मेरी शादी को चार साल पूरे हो चुके थे

मेरी शादी को चार साल पूरे हो चुके थे। इस दौरान मैं अपने पति के साथ उनके परिवार के साथ ही रह रही थी। परिवार में मेरे सिवा मेरी सासु माँ और मेरी ननद भी थीं, जो पहले से ही शादीशुदा थीं। हमने मिलकर एक सुंदर और खुशहाल जीवन जीने की कोशिश की, लेकिन जैसा कि हर परिवार में होता है, हमारे बीच भी कभी-कभी मतभेद और तनाव पैदा हो जाते थे।

एक दिन, एक छोटी सी बात पर मेरे और मेरे पति के बीच झगड़ा हो गया। उस गर्म रात में, हम दोनों ने अपनी-अपनी जगह पर सोने की कोशिश की, लेकिन मन के अंदर की उथल-पुथल ने नींद को दूर भगा दिया। अगली सुबह, जब मैं अपने विचारों में डूबी थी, मेरी सासु माँ ने हमारे झगड़े को समझाने की कोशिश की।


सासु माँ के आने पर मैंने उनसे कहा, "माँजी, आप क्यों नहीं समझा रही हैं इन्हें? मेरा कहना है कि अब बहुत साल हो गए हैं, और अब मुझे अलग रहना है। मैं अब इस घर में नहीं रह सकती हूँ। मैंने इन्हें कहा है कि अब इन्हें आप में से या मुझ में से किसी एक को चुनना होगा। अब आप ही इन्हें समझा सकती हैं कि इन्हें किसके साथ रहना चाहिए। मुझे लगता है कि आपसे अच्छा इन्हें कोई नहीं समझा सकता।"


मेरी बातों से सासु माँ चौंक गईं। उन्हें समझ में नहीं आया कि यह कैसी मांग है। उन्होंने हैरानी से कहा, "क्या कह रही हो, बेटा? भला मेरा बेटा मुझ में और तुम में से किसी एक को क्यों चुनेगा? अभी तक तो सब ठीक ही चल रहा था, हमारा।"


सासु माँ की आंखों में एक प्रश्न था, जैसे वे यह समझ नहीं पा रही थीं कि ऐसा भी कहीं हो सकता है कि एक बेटे को अपनी पत्नी और माँ में से किसी एक को चुनना पड़े। "बेटा," उन्होंने कहा, "पत्नी और माँ दोनों ही तो परिवार का हिस्सा हैं। यह तो बिल्कुल गलत बात है, जो तुम कह रही हो।"


मेरे चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान उभर आई, और मैंने धीरे से कहा, "गलत कैसे, माँजी? कल ही मैंने आपको सुना था, जब आप ननदोई जी को समझा रही थीं कि उन्हें अपनी पत्नी को चुनना चाहिए। आप उन्हें बता रही थीं कि कैसे पति-पत्नी का रिश्ता ही पूरी उम्र भर का होता है और कैसे उन्हें अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सोचना चाहिए, न कि दुनियादारी के बारे में। आपने यहां तक कहा था कि आपने अपनी बेटी का हाथ ननदोई जी के हाथ में उनकी अच्छी नौकरी और तनख्वाह देखकर ही दिया था।"


मैंने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, "माँजी, अब यही कुछ तो आपको अपने बेटे को भी समझाना है। उसे बताना है कि कैसे पति-पत्नी का रिश्ता ही दुनिया का सबसे मजबूत रिश्ता होता है। उसे भी उसी तरह से चुनने के लिए कहें, जैसे आपने ननदोई जी को समझाया था।"


मेरे पति, जो अब तक चुपचाप खड़े थे, मेरी ओर देखने लगे। मैंने उनकी ओर मुड़ते हुए कहा, "माँजी भी आपको यही समझाएंगी कि माँ को छोड़कर आप मेरे साथ रहें। मेरा साथ ही आपके साथ उम्र भर रहेगा। हम एक साथ बाहर रहेंगे, एक अच्छा भविष्य बनाएंगे, और अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देंगे।"


यह सुनते ही सासु माँ अचानक से मेरे पति के सामने खड़ी हो गईं और रोने लगीं। उन्होंने कांपती आवाज़ में कहा, "नहीं-नहीं, ऐसा मत करना। मैं अपने बेटे के बिना नहीं रह सकती। मेरे बेटे को मुझसे दूर मत ले जाना। मेरी मति मारी गई थी, जो मैं दामाद जी को उल्टा-सीधा बोलने लगी थी, जो मैं उन्हें गलत सलाह देने लगी थी। मैंने अपनी बेटी को एक बार भी नहीं समझाया, लेकिन अब मैं जरूर उसे समझाऊंगी। कोई माँ अपने बेटे से दूर होकर नहीं रह सकती, कोई माँ अपने बेटे से दूर होकर रहना नहीं चाहती।"


मैंने सासु माँ का हाथ पकड़ा और प्यार से कहा, "माँजी, आप परेशान न हों। हम आपको छोड़कर कहीं भी नहीं जा रहे हैं। माँ-बाप के बिना भी क्या कोई घर-घर होता है? बस, हम आपको यह समझाना चाहते थे कि कल आपने ननदोई जी को जो समझाया था, वह बिल्कुल गलत था। भला वह कैसे अपना परिवार आपकी बेटी के लिए छोड़ सकते हैं? ना ही तो आपकी बेटी के ऊपर उसके ससुराल वाले कोई अत्याचार करते हैं, और ना ही उसे दुखी करते हैं।"


मैंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, "मात्र थोड़ी सी मर्यादा में रहना और थोड़ा सा घर का अधिक काम पड़ जाना, इसका हल यह नहीं है कि हम माँ-बाप को छोड़ दें। पारिवारिक जिम्मेदारियों से भागना कोई आजादी नहीं होती है।"


माँजी की आँखों में अब सब कुछ स्पष्ट हो चुका था। उन्होंने गहरी सांस ली और अपनी गलती का एहसास किया। उन्होंने सिर हिलाकर कहा, "तुम्हारी बात सही है। मैं अब अपनी बेटी को जरूर समझाऊंगी। जिस तरह से मुझे मेरा बेटा प्यारा है, उसी तरह से ननदोई जी को भी अपने माँ-बाप प्यारे हैं। भला उनके माँ-बाप अपने बेटे के बिना जिंदगी कैसे जिएंगे?"


यह कहते हुए उनकी आँखों में आँसू आ गए। उन्होंने मुझे गले से लगा लिया, और मैं उनके गले लगकर मुस्कुरा उठी। सासु माँ ने अपनी बेटी को प्यार से समझाया और उसे घर तोड़ने के विचार से दूर रखा। उन्होंने उसे समझाया कि परिवार के साथ रहना, एक दूसरे का साथ देना, यही सच्ची खुशी और जीवन की सच्ची सफलता है।


इस घटना के बाद हमारा घर एक बार फिर से खुशियों से भर गया। सासु माँ ने अपने जीवन में एक बड़ा सबक सीखा, जिसे वे कभी नहीं भूल सकती थीं। उन्होंने अपने दिल में इस बात को बसा लिया कि परिवार के रिश्ते सबसे महत्वपूर्ण होते हैं, और हमें हर हाल में उन्हें संभालकर रखना चाहिए।


इस तरह एक घर जो टूटने की कगार पर था, वह फिर से एकजुट हो गया, और प्यार और समझदारी की शक्ति ने उसे बचा लिया।


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