बात 2010 की है, जब मैं हरियाणा के एक छोटे शहर से उत्तर प्रदेश के एक शहर में नौकरी के सिलसिले में रोज़ाना 55 किलोमीटर का सफर तय करती थी। मेरी नौकरी की वजह से मुझे यह लंबा सफर पैसेंजर ट्रेन से करना पड़ता था। हालांकि, सर्दियों के दिनों में धुंध की वजह से ट्रेन अक्सर देरी से आती थी, जिससे मेरी दिनचर्या प्रभावित हो जाती थी। ऐसे वक्त में मैं लम्बी दूरी की एक्सप्रेस ट्रेन का सहारा लेती थी, जो कि पैसेंजर ट्रेन के मुकाबले आधे समय में मुझे गंतव्य तक पहुंचा देती थी।
मेरे पिताजी रेलवे में कार्यरत थे, और उनका फर्स्ट क्लास का पास हमेशा मेरे पर्स में रहता था। यही वजह थी कि टी.सी. भी मुझे एक्सप्रेस ट्रेन में कुछ नहीं कहता था, और मैं निश्चिंत होकर यात्रा कर सकती थी।
एक दिन की बात है, जब हमेशा की तरह सर्दियों की सुबह थी और मैं एक एक्सप्रेस ट्रेन के स्लीपर कोच में चढ़ गई। चूंकि ट्रेन में ज्यादातर सीटें बुक थीं, मुझे बैठने के लिए कोई खाली जगह नहीं मिली। फिर भी, मैंने इधर-उधर देखा, शायद कहीं बैठने का मौका मिल जाए। तभी मेरी नजर एक 70-75 साल के अंकल जी पर पड़ी, जो खिड़की के पास बैठे थे। उन्होंने मुझे देखा और मुस्कुराते हुए कहा, "बेटा, इधर बैठ जाओ।" उनकी दाईं तरफ एक लड़की पहले से बैठी हुई थी, तो मैं उनके बाईं ओर बैठ गई।
सामने की सीट पर एक अधेड़ उम्र का दंपति बैठा हुआ था, और उनके साथ एक नौजवान लड़का भी था। मुझे अंदाजा नहीं हो पाया कि वह लड़का उनके साथ था या नहीं, लेकिन वह चुपचाप बैठा हुआ था।
ट्रेन ने धीरे-धीरे अपनी रफ्तार पकड़ ली, और अंकल जी निंद्रावस्था में जाने लगे। थोड़ी ही देर में उन्होंने सिर झुकाना शुरू कर दिया, कभी मेरी तरफ गिरते तो कभी दूसरी तरफ बैठी लड़की के ऊपर। मैंने पहले इसे उनकी उम्र का असर समझा और ज्यादा ध्यान नहीं दिया। लेकिन जब यह सिलसिला लगातार जारी रहा, तो मुझे समझ में आ गया कि यह जानबूझकर किया जा रहा है। कहते हैं, भगवान ने हर स्त्री को एक खास प्रकार की शक्ति दी है, जिससे वह स्पर्श की नीयत को पहचान सकती है। मुझे भी यह एहसास हुआ कि यह सब सहज नहीं है।
जब उन्होंने फिर से मेरी ओर सिर झुकाया, तो मैं उठने की सोच ही रही थी कि तभी सामने बैठा नौजवान लड़का अचानक उठकर दरवाजे के पास खड़ा हो गया। उसके इस कदम से मुझे उसकी सीट पर बैठने का विचार आया, लेकिन मन में यह डर भी था कि कहीं वह मुझे मना न कर दे या फिर उसकी सीट पर बैठने को लेकर कुछ कह न दे।
मैंने हिम्मत जुटाई और उसकी तरफ देखा। इससे पहले कि मैं कुछ पूछ पाती, उसने इशारे से सर हिलाते हुए मुझे अपनी सीट पर बैठने का संकेत दे दिया। उस वक्त मेरे दिल और दिमाग में उसके लिए गहरी कृतज्ञता भर गई। मैंने मन में सोचा कि ट्रेन से उतरते वक्त उसे धन्यवाद जरूर कहूंगी।
दूसरी लड़की, जो अंकल जी के पास बैठी थी, उसने भी कुछ दूरी बनाते हुए अपना पर्स बीच में रख लिया और मेरी ओर मुस्कुरा दी। अब अंकल जी को नींद नहीं आ रही थी, और वे खिड़की से बाहर देखने लगे। शायद उन्हें समझ में आ गया था कि उनकी चालाकी अब सफल नहीं होगी।
कुछ समय बाद, ट्रेन मेरे स्टेशन पर रुकी। मैंने उतरने की तैयारी की, लेकिन मेरी नजरें उस नौजवान लड़के को ढूंढ रही थीं, ताकि मैं उसे धन्यवाद कह सकूं। पर वह लड़का नजर नहीं आया। शायद वह पहले ही ट्रेन से उतर गया था, या फिर वह कहीं पीछे रह गया था। लेकिन एक बात साफ थी – कुछ लोग सच में धन्यवाद के मोहताज नहीं होते। वे बिना किसी स्वार्थ के दूसरों की मदद करते हैं, और इस दुनिया में अच्छाई को बनाए रखते हैं।
आज भी उस नौजवान के लिए मेरे दिल से दुआएं निकलती हैं। उसके माता-पिता ने उसे कितने अच्छे संस्कार दिए थे। ऐसे संस्कार जो उसे किसी की मदद करने और उसके साथ खड़े होने के लिए प्रेरित करते हैं, बिना किसी स्वार्थ के।
वाकई, उम्र तो बस एक संख्या है। यह किसी को परेशान करने या किसी की सहायता करने के लिए कोई मायने नहीं रखती। असली मायने रखता है हमारा दिल और हमारी नीयत, जो किसी की तकलीफ को समझ सके और उसके लिए कुछ करने का साहस दिखा सके। उस दिन का वह छोटा-सा अनुभव मेरी जिंदगी में हमेशा के लिए अंकित हो गया।
नेहा का चेहरा उतरा हुआ था जब उसने अपने पिता से अपनी दिल की बात कही। उसने दृढ़ता से कहा, "मैं उससे ही शादी करूंगी, पापा। वरना...!" उसके शब्दों में इतनी गंभीरता थी कि उसके पिता एक पल के लिए सन्न रह गए। एक गहरी सांस लेकर उन्होंने खुद को संभाला और शांत स्वर में बोले, "ठीक है, बेटी। अगर तुम उसे इतना चाहती हो, तो मैं तुम्हारी इच्छा का सम्मान करूंगा। लेकिन उससे पहले, मैं चाहता हूँ कि हम दोनों मिलकर उसकी परीक्षा लें। अगर वह इस परीक्षा में सफल होता है, तो तुम्हारा विवाह उससे ही होगा। कहो, क्या तुम इसके लिए तैयार हो?"
नेहा की आंखों में चमक आ गई। वह उत्साह से बोली, "हां, पापा! मुझे पूरा यकीन है कि राज हर परीक्षा में सफल होगा। आप उसे नहीं जानते, लेकिन मैं जानती हूं कि वह सबसे अच्छा जीवनसाथी है।"
अगले दिन, जब नेहा कॉलेज में राज से मिली, तो उसका चेहरा उदास था। राज ने उसे देखा और मुस्कुराते हुए बोला, "क्या हुआ, स्वीटहार्ट? इतना उदास क्यों हो? तुम मुस्कुरा दो वरना मैं अपनी जान दे दूंगा।"
नेहा ने झुंझलाते हुए कहा, "राज, मजाक छोड़ो। पापा ने हमारे विवाह के लिए मना कर दिया है। अब क्या होगा?"
राज ने अपनी usual मस्तीभरी अंदाज़ में हवा में बात उड़ाते हुए कहा, "अरे होगा क्या, हम घर से भाग जाएंगे और कोर्ट मैरिज कर लेंगे। फिर वापस आ जाएंगे, सपनों को सच करने के लिए!"
नेहा ने उसे बीच में टोकते हुए पूछा, "लेकिन इसके लिए तो पैसों की जरूरत होगी। क्या तुम मैनेज कर लोगे?"
राज ने थोड़ा लापरवाही से जवाब दिया, "ओह, बस यही दिक्कत है। मैं तुम्हारे लिए जान दे सकता हूँ, पर इस वक्त मेरे पास पैसे नहीं हैं। हो सकता है, घर से भागने के बाद हमें कहीं होटल में छिपकर रहना पड़े। तुम ऐसा करो, जो भी चाँदी, सोना, नकदी तुम्हारे घर में है, उसे ले आना। वैसे मैं भी कुछ इंतजाम करूंगा। कल तुम घर से यह कहकर आना कि कॉलेज जा रही हो, और फिर हम यहां से भाग जाएंगे।"
नेहा ने भोली बनते हुए कहा, "लेकिन इससे तो मेरी और मेरे परिवार की बहुत बदनामी होगी।"
राज ने लापरवाही से कहा, "बदनामी? वो तो होती रहती है। तुम इसकी परवाह मत करो।"
राज अभी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि नेहा ने अचानक उसके गाल पर जोरदार तमाचा मार दिया। राज अवाक रह गया। नेहा गुस्से से बोली, "हर बात पर जान देने को तैयार बदतमीज! तुझे यह तक परवाह नहीं है कि जिससे तू प्यार करता है, उसकी और उसके परिवार की समाज में बदनामी हो जाए। तू प्रेम का दावा करता है, लेकिन तू यह समझता भी है कि प्यार सिर्फ एक शब्द नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी है? तुझे क्या लगता है, मैं अपने पिता की इज्जत की धज्जियां उड़ा कर तेरे साथ भाग जाऊंगी? क्या तुझे यह भी नहीं पता कि मेरे भागने के बाद मेरे पिता पर क्या गुजरेगी?"
राज हक्का-बक्का खड़ा रहा, उसके पास नेहा की बातों का कोई जवाब नहीं था। नेहा ने आगे कहा, "अगर मैं अपनी पिता की इज्जत नीलाम कर दूं, तो क्या समाज और ससुराल में मेरी इज्जत बची रहेगी? क्या तब वे मुझे सिर माथे पर बिठाएंगे? क्या तब हमारे सपनों की दुनिया इस समाज से अलग होगी? हम रहेंगे तो इसी समाज में। घर से भाग कर क्या आसमान में बस जाएंगे?"
राज के चेहरे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं थी। वह चुपचाप खड़ा था, जब पीछे से तालियों की आवाज आई। राज ने मुड़कर देखा, तो सामने एक आदमी खड़ा था जिसे वह पहचान नहीं पाया। नेहा ने तुरंत उस आदमी की ओर दौड़ लगाई और आंसू पोंछते हुए बोली, "पापा, आप बिल्कुल सही कह रहे थे। यह प्रेम नहीं, बल्कि एक जाल है, जिसमें फंसकर मुझ जैसी हजारों लड़कियां अपना जीवन बर्बाद कर डालती हैं।"
उसके पिता ने उसे गले से लगा लिया और उसके बालों को सहलाते हुए कहा, "बेटी, प्यार एक पवित्र बंधन है, लेकिन यह तभी सच्चा होता है जब उसमें विश्वास, सम्मान और जिम्मेदारी हो। हमें केवल अपने दिल की सुनने के बजाय, दिमाग का भी उपयोग करना चाहिए। जो व्यक्ति केवल अपने बारे में सोचता है और दूसरों की भावनाओं और इज्जत की परवाह नहीं करता, वह कभी भी सच्चा प्रेमी नहीं हो सकता।"
नेहा ने अपने पिता की बातों को गहराई से समझा। उसने महसूस किया कि प्यार का मतलब सिर्फ किसी के साथ रहने की इच्छा नहीं होती, बल्कि उसके साथ एक जिम्मेदारी निभाने की भी होती है। उसने महसूस किया कि उसके पिता की सलाह ने उसे एक बड़ी गलती करने से बचा लिया था।
इस अनुभव ने नेहा को सिखाया कि सच्चा प्यार वह होता है जिसमें दोनों पक्ष एक-दूसरे के सम्मान और भावनाओं की कद्र करते हैं। प्यार एक जिम्मेदारी है, जो दोनों को एक-दूसरे के साथ खड़े होने और समाज में अपनी जगह बनाने के लिए प्रेरित करता है। नेहा ने अपने पिता के साथ उस दिन जो कुछ सीखा, वह उसकी जिंदगी के सबसे महत्वपूर्ण सबक में से एक था।
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