और भाई कितने सालों से यहां चाय का काम कर रहे हो ?

"""और भाई कितने सालों से यहां चाय का काम कर रहे हो ?"""" अमन ने चायवाले से सिगरेट खरीदते हुए पूछा। अपने जिगरी दोस्त के नए खरीदे हुए मकान में हो रहे कुछ भूतिया अनुभवों को लेकर वह जांच पड़ताल करने चला आया था। मकान से कुछ दूरी पर खड़े हुए चायवाले के पास चला आया था वो। 


""साहब जब ये जगह बिल्कुल उजाड़ थी तभी से मैं अपनी चाय की दुकान चला रहा हूं।""""


""फिर तो तुम आसपास के घरों के विषय में सब कुछ जानते होंगे?""""


""हां साहब तकरीबन सभी घरों के विषय में जानता हूं।""""


""तो फिर ये सामने वाले घर में ऐसा क्या है कि यहां रात को कोई सो नहीं पाता ।""""


""साहब वो सोने ही नहीं देंगी इस घर में किसी को ।""""


""कौन???""""


""वहीं जिसके ऊपर दुनिया के जितने जुल्म होते हैं वो सब किये गये थे। आखिरकार जब उसकी सांसें थम गयी तब जाकर इस घर के लोगों को चेन मिला।""""


*काका जरा खुल कर बताओ ना कि क्या हुआ था उस के साथ।""""


""साहब ये मकान बद्री प्रसाद जी का था बेचारे बहुत सीधे साधे इंसान थे ।कितनी ही बार घर वाली से दुखी होकर मेरी दुकान पर चाय पीने आते थे । उनकी घरवाली क्या थी बस पूछों ही मत ।कलह का दूसरा नाम थी ।सारा दिन उनके घर से चीखने चिल्लाने की आवाजें आती रहती थी ।एक ही बेटा था उनका एक नम्बर का बिगड़ैल और अय्याश। मां का पूरा हाथ था उसको बिगाड़ने में। बद्री प्रसाद जी के एक दोस्त थे बड़े ही सज्जन पुरुष थे उनकी बेटी रजनी को उन्होंने अपने बेटे के लिए पसंद कर लिया था ।बस गलती यही हो गयी कि उन्होंने लड़के की सगाई की बात बिना बेटे और पत्नी की मर्जी पूछे बगैर करली थी। क्योंकि उन्होंने रजनी को देखा था बड़ी ही सुन्दर सुशील, और घर को जोड़कर रखने वाली लड़की थी उन्होंने सोचा कि अगर रजनी बिटिया इस घर में आ गयी तो हो सकता है उसके गुणों के आगे ये मां बेटा अपनी हरकतों को छोड़ दें । लेकिन भगवान को तो कुछ और ही मंजूर था।रजनी ब्याह करके इस घर में आई तो आते ही उसके दुःख के दिन शुरू हो गये ।वो उन मां बेटे को रत्ती भर भी पसंद नहीं थी । बद्री प्रसाद की पत्नी तो सारा ही दिन इस ताक में रहती थी कि ये कुछ गलती करें और वो अपने बेटे के हाथों उसे ऐसी मार मरवाये कि उसे नानी याद आ जाएं।


बेटा तो पहले ही किसी कोठेवाली को पसंद कर चुका था उसे ब्याह कर भी घर लाने वाला था लेकिन उससे पहले ही बद्री प्रसाद ने रजनी को उस घर की बहू बना दिया ।बेटे को वो एक आंख नहीं भाती थी।वो जानवरों की तरह उसे जरा सी बात पर पीटने लगता था।


बेचारे बद्री प्रसाद बहू के साथ हो रहे अत्याचारों को देखते रहते और मन में कुढ़ते रहते कि किस नर्क में बेचारी को लाकर झोंक दिया। मैंने तो सोचा था कि अच्छे घर की संस्कारी बहू आयेगी तो दोनों मां बेटा सुधर जाएंगे लेकिन इन दोनों ने तो इस बेचारी का जीना भी दुश्वार कर दिया है


""""हे भगवान! अब मैं ये सब नहीं देख सकता तुम मुझे उठा लो"""" । भगवान तो जैसे बद्री प्रसाद की ही सुन रहा था ।एक दिन खाना खाकर जरा सी देर धूप में कुर्सी बिछाकर बैठे तो बस एक हिचकी ही आई थी उनका परलोक गमन हो गया ।


सारे घर में मातम पसरा गया ।जो बद्री प्रसाद ने कमा कमा कर जोड़ रखा था उसे दोनों ने अपने नाम करवा‌ लिया।


उस दिन के बाद से तो रजनी के जैसे नर्क के दिन शुरू हो गये थे।एक दिन उनका बेटा उस कोठेवाली को वरमाला डाल कर घर ले आया । मां ने भी बेटे का ही साथ दिया ।जब रजनी बहू ने इस बात का विरोध किया तो उसे इतना मारा इतना मारा की उसकी जान ही निकल गई।बाद में जब उन्हें पता चला कि वो मर गयी है तो उसकी लाश की पोटली बना कर ना जाने कहां फेंक आये और उसके थोड़े दिनों बाद ये मकान किसी को ओने पोने दामों में बेचकर ये शहर छोड़ गये।बाद में जो परिवार यहां रहने आया था वो दो दिन भी नहीं टिका यहां और रातों रात मकान खाली करके चला गया ।तब से ये बात चारों तरफ फैल गयी है कि ये मकान शापित है।""""


चायवाले से सारी बात जानकर और खाली गिलास उसके काउंटर पर रखकर अमन उस घर की तरफ चल दिया ।तभी पीछे से चायवाले ने आवाज दी,""""बाबू साहब उस घर में क्यों जा रहे हो?


""""काका रजनी से मुलाकात जो करनी है तो घर के अंदर जाना तो पड़ेगा ना।""""


यह कहकर अमन मुस्कुराते हुए घर के अंदर चला गया । उसका दोस्त सही ही कहा रहा था ।घर का सारा सामान बिखरा हुआ था। जैसे तैसे करके अमन ने सारे सामान को यथास्थान रखा फिर कमरें के बीचोंबीच एक पाटा बिछा कर उसपर लाल कपड़ा बिछा दिया और देवी मां की मूर्ति स्थापित कर दी फिर स्फटिक का स्वास्तिक और माला निकाल कर देवी मां का जाप करने लगा ।वो जोर जोर से मंत्रोच्चारण कर रहा था तभी सारे घर के खिड़की दरवाजे जोर जोर से बजने लगे ।अमन समझ गया कि वो बेचारी अपनी उपस्थिति इसी तरह दर्शा रही है। अमन समझ गया था की कुछ भी कर के उसका भरोसा जितना बहुत जरुरी है। 


तभी अचानक से सब शांत हो गया और अमन का बनाया हुआ नमक का गोला हवा के चलते मिटने लगा। इसके बिलकुल बीच में अमन अभी भी आँखे बंद किये एकटक मंत्रोच्चार में लगा था। अमन की पूजा में बाधा डालने ी पूरी कोशिश वह कर रही थी। दिया बुझा दिया, स्वस्तिक बिखेर दिया। और फिर अचानक से सबकुछ शांत हो गया एकबार फिर से। अब अमन का ध्यान शांति की ओर गया। उसने आँखे खोली और रात के अँधेरे में चारो ओर तहस नहस हो रखा सामान देखा।


""रजनी बहन, मुझे पता है तुम बहुत दर्द में हो..""""


 क्या इतने धोके खायी हुई रजनी की तड़पती आत्मा अमन पर भरोसा कर पायेगी? या आज ओवरकॉन्फीडेंट अमन ने जो सोचा था उससे एकदम विपरीत होगा जहाँ अमन होनी जान गवा बैठेगा? क्या रजनी की आत्मा को मुक्ति कभी भी मिल पायेगी? जानने के लिए क्लिक करे """


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