विशु, अपने बड़े भाई के पास अक्सर कुछ न कुछ जरूरत लेकर जाता था

विशु, अपने बड़े भाई के पास अक्सर कुछ न कुछ जरूरत लेकर जाता था। उसकी हर जरूरत, चाहे छोटी हो या बड़ी, उसके बड़े भाई के लिए हमेशा प्राथमिकता थी। भाई का दिल इतना बड़ा था कि वो बिना कुछ पूछे हर बार अपनी जेब से पैसे निकालकर विशु को दे देता था। लेकिन इस बार कुछ अलग हुआ।

उस दिन विशु ने जैसे ही अपने भाई से 500 रुपये मांगे, उसकी भाभी सविता ने बीच में ही बात काट दी, "क्या काम है इतने पैसों से? तुम हर बार पैसे मांगते हो, लेकिन ये नहीं सोचते कि कब तक ये चलता रहेगा?"


विशु को यह सुनकर धक्का लगा। उसे याद आया कि उसका भाई हमेशा बिना किसी सवाल के उसकी मदद करता था, लेकिन आज उसने भाभी की ओर देखा और फिर कुछ बोलने से पहले ही चुप हो गया। विशु का चेहरा उतर गया, वह दुखी होकर वापस लौट गया। उसने सोचा, "अब शायद मेरे भईया भी बदल गए हैं।"


उसके जाते ही सविता ने मुस्कराते हुए अपने पति से कहा, "देखा, मेरा आइडिया काम आया ना? तुम हर बार उसे पैसे देते रहते थे, अब उसे भी समझ में आएगा कि ऐसे पैसे मांगने से कुछ नहीं होगा। तुमने उसे हमेशा लाड़-प्यार में रखा है, इसलिए वह इस तरह मांगता रहता है। लेकिन अब उसे भी समझना होगा कि पैसे हवा में नहीं उगते।"


बड़े भाई का दिल भी भारी हो गया था। उसने कभी भी विशु को पैसे देने से मना नहीं किया था, लेकिन आज उसने अपनी पत्नी की बातों के आगे खुद को कमजोर महसूस किया। उसने सोचा, "शायद सविता ठीक कह रही है, मुझे थोड़ा सख्त होना चाहिए।"


कुछ दिनों बाद, विशु की मेहनत रंग लाई और उसे एक बड़े पद पर नौकरी मिल गई। उसकी पहली तनख्वाह आते ही उसने सोचा कि वह अपने बड़े भाई और भाभी के लिए कुछ खास लाएगा। उसने अडीडास के जूते अपने बड़े भाई के लिए खरीदे, क्योंकि उसे याद था कि कैसे उसका भाई हमेशा अच्छे जूते खरीदने की इच्छा जताता था, लेकिन अपने खर्चों के कारण उसे कभी खरीद नहीं पाया। उसने भाभी के लिए भी एक स्मार्ट वॉच खरीदी, क्योंकि उसने सुना था कि भाभी को ऐसी घड़ियों का बहुत शौक है।


विशु ने अपनी पहली सैलरी से खरीदे उपहारों को लेकर अपने भाई के घर गया। घर पहुंचकर उसने बड़े प्यार से अपने भाई को जूते देते हुए कहा, "भईया, ये आपके लिए हैं। अब आप कंपनी के जूतों से मन नहीं मारा करेंगे। ये पहनिए और देखिए, आपको कितने अच्छे लगते हैं।"


भाई ने जूते देखते ही अपनी आंखों में आंसू भर लिए। उसने कुछ कहने की कोशिश की, लेकिन शब्द जैसे गले में ही अटक गए। विशु ने आगे कहा, "भाभी, ये स्मार्ट वॉच आपके लिए है। मैंने सुना था कि आपको इस घड़ी का बहुत मन था, तो सोचा कि क्यों न आपको इसे गिफ्ट कर दूं।"


भाई और भाभी दोनों इस समय चुप थे। बड़े भाई के चेहरे पर भावुकता की लकीरें साफ दिख रही थीं। उसने विशु को गले लगा लिया और कहा, "छोटे, तू हमेशा खुश रह और तरक्की कर। तेरा यह प्यार और सम्मान मेरे लिए किसी बड़े ओहदे से कम नहीं।"


उस वक्त ऐसा लग रहा था जैसे राम और भरत का मिलाप हो रहा हो। भाभी सविता, जो पहले विशु के हर काम में अड़चन डालती थी, आज खुद को उसी छोटे भाई के सामने शर्मसार महसूस कर रही थी। उसे एहसास हुआ कि उसने अपने ही परिवार के साथ खेल खेला था, जो अब उसे बेहद भारी पड़ रहा था। उसने सोच लिया कि अब वह कभी भी विशु के साथ इस तरह का व्यवहार नहीं करेगी।


इस पूरी घटना ने सिखाया कि अपनों के साथ खेल खेलने से कुछ भी पाने का कोई मतलब नहीं है। ऐसे खेलों में हम शायद कुछ जीत जाएं, लेकिन अंत में हम बहुत कुछ खो भी देते हैं। परिवार और रिश्तों की अहमियत समझें और उन्हें निभाने में अपनी पूरी मेहनत और सच्चाई लगाएं। यही सच्चा जीवन है।


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