एक छोटे से गांव में एक धनी जमींदार रहता था।

एक छोटे से गांव में एक धनी जमींदार रहता था। उसके पास बड़ी ज़मीन-जायदाद थी और कई नौकर-चाकर उसके घर में काम करते थे। उन्हीं में से एक था जग्गू, जो गांव की ही बस्ती में अपने पांच बेटों के साथ रहता था। जग्गू की पत्नी का देहांत कई साल पहले हो चुका था, और अब वह अकेले ही अपने बच्चों की देखभाल करता था। उसकी स्थिति बेहद साधारण थी—वह एक जर्जर झोंपड़ी में अपने बच्चों के साथ मुश्किल से गुज़र-बसर करता था।

जग्गू और उसके बेटों ने जमींदार के खेतों में मेहनत-मजदूरी कर अपना पेट पाला। हर शाम उन्हें मेहनत का फल मिलता—मजदूरी के रूप में चने और गुड़। वे चने भूनकर गुड़ के साथ खाते और अपना दिन निकालते। इस छोटे से परिवार के लिए यही उनका भोजन था, और वे इसी में खुश रहते थे।


गांव की बस्ती के लोग जग्गू से प्यार करते थे, लेकिन वे जानते थे कि उसकी ज़िंदगी कितनी कठिन है। जब उसके बड़े बेटे की उम्र शादी के लायक हो गई, तो बस्ती के बुजुर्गों ने उसे सलाह दी कि उसे अब अपने बेटे की शादी कर देनी चाहिए। कुछ दिन बाद, जग्गू ने अपने बड़े बेटे की शादी कर दी, और कुछ समय बाद उसकी बहू भी घर आ गई।


उस दिन, जब नई बहू अपने ससुराल के दरवाज़े पर आई, तो झोंपड़ी के बाहर हल्ला-गुल्ला मच गया। बस्ती के लोग नई बहू को देखने के लिए इकट्ठा हो गए। हर कोई उसे देखने के लिए बेताब था। जैसे ही भीड़ छंटी और लोग अपने-अपने काम पर लौटने लगे, एक बूढ़ी औरत, जो वहीं पास में रहती थी, बहू से कह गई, "बेटी, अगर तुम्हें किसी चीज़ की ज़रूरत हो, तो संकोच मत करना। मैं पास ही रहती हूँ, मेरे घर आ जाना।"


जब सब लोग चले गए, तो बहू ने पहली बार घूंघट उठाकर अपने ससुराल को देखा। वह नज़ारा देखकर उसका कलेजा मुंह को आ गया। एक टूटी-फूटी झोंपड़ी, खूंटी पर टंगी कुछ पुरानी पोटलियां, और बाहर बने छः चूल्हे। इन चूल्हों को देखकर बहू की आँखें भर आईं। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह इस जर्जर हालत में कैसे जीवन बिताएगी। उसका मन हुआ कि वह तुरंत अपने मायके भाग जाए, लेकिन उसने सोचा, "वहां कौन से सुख भरे होंगे? मां तो रही नहीं, और भाई-भौजाई के राज में नौकरानी बनकर ही जीना पड़ेगा।"


यह सोचकर वह जोर-जोर से रोने लगी, लेकिन रोते-रोते थककर शान्त हो गई। उसके मन में एक विचार आया, और उसने उसे क्रियान्वित करने का फैसला किया। वह तुरंत पड़ोस में गई और उस बूढ़ी अम्मा से बोली, "अम्मां, क्या आपके पास एक झाड़ू मिलेगा?" बूढ़ी अम्मा ने उसे झाड़ू, गोबर, और मिट्टी दी, और साथ में अपनी पोती को भी भेज दिया ताकि वह उसकी मदद कर सके।


वापस आकर बहू ने सबसे पहले पांच चूल्हे फोड़ दिए, और सिर्फ एक चूल्हा छोड़ दिया। उसने झोंपड़ी की सफाई की, गोबर-मिट्टी से झोंपड़ी और उसके आसपास का हिस्सा लीप दिया। फिर उसने सभी पोटलियों में से चने निकालकर उन्हें एक साथ कर दिया और अम्मा के घर जाकर उन्हें पिसवाया। अम्मा ने उसे साग और चटनी भी दी। बहू ने चने के आटे की रोटियां बनाईं और सबको खाने के लिए बुलाने का इंतजार करने लगी।


शाम को, जब जग्गू और उसके बेटे काम से लौटे, तो उन्होंने देखा कि अब वहां सिर्फ एक ही चूल्हा है। वे गुस्से में आ गए और चिल्लाने लगे, "इस औरत ने आते ही सारा सत्यानाश कर दिया। अपने आदमी का चूल्हा छोड़ बाकी सबके चूल्हे फोड़ दिए।"


झगड़े की आवाज़ सुनकर बहू झोंपड़ी से बाहर आई और शांत स्वर में बोली, "आप लोग हाथ-मुंह धोकर बैठिये, मैं खाना परोसती हूँ।" यह सुनकर सभी अचकचा गए। उन्होंने चुपचाप हाथ-मुंह धोया और बैठ गए।


बहू ने पत्तल पर रोटी, साग, और चटनी परोसी। मुद्दत बाद उन्हें ऐसा खाना मिला था। वे आश्चर्यचकित थे कि साधारण चने और गुड़ से बने खाने में भी ऐसा स्वाद कैसे आ सकता है। खाना खाने के बाद वे अपने-अपने बिस्तरों पर जाकर सो गए, और बहू की समझदारी की सराहना करने लगे।


अगली सुबह, जब जग्गू और उसके बेटे काम पर जाने लगे, तो बहू ने उन्हें एक-एक रोटी और गुड़ दिया। फिर चलते समय उसने जग्गू से पूछा, "बाबूजी, क्या मालिक आपको सिर्फ चना और गुड़ ही देता है?" जग्गू ने उत्तर दिया, "नहीं, मालिक हमें अन्न भी देता है, लेकिन हम चना-गुड़ ही लेते हैं, क्योंकि इसे खाना आसान होता है।"


बहू ने समझाया, "आप लोग अलग-अलग प्रकार का अन्न लिया करें। इससे हमारे खाने में विविधता आएगी और पोषण भी मिलेगा।" फिर उसने अपने देवरों को काम पर जाने से पहले कुछ बातें समझाईं। उसने छोटे देवर से कहा कि वह अपने काम के साथ घर के लिए भी लकड़ी लाए। इसके बाद, बहू ने सभी की मजदूरी के अनाज से एक-एक मुठ्ठी अन्न अलग रखा और उसे बनिये की दुकान पर ले जाकर बाकी जरूरत की चीजें खरीद लीं।


धीरे-धीरे, जग्गू की गृहस्थी अच्छी तरह से चलने लगी। एक दिन, सभी भाइयों और उनके पिता ने मिलकर झोंपड़ी के आगे मिट्टी की दीवार बनाई। बहू के गुण गांव में चर्चित होने लगे। उसकी समझदारी और सुघड़ता की चर्चा जमींदार तक पहुंची।


एक दिन, जमींदार ने खुद बस्ती का दौरा किया और जग्गू के घर आया। उसने बहू को आशीर्वाद दिया और उसकी प्रशंसा करते हुए उसे एक कीमती हार भेंट किया। बहू ने हार को माथे से लगाया और विनम्रता से कहा, "मालिक, यह हार हमारे किस काम आएगा? इससे अच्छा होता कि आप हमें झोंपड़ी के दाएं-बाएं चार लाठी जमीन दे देते, जिससे हम एक कोठरी बना सकते।"


बहू की चतुराई और विनम्रता पर जमींदार मुस्कुराया और बोला, "तुम्हारी समझदारी से मैं प्रभावित हूँ। जमीन तो जग्गू को मिलेगी ही, लेकिन यह हार तुम्हारा है। इसे तुम अपने पास रखो।"


इस घटना के बाद, जग्गू की झोंपड़ी में खुशहाली का माहौल बना रहा। बहू की समझदारी और मेहनत से उनके जीवन में बदलाव आ गया। उनके घर में अब सिर्फ एक ही चूल्हा था, लेकिन वह चूल्हा पूरे परिवार के लिए काफी था। उस छोटे से झोंपड़े में अब केवल गुड़ और चने की जगह प्यार, समझदारी, और एकता ने ले ली थी।


और इसी तरह, एक साधारण बहू ने अपनी समझदारी और मेहनत से न केवल अपने परिवार की हालत सुधारी, बल्कि पूरे गांव में अपनी एक अलग पहचान बनाई।

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