कई वर्षों बाद "अभिनव" नाम से एक फ्रेंड रिक्वेस्ट देख सुरभि

कई वर्षों बाद "अभिनव" नाम से एक फ्रेंड रिक्वेस्ट देख सुरभि हैरान हो गई थी। उसने अनायास ही प्रोफाइल खोलकर देखा। प्रोफाइल फोटो देखते ही उसकी शंका यकीन में बदल गई। यह अभिनव ही था। सुरभि ने उत्सुकता से अभिनव का पूरा प्रोफाइल खंगाल डाला—पत्नी, बच्चे, व्यवसाय, दोस्तों की तस्वीरें, और कामयाबी की दास्तां। सुरभि मुस्कुराई, उसे यह देखकर अच्छा लगा कि इतने वर्षों बाद भी अभिनव ने उसे याद रखा है। सालों गुजर गए थे...

वह दिन याद आते ही सुरभि के मन में अतीत की परतें खुलने लगीं। इंटर कॉलेज का प्रतियोगिता होने वाला था। सुरभि बहुत अच्छा गाती थी, और यह उसका अंतिम वर्ष था। कॉलेज के बाद कौन मिल पाता है? यह सोचकर उसने सिंगिंग कॉम्पिटिशन में अपना नाम लिखवा दिया था। उसकी शिक्षिका ने भी उसे प्रोत्साहित किया, हालांकि उन्होंने यह भी कहा, "लड़कियों में तो तुम हर बार जीतती हो, लेकिन हमारे कॉलेज से कोई भी लड़का उस अभिनव से नहीं जीत पाता। पिछले दो सालों से वही जीत रहा है।" अभिनव दूसरे कॉलेज का छात्र था। सुरभि ने पहली बार उसे मंच पर गाते देखा था। उसकी आवाज में इतनी मिठास और सहजता थी कि सुरभि मंत्रमुग्ध हो गई थी। जब वह विजेता घोषित हुआ, तो सुरभि दिल से खुश हुई थी। दोनों की मुलाकातें सीमित थीं, लेकिन अभिनव सुरभि की आवाज से बहुत प्रभावित हुआ था।


कॉलेज खत्म होने के बाद, सुरभि की आकाशवाणी में नौकरी लग गई। एक दिन, एक कार्यक्रम के दौरान, सुरभि को पता चला कि उसके शहर के गायक कलाकारों का इंटरव्यू हो रहा है, जिसमें होस्ट वह खुद थी। और वहां उपस्थित अभिनव को देख सुरभि एक बार फिर अचंभित हो गई। उसे पहचानने में उसे देर न लगी। कार्यक्रम के बाद, औपचारिक बातों के बीच, अभिनव ने सुरभि से पूछा, "क्या हम कहीं और मिल सकते हैं?"


"क्यों?" सुरभि ने थोड़ा हैरानी से पूछा।


"बस ऐसे ही," अभिनव ने हंसते हुए कहा।


सुरभि ने मना नहीं किया। अभिनव के व्यक्तित्व में एक अलग सा आकर्षण था, जो उसे खींच रहा था।


काफी हाउस के एक कोने में बैठकर, अभिनव ने अचानक सुरभि से पूछा, "तुम्हारा विवाह कब हो रहा है?"


सुरभि इस प्रश्न से थोड़ा चौंक गई। मजेदार बात यह थी कि दोनों ही एक ही जाति से थे, लेकिन सुरभि एक साधारण परिवार से थी, जबकि अभिनव एक प्रतिष्ठित परिवार से था। सुरभि ने उत्तर दिया, "अभी तो कुछ सोचा नहीं है, पहले दीदी की शादी हो जाए, फिर मेरी होगी।"


अभिनव कुछ और कहने से पहले रुक गया, लेकिन इस मुलाकात ने दोनों के दिलों में एक नाजुक सा रिश्ता पनपा दिया।


फिर भी, दोनों अपनी-अपनी दुनिया में लौट गए। न कोई वादा, न कोई करार, बस एक अनकहा सा जुड़ाव...


कुछ समय बाद, सुरभि के मामा की बेटी की शादी में वह एक और समारोह में शामिल होने गई। वहां, वह अभिनव से फिर से मिली। दोनों एक-दूसरे को देखकर खुश और हैरान थे, लेकिन यह खुशी दोनों के चेहरे पर साफ झलक रही थी।


बंगाली विवाह की रस्मों के बीच, उस रात, सौरभ ने अपने दिल की बात कह दी, "क्या तुम मुझसे शादी करोगी?"


सुरभि थोड़ा झिझकी, फिर बोली, "देखिए, मैं इस बारे में अभी कुछ नहीं कह सकती। आप घर में रिश्ता भेजिए।" और वह शर्माते हुए वहां से चली गई।


रिश्ते की बात चली भी, लेकिन दहेज की मांग के कारण मामला अटक गया। और फिर, दोनों का मिलना बंद हो गया।


फेसबुक पर अभिनव की फ्रेंड रिक्वेस्ट देखकर सुरभि एक बार फिर अतीत की यादों में खो गई थी। उसने रिक्वेस्ट स्वीकार की और मन ही मन मुस्कुराई। एक सुखद आश्चर्य यह था कि अभिनव भी उसी शहर में रह रहा था। एक प्रोग्राम के दौरान, दोनों आमने-सामने आए।


अभिनव को देखकर सुरभि चौंक गई। वह काफी उम्रदराज लग रहा था, आंखों के नीचे काले घेरे साफ दिखाई दे रहे थे। बात भी बहुत कम ही हुई। अभिनव की पत्नी और बच्चे साथ थे, और वह शायद कुछ असहज महसूस कर रहा था।


बहरहाल, उस प्रोग्राम में सुरभि का एक जानने वाला भी था, जिसने जो कुछ अभिनव के बारे में बताया, उसे सुनकर सुरभि हैरान रह गई। "अभिनव दादा अब बहुत पीने लगे हैं, पत्नी और बच्चे की भी नहीं सुनते। उन्होंने गाना भी छोड़ दिया है। कहते हैं, 'सब कुछ है मेरे पास, बस सुकून नहीं है।'"


सुरभि समझ नहीं पा रही थी कि वह कैसे अभिनव को समझाए।


दूसरे दिन उसने अभिनव को फोन किया। औपचारिक बातें करते-करते सुरभि ने कहा, "आप बहुत कमजोर लग रहे हैं, क्या कोई तकलीफ है?"


"नहीं भी और हां भी," अभिनव ने उत्तर दिया।


"क्या तकलीफ है, बता सकते हैं?" सुरभि ने चिंता से पूछा।


"कुछ छूट गया है, सुरभि, पीछे कहीं।"


सुरभि का दिल धड़क उठा। क्या अभिनव अब भी उसे भूला नहीं था?


"आज मन की बात कह लेने दो, सुरभि, प्लीज," अभिनव ने कहा। "मैंने मन ही मन तुम्हें अपनी पत्नी मान लिया था। लेकिन घर के दबाव में आकर मुझे शादी करनी पड़ी। विवाह की रात मैंने सोचा था कि सबकुछ अपनी पत्नी को बता दूंगा, लेकिन तुम्हारे सम्मान के लिए चुप रहा।"


गहरी सांस लेकर अभिनव ने कहा, "मेरी पत्नी पहले से ही गर्भवती थी। मैंने उसके जुड़वा बच्चों को अपना नाम दिया। लेकिन मेरे मन में हमेशा तुम्हारे लिए एक जगह रही, सुरभि।"


सुरभि सन्न रह गई। उसके मन में हजारों सवाल घूम रहे थे, लेकिन वह कुछ नहीं कह पाई। उसने फोन रख दिया और देर तक रोती रही।


अगले दिन, सुरभि के पास एक और फोन आया। "दीदी, अभिनव दादा नहीं रहे। उनके गले में कैंसर था। अंत तक उन्होंने किसी से कुछ नहीं कहा।"


सुरभि, जो अब किसी और की पत्नी थी, समझ नहीं पा रही थी कि वह खुद को क्या समझे। वह कैसे इस धर्मसंकट से निकले? निढाल होती सुरभि, केवल अपने आंसुओं से अभिनव को श्रद्धांजलि दे रही थी।


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