'हे भगवान! ये अम्मा जी को क्या हो गया? कुछ समझ ही नहीं आता और एक ये महाशय है। अरे तुम्हें कुछ सुनाई दे रहा है या नहीं। कब से बड़बड़ किए जा रही हूँ। कुछ जवाब ही नहीं दे रहे हो या सारी दुनिया इस अखबार में ही सिमट गई है तुम्हारी।' अनुराधा ने अपने पति रमन को डाँटते हुए कहा।
'हां, कुछ कहा तुमने।'
'लो, मैं यहां पर बड़बड़ किये जा रही हूँ और इनको कुछ लेना-देना ही नहीं है। कान में क्या तेल डालकर बैठे हो? कोई सुनना पसंद नहीं करता मुझे।'
'अरे क्या हो गया? क्यों चिल्ला रही हो सुबह-सुबह।'
' हां, मेरा बोलना भी चिल्लाना हीं लगेगा तुम्हें। अरे, मैं तो यह बोल रही हूं कि ये अम्मा जी को क्या हो गया है? तुम्हें तुम्हारी मां की फिक्र नहीं है।'
'क्या हो गया मां को भली-चंगी तो है।'
'कुछ दिनों से देख रही हूं उन्हें हमारे कामों में कमियां नजर नहीं आती हैं। साड़ी से सूट पर आ गई हैं। अंग्रेजी बोलती हैं और तो और आजकल भजन कीर्तन की जगह यो यो हनी सिंह या बादशाह को सुनती हैं। तुम्हें अजीब नहीं लगता।'
'अच्छा? यह तो बड़ी अच्छी बात है। पर मुझसे क्या पूछ रही हो। मां से ही पूछ लो ना।'
'तुमसे तो बोलना ही बेकार है। मैं खुद ही बात कर लूंगी।'
ऐसा कहकर अनुराधा किचन में चली गई कि दिन में जब वक्त मिलेगा, तब अम्मा जी से जरूर बात करेगी। अनुराधा रमन की पत्नी है और अम्मा जी की बड़ी बहू। अनुराधा के दो जुड़वा बेटे हैं रोनित और रोहित, जो 13 साल के हैं। वहीं, अम्मा जी का छोटा बेटा जयंत और उसकी पत्नी विद्या उसी घर में ऊपर वाले फ्लोर पर रहते हैं। उनके भी एक बेटा और एक बेटी है विराट (दस वर्ष) और वाणी (बारह वर्ष )।
अम्मा जी शुरू से ही बड़ी कड़क मिजाज सास रही हैं। मजाल है कि दोनों बहुएं कुछ कह जाएं लेकिन पिछले दिनों से अम्मा जी में आ रहे बदलावों को लेकर दोनों बहुएं परेशान हैं। आखिर जो इंसान इतना कड़क मिजाज रहा है, बात-बात में टोकता है, आपके हर काम में मीन-मेख निकालता है, अगर वह इंसान बदलने लगे तो वह बदलाव जल्दी पचता भी नहीं किसी को।
यही सब उनकी बहुओं के साथ हो रहा था। वे भी अम्मा जी में हो रहे बदलावों को पचा नहीं पा रही थीं। आज अम्मा जी तैयार होकर बाहर आईं तो सब लोग देखते ही रह गए। फिटिंग सूट पहने, आंखों पर चश्मा, बाल खुले हुए, बिल्कुल टिपटॉप होकर कहीं बाहर जाने को तैयार।
'गाइज, मैं अपने नए फ्रेंडस के साथ पार्टी करने बाहर जा रही हूं। मेरा लंच मत बनाना। बाय।'
बस इतना ही कहा और रवाना हो गईं। बेटे-बहू अम्मा जी को देखते ही रह गए।
'भाई ये अपनी अम्मा ही है ना? अब तो मुझे भी शक होने लगा है।'
'हम ना कहते थे अम्मा जी बहुत बदल गई हैं लेकिन तुम दोनों भाई सुनते तक नहीं थे।'
'अब तो मां से बात करनी ही पड़ेगी और ये नए दोस्त कौन आ गए इनके।'
'बात-वात छोड़ो, चलो पीछा करते हैं।'
'हाँ चलो।'
ऐसा कहकर उन्होंने अम्मा जी का पीछा करना शुरू किया। करीब एक डेढ़ किलोमीटर चलने के बाद अम्मा जी एक छोटे से रेस्टोरेंट में घुस गईं। अब अंदर पहले कौन जाए? चारों इसी सोच में लगे हुए थे। इसी उधेड़बुन में करीबन दस-पंद्रह मिनट वेस्ट कर दिये।
'रमन भैया, आप सबसे बड़े हो। पहले आप जाओ।'
' अच्छा! पर अम्मा ने देख लिया ना, तो बैंड बजा देगी मेरी।'
'अच्छा भाभी आप जाओ।'
'वाह! मां तुम्हारी है और बलि का बकरा मुझे बना रहे हो।'
'जयंत तू छोटा है ना। तू जा।'
'नहीं भाई, दोनों साथ ही चलेंगे।'
आखिर हिम्मत करके दोनों भाई अंदर गए। वहां का मंजर देखकर चुपचाप खड़े रह गए। पीछे-पीछे दोनों बहुएं भी अंदर आयीं तो देखकर हैरान रह गए। अम्मा और चारों बच्चे साथ बैठे हुए पिज्जा पार्टी का मजा ले रहे हैं। अचानक अम्मा जी की नजर चारों पर गई।
'गाइज, तुम लोग यहां क्या कर रहे हो? तुम लोगों को तो इनवाट नहीं किया गया था।'
'अम्मा, इनवाट नहीं, इनवाइट इनवाइट।' रोहित ने कहा।
'हां हां, वही। तुम लोग यहां क्या कर रहे हो?'
'अम्मा, वो।।।।कुछ नहीं। हमने सोचा कि हम भी पार्टी कर लें। पर आपके नए दोस्त कहां है' रमन ने कहा।
'ये बैठे तो हैं चारों।'
'ये चारों? ये तो आप के पोते-पोती हैं अम्मा।'
'हाँ तो, पोते-पोती फ्रेंडस नहीं हो सकते क्या?'
'पर अम्मा, तुम्हारा पहनावा तक बदल गया। तुम तो ऐसे ना थी।'
सुनकर अम्मा उदास हो गई और बोली,
'घर में मैं सबसे बड़ी थी, तो छोटे भाई बहनों को मैं ही संभालती थी। मेरी शादी दस-ग्यारह साल की उम्र में हो गई थी। मैंने अपना बचपन नहीं जिया। जिम्मेदारियां निभाते-निभाते बचपन और जवानी दोनों कही खो गए, पता ही नहीं चला। जो सास और पति ने पहनने के लिए दिया वही पहन लिया, जो खिला दिया वही खा लिया, जैसे रखा वैसे रह लिया। मन तो मेरा भी जीने को करता था पर क्या करती? चूल्हे चौके में लगी रह गई'
बाद में बहुएं आई तो जैसी सास खुद की देखी थी, वैसी ही उनकी भी बन गई। बहुओं के साथ भी कड़क सास बन कर रह ली। पर मैं भी जीना चाहती हूं। मेरे पोते-पोती ने मेरी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया। कहते हैं वक्त लौटकर नहीं आता। गलत कहते हैं सब, मेरा वक्त तो दोबारा लौटकर आया है। अब मैं दोबारा अपना बचपन जीना चाहती हूं। इसलिए मैंने इन्हीं चारों से दोस्ती कर ली।'
'अम्मा हमें माफ करना। हम तो तुम्हारी भावनाओं को कभी समझ ही नहीं पाए'
'अब समझ गए ना, इसलिए अब डिशटब ना करो।' 'अम्मा डिशटब नहीं डिस्टर्ब'
जयंत और रमन ने एक साथ कहा।
'हां-हां वही तो। अब तुम लोगों को पिज़्ज़ा खाना है तो खा लो। पर पैसे शेर करने पड़ेंगे'
'शेर नहीं अम्मा, शेयर'
'हां हां वही तो'
और माहौल ठहाको से गूंज उठा।
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