राज अपनी गली से गुजरते हुए अचानक तेज़ी से दौड़ने लगता है और जाकर एक महिला के सामने हांफते हुए रुकता है। वो महिला भी हैरानी में पड़ जाती है।
शीतल: (आश्चर्य से) "अरे राज! तुम! मुझे यकीन ही नहीं हो रहा कि इतने सालों बाद हम फिर से मिले हैं।"
राज (हांफते हुए): "मैंने तुम्हें दूर से देखा, पर यकीन नहीं हो पाया कि तुम ही हो। मैं समझ नहीं पा रहा था, और जब लगा कि तुम कहीं चली जाओगी, तो मुझे दौड़कर आना पड़ा ताकि पहचान सकूं। शुक्र है, तुमने मुझे पहचान लिया।"
शीतल: (हंसते हुए) "अरे! तुम मुझे कैसे नहीं पहचान पाए? मैंने तो तुम्हें एकदम से पहचान लिया।"
राज: "अरे! इतने साल बीत गए हैं। स्कूल के बाद से मिले भी नहीं। वैसे भी, तुमने तो शादी के बाद खुद को पूरी तरह बदल लिया है।"
शीतल: "तुम तो बिल्कुल नहीं बदले, वैसे ही मजाकिया हो।"
राज और शीतल के बीच बातचीत शुरू हो जाती है। शीतल उसे बताती है कि वो हाल ही में इस शहर में अपने पति के साथ रहने आई है क्योंकि उसके पति का तबादला यहां हो गया है। राज उसे अपना नंबर देता है ताकि वे फिर मिल सकें।
शीतल: "इतनी जल्दी क्यों? अब जब हम मिले हैं, तो चलो मेरे घर। मेरे पति से मिलो और एक कप चाय तो पी लो।"
राज शीतल की जिद पर उसके घर जाता है और वहां शीतल के पति से मिलता है। सबकुछ सामान्य लगता है, पर धीरे-धीरे राज और शीतल का मिलना-जुलना बढ़ जाता है। शीतल के पति के दिल में शक घर करने लगता है, कि कहीं राज और शीतल का कोई पुराना रिश्ता तो नहीं रहा?
एक दिन जब शीतल और राज बाजार में शॉपिंग कर रहे होते हैं, तो शीतल का पति उन्हें देख लेता है। वो कुछ कहता तो नहीं, लेकिन गुस्से में घर लौटता है। घर पहुंचने पर जब शीतल आती है तो उसका पति उसे सवालों से घेर लेता है।
पति: "कहां से आ रही हो?"
शीतल: "शॉपिंग से, मगर आप ऐसा क्यों बोल रहे हैं?"
पति: "शॉपिंग या गुलछर्रे उड़ाने? ग़ैर मर्द के साथ घूम रही हो और कहती हो कि ग़लती क्या है?"
शीतल: "तुम क्या बकवास कर रहे हो? राज तो मेरा पुराना दोस्त है, ऐसा कुछ नहीं है।"
पति: "तो अब तुम उसकी तरफदारी भी कर रही हो? मुझे सब पता है। आज के बाद उससे कोई रिश्ता नहीं रखना।"
शीतल आंसुओं में डूब जाती है। उसे समझ नहीं आता कि वो कैसे अपने पति को यकीन दिलाए कि राज के साथ उसका कोई गलत रिश्ता नहीं है। अगले दिन जब राज मिलने आता है, शीतल का पति उसे घर से निकाल देता है।
राज अपने घर लौटकर सबकुछ अपनी पत्नी को बता देता है। राज की पत्नी, जो कि नेत्रहीन है, शीतल के घर जाकर उसके पति से बात करती है।
राज की पत्नी: "आपने मेरे पति पर जो आरोप लगाए हैं, वो बिल्कुल गलत हैं। वो आप दोनों के लिए शॉपिंग कर रहे थे, और आप उन्हें गलत समझ रहे हैं।"
शीतल का पति: "पर मैं क्या करूं? मुझे ये सब सही नहीं लगता।"
राज की पत्नी: "आपकी पत्नी आपसे प्यार करती है, और मेरे पति मुझसे। ये रिश्ता सिर्फ दोस्ती का है। आप अपनी पत्नी पर विश्वास क्यों नहीं करते?"
शीतल का पति चुप रह जाता है। उसे समझ आता है कि वो बेवजह शीतल और राज को शक की नजर से देख रहा था। उसकी सोच बदल जाती है, जब वो देखता है कि कैसे एक नेत्रहीन महिला भी अपने पति पर अटूट विश्वास करती है।
सीख: रिश्ते विश्वास से चलते हैं, और जब तक हमें अपने साथी पर भरोसा नहीं होगा, हम उन्हें समझ ही नहीं पाएंगे।
नोट: दोस्तों, आपकी पिछली पोस्ट पर की गई सराहना के लिए धन्यवाद! आपके कमेंट्स हमें प्रेरित करते हैं।
जिंदगी के सफ़र में चलते चलते हर मुकाम पर यही सवाल परेशान करता रहा.कुछ रह तो नहीं गया?
3 महीने के बच्चे को दाई के पास रखकर जॉब पर जानेवाली माँ को दाई ने पूछा... कुछ रह तो नहीं गया? पर्स, चाबी सब ले लिया ना?
अब वो कैसे हाँ कहे? पैसे के पीछे भागते भागते... सब कुछ पाने की ख्वाईश में वो जिसके लिये सब कुछ कर रही है ,वह ही रह गया है.....
शादी में दुल्हन को बिदा करते ही
शादी का हॉल खाली करते हुए दुल्हन की बुआ ने पूछा...भैया, कुछ रह तो नहीं गया ना? चेक करो ठीकसे बाप चेक करने गया तो दुल्हन के रूम में कुछ फूल सूखे पड़े थे ।
सब कुछ तो पीछे रह गया... 25 साल जो नाम लेकर जिसको आवाज देता था लाड से... वो नाम पीछे रह गया और उस नाम के आगे गर्व से जो नाम लगाता था वो नाम भी पीछे रह गया अब ...
#भैया, देखा? कुछ पीछे तो नहीं रह गया?बुआ के इस सवाल पर आँखों में आये आंसू छुपाते बाप जुबाँ से तो नहीं बोला.... पर दिल में एक ही आवाज थी... सब कुछ तो यही रह गया...
बडी तमन्नाओ के साथ बेटे को पढ़ाई के लिए विदेश भेजा था और वह पढ़कर वही सैटल हो गया ,
पौत्र जन्म पर बमुश्किल 3 माह का वीजा मिला था और चलते वक्त बेटे ने प्रश्न किया सब कुछ चैक कर लिया कुछ रह तो नही गया ? क्या जबाब देते कि अब छूटने को बचा ही क्या है ....
60 वर्ष पूर्ण कर सेवानिवृत्ति की शाम पी ए ने याद दिलाया चेक कर ले सर कुछ रह तो नही गया थोडा रूका और सोचा पूरी जिन्दगी तो यही आने- जाने मे बीत गई ; अब और क्या रह गया होगा ।
"कुछ रह तो नहीं गया?" शमशान से लौटते वक्त किसी ने पूछा । नहीं कहते हुए वो आगे बढ़ा... पर नजर फेर ली, एक बार पीछे देखने के लिए....पिता की चिता की सुलगती आग देखकर मन भर आया ।
भागते हुए गया ,पिता के चेहरे की झलक तलाशने की असफल कोशिश की और वापिस लौट आया ।।
दोस्त ने पूछा... कुछ रह गया था क्या?
भरी आँखों से बोला...नहीं कुछ भी नहीं रहा अब...और जो कुछ भी रह गया है वह सदा मेरे साथ रहेगा
🌼कुछ रह तो नहीं गया🌼
एक बार समय निकालकर सोचे , शायद पुराना समय याद आ जाए, आंखें भर आएं और आज को जी भर जीने का मकसद मिल जाए।
🌼कुछ रह तो नहीं गया🌼
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