अंशुल देर शाम को जब ऑफिस से घर लौटा

अंशुल देर शाम को जब ऑफिस से घर लौटा, तो उसने रसोई से बर्तनों की खटर-पटर की आवाज सुनी। जिज्ञासा से भरकर उसने हल्के से झांका और देखा कि उसकी मां, सविता देवी, बर्तन धो रही थीं। उम्र के साथ-साथ सविता जी की सेहत भी ढल चुकी थी, और उन्हें घुटनों में दर्द की पुरानी शिकायत थी। जनवरी की ठंडी रात में यह दर्द और भी बढ़ गया था। बाहर का मौसम धुंध और ठंड से ढका हुआ था, और तापमान इतना गिर चुका था कि अंशुल के कान सुन्न हो गए थे।


अंशुल ने मां को इस स्थिति में देखकर कुछ नहीं कहा। उसने चुपचाप अपने कमरे की ओर रुख किया। बैग को एक कोने में रखा और बाथरूम में जाकर गीजर ऑन कर दिया। वापस आते हुए उसने अपने बेडरूम में एक नजर डाली, जहां उसकी पत्नी, कविता, आराम से रजाई में बैठी टीवी देख रही थी। कविता बेहद खूबसूरत थी, लेकिन उसके तेज मिजाज ने अक्सर उनके रिश्ते में खटास पैदा की थी।


कविता ने उसे देखते ही मुस्कुराते हुए कहा, "अरे! आज तो बहुत देर कर दी।"


अंशुल ने उसे गंभीर निगाहों से देखा और कपड़े बदलने लगा। कविता ने प्यार से पीछे से आकर उसके गले में बाहें डाल दीं, "पता है, मैं कितनी देर से तुम्हारा इंतजार कर रही थी।"


अंशुल ने हल्के से मुस्कराते हुए पूछा, "क्यों?"


"बस ऐसे ही," कविता ने शरमाते हुए जवाब दिया।


"चलो, चाय बना दो। बहुत ठंड है," अंशुल ने कहा।


कविता ने तुरंत ही चिढ़ते हुए जवाब दिया, "कामवाली पंद्रह दिन की छुट्टी लेकर गांव चली गई है। उसके देवर का निधन हो गया है। अब मुझसे तो ये सब काम नहीं होता, तुम्हें ही कोई और इंतजाम करना पड़ेगा।"


अंशुल ने गंभीर स्वर में पूछा, "मां कहां है?"


कविता ने अनमने भाव से जवाब दिया, "पता नहीं, मुझसे उनकी ज्यादा बातचीत नहीं होती। और उनकी फालतू बातें सुनने का तो समय ही नहीं है मेरे पास।"


अंशुल मन ही मन सोचने लगा कि उसकी मां, जो हमेशा उसकी ताकत रही थी, आज इस घर में कितनी अकेली और बेबस हो गई थी। पिता जी को गुजरे हुए बीस साल हो चुके थे, और सविता जी ने हमेशा अपने बेटे के लिए खुद को ताकतवर बनाए रखा था। जब अंशुल दस साल का था, उसके पिता का निधन हो गया था, लेकिन सविता जी ने कभी उसे किसी चीज़ की कमी महसूस नहीं होने दी थी। उन्होंने पच्चीस बीघा जमीन की खेती अकेले संभाल ली थी, और इस संघर्ष के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी।


अब जब अंशुल अपने जीवन में सफल हो चुका था, वह अपनी मां के लिए कुछ नहीं कर पा रहा था। कविता को समझाना मुश्किल था, क्योंकि वह जानता था कि उसकी पत्नी के स्वभाव में बदलाव लाना आसान नहीं है।


अंशुल चुपचाप रसोईघर में गया। मां चाय बना चुकी थीं और उसके लिए पानी भी गर्म कर दिया था। उसने खामोशी से पानी पिया, लेकिन इस बार मां का हाल-चाल पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पाया।


अंशुल ने फिर जोर से आवाज दी, "कविता, ज़रा जल्दी से बाहर आओ।"


कविता झल्लाते हुए बाहर आई, "क्या हुआ?"


अंशुल की आवाज में गुस्सा था, "ये क्या हो रहा है? पड़ोस वाली बुआजी अभी मिलीं थीं, कह रही थीं कि मैंने अपनी मां को नौकरानी बना रखा है।"


कविता ने हैरानी से पूछा, "किसकी बात कर रहे हो?"


"अभी आज ही कामवाली गई है और पूरे मोहल्ले में चर्चा हो गई कि अंशुल की मां नौकरानी की तरह काम कर रही है," अंशुल ने नाराज होकर कहा।


सविता जी ने यह सुनकर आंसू बहाना शुरू कर दिया। उन्होंने कोई सफाई नहीं दी, चुपचाप अपने कमरे में चली गईं।


अंशुल ने कविता से कहा, "तुम्हें कुछ समझ में आ रहा है? मां को कोई काम मत करने देना। खाना बना कर उन्हें दे दो।"


कविता ने अनमने ढंग से खाना बनाया और अपना तथा अंशुल का खाना लेकर कमरे में चली आई।


अंशुल ने पूछा, "मां को खाना दिया?"


कविता ने ठंडे स्वर में कहा, "बना कर रख दिया है, वो खुद ले लेंगी। तुम इतनी चिंता मत करो।"


अंशुल को समझ में आ गया कि कविता से इस बारे में बहस करने का कोई मतलब नहीं है। वह चुपचाप रसोई में गया, खाना गर्म किया और एक प्लेट में मां के लिए रोटियां और सब्जी डालकर उनके कमरे में चला गया।


मां बत्ती बुझाकर लेटी हुई थीं, लेकिन वह जानता था कि मां सोई नहीं थीं, बल्कि आंसू बहा रही थीं। उसने लाइट जलाई और प्यार से कहा, "मां, उठो खाना खा लो।"


मां ने धीरे से कहा, "मुझे भूख नहीं है, बेटा। तुम लोग खा लो।"


अंशुल ने मां का हाथ पकड़कर अपने पास बैठा लिया और बोला, "मां, मुझे माफ कर दो। तुम्हें ठंड से बचाने का और कोई रास्ता नहीं था। तुम्हारा बेटा बहुत बुरा है।"


सविता जी ने उसके बालों पर हाथ फेरा और कहा, "मेरा बेटा, तुमने जो भी किया, मेरे लिए किया।"


अंशुल ने मां के पैरों में सिर रखकर कहा, "मां, मैं नहीं चाहता कि इस उम्र में तुम्हें कोई कुछ कहे। तुम मेरी सबसे बड़ी ताकत हो, और मैं तुम्हें कभी खोना नहीं चाहता।"


अंशुल ने मन ही मन फैसला किया कि वह कविता को साफ़-साफ़ बता देगा कि अगर उसे इस घर में रहना है, तो मां का सम्मान करना होगा। क्योंकि वह अपनी मां की मजबूरी नहीं, बल्कि उनकी ताकत बनना चाहता है।

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