बेटे निकेश का दिल भारी था, और बहू स्मिता के चेहरे पर हमेशा की तरह बड़बड़ाहट झलक रही थी। "कोई बुजुर्गों को इस तरह नहीं रखता। हमने दूसरी मंजिल पर कमरा दे रखा है, AC, TV, फ्रिज सब सुविधाएं हैं। नौकरानी भी दी है। फिर भी, पता नहीं क्यों पिताजी सत्तर की उम्र में ऐसा बर्ताव कर रहे हैं।"
सच कहें, तो पिताजी का स्वास्थ्य ठीक नहीं था, और उनकी बढ़ती उम्र ने उन्हें कमजोर कर दिया था। लेकिन अब उनकी ज़िद बढ़ती जा रही थी। वे चाहते थे कि उनकी चारपाई को नीचे बरामदे में डाला जाए।
निकेश ने सोचा, "पिताजी की छोटी-छोटी इच्छाओं का ध्यान रखना तो हमेशा मेरा काम रहा है। शायद इस बार भी उनकी इस इच्छा को पूरा कर ही देना चाहिए।"
कुछ देर सोचने के बाद, उसने पिताजी की चारपाई गैलरी में डलवा दी। अब, पिताजी जो हमेशा कमरे में बंद रहते थे, धीरे-धीरे लान में टहलते दिखने लगे। कभी गेट तक पहुंच जाते, तो कभी पोते-पोतियों के साथ खेलते हुए नज़र आते। उनके चेहरे पर एक नई चमक आ गई थी, और मुस्कुराहट भी लौट आई थी। कभी-कभी तो वे अपने बेटे निकेश से अपनी मनपसंद मिठाई की फरमाइश भी करने लगे थे, और फिर सबके साथ मिलकर हंसते-बतियाते उसे खाते थे।
बड़ी अजीब बात थी, कुछ ही हफ्तों में उनका स्वास्थ्य पहले से कहीं बेहतर हो गया था।
एक दिन, जब निकेश अपने काम से लौट रहा था, उसने गेट से प्रवेश करते ही पांच वर्षीय बेटे आरव की आवाज सुनी, "दादाजी, मेरी बॉल फेंको।"
निकेश चौंक गया। उसने अपने बेटे को डांटते हुए कहा, "आरव, दादाजी बुजुर्ग हैं। उन्हें ऐसे कामों के लिए मत बोला करो।"
लेकिन छोटे आरव ने भोलेपन से जवाब दिया, "पापा, दादाजी रोज हमारी बॉल उठाकर फेंकते हैं।"
इस पर निकेश को बहुत आश्चर्य हुआ। वह हैरान होकर अपने पिता की तरफ देखने लगा।
पिताजी मुस्कुराते हुए बोले, "हां बेटा, तुमने ऊपर वाले कमरे में तो सभी भौतिक सुख-सुविधाएं दी थीं, लेकिन अपनों का साथ नहीं था। वहां कोई बात नहीं होती थी। बस एकांत था। जब से चारपाई गैलरी में डाली है, निकलते-बैठते तुम लोगों से बातें हो जाती हैं। शाम को आरव और पाशी का साथ मिल जाता है। उनके साथ खेलते वक्त ऐसा लगता है कि जैसे फिर से मैं जवान हो गया हूँ।"
निकेश ने अपने पिता की बातों को ध्यान से सुना, और एक सच्चाई समझ आई। उसे महसूस हुआ कि पिताजी को भौतिक सुख-सुविधाओं से ज्यादा अपने परिवार के साथ की जरूरत थी।
घर के बुजुर्ग अक्सर वही होते हैं, जो हमारी जड़ें मजबूत करते हैं। उनकी छांव में बैठना अपने आप में एक अनुभव है, एक सीख है। भौतिक चीज़ों की भी सीमा होती है, लेकिन परिवार के साथ बिताए पल अनमोल होते हैं। बुजुर्गों का साथ, उनका अनुभव और उनकी ममता ऐसी छांव होती है, जो किसी भी बड़े सुख से बढ़कर होती है।
निकेश सोच में डूबा था, "शायद हमें अपने बुजुर्गों को सिर्फ सुविधाएं देकर नहीं, बल्कि उनके साथ वक्त बिताकर, उन्हें हमारा साथ देकर सम्मान देना चाहिए।"
और इस दिन के बाद, निकेश ने ठान लिया कि अब अपने पिताजी को वह सिर्फ कमरे में नहीं, बल्कि अपने जीवन के हर पल में शामिल करेगा। वह उनके अनुभवों से सीखेगा, और उनके साथ वही अपनापन दिखाएगा, जिसकी वह असल में उम्मीद रखते थे।
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि बुजुर्गों को सिर्फ भौतिक चीजें नहीं चाहिए, उन्हें अपने परिवार का साथ चाहिए। उनका सम्मान करना और उनके साथ वक्त बिताना ही असली सुख है। चाहे वे किसी भी उम्र के हों, उनका अनुभव और प्रेम हमारी जिंदगियों को रोशनी देता है।
राजा अमरनाथ के राज्य में एक छोटी सी घटना ने सभी का ध्यान खींचा। एक दिन रात्रि के समय राजा को खबर मिली कि उसके राज्य के एक साधारण नागरिक के घर में उसकी पत्नी ने रातभर अपने पति के लिए पानी का गिलास थामे खड़ी रही, क्योंकि उसका पति थककर यात्रा से लौटा था और प्यासा होते हुए भी नींद में डूब गया था। पत्नी ने सोचा कि अगर वह सो गई तो उसके पति की नींद टूट जाएगी। इसलिए वह पूरी रात पति के जागने का इंतजार करती रही, ताकि वह जब भी उठे, उसे तुरंत पानी पीने के लिए मिले।
राजा को इस घटना ने गहराई से छू लिया। उसने कहा, "ऐसी निस्वार्थ भक्ति और प्रेम मेरे राज्य की पहचान है। ऐसी स्त्री को मैं सम्मानित करूंगा।" अगले दिन राजा ने उस स्त्री को बुलाकर सम्मानित किया और उसे हीरे-जवाहरात से नवाजा। सभी दरबारियों और नगरवासियों ने उस महिला की सराहना की।
परंतु, पड़ोस में रहने वाली एक अन्य महिला, कामिनी, इस सम्मान से जल उठी। उसने अपने पति से कहा, "अगर वह स्त्री सिर्फ एक रात अपने पति के लिए पानी लेकर खड़ी रही और उसे इतनी दौलत मिली, तो हम भी वही कर सकते हैं। तुम थककर लौटना, और मैं भी रातभर पानी का गिलास लेकर खड़ी रहूंगी। सुबह होते ही हमें भी राजा से इनाम मिल जाएगा।"
कामिनी और उसके पति ने मिलकर इस योजना को अंजाम देने की ठानी। पति थकान का नाटक करके बिस्तर पर लेट गया और सोने का दिखावा करने लगा। कामिनी ने गिलास थामा, लेकिन कुछ ही देर बाद सो गई, सोचते हुए कि सुबह तक किसी को पता नहीं चलेगा कि वह सो गई थी।
सुबह होते ही कामिनी ने जोर-जोर से बातचीत शुरू कर दी, जिससे पड़ोसी सुनें। पति ने भी नाटक किया, "तुमने क्यों रातभर खड़े रहकर मेरी देखभाल की? सो जाती तो क्या बिगड़ जाता?" कामिनी ने पहले से तय किए हुए शब्दों में कहा, "मैं कैसे सो सकती थी? तुम्हारी प्यास मेरी जिम्मेदारी थी।"
उनकी इस नाटकबाज़ी की चर्चा पूरे नगर में फैल गई। राजा ने भी यह सुना और उन्हें दरबार में बुलाया। कामिनी बहुत खुश थी, यह सोचते हुए कि अब उसे भी पहले महिला की तरह इनाम मिलेगा। लेकिन जब वह राजा के सामने पहुंची, तो राजा ने उसे इनाम के बजाय कठोर सजा दी। दरबार में कोड़ों की वर्षा होने लगी।
कामिनी चिल्लाई, "यह अन्याय है! मैंने भी वही किया जो उस महिला ने किया था। मुझे भी वही सम्मान मिलना चाहिए।"
राजा अमरनाथ ने गंभीर स्वर में कहा, "तुमने वही किया, लेकिन तुमने इसे हृदय से नहीं किया। तुम्हारे भीतर प्रेम का स्पंदन नहीं था, बस लालच था। जीवन में जो प्रेम और प्रामाणिकता से होता है, वह अनमोल होता है। पाखंड का कोई मूल्य नहीं होता।"
कामिनी को अब समझ में आया कि उसने सिर्फ नकल की थी, पर सच्चाई और भावनाओं के बिना। वह यह भी समझ गई कि जीवन की अनूठी घटनाओं को दोहराया नहीं जा सकता। हर घटना अपनी जगह खास होती है, और किसी का अनुकरण करके सच्चाई नहीं पाई जा सकती।
इस घटना से पूरे राज्य ने सीखा कि प्रेम और निस्वार्थ सेवा का महत्व क्या होता है, और यह कि जीवन में हर कार्य का मूल्य तभी होता है जब वह दिल से किया जाता है, न कि स्वार्थ और लालच से। राजा अमरनाथ के राज्य में अब यह बात फैल चुकी थी कि सच्चाई और प्रेम से किया गया कार्य ही सर्वोच्च होता है।
सीख: प्रामाणिकता का कोई विकल्प नहीं होता। जीवन की सच्ची घटनाएं दोहराई नहीं जा सकतीं, और जब हम किसी कार्य को दिल से करते हैं, तभी उसका मूल्य होता है। पाखंड और स्वार्थ से किए गए कार्यों का कोई महत्व नहीं होता।
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