रिक्शा चालक का मन थोड़ा बेचैन था

रिक्शा चालक का मन थोड़ा बेचैन था, क्योंकि अगले दिन उसे पैसों की बहुत जरूरत थी। वह सोच रहा था कि रात में शायद कुछ सवारियां मिल जाएं, इसलिए उसने अपने रिक्शे को बाहर से आने वाली बसों के स्टैंड के ब्रिज के नीचे खड़ा कर दिया। रात में वह अक्सर रिक्शा नहीं चलाता था, लेकिन आज हालात कुछ और ही थे।


थोड़ी देर इंतजार के बाद उसने देखा कि दो जवान लड़के बस से उतरकर उसकी ओर आ रहे थे। उनके पास कुछ सामान भी था। उन्होंने पास आकर उससे पूछा, "मिलिट्री कैम्प एरिया चलोगे?"


रिक्शा चालक ने जवाब दिया, "हाँ, चलेंगे। डेढ़ सौ रुपये लगेंगे।"


लड़कों ने थोड़ा हैरान होकर कहा, "बहुत ज्यादा बता रहे हो, शायद पास में ही है यहाँ से।"


उसने धीरे से समझाया, "जी, यह रास्ता करीब पांच किलोमीटर है, और चढ़ाई का रास्ता है। रात का समय भी है, और ये काफी मेहनत का काम है।"


लड़कों ने थोड़ी देर इधर-उधर देखा, शायद किसी ऑटो रिक्शा की तलाश कर रहे थे। लेकिन ब्रिज के नीचे ऑटो रिक्शा आमतौर पर नहीं लगते थे, इसलिए उन्होंने कोई विकल्प न देखकर रिक्शे पर ही बैठने का फैसला किया।


रिक्शा चालक ने रिक्शा चलाना शुरू किया, लेकिन जैसे ही वह थोड़ी दूर चला, उसे एहसास हुआ कि उसके शरीर में ताकत नहीं बची है। चढ़ाई और सामान का वजन उसके लिए भारी पड़ने लगा। उसका मन और शरीर दोनों थकान से चूर हो रहे थे, और सुबह से उसने कुछ ढंग का खाया भी नहीं था।


एक लड़के ने उसकी हालत देखकर पूछा, "क्या हुआ काका? रिक्शा खराब है क्या?"


रिक्शा चालक ने पसीना पोंछते हुए कहा, "आज पता नहीं क्या हो गया है, रिक्शा खींचने में दिक्कत हो रही है।"


लड़कों में से एक तुरंत उतर गया। उसने रिक्शा चालक की हालत को भांपते हुए कहा, "आप नीचे उतरो, काका। मैं देखता हूँ।" उसने चालक की बांह पकड़ी और उसे अपनी सीट पर बिठा दिया। लड़के ने रिक्शा खुद चलाना शुरू कर दिया और थोड़ी देर में ही मिलिट्री कैम्प एरिया तक पहुंच गए।


रिक्शा चालक की हालत अब भी कमजोर थी। वह सोच रहा था कि आज का दिन ही शायद खराब है। कमाई की अब कोई उम्मीद नहीं थी, और उसके मन में निराशा घर कर रही थी। जैसे ही वे कैम्प के पास पहुंचे, दोनों लड़के नीचे उतर गए और अपने सामान को भी उतार लिया।


रिक्शा चालक वापस जाने की तैयारी कर रहा था कि एक लड़के ने उसे रोकते हुए कहा, "काका, रुकिए!"


उसने अपनी जेब से दो सौ रुपये निकाले और रिक्शा चालक के हाथ में रख दिए।


चालक ने हैरान होते हुए कहा, "पर मैंने तो मेहनत भी नहीं की... ये पैसे कैसे रख लूँ, बेटा?"


लड़के ने मुस्कुराते हुए कहा, "क्या काका! आप मुझे बेटा भी बोलते हो और फिर भी इनकार कर रहे हो। रख लो, आपको शायद बुखार भी है, दवा भी ले लेना।"


रिक्शा चालक के आँखों में आंसू आ गए, उसने कांपते हुए हाथों से पैसे लिए। उसके मन में उन जवानों के प्रति गहरा सम्मान उमड़ आया। वह देखता रहा, जब तक वे दोनों जवान अपने कैम्प की ओर बढ़ते रहे। उसके दिल में गर्व और कृतज्ञता का मिश्रण था। बिना सोचे-समझे उसका हाथ तन कर माथे की दाहिनी ओर जा पहुंचा और उसकी जुबान से बरबस ही निकल पड़ा, "जय हिंद!"


उस रात, रिक्शा चालक के मन में उम्मीद और सम्मान की किरणें जगमगाने लगीं। उन जवानों ने न केवल उसकी मदद की, बल्कि उसे एक नया दृष्टिकोण भी दिया। यह अनुभव उसके लिए सिर्फ एक दिन की कमाई का नहीं था, बल्कि एक जीवन भर के लिए उसे प्रेरित करने वाला सबक था।


उसके लिए वह दिन किसी बड़े मुनाफे से कम नहीं था, क्योंकि उस दिन उसे सच्ची इंसानियत, देशभक्ति, और आत्मसम्मान का पाठ पढ़ने को मिला था।


रावण की ७ अपूर्ण इच्छाएं !!


हमारे कई पौराणिक ग्रंथों में ऐसा

वर्णन है कि रावण की कई ऐसी

इच्छाएं थी जो वो पूरा नहीं कर

पाया।


उसकी अपूर्ण इच्छाएं तो बहुत थी किन्तु

उनमे से ७ सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं।


रावण सप्तद्वीपाधिपति था,

नवग्रह उसके अधीन रहते थे और

स्वयं भगवान रूद्र की उसपर कृपा थी।


किन्तु उसके बाद भी अपने हर प्रयासों

के बाद भी उसकी ये ७ इच्छाएं पूरी नहीं

हो सकी।


आइये इनके बारे में कुछ जानते हैं;


1.स्वर्ग तक सोपान का निर्माण:

लंका का अधिपति बनने के बाद रावण

ने स्वर्ग पर आक्रमण करने की ठानी।


अपने पुत्र मेघनाद और राक्षस सेना के साथ

इंद्र पर आक्रमण किया जहाँ मेघनाद ने इंद्र

को परास्त कर इंद्रजीत की उपाधि प्राप्त की।


देवताओं को पराभूत कर और नवग्रह को

अपने अधीन कर रावण वापस लंका लौट

आया।


इसके बाद उसके मन में एक इच्छा जागी

कि वो पृथ्वी से स्वर्ग तक सीढ़ी का निर्माण

करेगा ताकि वो जब चाहे स्वर्ग जा सके।


वो ऐसा कर ईश्वर की सत्ता को चुनौती

देना चाहता था ताकि लोग ईश्वर को छोड़

को उसकी पूजा करना आरम्भ कर दें।

किन्तु वो कभी भी स्वर्ग तक सीढियाँ

बनाने में सफल ना हो सका।


2.मदिरा की दुर्गन्ध को दूर करना:

राक्षस स्वाभाव से ही विलासी प्रवृति के थे।

सुरा और सुंदरी उनकी दिनचर्या का हिस्सा थे।


मदिरा की गंध से स्त्रियां स्वाभाविक रूप से

अप्रसन्न रहती थी।

यही कारण था कि रावण शराब से उसकी

दुर्गन्ध दूर करना चाहता था।


इसके लिए उसने अपने सभी अन्वेषकों को

इस कार्य में लगाया किन्तु शुक्राचार्य ने जो

मदिरा को श्राप दिया था, उस कारण वो कभी

भी उसकी दुर्गन्ध को दूर करने में सफल नहीं

हो सका। 


3.स्वर्ण में सुगंध डालना:

रावण की नगरी लंका स्वर्ण नगरी थी।

रावण को स्वर्ण से अत्यधिक लगाव था और

वो चाहता था कि संसार में पाया जाने वाला

हरेक स्वर्ण भंडार उसके अधीन हो।


स्वर्ण को आसानी से ढूंढा जा सके इसी कारण

रावण उसमें सुगंध डालना चाहता था।

हालाँकि उसकी ये इच्छा पूरी नहीं हो पायी।


4.मानव रक्त को श्वेत करना:

रावण ने इतने युद्ध लड़े और इतना रक्त

बहाया कि पृथ्वी के सातों महासागरों का

रंग लाल हो गया।


इससे पृथ्वी का संतुलन बिगड़ने लगा और

सभी देवता रावण को दोष देने लगे।


रावण ने इसपर ध्यान नहीं दिया किन्तु जब

स्वयं परमपिता ब्रह्मा ने उसे चेतावनी दी तब

रावण ने सोचा कि अगर रक्त का रंग लाल की

बजाय श्वेत हो जाये तो किसी को रक्तपात का

पता नहीं चलेगा।


किन्तु उसकी ये इच्छा भी पूरी नहीं हुई। 


5.कृष्ण रंग को गौर करना:

कहा जाता है कि रावण का वर्ण काला था और

लगभग सारे राक्षसों का रंग भी काला था जिस

कारण उन्हें देवताओं और अप्सराओं द्वारा

अपमानित होना पड़ता था।


किवदंती है कि रम्भा ने भी उसके रंग का

मजाक उड़ाया था और रावण ने उसके साथ

दुराचार किया।


इसी के बाद रम्भा ने रावण को श्राप दिया

कि अगर वो किसी स्त्री का उसकी इच्छा

के बिना रमण करेगा तो उसकी मृत्यु हो

जाएगी।


उस अपमान के कारण रावण सभी राक्षसों

का रंग गोरा करना चाहता था किन्तु उसकी

ये इच्छा पूर्ण ना हो पायी।


6.समुद्र के पानी को मीठा बनाना:

लंका चारों दिशाओं से समुद्र से घिरी थी।

ये लंका को सम्पूर्ण रूप से सुरक्षित तो बनाता

था किन्तु समुद्र का सारा जल रावण के लिए

किसी काम का नहीं था क्यूंकि वो पीने लायक

नहीं था।


यही कारण था कि रावण समुद्र के जल को

मीठा बनाना चाहता था ताकि वो पीने योग्य

बन सके।

पर उसकी ये इच्छा पूरी नहीं हो सकी। 


7.संसार को श्रीहरि की पूजा से निर्मूल करना:

रावण स्वाभाव से ही भगवान विष्णु का विरोधी था।

उसे ब्रह्मदेव का वरदान प्राप्त था और भगवान रूद्र

की कृपा भी।


किन्तु नारायण ने कभी उसका सहयोग नहीं किया।

देवताओं को तो वो जीत ही चुका था और त्रिलोक में

केवल भगवान विष्णु ही थे जो उसके विरोधी थे और

रावण उन्हें जीत नहीं सकता था।


ये सोच कर उसने हिरण्यकश्यप की तरह सभी

विष्णु भक्तों का नाश करना आरम्भ किया।


वो चाहता था कि संसार में कोई भी ऐसा

ना बचे जो भगवान विष्णु की पूजा करे।


हालाँकि नारायण के सातवें अवतार श्रीराम के

द्वारा ही उसका वध हुआ और उसकी ये अंतिम

इच्छा भी पूरी ना हुई।


Download

टिप्पणियाँ