यह उस दिन की बात है

यह उस दिन की बात है जब मैं और मेरी मम्मी डॉक्टर के पास जाने के लिए निकले थे। हमें जल्दी थी, इसलिए हमने एक ऑटो को बुक किया। ऑटो वाले का नाम राजू था, लेकिन हमसे रास्ते भर कोई बात नहीं हुई। भीड़-भाड़ वाले शहर के बीचों-बीच से होते हुए हम डॉक्टर के क्लिनिक तक पहुंचे।


क्लिनिक के बाहर पहुंचते ही मम्मी ने राजू भैया को किराए के पैसे दिए। चूंकि वह इलाका काफी भीड़भाड़ वाला था, इसलिए हमने जल्दी से उतरकर क्लिनिक के अंदर जाने का फैसला किया। राजू भैया भी अपने अगले सवारी की तलाश में आगे बढ़ गए।


जैसे ही हम क्लिनिक में दाखिल हुए, रिसेप्शनिस्ट ने फीस की बात की। मम्मी ने जब अपना पर्स निकालने के लिए बैग टटोला, तो उनके होश उड़ गए। पर्स गायब था! मम्मी का चेहरा सफेद पड़ गया, और मेरे दिल की धड़कन भी तेज हो गई। पर्स में पैसे तो ज्यादा नहीं थे, लेकिन उसमें मम्मी की कीमती सोने की झुमकी रखी हुई थी, जिसकी कीमत करीब 50,000 रुपये थी।


हम दोनों घबराए हुए तुरंत बाहर दौड़े, उम्मीद थी कि शायद ऑटो वाले राजू भैया कहीं दिख जाएं। लेकिन, हमें ऑटो का नंबर तक याद नहीं था, और उस भीड़भाड़ भरे इलाके में उसे ढूंढना नामुमकिन सा लग रहा था। हम इधर-उधर भागने लगे, मन में एक ही ख्याल कि अगर पर्स नहीं मिला तो क्या होगा?


इसी उधेड़बुन में हमारी नजर अचानक से एक ऑटो पर पड़ी। यह वही ऑटो था, और हैरानी की बात यह थी कि राजू भैया वापस लौट आए थे। उनके हाथ में वही पर्स था! उन्होंने बताया कि जब अगली सवारी ऑटो में बैठी, तो उसने देखा कि सीट पर पर्स पड़ा हुआ है। सवारी ने जैसे ही उन्हें यह बताया, राजू भैया को समझ में आ गया कि यह पर्स हमारा ही होगा।


राजू भैया बिना कोई समय गंवाए, हमें पर्स लौटाने के लिए तुरंत वापस आ गए। उनकी ईमानदारी ने हमें अचंभित कर दिया। मम्मी की आंखों में राहत और आभार दोनों झलक रहे थे। उन्होंने राजू भैया का धन्यवाद किया और उनकी ईमानदारी के लिए उन्हें 500 रुपये देने की कोशिश की। पहले तो राजू भैया ने मना कर दिया, लेकिन मम्मी के आग्रह पर उन्होंने बड़ी मुश्किल से पैसे लिए।


उस पल, हमें एहसास हुआ कि आज के दौर में, जब ईमानदारी और सच्चाई की कहानियां कम ही सुनने को मिलती हैं, फिर भी कुछ लोग ऐसे हैं जो इन गुणों को जीते हैं। राजू भैया जैसे लोग हमें याद दिलाते हैं कि दुनिया में अभी भी इंसानियत और ईमानदारी बाकी है।


यह घटना न केवल हमें चौंकाने वाली थी, बल्कि इसने हमारे दिलों में राजू भैया जैसे साधारण इंसानों के प्रति गहरा सम्मान भी भर दिया। यह एहसास हुआ कि सच्चाई और ईमानदारी की कीमत किसी भी चीज़ से बढ़कर होती है, और जो लोग इन गुणों को जीते हैं, वे सच में अनमोल होते हैं।


सीख:

जीवन में ईमानदारी और सच्चाई ही सबसे बड़ी दौलत है। भले ही हमें हर रोज़ ये गुण कम देखने को मिलें, पर जब भी हम किसी ऐसे व्यक्ति से मिलते हैं जो इन्हें जी रहा हो, वह पल अमूल्य बन जाता है। 🌟


अतुलनीय रिश्ता  


दिसंबर की कड़ाके की ठिठुरा देने वाली ठंड.... ऐसे मे दिल्ली तक के सफ़र में रात मे ट्रेन में सब अपने अपने गर्म लिहाफ़ मे दुबके थे....श्रवण भी अपनी सीट पर बस दुबकने की ही तैयारी कर रहा था। सोने से पूर्व एक बार फ्रेश होने के इरादे से वो वॉशरूम की तरफ़ गया।वॉशरूम के बाहर की ओर दरवाजे के सामने एक अधेड़ उम्र की महिला एक छोटा सा थैला लिए बैठी थी... शायद उसमें उसका सामान था।गर्म कपड़ों के नाम पर मात्र एक पतला सा शॉल ओढ़े हुए थी...जो ठंड से राहत देने के लिए काफ़ी नही थी...श्रवण ने देखा...महिला की आँखों में आँसू की बूंदें थी..जो बार बार गालों पर लुढ़क जाती.. और महिला शॉल से उसे पौंछ देती... तभी बाजू वाले ट्रैक पर कोई ट्रेन गुज़री.....उससे आती हवा में वह महिला सिहर उठी....कंपकंपा कर स्वयं को स्वयं मे लपेटने का प्रयास करने लगी।

"कहाँ जा रहीं हैं आप...."अचानक श्रवण ने पूछ लिया।

महिला ने चेहरा ऊपर किया... श्रवण को देखा।

"मथुरा...."महिला ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया।

"टिकट नहीं लिया...."श्रवण ने पूछा।

"बेटा... अचानक जाना पड़ रहा है... टीसी आएगा... तो ले लूंगी..."महिला ने आँसू पोंछते हुए कहा।

"क्यों... ऐसे अचानक क्यों.... इतनी ठंड में.... आपको रिजर्वेशन करवाना चाहिए था..."पता नही क्यों पर श्रवण को उस महिला से एक जुड़ाव सा महसूस हो रहा था।

"बेटा....अभी पता चला कि मेरी बेटी प्रसव के दौरान चल बसी.."कहते कहते महिला फ़फक पड़ी।

"ओह.... तो आप अकेली.... परिवार का कोई और सदस्य..." श्रवण ने कुछ पूछना चाहा।

"कोई भी नहीं है... हम माँ बेटी ही एक दूसरे का सहारा थीं... अभी साल हुआ... बिटिया का ब्याह किया था...."महिला सिसकती हुई बोली।

इतने में टीसी आ गया।श्रवण महिला की मनःस्थिति बखूबी समझ रहा था, उसने महिला का टिकट बनवाया और उसे सीट पर बैठाकर.... अपना एक कंबल निकालकर उसेऔढाया....महिला अचरच भरी निगाहों से बस उसे देखती रही... बेचारी कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं थी...उसे तो श्रवण के रूप में जैसे स्वयं ईश्वर मिल गए थे।

"मांजी.... आप ये हज़ार रुपये अपने पास रखें... और अपना पता मुझे नोट करवा दीजिए.... और फिर कभी ऐसा मत कहिएगा कि आपका इस दुनिया में कोई नहीं.... ये आपका बेटा है न...हर महीने जितना भी संभव हो.... पैसे भेजेगा... और जब कभी मौका लगेगा... मैं आपसे मिलने भी आऊंगा.... मांजी मैं आप पर कोई उपकार नही कर रहा हूँ.... मुझे भी आपके रूप में माँ मिली है...."कहकर श्रवण ने महिला के चरण स्पर्श कर लिए।

महिला की आँखों से अविरल अश्रुधार प्रवाहित हो रही थी.... उसे सबकुछ स्वप्न की तरह प्रतीत हो रहा था....।

महिला कंबल औढ़े चुपचाप लेटी श्रवण को निहार रही थी और श्रवण वॉलेट मे लगे अपनी माँ की तस्वीर को देख रहा था.....।कड़ाके की ठंड में जहाँ लोग अपने अपने बिस्तरों मे दुबके हुए थे.....वहाँ अपनेपन के गर्म लिहाफ से ज़िंदगी के सफ़र मे एक अतुलनीय रिश्ता वज़ूद ले चुका था।

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