातें जानने का हक है।
शायद उसकी ये बात वाणी ने समझ ली इसलिए वो नित्या से बोली,
"भाभी वो क्या है ना कि जब आपके लायक कोई काम होगा तो हम आपको जरूर बुलाएंगे। अभी तो आपका कोई काम है नहीं, तो आप नाश्ता करके अपने काम खत्म कर लो। वैसे भी आपको पता है शादी के घर में बहुत से काम होते हैं। और आप घर की बहू हो तो आपको ही सब कुछ संभालना हैं"
उसकी बात सुनकर नित्या ने मन ही मन सोचा
'हां मैं तो घर के काम करने के लिए ही हूं। बाकी तो मुझे पता भी नहीं कि कौन कब चला आ रहा है और कहां क्या खर्च हो रहा है, घर में क्या सामान आया और क्या नहीं। बाजार से भी सामान लाकर सीधे अलमारी में रख दिया जाता है। मुझे तो कुछ भी बताया नहीं जाता'
पर इतने लोगों के बीच बोल कर अपनी क्या बेइज्जती करें। इसलिए चुपचाप उठकर अपने कमरे में आ गई। काफी देर तक तो उससे कुछ खाते ही नहीं बना पर भूखे क्यों रहना। आखिर काम तो उसे ही करना था। इसलिए अपना नाश्ता खत्म किया और प्लेट रखने रसोई में जा ही रही थी तो देखा सब लोग तैयार होकर कहीं जा रहे थे।
नंदोई जी तो अपनी चाबी उठाकर पापा जी के साथ बाहर निकल लिए। वहीं दोनों ननदें अपना बैग लहराती हुई बाहर आई और भाभी को बाय कह कर निकल गई। सासू मां प्रतिभा जी भी बाहर आई और नित्या को काम बता दिया,
" बहू हम लोग जरूरी काम से बाहर जा रहे हैं। तुम दोपहर का खाना तैयार कर लेना। और खाने में कुछ अच्छा बना लेना। वाणी और दामाद जी यही खाना खाएंगे"
उसे काम बता कर वो भी बाहर निकल गई। समीर बाहर आया और कमरे में अपना वॉलेट और बाइक की चाबी लेने चला गया। तब तक नित्या भी कमरे में आ गई,
" समीर तुम सब लोग कहीं जा रहे हो क्या?"
उसकी बात को सुना अनसुना कर समीर बोला,
" अभी मम्मी ने बताया तो सही कि जरूरी काम से जा रहे हैं"
" हां, पर कहाँ जा रहे हो तुम लोगों ने ये तो बताया ही नहीं"
" अब जरूरी है क्या हर बात तुम्हें बताना? बता तो दिया कि जरूरी काम से जा रहे हैं। और मम्मी ने तुम्हें जो काम बताया वो कर लेना। और भगवान के लिए खाना ढंग का ही बनाना"
कहता हुआ समीर अपना वॉलेट और चाबी लेकर वहां से निकल गया। नित्या उसके पीछे पीछे दरवाजे तक आई तो देखा सब लोग कार में बैठे थे। समीर भी जाकर अपनी बाइक पर बैठ गया।
पर पता नहीं क्यों, ये लोग अभी भी रवाना नहीं हो रहे थे। नित्या वही दरवाजे पर खड़ी उन लोगों को देख रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे वो लोग किसी का इंतजार कर रहे हैं।
दस मिनट बाद उसे घर में काम करने वाली जमुना काकी आती दिखी। उनके आने पर प्रतिभा जी ने उन्हें अपने पास बुलाया और उन्हें कुछ समझा कर वो लोग वहाँ से रवाना हो गये। पीछे पीछे समीर भी रवाना हो गया।
जमुना काकी घर में आ गई तो नित्या ने दरवाजा बंद किया और आकर सोफे पर निढाल होकर बैठ गई। जमुना काकी अपने काम में लग गई। सबसे पहले उन्होंने प्रतिभा जी के कमरे की सफाई की और फिर बाहर निकल कर उस कमरे के दरवाजे पर ताला लगा दिया। उन्हें ताला लगाता देखकर नित्या ने पूछा,
" अरे काकी, ताला क्यों लगा रही हो?"
उसकी बात सुनकर जमुना काकी ने उसकी तरफ देखा और बोली,
" मैडम ने कहा है कि उनके कमरे की साफ सफाई करके ताला लगा देना"
नित्या ने उसके आगे कुछ नहीं कहा। पर उसे हैरानी तब हुई जब जमुना काकी ने चाबी उसे देने की जगह अपनी कमर में खोस ली और घर के बाकी के कमरों की सफाई करने लगी।
नित्या उसे काम करते देख कर बैठी बैठी सोचने लगी यही इज्जत है उसकी इस घर में। एक नौकरानी पर भी आंख मूंद कर विश्वास था, पर अपनी बहू पर नहीं। माना कि जमुना काकी यहाँ दस सालों से काम कर रही है, पर वो भी तो इस घर की इकलौती बहू है। आज नहीं तो कल उसे ही तो सब कुछ संभालना है।
खैर नित्या ने देखा कि जैसे-जैसे जमुना काकी सफाई करती जा रही थी, वैसे वैसे सब कमरों पर ताला लगाती जा रही थी। उन्होने सिर्फ नित्या का कमरा, रसोई और हॉल ही छोड़ा था, जहाँ ताला नहीं लगा था।
नित्या अभी भी सोफे पर ही बैठी हुई थी कि जमुना काकी अपना काम खत्म कर जाने लगी। तब नित्या ने टोका,
" काकी आप तो जा रही हो। अब सारे कमरों को ताला लगा दिया तो चाबी भी दे दो। नहीं तो जब वो लोग आएंगे तो दरवाजा कैसे खोलेंगे"
उसकी बात सुनकर जमुना काकी बोली,
" माफ करना बहुरानी, पर मेम साहब ने मना किया है आपको चाबी देने से। उन्होंने कहा है कि ताला लगाकर चाबी पड़ोस वाली सरला जी को दे जाना"
कहकर जमुना काकी घर से निकल गई, जबकि नित्या सोफे पर बैठी एकटक उन्हें जाती देखती रह गई। इतना बड़ा अपमान उससे बिल्कुल बर्दाश्त नहीं हो रहा था। उसे अब घर में घुटन सी होने लगी थी। आखिर उसकी गलती क्या थी।
बैठे बैठे उसे वो दिन याद हो आया जब वो कॉलेज के फस्ट ईयर में थी। वो एक ऐसे परिवार से संबंध रखती थी जहां लड़कियों की शिक्षा का कोई मोल नहीं था। जहाँ दसवीं तक पढ़ाई कर ली, बस उसके बाद शादी कर दी जाती थी।
पर नित्या के माता पिता ने उसे बड़े अरमानों के साथ अपने परिवार वालों से लड़ झगड़ कर कॉलेज पढ़ने भेजा था। वो चाहते थे कि उनकी बेटी अपने पैरों पर खड़ी हो। वो हमेशा उसे आगे बढ़ता हुआ देखना चाहते थे। इसलिए अपने रूढ़ीवादी परिवार के खिलाफ जाकर भी उन्होंने उसे पढ़ाया लिखाया और आगे की शिक्षा के लिए शहर भेजा।
गांव के माहौल से निकलकर नित्या पहली बार शहर में आई थी। उसे ये स्वतंत्रता, यहां का रहन-सहन बहुत भा रहा था। वही कॉलेज में समीर से उसकी मुलाकात हुई थी, वो फाइनल ईयर में था। पहले दोस्ती हुई फिर प्यार।
फाइनल एग्जाम आते आते तो दोनों शादी के सपने बुनने लगे थे। समीर का तो वैसे भी आगे पढ़ने का मन नहीं था। उसे तो वैसे भी अपने पापा का बिजनेस संभालना था। इसलिए उसके लिए ग्रेजुएट होना ही बड़ी बात थी।
लेकिन इधर नित्या पर समीर के प्यार का ऐसा खुमार चढ़ा था कि उसे ये तक समझ नहीं आ रहा था कि उसके माता-पिता पर क्या बीतेगी। उसका एक कदम उसके घर में आने वाली हर लड़की की शिक्षा को रोक देगा।
समीर ने उसे सपने भी ऐसे ही दिखाए थे। वो तो अक्सर उससे यही कहता था,
" आखिर इतना पढ़कर तुम्हें कौन सा नौकरी करना है। अरे तुम तो एक बिजनेस फैमिली में जा रही हो। हमारे यहां तो नौकर चाकर काम करते हैं। तुम्हें तो वैसे भी शादी के बाद ऐश ही करना है"
नित्या धीरे-धीरे उसकी बातों में आने लगी थी। गांव में पली-बढ़ी लड़की को शहर के ऐशो आराम अपनी ओर खींचने लगे थे। उसे समीर पर अपने से ज्यादा विश्वास हो चला था। पर वो जानती थी कि उसके माता-पिता शादी के लिए तैयार नहीं होंगे।
तैयार तो इधर समीर के माता-पिता भी नहीं थे। आखिर नित्या उनके स्टैंडर्ड से मैच भी नहीं खाती थी तो उन्होंने भी समीर को शादी के लिए मना कर दिया। लेकिन समीर तो नित्या के साथ शादी की जिद पर अड़ा हुआ था।
उधर पता नहीं गांव में कैसे नित्या के माता-पिता को पता चल गया और वो उसे यहां से वापस गांव ले गए।
पर कहते हैं ना प्यार की खुमारी सब कुछ करवा देता है।
एक रात नित्या सबको नींद में सोता हुआ छोड़कर गांव से भाग आई। पर गांव से आने के लिए उसके पास पैसे नहीं थे, तो आते समय अपनी मां की अलमारी में से सोने के गहने और पैसे चुरा लाई।
समीर तो उससे शादी करने के लिए वैसे भी तैयार था। तो दोनों ने मंदिर में जाकर शादी कर ली। पर समीर के माता-पिता ने तो शुरू में उन्हें अपनाने से इंकार कर दिया। तो उन सोने के गहनों को बेचकर उन्होंने अपने रहने खाने पीने की व्यवस्था की।
जब तक प्यार का खुमार था और जेब में पैसे थे, तब तक समीर भी उसकी हां में हां मिलाता था। लेकिन धीरे धीरे जब प्यार का खुमार उतरा और जेब में पैसे कम हो गए तो दोनों का आटे दाल के भाव पता चल गए। दोनों में तू-तू मैं-मैं होने लगी।
लेकिन दोनों की समस्या ज्यादा दिन नहीं रही। क्योंकि समीर अपने माता पिता का अकेला बेटा था, बाकी तो दोनों बेटियाँ थी। बुढ़ापे में बेटा ही सब कुछ संभालेगा ये सोच कर कुछ दिनों बाद वो खुद समीर को लेने आ गए और मजबूरन उन्हें नित्या को भी अपनाना पड़ा। अब तो नित्या को भी लग रहा था कि सचमुच जिंदगी ऐशो आराम से कटेगी।
पर असल जिंदगी की शुरुआत अब हुई थी। ससुराल में रहना भी कोई मामूली बात नहीं है। नित्या का सामना अब ससुराल वालों से हो रहा था। कहाँ तो घर में नौकर चाकर काम करते थे। अब ले देकर के एक जमुना काकी रह गई, जो भी घर की साफ सफाई के लिए आती थी। बाकी रसोई का सारा काम नित्या के हिस्से में डाल दिया गया।
अब तो समीर भी पूरी तरह से अपने माता-पिता के कहे में रहता था। नित्या के हिस्से सिर्फ जिम्मेदारी आई थी, उसे कोई अधिकार नहीं दिया गया था। आज उसे पछतावा होता था कि क्यों उसने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली। अपने माता-पिता का दिल दुखा कर वो यहां कहां खुश है।
खैर जब उसकी तंद्रा टूटी तो उठकर रसोई में गई और खाने की तैयारी कर दी। इन्हीं सब में दोपहर के 3:00 बज गए। तब तक सब लोग घर आ गए। समीर पड़ोस वाली सरला जी के यहां से चाबियां ले आया। हमेशा की तरह सामान सीधे प्रतिभा जी के कमरे में गया।
अभी सब लोग सामान के साथ प्रतिभा जी के कमरे में ही थे कि नित्या उन लोगों को खाने के लिए बुलाने आई। उस समय मेघा अपने सोने के गहने पहन कर दिखा रही थी, जिसकी शॉपिंग शायद आज ही की गई थी। एकदम से नित्या को वहां देख कर उसने फटाफट ज्वेलरी निकालकर बैग में रख दी। वही प्रतिभा जी नित्या को देखकर बिगड़ते हुए बोली,
" बहू, तुम्हें बिल्कुल तमीज नहीं है कि किसी कमरे में कैसे जाया जाता है? तुम यहां मेरे कमरे में क्या कर रही हो?"
अचानक प्रतिभा जी के सवाल से हड़बडाती हुई नित्या बोली,
" जी मैं वो.. वो दरअसल....आपको खाने के लिए बुलाने आई थी"
उसकी बात सुनकर समीर नाराज होते हुए बोला,
" खाना क्या भाग कर जा रहा था? आ कर खा तो रहे थे, यूँ एकदम से मम्मी कमरे में आने की हिम्मत कैसे हुई?"
समीर ने जिस तरीके से दुत्कारते हुए नित्या से कहा, उसे नित्या बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर पाई। उसकी आंखों में आंसू आ गए और वो बोली,
" ये आप मुझसे किस तरह से बात कर रहे हैं। मैं भी तो इसी घर के सदस्य हूं। मैं भला इस कमरे में क्यों नहीं आ सकती?"
" नहीं आ सकती तुम मेरे कमरे में। मुझे नहीं पसंद है तुम्हारा यहां आना। यहां सारा कीमती सामान रखा होता है"
अचानक से प्रतिभा जी बोली। उनकी बात सुनकर नित्या को ऐसा लगा जैसे कोई उस पर चोरी का इल्जाम लगा रहा हो। उसने भी प्रतिभा जी के सामने आते हुए कहा,
" आपको मुझसे ज्यादा जमुना काकी पर विश्वास है, जबकि मैं आपके घर की बहू हूं। मैं घर में मौजूद थी। फिर भी आपने जमुना काकी से कमरों में ताला लगवाया और चाबी सरला आंटी के घर पर दे दी। आपको मुझ पर रत्ती भर भी भरोसा नहीं है"
" हां नहीं है मुझे तुझ पर भरोसा। भला हम तुझ पर भरोसा क्यों करें? अरे जो अपने मां-बाप की सगी नहीं हुई, वो हमारी क्या सगी होगी। तू तो तेरे ही मां के गहने चुरा कर ले आई थी। फिर तेरा क्या भरोसा हो कि तू हमारे गहने नही चुराएगी"
प्रतिभा जी ने आज दिल की भड़ास मुंह पर निकाल ही दी। सुनकर नित्या बिल्कुल हैरान रह गई। उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने आईने के सामने खड़ा कर उसे नंगा कर दिया हो। अपनी इस प्रतिबिंब को तो वो देख भी नहीं पा रही थी और ना ही कुछ कह पा रही थी। इसलिए अपने आंसू लेकर कमरे के बाहर निकल गई और अपने कमरे में जाकर बैठ गई।
आज सचमुच उसके माता-पिता का चेहरा उसे याद आ रहा था। उनके विश्वास को तोड़कर आज जो कुछ उसे मिल रहा था, शायद वो उसी के लायक थी। आखिर रात ही हो गई। सब ने अपना खाना बनाकर खा पी लिया। लेकिन नित्या को किसी ने कहा भी नहीं। आज उसे पता चल रहा था कि उसकी वैल्यू क्या है।
शिक्षा उसके पास थी नहीं। फर्स्ट ईयर के एग्जाम दिए ही नहीं थे। पर फिर भी अपने स्वाभिमान को मारकर जीना नहीं चाहती थी इसलिए उसने अपनी शिक्षा को पूरी करने की ठानी। जानती थी कि घर में कोई भी पैसा नहीं देगा इसलिए उसने दूसरे दिन एक छोटे स्कूल में नौकरी के लिए अप्लाई किया।
भला एक बारहवी पास लड़की को क्या नौकरी मिले? पर फिर भी डेमो के बाद प्री प्राइमरी टीचर की जॉब उसे दे दी गई। सैलरी सिर्फ पाँच हजार रुपए। पहले तो घर में कोई इस बात के लिए तैयार नहीं था। लेकिन छह सात घंटे के लिए कम से कम नित्या से छुटकारा मिलेगा। ये सोचकर ही प्रतिभा जी ने हां कर दी।
अब अपनी सैलरी से ही उसने फॉर्म भरा और अपनी आगे की शिक्षा शुरू की। आखिर अथक परिश्रम और समय के साथ उसने अपनी शिक्षा भी पूरी की और अच्छी जगह पर नौकरी पर भी लग गई। इस बीच को एक बेटी की मां भी बनी। धीरे-धीरे घरवालों ने भी उसे स्वीकार कर लिया।
लेकिन आज भी मन का एक कोना खाली था। कई बार कोशिश भी की माता-पिता से बात करने की, लेकिन पिता ने ये कहकर दुत्कार दिया कि तेरा साया भी मैं अपने घर पर नहीं पड़ने दूंगा। इसलिए इस दुत्कार को अपनी जिंदगी का हिस्सा मानकर वो अपनी जिंदगी जीती रही।
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