रात के सन्नाटे में जब सारे घर में खामोशी पसरी थी

रात के सन्नाटे में जब सारे घर में खामोशी पसरी थी, रागिनी का दिल एक अजीब सी बेचैनी से घिरा हुआ था। उसकी भावनाएं, जो लंबे समय से अंदर ही अंदर सुलग रही थीं, अब उफान पर थीं। वह कमरे में अकेली थी, और इस समय अमर का ख्याल उसके मन में गहरे तक बैठ गया था। वह उसे बुलाने से खुद को रोक नहीं पाई और धीरे से बोली, "मेरे प्यासे मन को क्यों नहीं बुझा देते? मैं आपका यह एहसान जिंदगीभर नहीं भूलूंगी। आइए, और मुझे अपनी बांहों में जकड़ लीजिए। देखिए, यहां दीदी भी नहीं हैं, केवल आप, मैं और यह अकेलापन है।"


अमर ने उसकी ओर देखा, उसकी आंखों में एक गहरी संवेदना थी। लेकिन उसने खुद को संयमित रखते हुए कहा, "रागिनी, मैं समझता हूं कि तुम्हारे मन में क्या चल रहा है, लेकिन मैं तुम्हारी दीदी के साथ बेवफाई नहीं कर सकता। तुम्हें अपने आप को संभालना होगा। हर काम का एक समय होता है, और हमें अपनी इज्जत की भी कद्र करनी चाहिए। यह इज्जत तुम्हारे होने वाले पति की अमानत है।"

रागिनी ने अमर की बातों को अनसुना करते हुए कहा, "शादी के बारे में बाद में सोचेंगे, पहले आप मुझे अपनी बांहों में ले लीजिए। आप देख नहीं रहे कि मेरा अंग-अंग टूट रहा है?" यह कहते हुए वह अमर के और करीब आ गई और उसे पकड़ने की कोशिश की।

अमर का चेहरा अब कठोर हो गया था। उसने रागिनी के गाल पर एक जोरदार तमाचा मारा और गुस्से में बोला, "कितने भरोसे से तुम्हारे पिताजी ने तुम्हें हमारे पास छोड़ा है, और मैं उनका विश्वास तोड़ दूं? तुम्हारी दीदी मुझ पर कितना भरोसा करती है, और मैं उसका भी विश्वास तोड़ दूं? नहीं, मैं ऐसा कभी नहीं कर सकता। मैं तुमसे हंसी-मजाक और छेड़छाड़ कर सकता हूं, लेकिन वह भी एक हद तक।"

उसने अपने शब्दों को थामते हुए कहा, "रात बहुत हो चुकी है, अब सो जाओ। पर हां, मुझे माफ करना, क्योंकि मैंने तुम पर हाथ उठाया है।" उसकी आवाज रुंध गई थी। अमर ने जाने के लिए कदम बढ़ाया, लेकिन तभी रागिनी ने उसका हाथ पकड़ लिया और रोते हुए कहा, "माफी आपको नहीं, मुझे मांगनी चाहिए, जीजाजी। मुझे गलतफहमी थी।"

उसने आंसू पोछते हुए कहा, "मैंने अपनी सहेलियों से सुना था कि जीजा-साली के रिश्ते में सबकुछ जायज होता है। लेकिन आपके नेक इरादे देखकर मुझे एहसास हुआ है कि मैं गलत थी। मैंने जो किया, उसके लिए मैं शर्मिंदा हूं। मुझे माफ कर दीजिए, जीजाजी।"

अमर ने रागिनी की बात सुनकर गहरी सांस ली और मुस्कुराते हुए कहा, "माफ तो अपनों को ही किया जाता है, और तुम तो मेरी साली हो।" उसने प्यार से उसके गाल थपथपाए और वहां से निकलने के लिए तैयार हो गया।

अमर अपने कमरे की ओर चला गया, जहां पहले से ही उसकी पत्नी दिव्या सोने का नाटक कर रही थी। लेकिन उसके दिल में गर्व का अहसास था। वह जानती थी कि उसका पति एक ऐसा इंसान है, जो बहकने वाला नहीं है, बल्कि सही राह दिखाने वाला है।

अगले दिन की सुबह कुछ अलग ही थी। रागिनी के चेहरे पर एक नई चमक थी, उसकी आँखों में कल की कोई उदासी नहीं थी। उसने चहकते हुए अपनी बहन दिव्या से कहा, "दीदी, अब मैं घर जाना चाहती हूं। मेरी पढ़ाई का नुकसान हो रहा है। क्यों, जीजाजी, क्या आप मुझे घर छोड़ने चलेंगे?"

अमर ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "हां, क्यों नहीं? जीजा अपनी साली की हर बात का खयाल नहीं रखेगा, तो और कौन रखेगा? मैं तुम्हें खुद घर छोड़ने जाऊंगा।"

उन दोनों की बातचीत सुनकर दिव्या सोचने लगी कि क्या यह वही रागिनी है जो कल की रात थी, या फिर किसी ने उसे बदल दिया है? उसने मन ही मन अमर की ईमानदारी और उसकी समझदारी की सराहना की। वह जानती थी कि अमर का प्यार और समर्पण सिर्फ उसके लिए है, और वह उसकी भावनाओं का सच्चा साथी है।

यह घटना रागिनी के जीवन में एक मोड़ साबित हुई। उसने अपनी भावनाओं को समझा और उन्हें सही दिशा में मोड़ने का फैसला किया। अमर की सच्चाई और उसके प्रति सम्मान ने उसे यह सिखाया कि रिश्तों की पवित्रता क्या होती है और उन्हें कैसे निभाना चाहिए।


ना तीन में, ना तेरह में 
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एक नगर सेठ थे। अपनी पदवी के अनुरुप वे अथाह दौलत के स्वामी थे। घर, बंगला, नौकर-चाकर थे। एक चतुर मुनीम भी थे जो सारा कारोबार संभाले रहते थे। 
किसी समारोह में नगर सेठ की मुलाकात नगर-वधु से हो गई। नगर-वधु यानी शहर की सबसे खूबसूरत वेश्या। अपने पेशे की जरुरत के मुताबिक नगर-वधु ने मालदार व्यक्ति जानकर नगर सेठ के प्रति सम्मान प्रदर्शित किया। फिर उन्हें अपने घर पर भी आमंत्रित किया। 
सम्मान से अभिभूत सेठ, दूसरे-तीसरे दिन नगर-वधु के घर जा पहुँचे। नगर-वधु ने आतिथ्य में कोई कमी नहीं छोड़ी। खूब आवभगत की और यकीन दिला दिया कि वह सेठ से बेइंतहा प्रेम करने लगी है। 
अब नगर-सेठ जब-तब नगर-वधु के ठौर पर नजर आने लगे। शामें अक्सर वहीं गुजरने लगीं। नगर भर में खबर फैल गई। काम-धंधे पर असर होने लगा। मुनीम की नजरें इस पर टेढ़ी होने लगीं। 
एक दिन सेठ को बुखार आ गया। तबियत कुछ ज्यादा बिगड़ गई। कई दिनों तक बिस्तर से नहीं उठ सके। इसी बीच नगर-वधु का जन्मदिन आया। सेठ ने मुनीम को बुलाया और आदेश दिया कि एक हीरों जड़ा नौलखा हार खरीदा जाए और नगर-वधु को उनकी ओर से भिजवा दिया जाए। निर्देश हुए कि मुनीम खुद उपहार लेकर जाएँ। 
मुनीम तो मुनीम था। खानदानी मुनीम। उसकी निष्ठा सिर्फ सेठ के प्रति भर नहीं थी। उसके पूरे परिवार और काम धंधे के प्रति भी थी। उसने सेठ को समझाया कि वे भूल कर रहे हैं। मुनीम ने बताने की कोशिश कि वेश्या किसी व्यक्ति से प्रेम नहीं करती, पैसों से करती है। 
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मुनीम ने उदाहरण देकर समझाया कि नगर-सेठ जैसे कई लोग प्रेम के भ्रम में वहाँ मंडराते रहते हैं। 
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लेकिन सेठ को ना समझ में आना था, ना आया। सेठ ने सख्ती से कहा कि मुनीम नगर-वधु के पास तोहफा पहुँचा आएँ। 
मुनीम क्या करते !! एक हीरों जड़ा नौलखा हार खरीदा और नगर-वधु के घर की ओर चल पड़े। लेकिन रास्ते भर वे इस समस्या को निपटाने का उपाय भी सोचते रहे। 
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नगर-वधु के घर पहुँचे तो नौलखा हार का डब्बा खोलते हुए कहा, “यह तोहफा उसकी ओर से जिससे तुम सबसे अधिक प्रेम करती हो।” 
नगर-वधु ने फटाफट तीन नाम गिना दिए। मुनीम को आश्चर्य नहीं हुआ कि उन तीन नामों में सेठ का नाम नहीं था। निर्विकार भाव से उन्होंने कहा, “देवी, इन तीन में तो उन महानुभाव का नाम नहीं है जिन्होंने यह उपहार भिजवाया है।” 
नगर-वधु की मुस्कान गायब हो गई। सामने चमचमाता नौलखा हार था और उससे भारी भूल हो गई थी। उसे उपहार हाथ से जाता हुआ दिखा। उसने फौरन तेरह नाम गिनवा दिए। 
तेरह नाम में भी सेठ का नाम नहीं था। लेकिन इस बार मुनीम का चेहरा तमतमा गया। ग़ुस्से से उन्होंने नौलखा हार का डब्बा उठाया और खट से उसे बंद करके उठ गए। नगर-वधु गिड़गिड़ाने लगी। उसने कहा कि उससे भूल हो गई है। लेकिन मुनीम चल पड़े। 
बीमार सेठ सिरहाने से टिके मुनीम के आने की प्रतीक्षा ही कर रहे थे। नगर-वधु के उत्तर की प्रतीक्षा कर रहे थे। 
मुनीम पहुचे और हार का डब्बा सेठ के सामने पटकते हुए कहा, “लो, अपना नौलखा हार, न तुम तीन में न तेरह में। यूँ ही प्रेम का भ्रम पाले बैठे हो।” 
सेठ की आँखें खुल गई थीं। इसके बाद वे कभी नगर-वधु के दर पर नहीं दिखाई पड़े।
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🌷प्रार्थना नष्ट नहीं होती। उपयुक्त समय पर क्रियान्वित होती हैं। ईश्वर सदैव आपको सपरिवार स्वस्थ व सुखी रखें। सदैव प्रसन्न रहिये, जो प्राप्त है, पर्याप्त है। जिसका मन मस्त है, उसके पास समस्त है।🌷
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