The form factor is the ratio between the RMS value and the average value of an electrical quantity, such as current or voltage. For a sine wave, this form factor is 1.11.
We observe that 400 kV and 800 kV are not multiples of 11. Let’s consider the following calculations:
10 kV x 1.11 times = 11.1 kV
20 kV x 1.11 times = 22.2 kV
30 kV x 1.11 times = 33.3 kV
60 kV x 1.11 times = 66.6 kV
120 kV x 1.11 times = 133.2 kV
However, the transmitted voltage is 132 kV. This discrepancy indicates that the results differ from the expected values based on the form factor. For instance, multiplying 120 kV by the form factor gives 133.2 kV, not 132 kV. If this difference is not due to the form factor, what could be the reason ?
Returning to the main point, the voltages at the receiving end are typically 10 kV, 20 kV, 30 kV, 60 kV, 120 kV, and so on. We know that there is a voltage drop due to the resistance of the transmission lines. To compensate for this drop, an additional 10% voltage is transmitted.
For example:
Sending Voltage = 10kV x 10% times = 11kV.
The receiving end voltage is 10 kV due to the voltage drop.
Here are more examples:
10 kV*10% times =11kV
20 kV*10% times =22kV
30 kV*10% times =33kV
60 kV*10% times =66kV
120 kV*10% times =132k
This approach ensures that the voltage at the receiving end remains consistent despite the inherent losses in the transmission lines.
more detail:
The form factor for a sine wave is 1.11 because it is the ratio of the RMS (root mean square) value to the average value of the waveform. Let's break this down:
1. RMS Value: The RMS value of a sine wave is a measure of the effective or equivalent DC value that would produce the same amount of heat in a resistor as the AC waveform. For a sine wave, the RMS value is given by:
2. Average Value: The average value of a sine wave over one complete cycle is the average of all instantaneous values. For a sine wave, the average value (considering only the positive half-cycle) is:
3. Form Factor Calculation: The form factor is the ratio of the RMS value to the average value:
This ratio of approximately 1.11 is specific to sine waves due to their smooth, periodic nature. Different waveforms will have different form factors based on their shapes.
भारत की बात सुनाता हूं-वीर बलिदानी हरफूल सिंह
वीर हरफूल का जन्म 1892 ई० में भिवानी जिले के लोहारू तहसील के गांव बारवास में एक जाट क्षत्रिय परिवार में हुआ था।उनके पिता एक किसान थे।
बारवास गांव के इन्द्रायण पाने में उनके पिता चौधरी चतरू राम सिंह रहते थे। उनके दादा का नाम चौधरी किताराम सिंह था। 1899 में हरफूल के पिताजी की प्लेग के कारण मृत्यु हो गयी। इसी बीच ऊनका परिवार जुलानी(जींद) गांव में आ गया।यहीं के नाम से उन्हें वीर हरफूल जाट जुलानी वाला कहा जाता है।
उसके बाद हरफूल सेना में भर्ती हो गए।उन्होंने 10 साल सेना में काम किया। उन्होंने प्रथम विश्वयुद्ध में भी भाग लिया। उस दौरान ब्रिटिश आर्मी के किसी अफसर के बच्चों व औरत को घेर लिया।तब हरफूल ने बड़ी वीरता दिखलाई व बच्चों की रक्षा की। अकेले ही दुश्मनों को मार भगाया। फिर हरफूल ने सेना छोड़ दी। जब सेना छोड़ी तो उस अफसर ने उन्हें गिफ्ट मांगने को कहा गया तो उन्होंने फोल्डिंग गन मांगी। वह बंदूक अफसर ने उन्हें खुशी खुशी दे दी।
टोहाना में मुस्लिम राँघड़ो का एक गाय काटने का एक कसाईखाना था। वहां की 52 गांवों की नैन खाप ने इसका कई बार विरोध किया। कई बार हमला भी किया जिसमें नैन खाप के कई नौजवान शहीद हुए व कुछ कसाइ भी मारे गए लेकिन सफलता हासिल नहीं हुई क्योंकि ब्रिटिश सरकार मुस्लिमों के साथ थी और खाप के पास हथियार भी नहीं थे।
तब नैन खाप ने वीर हरफूल को बुलाया व अपनी समस्या सुनाई।हिन्दू वीर हरफूल भी गौहत्या की बात सुनकर लाल पीले हो गए और फिर नैन खाप के लिए हथियारों का प्रबंध किया।
हरफूल ने युक्ति बनाकर दिमाग से काम लिया। उन्होंने एक औरत का रूप धरकर कसाईखाने के मुस्लिम सैनिको और कसाइयों का ध्यान बांट दिया फिर नौजवान अंदर घुस गए उसके बाद हरफूल ने ऐसी तबाही मचाई के बड़े बड़े कसाई उनके नाम से ही कांपने लगे।उन्होंने कसाइयों पर कोई रहम नहीं खाया। अनेकों को मौत के घाट उतार दिया और गऊओ को मुक्त करवाया। अंग्रेजों के समय बूचड़खाने तोड़ने की यह प्रथम घटना थी।
इस महान साहसिक कार्य के लिए नैन खाप ने उन्हें सवा शेर की उपाधि दी व पगड़ी भेंट की।
उसके बाद तो हरफूल ने ऐसी कोई जगह नहीं छोड़ी जहां उन्हें पता चला कि कसाईखाना है वहीं जाकर धावा बोल देते थे।
उन्होंने जींद,नरवाना,गौहाना,रोहतक आदि में 17 गौहत्थे तोड़े। उनका नाम पूरे उत्तर भारत में फैल गया। कसाई उनके नाम से ही थर्राने लगे। उनके आने की खबर सुनकर ही कसाई सब छोड़कर भाग जाते थे। मुसलमान और अंग्रेजों का कसाइवाड़े का धंधा चौपट हो गया इसलिए अंग्रेज पुलिस उनके पीछे लग गयी। मगर हरफूल कभी हाथ न आये।कोई अग्रेजो को उनका पता बताने को तैयार नहीं हुआ।
वीर हरफूल उस समय चलती फिरती कोर्ट के नाम से भी मशहूर थे। जहाँ भी गरीब या औरत के साथ अन्याय होता था, वे वहीं उसे न्याय दिलाने पहुंच जाते थे। उनके न्याय के भी बहुत से किस्से प्रचलित हैं।
अंग्रेजों ने हरफूल के ऊपर इनाम रख दिया और उन्हें पकड़ने की कवायद शुरू कर दी इसलिए हरफूल अपनी एक ब्राह्मण धर्म बहन के पास झुंझुनूं (राजस्थान) के पंचेरी कलां पहुंच गए। इस ब्राह्मण बहन की शादी भी हरफूल ने ही करवाई थी।
यहां का एक रसूखदार भी उनका दोस्त था। वह इनाम के लालच में आ गया व उसने अंग्रेजों के हाथों अपना जमीर बेचकर दोस्त व धर्म से गद्दारी की।
अंग्रेजों ने हरफूल को सोते हुए गिरफ्तार कर लिया। कुछ दिन जींद जेल में रखा लेकिन उन्हें छुड़वाने के लिये हिन्दुओ ने जेल में सुरंग बनाकर सेंध लगाने की कोशिश की और विद्रोह कर दिया। अंग्रेजों ने उन्हें फिरोजपुर जेल में चुपके से ट्रांसफर कर दिया। बाद में 27 जुलाई 1936 को चुपके से पंजाब की फिरोजपुर जेल में अंग्रेजों ने उन्हें रात को फांसी दे दी। उन्होंने विद्रोह के डर से इस बात को लोगो के सामने स्पष्ट नहीं किया। व उनके पार्थिव शरीर को भी हिन्दुओ को नहीं दिया गया। उनके शरीर को सतलुज नदी में बहा दिया गया।
इस तरह देश के सबसे बड़े गौरक्षक, गरीबो के मसीहा, उत्तर भारत के रॉबिनहुड कहे जाने वाले वीर हरफूल सिंह ने अपना सर्वस्व गौमाता की सेवा में कुर्बान कर दिया।
उन्होंने अपना जीवन गौरक्षा व गरीबों की सहायता में बिताया मगर कितने शर्म की बात है कि बहुत कम लोग आज उनके बारे में जानते हैं। कई गौरक्षक सनगठन तो उनको याद भी नहीं करते। गौशालाओं में भी गौमाता के इस लाल की मूर्तियां नहीं है। ऐसे महान गौरक्षक को मैं नमन करता हूँ।
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