कमाने_वाली_बहू
मां, तू हमारे साथ मुंबई चल। बाबूजी थे तब बात अलग थी, अब गांव में अकेले कैसे रहोगी? बेटा सुबोध ने कहा।
"मैं सोच में पड़ गई।" दिल का दौरा आने से पति की अचानक मृत्यु हो गई थी। मैंने खुद को समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन तेरहवीं के बाद सब लोग चले गए।
बेटा सुबोध और बहू शिफाली दोनों इंजीनियर थे।
एक सहेली ने कहा कि कमाने वाली बहू को वृद्ध मां की कोई चिंता नहीं होती; वे तुम्हें परेशान कर सकती हैं और तुम्हारा जीवन मुश्किल बना सकती हैं। जिंदा रहते हुए, बाबूजी ने अपनी सारी प्रॉपर्टी बेटे के नाम कर दी थी, जिससे बेटा और बहू मकान बेच सकते हैं और पैसे भी ले सकते हैं।
65 साल की उम्र में, घुटनों के दर्द की वजह से राशन की दुकान चलाना भी मुश्किल हो रहा था। तेरहवीं का पूरा खर्च बेटे ने उठाया, लेकिन छोटे-मोटे खर्चों के लिए हाथ फैलाना पसंद नहीं था। बचाए हुए थोड़े पैसे भी खर्च हो गए थे, और अब मेरे पास ₹50 भी नहीं थे। इसलिए सुबोध को कोई उत्तर नहीं दे सकी।
इतने में शिफाली ने कहा, “मां, कौन सी साड़ी रखनी है? मैं आपका बैग पैक कर रही हूँ।” शिफाली की बात सुनकर मैंने चुपचाप उनके साथ मुंबई जाने का निर्णय लिया।
मुंबई में, सुबोध और शिफाली ने मेरा बहुत ख्याल रखा। हम सब मिलकर खाना खाते थे और बाहर घूमने जाते थे। शिफाली और सुबोध ने मुझे खुश रखने का पूरा प्रयास किया। मैंने महसूस किया कि आजकल के लोग बेवजह कह देते हैं कि लड़के और लड़कियां वृद्ध माता-पिता की देखभाल नहीं करते, खासकर अगर बहू कमाने वाली हो तो। लेकिन मैंने देखा कि हर बहू एक जैसी नहीं होती।
एक दिन, हम सब मॉल में गए। वहां घूमते समय, सुबोध और शिफाली एक दुकान पर कुछ खरीदने के लिए रुके। मैं और आर्यन थोड़े आगे गए। आइसक्रीम की दुकान देख कर आर्यन ने कहा, “दादी, मुझे आइसक्रीम चाहिए।” मेरे पास पैसे नहीं थे। इतने दिन में कभी पैसों की जरूरत नहीं पड़ी, लेकिन अब पैसे की कमी हो गई थी।
"बेटा, मैं पर्स घर में भूल गई," मेरे ऐसा बोलते ही आर्यन मेरी तरफ एक अलग नजरों से देखने लगा। उसे लगा कि आइसक्रीम दिलानी नहीं है, इसलिए दादी बहाने बना रही है। पर मैं क्या कर सकती थी? मुझे तो खुद पर ही शर्म आ रही थी कि मैं कैसी दादी हूं जो अपने पोते को आइसक्रीम नहीं दिला सकती। हमने बाहर ही खाना खाया। शेफाली ने मेरी पसंद की काजू मसाले की सब्जी भी ऑर्डर की थी, पर मुझे वह अच्छी नहीं लग रही थी।
घर आने के बाद सबने थोड़ा टीवी देखा। सुबोध सोने चला गया और आर्यन को क्या चाहिए और क्या नहीं, यह देखने के लिए शेफाली उसके कमरे में गई। मैं भी अपने कमरे में सोने जा रही थी, तभी मुझे आर्यन की आवाज सुनाई दी। "मम्मी, दादी बहुत कंजूस हैं।"
"तू ऐसा क्यों बोल रहा है?" शेफाली ने पूछा।
"हां मम्मी, जब हम मॉल में घूम रहे थे, तब मैंने दादी से आइसक्रीम मांगी थी। लेकिन नहीं दिलाई। यह अच्छा है क्या?"
मम्मी: "क्या बोल रहे हो? दादी के बारे में ऐसा कहने से पहले तुमने सोचा नहीं क्या? तुम्हारी दादी इस वक्त कितनी दुखी हैं, यह तुम समझ नहीं सकते। दादा जी के बिना तुम्हारी दादी कैसे रहती होंगी? सोच, अचानक तेरे मम्मी-पापा तुझसे बहुत दूर चले जाएं, इतने दूर कि वे कभी वापस नहीं आएं, तब तुझे बड़ा दुख नहीं होगा क्या?"
"नहीं मम्मी, मैं तुम दोनों के बिना नहीं रह सकता," आर्यन ने बोला।
"बेटा, फिर सोच कि दादाजी के बिना तेरी दादी कैसे रहती होंगी? ऐसी स्थिति में हो सकता है कि वे अपना पर्स घर भूल गई होंगी। तूने उन्हें कंजूस कहा, उनका प्यार तुझे दिखाई नहीं दिया क्या? जब भी तुझे स्कूल से आने में 5 या 10 मिनट भी देर हो जाती है, तब वे बरामदे में खड़ी रहकर तेरा इंतजार करती हैं। उनके घुटने दर्द करते हैं, फिर भी। बेटा, किसी के बारे में राय बनाने से पहले उसके दृष्टिकोण से सोचना चाहिए।"
ये बातें सुनकर मुझे मेरी बहू पर बहुत गर्व हुआ। अगर मैं उसकी जगह होती, तो कभी भी अपने बेटे को इतने अच्छे से समझा नहीं पाती। अगले दिन सुबह-सुबह सुबोध ऑफिस गया और आर्यन स्कूल। शेफाली भी ऑफिस जाने लगी, जाते-जाते उसने मेरे हाथ में कुछ पैसे देने की कोशिश की।
"यह क्या बेटा, मुझे पैसों की क्या जरूरत है?" मैंने कहा।
"मां, किसे कब पैसों की जरूरत पड़ जाए, कह नहीं सकते। आप मंदिर जाती हैं, कभी दान पेटी में डाल देना। कभी आर्यन कोई चीज के लिए ज़िद करे तो आप उसे वह चीज दिला देना।"
"पर बेटा , समझा करो मैं नहीं ले सकती"
मां जी! अगर यही पैसे सुबोध ने आपको दिए होते तो क्या आपने मना किया होता? नहीं ना। तो आपकी बहू भी कमाती है, तो आप अपनी बहू से पैसे क्यों नहीं ले सकतीं?"
शेफाली की बात सुनकर मेरी आंखों में आंसू आ गए। जो मेरा बेटा नहीं समझा सका, वह मेरी बहू ने समझा दिया।
मेरी बहू जैसी बहू सबको मिले। मैंने भगवान से प्रार्थना की कि ऐसी बहू मुझे हर जन्म में मिले। लोग बिना किसी कारण नौकरी करने वाली बहू का दुर्व्यवहार देखकर सब नौकरी वाली बहुओं को दोष देते हैं। कुछ शेफाली जैसी समझदार और बड़ों का आदर करने वाली होती हैं।
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