सुजाता एक गरीब विधवा थी भाग-2

सुजाता एक गरीब विधवा थी, जो अपने 5 साल के बेटे आदित्य और सास किरण के साथ रहती थी। सुजाता के पति का अचानक निधन हो गया था, जिससे परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। उसकी सास किरण बहुत गुस्सैल और सख्त स्वभाव की महिला थी, और सुजाता पर आए दिन नाराज होती रहती थी।

एक दिन, जब सुजाता घर का काम कर रही थी, किरण उसके पास आई और अपने गुस्से का इज़हार करने लगी।


किरण: "तू घर में ही काम करती रहेगी, या बाहर जाकर कुछ कमाई भी करेगी? मेरे बेटे को तो खा गई, अब मेरे पोते को भी भूखा मारेगी क्या? बाहर जाकर कुछ काम कर और पैसे कमाकर ला।"


सुजाता: "माँजी, मैं कल ही काम ढूंढने गई थी, लेकिन कोई नौकरी नहीं मिली। आज फिर से कोशिश करूंगी।"


सुजाता ने अपनी सास और बेटे के लिए खाना बनाया और काम की तलाश में घर से निकल पड़ी। दिन भर वह इधर-उधर भटकती रही, लेकिन उसे कोई नौकरी नहीं मिली। थकी और निराश, वह घर लौट रही थी कि अचानक एक ढाबे के पास कुछ लोगों की बातचीत ने उसका ध्यान खींचा।


ढाबे वाला: "देख भाई मोहन, तू मुझसे दोगुने पैसे ले ले, लेकिन काम छोड़कर मत जा। तू अच्छा खाना बनाता है, और इसी वजह से मेरा ढाबा चल रहा है। अब तू अचानक काम छोड़कर गांव जा रहा है, तो मेरे सारे ग्राहक टूट जाएंगे।"


मोहन: "मैं अपने गांव जा रहा हूं, और एक महीने बाद ही लौटूंगा।"


ढाबे वाला: "एक महीने में तो मेरा ढाबा बंद हो जाएगा। तू एक हफ्ते में वापस आ जा, मैं तुझे दुगने पैसे दूंगा।"


लेकिन मोहन नहीं मानता और नौकरी छोड़कर चला जाता है। सुजाता ने यह बातचीत सुनी और एक उम्मीद की किरण जगी। वह तुरंत ढाबे वाले के पास पहुंची।


सुजाता: "भैया, मैंने आपकी बातें सुनीं। मुझे बहुत अच्छा खाना बनाना आता है। मुझे नौकरी पर रख लीजिए।"


ढाबे वाला: "ये कोई घर का खाना नहीं है। यहां रोज़ 300 लोगों का खाना बनता है। तुम कैसे संभालोगी?"


सुजाता: "भैया, मुझे पैसों की सख्त जरूरत है। आप मुझ पर भरोसा कीजिए। मैं वादा करती हूं कि आपका एक भी ग्राहक वापस नहीं जाएगा।"


ढाबे वाले को उस पर दया आ गई और उसने उसे एक मौका देने का फैसला किया।


ढाबे वाला: "ठीक है, बहन। मैं अपना बिजनेस तुम्हारे हवाले करता हूं, लेकिन अगर मेरे ग्राहकों को तुम्हारा खाना पसंद नहीं आया, तो मैं तुम्हें पैसे नहीं दूंगा।"


सुजाता ने सहमति जताई, और अगले दिन से काम शुरू कर दिया। सुजाता की खाना बनाने की कला बेहतरीन थी, और उसके स्वादिष्ट भोजन ने ढाबे पर ग्राहकों की संख्या बढ़ा दी। लोग उसकी तारीफ करने लगे, और ढाबा दिन-ब-दिन मशहूर होने लगा।


मोहन की वापसी:

एक महीने के बाद, मोहन वापस लौट आया और ढाबे पर पहुंचा।


मोहन: "सेठ, मैं आ गया हूं। बताओ, आज क्या बनाना है?"


ढाबे वाला: "भाग जा यहां से। अब मैं तुझे काम पर नहीं रख सकता। मैंने एक औरत को काम पर रखा है, और वो बहुत अच्छा खाना बना रही है। तू अब यहां काम करने लायक नहीं रहा।"


मोहन बहुत गुस्से में आ गया और चिल्लाया, "मैं देखता हूं कि ये औरत कितने दिन टिकती है। उसके जाने के बाद तू फिर मेरे पास दौड़कर आएगा।"


मोहन वहां से गुस्से में चला गया, लेकिन मन ही मन उसने सुजाता को काम से निकलवाने की योजना बनानी शुरू कर दी।


मोहन की धमकी:

ठंड का मौसम आ गया था, और कभी-कभी सुजाता को ढाबे पर देर रात तक काम करना पड़ता था। एक रात, जब वह घर लौट रही थी, रास्ते में मोहन उसे मिला।


मोहन: "सुन, वो ढाबा मेरा है। कल से काम पर मत जाना, नहीं तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।"


सुजाता: "भैया, मैं बहुत गरीब हूं। मुझ पर दया करो। तुम कहीं और काम ढूंढ लोगे, लेकिन मैं कहां जाऊंगी?"


मोहन: "मुझे कुछ नहीं पता। बस कल से तू ढाबे पर नहीं जाएगी।"


यह कहकर मोहन वहां से चला गया। सुजाता घर जाकर बहुत रोई और अगले दिन ढाबे के मालिक को सारी बात बताई।


ढाबे वाला: "तुम चिंता मत करो, बहन। मैं इस मोहन को सबक सिखाऊंगा। आज रात तुम उसी रास्ते से जाओ, मैं छिपकर तुम्हारा इंतजार करूंगा।"


मोहन की गिरफ्तारी:

रात होते ही, सुजाता ढाबे से घर के लिए निकली। जैसे ही वह उसी सुनसान रास्ते पर पहुंची, मोहन फिर से आ गया।


मोहन: "मैंने तुझे मना किया था, अब तू नहीं बचेगी।"


मोहन जैसे ही सुजाता पर हमला करने के लिए आगे बढ़ा, तभी ढाबे का मालिक पुलिस के साथ वहां पहुंच गया।


पुलिस: "एक गरीब विधवा औरत को तंग करता है? अब तुझे ढाबा नहीं, जेल मिलेगी।"


पुलिस ने मोहन को गिरफ्तार कर लिया, और उसे जेल भेज दिया।


नए सिरे से शुरुआत:

अगले दिन से सुजाता ढाबे पर शांति से काम करने लगी। उसके बनाए स्वादिष्ट खाने ने ढाबे की लोकप्रियता को और भी बढ़ा दिया। धीरे-धीरे, वह ढाबे की मुख्य रसोइया बन गई और उसकी मेहनत रंग लाई। सुजाता की लगन, साहस और ढाबे वाले की मदद से, उसने अपने परिवार की गरीबी और मुश्किलों पर विजय पा ली। 


निष्कर्ष:

इस कहानी से यह सिखने को मिलता है कि जब जीवन में मुसीबतें आती हैं, तो साहस और मेहनत से उनका सामना करना चाहिए। सुजाता ने अपने संघर्ष और दृढ़ निश्चय से यह साबित कर दिया कि हर चुनौती को पार किया जा सकता है, बस आत्मविश्वास और हिम्मत से डटे रहना जरूरी है।


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