Hindi Magazine Shiraza Dec 1973 - Lalit Kala Academy JK.pdf -32 MB

चालीस वर्षीया मोहिनी खरे का मन आज सुबह से ही अशांत था। सामान्यतः रविवार को वह आराम से बिताती थी, किन्तु आज वह अत्यधिक व्यग्र हो रही थी। दो बार चाय बनाकर पी चुकी थी और कई बार बालकनी में झाँक चुकी थी। पेपर भी ठीक से पढ़ा नहीं जा रहा था, अक्षरों में बार-बार अजय का चेहरा दिख रहा था। उसकी बातें याद आते ही मोहिनी पेपर फेंक कर टहलने लगती थी। यद्यपि उसने कुछ गलत नहीं कहा था, फिर भी मोहिनी उसे न स्वीकार कर पा रही थी और न ही अस्वीकार कर पा रही थी। यही तो उसके उद्वेग का कारण था...


कल की बात है...

अजय मित्रा, आफिस में मोहिनी का जूनियर कलीग था और मोहिनी के ही अंडर में काम कर रहा था। मोहिनी ने गौर किया था कि पिछले एक-डेढ़ माह से किसी भी मीटिंग में या दफ्तर में अजय का ध्यान उसके काम पर कम और उसके चेहरे और आँखों पर अधिक होता था। कल, शनिवार को जब अजय किसी प्रोजेक्ट को डिसकस करने के लिए आया तो बजाय प्रोजेक्ट पर ध्यान देने के, वह मोहिनी की आँखों में खो गया। मोहिनी ने उसकी नजरों को महसूस किया और अचकचा गई। उसने अपनी सीट से उठकर अजय की कुर्सी तक जाकर उसके कंधे पर हाथ रखा तो अजय हड़बड़ा कर उठा और बोला, "जी मैम, हम कहाँ पर थे?"


"अभी हम लोग चले ही कहाँ थे अजय? तुम तो सीट पर बैठते ही कहीं खो गए थे!" मोहिनी ने गंभीरता से कहा।


"जी मैम, मैं समझा नहीं!" अजय ने चौंकते हुए कहा।


"पिछले डेढ़ माह से मैं तुम्हें देख रही हूँ," मोहिनी ने घूम कर अपनी सीट पर बैठते हुए कहा।


"मैम, आप अधिकारी हैं और आधीनस्थ को देखना आपका अधिकार और ड्यूटी भी है," अजय ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।


"मैंने देखा है कि तुम काम में मन नहीं लगा रहे हो," मोहिनी ने झिझकते हुए कहा।


"मैम, पिछले माह का बेस्ट एम्प्लॉयी मुझे ही आपने चुना था, याद है न?" अजय हँसते हुए बोला।


"हाँ, सही है, लेकिन मैंने देखा है कि मीटिंग्स में या यहाँ मेरे दफ्तर में भी तुम्हारा ध्यान मुझ पर ही रहता है," मोहिनी ने कठिनाई से कहा।


"आप मेरी इमिडीएट बॉस हैं। अगर मैं आप पर ध्यान नहीं दूँगा तो प्रोजेक्ट कैसे समझूँगा और कैसे पूरा करूँगा! यह मेरी ड्यूटी है मैम।" अजय ने हाज़िर जवाबी दिखाई।


"अजय, मेरा मतलब है कि मुझे लगता है कि तुम मुझ पर आसक्त हो रहे हो! जैसे अभी तुम प्रोजेक्ट पर बात करने के बजाय मुझे ही देख रहे थे," मोहिनी ने बड़ी कठिनाई से कहा और पानी का गिलास उठाकर पी गई।


"मैम, सर्विस मैन्युअल में ऐसा कुछ गलत नहीं लिखा गया है। न मैं आपसे बदतमीजी से बात करता हूँ, न उलझता हूँ, न अधिक छुट्टियाँ माँगता हूँ, ना ही आपको घूरता हूँ और न ही कोई गलत संकेत करता हूँ। फिर इसमें दोष क्या है? यह मेरी अपनी पर्सनल चॉइस है। मैं आपको विवश तो नहीं कर रहा कि आप भी मुझे चाहें। यह सम्भव भी नहीं है कि एक सीनियर अधिकारी उम्र में दस वर्ष छोटे अपने कनिष्ठ कर्मचारी से प्रेम करे... अरे, उसकी डिग्निटी का सवाल है! लोग क्या कहेंगे! उसकी शुभ्र धवल चुनरिया में बड़ा सा धब्बा न लग जायेगा भला ऐसा करने से!" अजय ने मुस्कुराते हुए कहा।


मोहिनी की समझ में नहीं आया कि अजय ने क्या कह दिया। उसने अजय से कहा, "ठीक है, अब तुम जाओ।" कोई निर्णय न ले पाने की स्थिति में, उसने कोल्ड कॉफी मंगवाई और अपनी कुहनियों को मेज पर टिका कर चेहरे को दोनों हथेलियों में फँसा लिया। जाते हुए अजय की पीठ देखते हुए वह उलझन में पड़ गई।


रविवार की शाम होते-होते उसने एक कठोर निर्णय ले लिया और यह निर्णय लेते ही उसके मन का सारा तनाव, व्यग्रता और उलझनें पल भर में तिरोहित हो गईं। उसने हल्के मूड में पराठे बनाए, टमाटर धनिया की चटनी बनाई और अपना फेवरेट सीरियल देखते हुए डिनर समाप्त किया। सुखद नींद में सो गई।


सोमवार को मोहिनी ने हल्का मेकअप किया, पसंदीदा कांजीवरम साड़ी पहनी और ऑफिस के लिए निकल गई। ऑफिस में प्रतिदिन के विपरीत जब काफी देर तक अजय उसके केबिन में नहीं आया तो मोहिनी ने इंटरकॉम पर उसके टेबल का नंबर डायल किया। ऑफिस असिस्टेंट ने आकर अनुपस्थित स्टाफ की लिस्ट दी, जिसमें अजय का नाम सबसे ऊपर था। मोहिनी चौंक पड़ी और इंटरकॉम रख दिया। शाम तक अजय का कोई कॉल नहीं आया। ऑफिस की छुट्टी से पहले, उसने उसकी सर्विस फाइल निकाली और कुछ नोट कर लिया।


मल्टीस्टोरी बिल्डिंग के फ्लैट नम्बर 111 की डोरबेल कई बार बजाने के बाद दरवाजा खुला और अंदर से अजय की मरियल सी आवाज आई, "मैम, आप! यहाँ मेरे फ्लैट में? इस समय? कैसे?"


"ओह! मुझे लगा था कि तुममें इतनी सभ्यता होगी कि आगन्तुक को अंदर बैठाकर एक एक करके प्रश्न करोगे!" मोहिनी ने मुस्कुराते हुए कहा।


"सॉरी मैम, अचानक आपको देखकर मेरी बुद्धि न जाने कहाँ विलुप्त हो गई! आइये, प्लीज अंदर आइये," कहकर वह एक किनारे हो गया।


फ्लैट के अंदर प्रवेश करते हुए मोहिनी ने चारों तरफ देखा। जब तक उसने दृष्टि वापस अजय पर लाई, तब तक अजय ने एक कुर्सी को साफ करके कहा, "प्लीज बैठ जाइए मैम।"


"अरे जब आ ही गई हूँ तो बैठूँगी और चाय भी पियूँगी," मोहिनी ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा।


"श्योर श्योर मैम..." कहकर अजय किचन में घुस गया।


कुछ ही पलों में किचन में कुछ गिरने की आवाज आई तो मोहिनी दौड़ कर वहाँ गई और वहाँ का दृश्य देख कर उसका हृदय धक से रह गया।


चूल्हे पर चाय उबल रही थी किन्तु अजय फर्श पर निश्चेष्ट पड़ा हुआ था। उसके मुँह से रक्त की पतली सी धार बह रही थी। मोहिनी ने उसे स्पर्श किया तो उसका बदन तपता हुआ पाया। घबरा कर मोहिनी ने गैस बंद की और अजय को कंधे के सहारे पलँग तक लायी, पानी की छींटे मार कर उसे सचेत करने का प्रयत्न किया।


चेतना वापस आने पर मोहिनी ने पूछा, "तुम्हें क्या परेशानी है और तुम यहाँ किस डॉक्टर से इलाज करा रहे हो?"


"डॉ शांतनु बनर्जी," अजय ने कहा।


"पर वे तो लिवर और किडनी के डॉक्टर हैं," मोहिनी ने चौंकते हुए कहा।


"जी हाँ," कह कर अजय फिर से अचेत हो गया।


मोहिनी ने एम्बुलेंस कॉल की और अजय को डॉ बनर्जी की क्लिनिक में ले गई। ट्रीटमेंट आरम्भ करने के बाद डॉ बनर्जी ने मोहिनी से पूछा, "आप कौन हैं अजय की?"


"जी अजय मेरा कलीग है," मोहिनी ने जवाब दिया।


"क्योंकि कोई और पारिवारिक सदस्य समीप नहीं है, अतः मुझे अब आपको कुछ बताना है अजय के विषय में," डॉ बनर्जी ने गंभीर स्वर में कहा।


"जी अवश्य, आप स्पष्ट शब्दों में कहिये," मोहिनी ने घबराहट भरे स्वर में कहा।


"अजय ने मुझे बताया है कि बचपन में उसके माता-पिता में अलगाव हुआ तो उसकी माँ उसे लेकर अलग हो गई। बाद में, माँ ने दूसरी शादी की और सौतेले बाप ने आठ वर्ष की उम्र में उसे घर से निकाल दिया। तब से वह इधर-उधर काम करता रहा और पढ़ता रहा। क्योंकि वह पढ़ने में कुशाग्र था, इसलिए यूनिफॉर्म और बुक्स मिल जाती थीं और फीस माफ हो जाती थी। फिर उसकी नौकरी यहाँ लग गई। अब सुनिए महोदया, डेढ़ माह पहले की जांच में पता चला कि अजय को लिवरसिरोसिस नामक गम्भीर बीमारी है। प्राइमरी स्टेज में है, लेकिन इलाज के अभाव में यह बढ़ रहा है। हैदराबाद और मुम्बई में इसका इलाज संभव है। दो से ढाई महीने के सफल इलाज के बाद अजय एकदम फिट हो जाएगा।"


चार माह बाद...


जब अजय एकदम स्वस्थ हो गया, तो एक दिन अस्पताल के बगीचे में बनी बेंच पर मोहिनी का हाथ अपने हाथों में लेकर बोला, "मैम, आपने मुझपर लाखों रुपये खर्च कर दिए। मैं इस उपकार को कैसे चुकाऊँगा?"


गांव की एक खूबसूरत नवयुवती अपने तीन साल के बच्चे को चिड़ियाघर घुमा रही थी। वहीं पास के कॉलेज के पांच लड़के उसे बार-बार देखते हुए आपस में कुछ बातें कर रहे थे। वे उसे खूबसूरत, अकेली देहाती युवती के पीछे हो लिए। युवती अपने बच्चे को कभी गोद में तो कभी उंगली पकड़े बारी-बारी से जानवरों को दिखा रही थी, पीछे लगे आवारा लड़कों से बिल्कुल बेखबर चल रही थी। लड़के उसे कट मारते हुए आगे निकल गए।


लड़के युवती को छेड़ रहे थे। वे बगल में ही शेर के बाड़े के पास जोर से उसे देख सीटी बजा रहे थे। उनमें से एक लड़का पूरे जोश में बाड़े के ऊपर लगे ग्रिल पर बैठकर गाने गा रहा था। युवती अपने बच्चे को लिए शेर को दिखाने बाड़े की ओर बढ़ चली। युवती को देख ऐसा प्रतीत हो रहा था कि उसे उन लड़कों से तनिक भी फर्क नहीं पड़ रहा था या वह उन्हें अनदेखा अनसुना कर रही थी। युवक अति उत्साहित होकर हर तरह की हरकतें कर रहे थे। युवती बाड़े के पास पहुंच चुकी थी, तभी ग्रिल पर चढ़ा लड़का लड़खड़ाते हुए बाड़े के अंदर गिर पड़ा।


लोगों के होश उड़ गए। उसके दोस्त असहाय होकर खड़े थे और सिर्फ चिल्ला रहे थे। भगदड़ मच गई। एक गार्ड ने आकर शेर को आवाज देकर जानवर को शांत करने की कोशिश की। 1 मिनट के भीतर अफरा तफरी मच चुकी थी। शेर को आता देख गिरा हुआ लड़का डर से कांप रहा था। उसके जोश के साथ शायद होश भी ठंडे पड़ चुके थे।


"मां, मां, बच्चा बचाओ!" की आवाज़ लगातार तेज हो रही थी और शेर की चाल भी। तभी उस देहाती युवती ने अपने बदन से 5.5 मीटर लंबी साड़ी उतारकर बाड़े में फेंक दी। बाड़े में गिरा लड़का तुरंत साड़ी का सिरा मजबूती से पकड़ लिया और फिर लोगों की मदद से उसे बाहर निकाल लिया गया।


आज इस युवती ने तुम्हें दोबारा जन्म दिया है। सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में खड़ी वह अर्धनग्न महिला नहीं होती तो शायद उन लड़कों की मां आज रो रही होती। हो सके तो किसी को बेवजह सताओ नहीं, पता नहीं वह कब तुम्हारे लिए देवदूत बनकर खड़ा हो जाए। और हमेशा स्त्रियों को सम्मान दो। 





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