#कहानी- बंदिशें
कॉलेज से घर आते ही पूर्वी ने बैग एक किनारे सरकाया और बोली, "मम्मी, मुझे आज रात रुही के भाई की सगाई में जाना है."
"अपने पापा से पूछ लो. वे इजाज़त दे देते हैं, तो मुझे कोई एतराज नहीं है."
"मैं आपसे पूछ रही हूं. मेरे लिए पापा से बढ़कर आप हैं. आज मैं किसी की बात नहीं सुनूंगी. मुझे जाना है, तो बस जाना है. बहुत हो गई आपकी पाबंदियां."
ऐसा नहीं कहते. पापा जो करते हैं तुम्हारी भलाई के लिए करते हैं."
"तुम्हें उनकी भलाई दिखाई देती है. मुझे लगता है वे मेरे सबसे बड़े दुश्मन हैं, जो इस तरह सताकर मुझसे बदला ले रहे हैं."
इतना कहकर वह दनदनाती हुई अपने कमरे में चली गई और अंदर से दरवाज़ा बंद कर लिया. लोकेश मां-बेटी के बीच हुई सारी बातें सुन रहे थे. उन्हें ख़ुद समझ नहीं आ रहा था पूर्वी को कैसे समझाएं? दिन-प्रतिदिन वह बगावती होती जा रही थी.
मम्मी-पापा की कोई बात सुनने के लिए राजी ही नहीं होती. उसे पापा की हिदायतें पहले से ही पसंद नहीं थी, लेकिन अब उसे अपने पापा बहुत बुरे लगते हैं, जो हर समय उसे नसीहत ही देते रहते.
ज्योति ड्राॅइंगरूम में आकर बोली,
"तुमने पूर्वी की बातें सुन ली हैं. मुझे समझ नहीं आता इसे कैसे समझाऊं? बाहर का माहौल देखकर भी इसकी समझ में कुछ नहीं आता. इसे अपने साथी दिखाई देते हैं कि वे क्या कर रहे हैं?
मम्मी-पापा क्या कह रहे हैं, इससे इसे कोई मतलब नहीं. लड़की जवान हो गई है. अब उस पर ज़्यादा बंदिशें लगाना ठीक नहीं है लोकेश."
"यह तुम कह रही हो?"
"क्या करूं मैं उसकी मां हूं. उसे इस तरह तनाव में नहीं देख सकती."
"ठीक है वह जाना चाहती है, तो जाए. याद रखें रात नौ बजे मैं ख़ुद उसे लेने रूही के घर आ जाऊंगा. तब उसे बुरा नहीं लगना चाहिए."
बाप-बेटी के बीच में ज्योति बुरी तरह पिस रही थी. उसे समझ नहीं आता वह किसका साथ दे?
बेटी को देखती, तो लगता है ज़माने के हिसाब से उसका नज़रिया सही है और लोकेश से बात करती, तब भी यही महसूस होता है कि वह अपने अनुभवों से सही कह रहे हैं. दो रिश्तो के बीच में फंसी वह कभी किसी एक के हक़ में निर्णय ले ही नहीं पाती.
बहुत देर बाद पूर्वी कमरे से बाहर निकली. उसके चेहरे पर अभी तक तनाव की लकीरें दिखाई दे रही थीं. ज्योति बोली, "पूर्वी, समझने की कोशिश किया करो. तुम हमारी इकलौती औलाद हो. हमें तुम्हारी बहुत चिंता रहती है."
"चिंता करना बुरी बात नहीं है मम्मी. आपकी चिंताओं ने मेरा सांस लेना तक दूभर कर दिया है. मेरे दोस्त मेरा कितना मज़ाक उड़ाते हैं. आप सोच भी नहीं सकतीं वे मेरे बारे में क्या कुछ कहते हैं."
"ठीक है चली जाना, लेकिन याद रखना नौ बजे पापा तुम्हें लेने आ जाएंगे."
इस समय पूर्वी को ज़्यादा बहस करना ठीक नहीं लगा. आज उसकी ज़िद के आगे पापा ने उसे कुछ घंटे दोस्तों के साथ बिताने की छूट दे दी थी. उसने सोच लिया बगैर बगावत के उसकी समस्या का हल नहीं निकल सकता. लिहाज़ा वह अपनी बात मनवाने के लिए बगावती तेवर अपनाएगी.
शाम को सबसे पहले पूर्वी को आया देख रूही बोली, "तुम इस समय यहां?" "क्यों क्या हो गया? मैं नहीं आ सकती."
"क्यों नहीं आ सकती हो, लेकिन पहली बार तुम्हें शाम के समय घर से बाहर देख रही हूं.
हम तो यार-दोस्तों के साथ देर रात तक मौज-मस्ती करते हैं. एक तुम हो, जो अंधेरा होते ही घर में छुपकर बैठ जाती हो."
"अब ताने बंद भी कर दे. मैं यहां मस्ती करने आई हूं, ना कि तेरी जली-कटी बातें सुनने के लिए."
कुछ ही देर में उनके और दोस्त वहां पहुंच गए. सबने फंक्शन का ख़ूब लुत्फ़ उठाया. पूर्वी की नज़र घड़ी पर लगी हुई थी. जैसे ही वह चलने को तैयार हुई सार्थक बोला,
"मैं तुम्हें छोड़ देता हूं."
"नहीं यार, कहीं पापा ने देख लिया, तो कयामत आ जाएगी."
"इतनी रात को अकेले कैसे जाओगी?"
"अकेले कहां मेरे पापा बाहर खड़े मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे." बोलकर वह ख़ुद ही हंस दी.
इससे ज़्यादा सार्थक के पास उससे पूछने के लिए कुछ भी न था. वह उसका सबसे अच्छा दोस्त था. वे दोनों कई सालों से एक-दूसरे को जानते थे और अब उनकी दोस्ती प्यार में बदलने लगी थी. सार्थक यह बात उससे कई बार कह चुका था,
लेकिन पूर्वी ने अभी तक अपनी ओर से इज़हार नहीं किया था. वह पापा से डरती थी कि वे इस रिश्ते के लिए कभी राज़ी नहीं होगें.
गेट के सामने दूसरी ओर लोकेश पूर्वी का इंतज़ार कर रहे थे. उसने सार्थक को अपने साथ बाहर आने से मना कर दिया था. गाड़ी देखकर वह उस ओर बढ़ गई.
पापा ने पूछा, "कैसा रहा आज का फंक्शन?"
"बहुत अच्छा. पहली बार इतनी देर तक घर से बाहर दोस्तों के साथ समय बिताने का मौक़ा मिला."
"अच्छी बात है." कहकर लोकेश ने बात ख़त्म कर दी.
रास्तेभर दोनों ने कोई बात नहीं की. पूर्वी आज अपनी बात मनवाकर बहुत ख़ुश थी. वह सोच रही थी कि
पापा चाहते, तो इंटर करने के बाद उसे किसी अच्छे कॉलेज में घर से बाहर पढ़ने के लिए भेज सकते थे. लेकिन उन्होंने उसे बीएससी करने के लिए मजबूर किया. उसने कहा भी, "पापा मैं इंजीनियरिंग करना चाहती हूं."
"लड़कियों के लिए सबसे अच्छी टीचिंग लाइन होती है. मैं चाहता हूं तुम एमएससी करके पीएचडी करो और किसी यूनिवर्सिटी में पढ़ाओ तुम्हारे भविष्य के लिए यही अच्छा रहेगा."
"मुझे नहीं बनना लेक्चरार."
पूर्वी ने तुरंत विरोध जता दिया. इस पर भी लोकेश अपनी बात से ज़रा नहीं हटे और बोले, "मैं तुम्हें किसी भी क़ीमत पर पढ़ने के लिए बाहर नहीं भेजूंगा. मेरी बात कान खोलकर सुन लो."
पूर्वी कुछ दिन तक पापा से बहुत नाराज़ रही. उसे मजबूरी में यहां बीएससी करनी पड़ी. इस समय वह फाइनल ईयर में थी.
कई बार उसका जी करता वह पढ़ाई-लिखाई सब कुछ छोड़कर किसी के साथ यहां से भाग जाए और पापा के चंगुल से हमेशा के लिए मुक्त हो जाए. पर वह इतना साहस कभी नहीं जुटा पाई. आज उसने इसकी पहल कर दी थी. उसे लगा उसकी इच्छा के आगे मजबूर मम्मी-पापा को एक न एक दिन झुकना ही पड़ेगा. भले ही यह एक छोटा कदम था, लेकिन इसी के बलबूते अब वह कोई दूसरा बड़ा कदम उठा सकती थी.
घर आते ही मम्मी ने पूछा,
"कैसा रहा आज का फंक्शन?"
"बहुत अच्छा मज़ा आ गया. मेरे सारे दोस्त आए थे. वे आए दिन इनका मज़ा उठाते हैं मुझे यह मौक़ा आज पहली बार मिला है."
"तुम्हें अच्छा लगा मेरे लिए इतना ही बहुत है. रात काफ़ी हो गई है अब सो जाओ." ज्योति बोली और अपने कमरे की ओर बढ़ गई.
लोकेश को आज नींद नहीं आ रही थी. ज्योति ने पूछा, "क्या हुआ?"
"पूर्वी की मनमानी हद से ज़्यादा बढ़ती जा रही हैं. तुम उसे समझाती क्यों नहीं?"
"समझाती हूं. अब वह छोटी बच्ची नहीं रह गई, जो हर बात पर हम उसे उंगली पकड़कर चलना सिखाएं. उसकी अपनी समझ है. उसे अपने दोस्तों की ज़िंदगी ज़्यादा अच्छी लगती है. हमें उस पर प्रतिबंध नहीं लगाने चाहिए."
ज्योति की बात सुनकर लोकेश चुप हो गए. कुछ ही महीनों में पूर्वी के एग्ज़ाम शुरु हो गए थे. इस बार भी उसने सबसे अच्छा प्रदर्शन कर काॅलेज में टॉप किया था. वह फिजिक्स में एमएससी करना चाहती थी. उसे यक़ीन था इस विषय की मदद से वह इंजीनियरिंग क्षेत्र में घुसने का प्रयास कर सकती है. पापा उसके चुनाव से सहमत थे.
सार्थक ने इसी साल एमएससी पूरी कर ली थी. वह एक भले घर का लड़का था. उसके पापा यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थे. वे बेटे को पढ़ा-लिखाकर प्राध्यापक बनाना चाहते थे. सार्थक को इस पर कोई ऐतराज़ न था. वह मन लगाकर पढ़ रहा था और अच्छे नंबरों से डिग्री हासिल कर ली थी. वह पूर्वी से दो साल सीनियर था. पूर्वी ने सोच लिया वह बहुत जल्दी बगावत करके पापा को इस बारे में सब कुछ बता देगी.
अब वह उसे छोटे समारोह में जाने से नहीं रोकते थे, लेकिन रात में उसे घर से बाहर रहने की इज़ाजत अभी भी न थी. पूर्वी को यह अच्छा न लगता. उसकी सब दोस्त अपने बॉयफ्रेंड के साथ देर रात तक ख़ूब मौज-मस्ती करतीं, लेकिन उसके लिए समय सीमा निर्धारित थी.
फाइनल ईयर में पहुंचते ही पूर्वी ने सार्थक से शादी करने का मन बना लिया. अपने मम्मी-पापा की बंदिशों में उसे और नहीं रहना था. वह ज़िंदगी को अपने ढंग से जीना चाहती थी.
एक दिन वह दस बजे रात अपनी सहपाठी रिचा की बर्थडे पार्टी से घर लौट रही थी. सार्थक उसे बाहर तक छोड़ने चला आया. जान-बूझकर पूर्वी ने इस समय उसे साथ आने से नहीं रोका. वह आज अपनी मंशा पापा को जतला देना चाहती थी. गाड़ी में बैठते हुए पापा ने पूछा, "वह लड़का कौन था, जो तुम्हें बाहर छोड़ने आया था?"
"सार्थक मेरा दोस्त है पापा. वह बहुत अच्छा लड़का है."
"तुमने लड़कों से भी दोस्ती कर ली. वैसे दोस्ती करना कोई बुरी बात नहीं है. नए ज़माने में क्या लड़के और क्या लड़कियां? जिससे विचार मिल जाए, वही दोस्त बन जाता है. आगे क्या विचार है?" पापा ने पूछा.
उसे समझ नहीं आया क्या जवाब दें?वह सोच रही थी यह सुनकर पापा आगबबूला हो जाएंगे और उसका घर से निकलना तक बंद कर देंगे.
"पढ़ाई पूरी करते ही हम शादी कर लेंगे."
"तुम चाहो तो उससे अभी शादी कर सकती हो." लोकेश बोले, तो पूर्वी का मुंह खुला का खुला रह गया. पापा से वह ऐसे अप्रत्याशित व्यवहार की सपने में भी उम्मीद नहीं कर सकती थी. उन्होंने इससे आगे कुछ नहीं कहा. न ही इस बारे में मम्मी से कोई बात की. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था वह अब क्या करे? उसने शादी के बारे में सार्थक से अभी बात तक नहीं की थी .
अगले दिन उसने सार्थक को सारी बात बता दी और बोली, "तुम क्या चाहते हो बता दो?"
"पूर्वी मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं."
"फिर शुभ काम में देरी कैसी? हम इम्तिहानों का इंतज़ार क्यों करें? तुम चाहो, तो हमारी शादी बहुत जल्दी हो सकती है."
"तुम्हारे पापा मान गए?"
"हां. तुम्हें मेरी बात पर यक़ीन नहीं आ रहा. तुम भी अपने मम्मी-पापा से बात कर लो. अगर वे तैयार हैं, तो यह शादी इसी महीने हो सकती है."
सार्थक के पापा चाहते थे कि लड़का पहले पीएचडी करके लेक्चरार बन जाए उसके बाद शादी के बारे में सोचे. लेकिन उसकी ज़िद के आगे वे मजबूर हो गए थे.
ज्योति ने सुना तो वह परेशान हो गई.
"तुम सच में पूर्वी की शादी सार्थक से करने के लिए राज़ी हो?"
"हां. तुम जान रही हो वह हमारी बंदिशों से छूटना चाहती है. मुझे अब उसे आज़ाद करना ही ठीक लग रहा है."
दोनों परिवारों की रज़ामंदी से सार्थक और पूर्वी की महीनेभर के अंदर शादी हो गई. पूर्वी ख़ुशी-ख़ुशी ससुराल चली गई. विदाई के समय उसकी आंखों में आंसू तक न थे. पूर्वी को लगा जैसे वह आसमान में एक खुले पक्षी की तरह उड़ रही हो. जहां उसे रोकने-टोकनेवाला कोई नहीं था. उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि पापा उसके पसंद के लड़के से इतनी जल्दी उसकी शादी करा देंगे. यह तो चमत्कार ही हो गया था. वह इसे अपनी बगावत का परिणाम समझ रही थी.
पूर्वी को ससुराल में कोई परेशानी नहीं थी. सास-ससुर बहुत प्यार करने वाले थे. अपने पापा की बंदिशों से छूटकर पूर्वी यहां अपने आपको बहुत हल्का महसूस कर रही थी. एक दिन पूर्वी सुबह उठकर पापाजी के लिए चाय लेकर गई तो वे बोले,
"तुम्हारे मम्मी-पापा ने तुम्हें बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं. हमारी क़िस्मत अच्छी थी, जो हमें इतनी अच्छी बहू मिली."
उनके मुंह से अपनी तारीफ़ सुनकर पूर्वी को बहुत अच्छा लगा.
"तुम्हें यहां कोई परेशानी तो नहीं?"
"नहीं मम्मीजी, मैं यहां बहुत ख़ुश हूं."
पूर्वी वहां से सीधे अपने कमरे में आई और बोली, "यहां आकर मुझे बहुत अच्छा लग रहा है सार्थक. सच में पापाजी कितने अच्छे है. मेरा बहुत ख़्याल रखते हैं. एक मेरे पापा है जो..."
"तुम्हारे पापा भी बहुत अच्छे हैं. तुम्हें उनके बारे में ऐसा नहीं सोचना चाहिए." सार्थक उसे बीच में टोकते हुए बोला .
"तुम उन्हें जानते ही कितना हो, जो उनकी तरफ़दारी कर रहे हो? मैंने उनके साथ जो भुगता है वह मैं ही जानती हूं."
"मैंने उन्हें जितना जाना है, उसे देखकर कह सकता हूं वह एक बेमिसाल पापा है. केयरिंग और दूसरों की इच्छा का सम्मान करनेवाले. मैं कहना नहीं चाहता था, लेकिन तुम मुझे मजबूर कर रही हो. वे तुम्हारी इतनी केयर करते थे कि उनके पास तुम्हारे सारे दोस्तों की पूरी कुंडली थी."
"यह क्या कह रहे हो?"
"मैं सच कह रहा हूं. पापाजी को पता था तुम मुझसे प्यार करती हो. उन्होंने मेरी कुंडली भी अच्छी तरह छान ली थी. यहां तक कि वे एडमिशन के बहाने पापा से भी कॉलेज में मिलने गए थे. पूरी तरह संतुष्ट होने के बाद उन्हें तुम्हारी मेरी दोस्ती पर कोई ऐतराज़ नहीं था. तभी वे इतनी जल्दी शादी के लिए तैयार हो गए."
"और क्या जानते हो तुम उनके बारे में?"
"कहूंगा तो तुम्हें लगेगा मैंने तुम्हें यह सब पहले क्यों नहीं बताया? यह सच है कि कुछ साल पहले उनके सीनियर राघव की बहन के साथ कुछ दोस्तों ने कोल्ड ड्रिंक में नशा मिलाकर उसके साथ हैवानियत की. उसके बाद उसे मारकर जंगल में फेंक दिया. इस घटना से वे बहुत डर गए और तुम्हें लेकर सचेत रहने लगे. वे बहुत ज़िम्मेदार और केयरिंग पापा है. तुम उनके बारे में बहुत ग़लत सोचती हो."
"उन्होंने यह बात मुझे क्यों नहीं बताई?"
"तुम उनकी बात पर कभी यक़ीन नहीं करती. तुम सोचती वे तुम्हें झूठी कहानी सुना रहे हैं. कोई भी मां-बाप अपने बच्चों का बुरा नहीं चाहते. उनकी दिली इच्छा रहती है कि उनके बच्चे हमेशा ख़ुश रहें और शादी के बाद दोनों घरों का मान भी रखें."
सार्थक की बात सुनकर पूर्वी चुप हो गई. आज उसे पापा के लिए कहे शब्दों पर बड़ा खेद हो रहा था. वह अपने पापा के लिए क्या कुछ नहीं कहती थी. वे चुपचाप सुनते रहते थे कभी प्रतिकार नहीं करते थे. इस पर भी वे उसे घर से बाहर रहने की ढील नहीं देते थे. शायद यह उनकी सजगता का परिणाम था कि आज वह इतने अच्छे घर की बहू बनकर ख़ुशहाल ज़िंदगी जी रही थी.
पूर्वी का जी चाहा अभी पापा से मिलने चली जाए, लेकिन झिझक के कारण चुप रही.
सार्थक उसकी मनोदशा को भांप रहा था. वह बोला, "अच्छी शुरुआत में देर नहीं करनी चाहिए पूर्वी. तुम चाहो तो उनसे फोन पर बात कर सकती हो."
उसने मम्मी को फोन मिलाया. थोड़ी देर बात करके वह बोली, "पापा कहां हैं?"
"ड्राॅइंगरूम में टीवी देख रहे हैं. बात करोगी उनसे?" कहकर मम्मी ने फोन लोकेश को थमा दिया.
"कैसी हो पूर्वी?" पापा बोले, तो बदले में उन्हें पूर्वी की सिसकियों के साथ इतना ही सुनाई दिया,
"आई मिस यू पापा."
उधर से भी रूंधे गले से पापा की आवाज़ आई, "हमेशा ख़ुश रहना बेटी. हमें तुम्हारी बहुत याद आती है."
इससे आगे दोनों ही कुछ न बोल सके. सिसकियों की आवाज़ें दोनों के दिल के जज़्बात एक-दूसरों तक पहुंचा रही थी.
पूर्वी बहुत देर तक फोन पर सिसकती रही. सार्थक ने उसे चुप कराने की ज़रूरत नहीं समझी. आज जी भर रो लेने के बाद पापा के प्रति उसके अंदर का सारा रोष तिरोहित हो गया था.
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