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आखिरी रास्ता एक क्राइम ड्रामा फिल्म है जिसमें अमिताभ बच्चन ने जया प्रदा, श्रीदेवी और अनुपम खेर के साथ दोहरी भूमिका निभाई है। के भाग्यराज द्वारा निर्देशित यह फिल्म कमल हासन, रेवती और राधा अभिनीत तमिल भाषा की फिल्म ओरु कैदियिन डायरी की रीमेक है । फिल्म ने अपनी रिलीज के बाद काफी लोकप्रियता हासिल की। 

1986 की यह फिल्म डेविड के इर्द-गिर्द घूमती है, जो उन लोगों से बदला लेना चाहता है, जिन्होंने उसे अपनी पत्नी मैरी की हत्या के लिए फंसाया था। उसे उम्मीद है कि उसका बेटा विजय बड़ा होकर अपने पिता से बदला लेने में मदद करेगा। हालांकि, वह पुलिस बन जाता है और एक अलग रास्ता अपनाता है। हमने आखिरी रास्ता के बारे में कुछ तथ्य बताए हैं जिन्हें आपको तुरंत देखना चाहिए।


आखिरी रास्ता फिल्म से जुड़ी रोचक बातें

इससे पहले निर्माताओं ने फिल्म का शीर्षक ' कैद की डायरी' रखा था।

क्राइम ड्रामा फिल्म के डीवीडी वर्शन में बॉलीवुड स्टार रेखा ने श्रीदेवी की आवाज़ को डब किया था। हालाँकि, ऐसा पहली बार नहीं हुआ था। उन्होंने 1999 में अमिताभ बच्चन की सूर्यवंशम में सौंदर्या के लिए भी डब किया था।


निर्माताओं ने आखिरी रास्ता की मूल पटकथा का हिंदी में अनुवाद किया था, और निर्देशक को यह भाषा नहीं आती थी। इसलिए, अमिताभ बच्चन हर सुबह स्क्रिप्ट पढ़ते थे और फिल्म निर्माता से तमिल में संवाद बोलने के लिए कहते थे ताकि वह समझ सकें कि क्या भावनाएं हिंदी में दृश्यों के साथ प्रतिध्वनित हो रही हैं। के भाग्यराज बच्चन के लाभ के लिए सभी भागों को भावपूर्ण तरीके से प्रस्तुत करते थे।

अमिताभ बच्चन की आखिरी फिल्म आखिरी रास्ता थी, जिन्होंने राजनीतिक करियर के लिए बॉलीवुड से ब्रेक लिया था। हालांकि, उन्होंने 1988 में व्यावसायिक रूप से सफल शहंशाह के साथ वापसी की।

यह क्राइम ड्रामा फ़िल्म अमिताभ बच्चन की आखिरी फ़िल्म थी जिसमें ओम शिवपुरी नज़र आए थे। इससे पहले उन्होंने डॉन जैसी कई फ़िल्मों में काम किया था।

पहले निर्माताओं ने जया प्रदा की भूमिका माधवी को ऑफर की थी, लेकिन उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया।  

अनुपम खेर और अमिताभ बच्चन ने पहली बार आखिरी रास्ता में साथ काम किया। फिल्म में अनुपम खेर ने विजय के पालक पिता की भूमिका निभाई है। असल जिंदगी में खेर बच्चन से 12 साल छोटे हैं। इसी तरह, उनकी मां का किरदार निभाने वाली जया प्रदा उनसे 20 साल छोटी हैं।


आखिरी रास्ता की शूटिंग मुख्य रूप से ऊटी और मद्रास में हुई थी, जिसे अब चेन्नई के नाम से जाना जाता है।

अमिताभ बच्चन ने अदालत, देश, प्रेमी और महान के बाद चौथी बार पिता और पुत्र की दोहरी भूमिका निभाई। बाद में उन्होंने सूर्यवंशम में भी यही भूमिका दोहराई ।

अमर अकबर एंथनी के बाद बच्चन ने आखिरी रास्ता में दूसरी बार एक ईसाई की भूमिका निभाई ।

1986 में प्रदर्शित होने के बाद इस एक्शन फिल्म ने मुंबई और दक्षिण भारत में असाधारण कारोबार किया।


सघर्ष......


अचानक खट की आवाज़ से मोहन की नींद खुल गई.. ..

तेज़ हवाओं के साथ बारिश हो रही थी इसीलिये शायद कुछ गिर गया होगा....तकिये के नीचे से मोहन ने मोबाइल निकाल कर टाइम देखा तो रात के दो बज रहे थे अभी थोड़ी देर और सो सकते हैं, ये सोचकर उन्होने फिर से आँखें बंद कर ली पर नींद तो कोसों दूर जा चुकी थी.. ..

मन भटकने लगा.....और पुराने दिन याद आने लगे...

पिताजी की असमय मौत के समय वो दस वर्ष के ही तो थे.... 

घर चलाने की समस्या आने लगी तो अम्मा मेहनत मजदूरी करतीं और खेलने खाने की उम्र में ही पड़ोसी चाचा के कहने पर वह भी अख़बार बाँटने का काम करने लगेे मौसम चाहे कोई भी हो....

मोहन सुबह तीन बजे उठकर अख़बार का बंडल लाते और चार बजे से घर-घर बाँटना शुरू कर देते फिर दस बजे से साइकिल की दुकान में झाड़ू पोंछे का काम करने के बाद खाली समय में पढ़ाई भी कर लेते... 

बचपना ही था कभी उठने में अलसाता,नानुकुर करता तो अम्मा समझातीं, तोते की तरह रटतीं कि "मोहन बेटा कठिनाइयों से लड़ो....

उनसे संघर्ष करो.... अगर नही करोगे तो हार जाओगे" 

वह भी फिर उठकर उतने ही जोश से काम में लग जाते....

जैसे-तैसे करके आठवीं कक्षा तक पढ़ाई भी कर ली.. 

फिर अम्मा ने जल्दी ही ब्याह कर दिया ...चौबीस के होते-होते दो बेटे भी हो गए....

पर अब खर्चे बढ़ गए थे तो वह दिन रात ख़ूब मेहनत करतें ताकि बच्चे उनकी तरह दर-दर ना भटके बल्कि पढ़ लिखकर बड़े आदमी बने.....फिर जब तक बच्चे छोटे थे..... उन्हें स्कूल और कोचिंग में छोड़ने, लेने जाना यही तो मकसद रह गया था 

 धीरे-धीरे ज़िंदगी की गाड़ी पटरी पर चलने लगी.... कभी वो थक भी जाते या मन हारने लगता तो अम्मा की दी हुई सीख याद आती और फिर से स्फूर्ति आ जाती बच्चे शुरू से ही पढ़ने में तेज़ थे इसीलिए पहले छात्रवृत्ति, फिर बड़ी क्लास में कोचिंग संस्थानों ने आधी फीस भी माफ कर दी।

दोनों बेटे इंजीनियर बन गए तो ऊँची कंपनियों में नौकरी भी लग गई, फिर अच्छे घरों की लड़कियों से शादी कर दी.....

दो तीन साल बीतते पोते पोतियों से घर गुलज़ार होने लगा....

खुशियाँ आने लगी थीं तो मन को बहुत सुकून मिलता.....


"पापा अब आप काम नहीं करेंगे... सुबह से कितनी मेहनत करते है.....

बहुत हुआ, अब आपके बेटे कमाने लगे हैं" बड़े बेटे ने कहा तो छोटा भी कैसे पीछे रहता, वह भी मनुहार करने लगा 

"हाँ मम्मी....पापा....आप लोग हमारे साथ चलिये और ज़िंदगी के बाकी दिन अपने बच्चों के साथ चैन से बिताइये.....

 सुनकर मन में घमंड सा आ गया! कितना अच्छा भाग्य है उनका.. आज के जमाने में जब बुढ़ापे में कइयों के बच्चे अपने माँ, बाप के बेसहारा छोड़ देते हैं.. ऐसे में मेरे बच्चे एक दूसरे से ज़्यादा सेवा करने की होड़ में लगे हुए हैं! 

"बाबा मेरे साथ खेलने चलो"तभी पोते ने कहा।

"नही..... बाबा मेरे हैं.. पहले मुझे कहानी सुनायेंगे"..पोती उसकी शर्ट पकड़कर अपनी ओर घसीट रही थी, फिर दोनों में खींचातानी होने लगी! 

अचानक पत्नी की आवाज़ सुनकर उनकी नींद खुल गई ...

"उठिए जी.....आज पेपर बाँटने नही जाना है क्या....

 मोहन को झझकोरते हुए उनकी पत्नी उन्हें जगा रही थी..

वह चौंक पड़े....

"ओह्ह...तो वो सपना देख रहे थे... हाँ सोचते-सोचते नींद आ गई थी शायद....

ये सपना ही तो था..ऐसे शब्दों को सुनने के लिए तो उनके कान तरस गए थे ..क्योंकि दोंनो बच्चे विदेश में बस गये थे....

यहाँ उनका था ही कौन....

एक अख़बार बेचने वाले को अपना बाप कहने में अब उन्हें शर्म जो आने लगी थी...

हड़बड़ाते हुए वह उठ बैठे... उन्होनें एक नज़र अपने हाथों की लकीरों पर डाली... "संघर्ष अभी बाकी है.. अभी तक अपनों के लिए मेहनत करते थे; अब अपने लिए करेंगे.." सोचते हुए जल्दी से बरसाती पहनकर घर से निकल पड़े..... 


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