निधि बहुत ही सीधे और सरल स्वभाव की थी

निधि बहुत ही सीधे और सरल स्वभाव की थी और उसे जीवन के दांव-पेच कुछ कम समझ आते थे। जब निधि को देखने लड़के वाले आए थे, तो भी वह बहुत ज्यादा नहीं बोल पाई थी। किसी ने खूब कहा है कि "शब्दों से ज़ाहिर न करना किसी के वजूद की पहचान, हर कोई इतना कह नहीं पाता जितना महसूस करता है," और यह कहावत निधि पर बिलकुल सटीक बैठती थी।


लड़के वालों को निधि की सादगी और उसकी मासूमियत पसंद आ गई, और शादी तय हो गई। शादी के बाद पहली दिवाली आई, तो निधि की सास, विमला देवी, जो कि बेहद सुलझे हुए और समझदार विचारों की महिला थीं, उन्होंने निधि से कहा, "निधि, कल हम बाज़ार चलेंगे। पूजा के ससुराल के लिए जो भी दिवाली के तोहफे देने हैं, वह खरीद लाएंगे। पहले मैं अकेली जाती थी, अब तुम मेरे साथ चलोगी।"


निधि ने सहमति में सिर हिलाया और अगले दिन विमला देवी के साथ बाज़ार गई। विमला देवी निधि को शहर के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित शोरूम्स में ले गईं। वहाँ पर वे गिफ्ट्स और कपड़े खरीदने लगीं। निधि, जो एक मिडिल क्लास परिवार से थी, ने ऐसी दुकानों को कभी पास से भी नहीं देखा था। उसे यह सब बहुत अच्छा लग रहा था, लेकिन उसके दिल में एक चिंता घर कर गई थी। उसे यह सोच-सोचकर चिंता होने लगी कि उसके मायके वाले इन सब की बराबरी कैसे करेंगे। दिवाली के बाद भाई दूज भी आने वाली थी, और जब उसकी ननद के लिए इतना कुछ हो रहा था, तो शायद उसके ससुराल वालों को भी उम्मीद हो जाएगी।


निधि ने बातों ही बातों में अपनी चिंता अपनी माँ को बताई। उसकी माँ, जो कि एक विधवा थीं, उन्होंने बिना कुछ कहे अपनी चूड़ियाँ गिरवी रख दीं और निधि के लिए गोल्ड के गहने बनवाए। दिवाली के दिन, अभिषेक और उसकी पत्नी पूजा, सामान लेकर निधि के ससुराल आए। सबने साथ में खाना खाया, और जब निधि बर्तन रखने के लिए रसोई में गई, तो विमला देवी ने अभिषेक से कहा, "बेटा, अगर बुरा न मानो तो एक बात कहूँ?"


"जी, आंटीजी, कहिए," अभिषेक ने विनम्रता से कहा।


"देखो बेटा, जो भी तुम लाए हो, मैं जानती हूँ कि तुमने अपनी सामर्थ्य से बाहर जाकर यह सब खरीदा है। हर लड़की अपने मायके का मान ससुराल में बनाए रखना चाहती है, लेकिन मेरा निवेदन है कि 250 रुपये और एक मिठाई के डिब्बे से ज्यादा मैं कुछ नहीं रखूंगी। भाई का हक होता है बहन को देना, इसलिए यह शगुन और तुम दोनों का प्यार हमेशा मीठा बना रहे, इसलिए यह मिठाई ही काफी है।"


अभिषेक ने विमला देवी के इस प्रस्ताव को विनम्रता से अस्वीकार करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने सादर वह सामान वापस कर दिया। वह जानती थीं कि वह सामान उनकी सामर्थ्य से बाहर का था और वे यह नहीं चाहती थीं कि निधि के मायके पर कोई आर्थिक बोझ पड़े।


विमला देवी का यह उदार और सुलझा हुआ व्यवहार निधि को भीतर तक छू गया। उसने अपनी सास के गले लगते हुए कहा, "माँ, आपने आज मेरा दिल जीत लिया। आपने न सिर्फ मेरे मायके का सम्मान रखा, बल्कि मेरे दिल में भी अपने लिए असीम प्रेम भर दिया।"


विमला देवी ने मुस्कुराते हुए कहा, "निधि, प्यार और सम्मान बाजार से खरीदा नहीं जाता, यह तो दिल से दिया जाता है। और मैं चाहती हूँ कि हमारा यह परिवार हमेशा इसी प्यार और सम्मान से बंधा रहे।"


निधि की आंखों में आंसू थे, लेकिन वे आंसू खुशी के थे। उसने महसूस किया कि विमला देवी ने उसे एक सास नहीं, बल्कि एक माँ की तरह अपनाया है। यह दिवाली निधि के लिए सिर्फ एक त्यौहार नहीं, बल्कि जीवन का एक महत्वपूर्ण सबक बन गई - कि सच्चा प्यार और सम्मान किसी कीमत पर नहीं, बल्कि दिल से मिलता है


मिसेज सेन के घर किट्टी पार्टी चल रही थी, जहां उच्च समाज की महिलाएं अंग्रेजी में आपस में मेलजोल कर रही थीं।


"हाय ब्यूटी," मिसेज गोयल ने मिसेज मल्होत्रा से कहा।


"हाय स्वीटी, कैसे हो?" मिसेज मल्होत्रा ने हंसते हुए जवाब दिया।


"ओह डार्लिंग, तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो!" मिसेज कपूर ने मिसेज सेन की तारीफ की।


"तुम भी फाइन हो, हनी," मिसेज सेन ने मुस्कान के साथ जवाब दिया।


इसी बीच, मिसेज सेन की भतीजी, रिद्धिमा, जो सादे कपड़ों में थी, हॉल में आई। उसकी सादगी उस चमक-दमक भरे माहौल में एकदम अलग दिखाई दे रही थी।


मिसेज गोयल ने उसे देखते ही तंज कसते हुए पूछा, "मिसेज सेन, ये कौन है? नई नौकरानी रखी है क्या?"


मिसेज सेन ने संजीदगी से जवाब दिया, "नहीं, ये मेरी भतीजी रिद्धिमा है। आज ही गांव से आई है।" उन्होंने रिद्धिमा को अपने पास बुलाया।


रिद्धिमा ने अदब से सभी को नमस्ते कहा। लेकिन उसकी नमस्ते का जवाब खिलखिलाहट में खो गया। मिसेज कपूर ने ठहाका लगाते हुए कहा, "गांव से आई है, इससे ज्यादा उम्मीद भी नहीं की जा सकती।"


रिद्धिमा ने शांत स्वर में जवाब दिया, "माफ कीजिएगा आंटी, लेकिन शुक्र है, गांव वालों से आपको इतनी उम्मीद तो है कि वे अपने संस्कार सहेज कर रखते हैं, जो उन्हें हर किसी की इज्जत करना सिखाता है। हम चाहे छोटे हों या बड़े, सभी के मान और प्रतिष्ठा का पूरा ख्याल रखते हैं। लेकिन मुझे अफसोस है कि आप जैसे उच्च समाज के लोग, जो दिखावे में खोए रहते हैं, शायद मातृभाषा में किए गए अभिवादन का प्रतिउत्तर देना भी नहीं जानते। आपका ये बनावटी दिखावापन और खोखला घमंड कुछ भी नहीं है।"


इतना कहकर रिद्धिमा वहां से चली गई।


मिसेज सेन को गुस्सा भी आया और शर्म भी महसूस हुई। उन्होंने थोड़े कड़े लहजे में कहा, "आप सब जानती भी हैं, रिद्धिमा यूक्रेन से डॉक्टरी की पढ़ाई करके आई है। दो साल कनाडा के एक प्रतिष्ठित रिसर्च सेंटर में काम किया है और अब अपने गांव में खुद के पैसों से एक अस्पताल खोलने की तैयारी कर रही है, ताकि वहां के गरीब लोगों की सेवा कर सके। कनाडा में उसे अच्छा खासा पैकेज मिल रहा था, लेकिन अपनी मातृभूमि के लिए कुछ करने का जज्बा उसे अपने गांव खींच लाया।"


मिसेज सेन की बातें सुनने के बाद किट्टी पार्टी का माहौल एकदम बदल गया। वे महिलाएं, जो अभी तक खुद को ऊंचा समझ रही थीं, अब शर्म और ग्लानि से चुप थीं। उनकी पार्टी की चमक-दमक अचानक मुरझा गई थी, और चारों तरफ एक सन्नाटा पसरा हुआ था, मानो किसी ने उनकी वास्तविकता के आईने के सामने ला खड़ा किया हो। 

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