Shiraja, शिराजा

छोटा कुबड़ा:


एक समय की बात है, प्राचीन काशगर में, विशाल क्षेत्र की सीमा पर, एक दर्जी अपनी पत्नी के साथ रहता था। यह जोड़ा एक-दूसरे से बहुत प्यार करता था।


एक सुबह दर्जी अपनी दुकान में व्यस्तता से काम कर रहा था। एक छोटा सा कुबड़ा आदमी दुकान के दरवाजे पर आकर बैठ गया। उसके पास एक तंबूर था जिसे वह बजाता था और कई मधुर गीत गाता था। दर्जी उस छोटे कुबड़े की प्रतिभा से बहुत प्रभावित हुआ।


उसने सोचा, "मैं उसे घर ले जाऊंगा। जब मैं दुकान पर होता हूं तो मेरी पत्नी घर पर अकेली होती है। वह मेरी पत्नी का अच्छे से मनोरंजन करेगा।"


तो दर्जी ने शाम को उस छोटे से कुबड़े को घर ले लिया। उसकी पत्नी ने मेज पर पहले से ही गरमा-गरम खाने का इंतजाम कर रखा था। एक मेहमान को देखकर वह थाली लेकर आई और जल्द ही उनका परिचय कराया गया। उन तीनों ने बढ़िया डिनर किया और एक-दूसरे से हंसी-मज़ाक किया। छोटे कुबड़े ने एक मछली खा ली। लेकिन दुर्भाग्यवश उसने मछली की हड्डी निगल ली। जल्द ही, छोटे कुबड़े का दम घुटने लगा। दर्जी ने उसकी पीठ जोर-जोर से थपथपाई, जबकि उसकी पत्नी ने उसे पीने के लिए पानी दिया, लेकिन छोटा कुबड़ा ठीक नहीं हुआ। उसने मछली की हड्डी दबा दी और जल्द ही खाने की मेज पर मृत पड़ा रहा।


दर्जी और उसकी पत्नी को अपने मेहमान की मृत्यु पर बहुत दुःख हुआ। तब वे चिंतित हो गये। उन्हें डर था कि राजा के रक्षक उन पर हत्या का आरोप लगाने आएँगे। वे जेल जाने से डरते थे. इसलिए दम्पति ने सोचा कि वे एक योजना बनाएंगे ताकि यह प्रतीत हो कि उसकी मौत का कारण कोई और है।


काफी देर तक सोचने के बाद उन्होंने उस कुबड़े को एक यहूदी डॉक्टर के क्लिनिक-सह-निवास पर छोड़ने का फैसला किया। कुछ देर बाद दर्जी और उसकी पत्नी कुबड़े के शव को लेकर डॉक्टर के घर पहुंचे। उन्होंने दरवाज़ा खटखटाया जिससे डॉक्टर के घर तक एक खड़ी सीढ़ी थी। अँधेरा होने के कारण एक नौकरानी रुके कदमों से सीढ़ी से नीचे उतरी। पूछने पर दर्जी ने कहा, "हम एक आदमी को लाए हैं जो बहुत बीमार है। यहूदी डॉक्टर के लिए ये एडवांस पैसे ले लो। उससे कहो कि वह जल्दी से यहाँ आ जाए।" नौकरानी अपने मालिक को बुलाने ऊपर चली गई। इसी बीच दर्जी और उसकी पत्नी ने कुबड़े के शव को ऊपर की सीढ़ी पर बैठी हुई अवस्था में रख दिया। फिर वे मौके से भाग गये.


अब युवा यहूदी डॉक्टर उस बीमार मरीज को देखने के लिए दौड़ता हुआ बाहर आया जिसका अग्रिम भुगतान उसे मिला था। जैसे ही वह बाहर भागा, वह कुबड़े के शरीर पर फिसल गया जिसे वह अंधेरे में नहीं देख सका। टक्कर से कुबड़े का शरीर सीढ़ियों से नीचे गिर गया। जैसे ही यहूदी डॉक्टर उस कुबड़े के पास पहुंचा, उसने सोचा कि उसने सीढ़ियों से नीचे लुढ़ककर उसे मार डाला है। अब डरने की बारी यहूदी डॉक्टर की थी। वह जल्दी से शव को सीधे अपनी पत्नी के चैंबर में ले गया। वहाँ उसने अपनी पत्नी को बताया कि क्या हुआ था। उसकी पत्नी फूट-फूटकर रोने लगी। यहूदी डॉक्टर ने सोचा कि अब उसे आत्मसमर्पण करना होगा और छोटे कुबड़े की हत्या की बात कबूल करनी होगी। परन्तु उसकी चतुर पत्नी ने उसे रोक दिया। उसने कहा, "तुम्हें कबूल करना और जेल जाना मूर्खता होगी। जैसा मैं तुमसे कहती हूं वैसा करो। हम दोनों इस लाश को अपनी छत पर ले जाएंगे। वहां से हम अपने पड़ोसी की छत पर जाएंगे। मुझे पता है कि हमारा मुसलमान पड़ोसी अभी घर पर नहीं है, हम शव को चिमनी के माध्यम से उसके घर में फेंक देंगे।" डॉक्टर सहमत हो गए और जल्द ही उन्होंने और उनकी पत्नी ने अपनी योजना को सफलतापूर्वक पूरा किया।


यहूदी डॉक्टर का पड़ोसी, मुस्लिम, सुल्तान के महल में काम करता था। उन्होंने शाही रसोई के लिए तेल और मक्खन उपलब्ध कराया। उसके घर में एक भण्डार-कक्ष था जहाँ वह अपना सामान रखता था और बहुत सारे चूहे-चूहे स्वतंत्र रूप से घूमते थे। जब डॉक्टर और उसकी पत्नी ने कुबड़े के शव को चिमनी से नीचे उतारा तो वह सीधे स्टोर-रूम में चला गया।


उस रात जब मुस्लिम-पड़ोसी अपनी लालटेन लेकर भंडार कक्ष में दाखिल हुआ, तो उसने दीवार के पास, छत के ऊपर जहां चिमनी थी, एक चोर को खड़ा देखा। उसे लगा कि चोर चिमनी के रास्ते घुस आया है. उसने एक मजबूत छड़ी उठाई और चोर को पीटना शुरू कर दिया। वह चिल्लाया, "चोर, तुम महीनों से मेरा मक्खन चुरा रहे हो और मुझे लगा कि चूहे ऐसा कर रहे हैं।"‌‌



The Little Hunchbacked:


Once upon a time in ancient Kashgar, on the borders of great territory, a tailor lived with his wife. The couple were deep in love with each other.


One morning the tailor was working busily in his shop. A little hunchbacked came and sat by the shop's door. He held a tambour that he played and sang many sweet songs. The tailor was very impressed by the talents of the little hunchbacked.


He thought, "I'll take him home. When I am at the shop my wife is lonely at home. He will entertain my wife well."


So the tailor took the little hunchbacked house in the evening. His wife had already arranged hot dinner on the table. On seeing a guest, she brought a plate and soon they were introduced. Three of them had a good dinner and joked with each other. The little hunchbacked ate a fish. But, as ill-luck would have it, he swallowed a fish-bone. Soon enough, the little hunchbacked started choking. The tailor patted his back hard while his wife gave water to him to drink but the little hunchbacked did not recover. He choked on the fish-bone and soon lay dead by the dinner table.


The tailor and his wife felt very sorry at their guest's demise. Then they grew worried. They feared that the guards of the king would come to accuse them of murder. They were scared to go to prison. So the couple thought that they would make a plan so that it would be appeared that someone other had caused his death.


After thinking for a long time, they decided to leave the hunchbacked at a Jewish doctor's clinic-cum-residence. After a while, the tailor and his wife carried the dead body of hunchbacked to the doctor's house. They knocked at the door which led to a steep stairway to the doctor's house. As it was dark a maid came down the stairway with halting steps. On enquiry, the tailor said, "We have brought a man who is very ill. Here take this advance money for the Jewish doctor. Tell him to rush down here." The maid went upstairs to call her master. Meanwhile, the tailor and his wife put the dead body of the hunchbacked on the stairs in a sitting position at the top stair. Then they ran away from the spot.


Now the young Jewish doctor came out running to see the ill patient whose advance payment he had received. As he ran out, he tripped over the body of the hunchbacked which he could not see in the dark. The collision caused the body of the hunchbacked to on down the stairs. As the Jewish doctor reached the hunchbacked, he thought that he had killed him when he rolled down the stairs. Now it was the turn of the Jewish doctor to fear. He quickly carried the dead body straight to his wife's chamber. There he told his wife what had happened. His wife started crying bitterly. The Jewish doctor thought that he would now have to surrender and confess to the murder of the little hunchbacked. But his clever wife stopped him. She said, "You'll be foolish to confess and go to prison. Do as I tell you. Both of us will carry this corpse to our roof. From there we'll step on to our neighbour's roof. I know that our Muslim neighbour is not at home now. We'll throw the body into his house by lowering it in through the chimney." The doctor agreed and soon he and his wife carried out their plan successfully.


The Jewish doctor's neighbour, the Muslim, worked at the Sultan's palace. He provided oil and butter for the royal kitchen. He had a store-room in his house where he kept his goods and many rats and mice roamed in freely. When the doctor and his wife lowered the dead body of the hunchbacked through the chimney, it went straight into the store-room.


That night when the Muslim-neighbour entered the storeroom with his lantern, he saw a thief standing by the wall, the roof above where the chimney was. He thought that the thief had entered through the chimney. He picked a stout stick and started beating the thief. He yelled, "You thief, you've been stealing my butter for months and I thought that the mice were doing it."


सुहागन की बिंदी


बाहर फेरीवाला आया हुआ था। कई तरह का सामान लेकर---बिंदिया, काँच की चूड़ियाँ, रबर बैण्ड, हेयर बैण्ड, कंघी, काँच के और भी बहुत सारे सामान थे। आस-पड़ोस की औरतें उसे घेर कर खड़ी हुई थीं।

काफी देर तक बाबा गेट पर अपनी लाठी टेककर खड़े रहे। जैसे ही औरतों की भीड़ छँटी, बाबा अपनी लाठी टेकते हुए फेरी वाले के पास पहुँच गए और उस का सामान देखने लगे।शायद वे कुछ ढूँढ रहे थे। कभी सिर ऊँचा करके देखते, कभी नीचा। जो देखना चाह रहे थे, वह दिख नहीं रहा था।

हैरान परेशान बाबा को फेरी वाले ने देखा तो पूछा---"कुछ चाहिए था क्या बाबा आपको ?"

पर बाबा ने सुनकर अनसुना कर दिया। धीरे-धीरे लाठी टेकते हुए फेरी के ही चक्कर लगाने लगे। कहीं तो दिखे वो, जो वे देखना चाह रहे हैं। फेरी वाले ने दोबारा पूछा---"बाबा कुछ चाहिए था क्या ?"

अब की बार बाबा ने फेरीवाले से कहा --"हाँ बेटा!"

क्या चाहिए ?-- बताओ मुझे, मैं ढूँढ देता हूँ।"

"मुझे ना--वो बिंदिया चाहिए थी।"

"बिंदिया क्यों चाहिए बाबा ?"

बाबा ने अम्मा की तरफ इशारा करते हुए बताया---"अरे! मेरी पत्नी के लिए चाहिए।

बाबा का जवाब सुनकर फेरीवाला हँस दिया। "किस तरह की बिंदिया चाहिए?"

"बड़ी-बड़ी गोल बिंदिया चाहिए। बिल्कुल लाल रंग की।"

फेरीवाले ने बिंदिया का पैकेट निकाल कर दिया--यह देखो बाबा, ये वाली ?"

"अरे, नहीं--नहीं, ये वाली नहीं।बिल्कुल लाल सी।"


फेरीवाले ने वो पैकेट रख लिये और दूसरा पैकेट निकाल कर दिखाया--"बाबा ये वाली ?"

"अरे तुझे समझ में नहीं आता क्या? बिल्कुल लाल-लाल बिंदिया चाहिए।"

फेरी वाले ने सारे पैकेट निकाले और फेरी के एक तरफ फैला कर रख दिए--आप खुद ही देख लो बाबा! कौन सी बिंदिया चाहिए?"

बाबा ने अपने काँपते हाथों से बिंदियों के पैकेट को इधर-उधर किया और उसमें से एक पैकेट निकाला--"हाँ-हाँ, ये वाली।"

बाबा के हाथ में बिन्दी का पैकेट देखकर फेरीवाला मुस्कुरा दिया। बाबा ने तो मेहरून रंग की बिन्दी उठाई थी।

"कितने की है ?"

"दस रुपये की है बाबा।"

"अच्छा ! कीमत सुनकर बाबा का दिल बैठ गया। फिर भी बोले--"ठीक है, अभी लेकर आता हूँ।"

बाबा लाठी टेकते हुए पलट कर जाने लगे। तब तक घर में से बहू आती दिखी। उसे देखकर बाबा बोले--"अरे बहू, ज़रा दस रुपये तो देना। फेरी वाले को देने हैं।"

"अब क्या खर्च करा दिया आप लोगों ने ?" बहू ने लगभग चिल्लाते हुए कहा।

"अम्मा के लिए बिंदिया खरीदी थी।उसकी बिंदिया खत्म हो गई थी। कई बार बोल चुकी है"---बाबा ने धीरे से कहा।

"बस-बस, आप लोगों को और कोई काम तो है नहीं।बेवजह का खर्चा कराते रहते हैं। सत्तर साल की हो चुकी हैं अम्मा। क्या अभी भी बिंदिया लगाएगी ? इस उम्र में भी न जाने क्या-क्या शौक हैं ?"

"देख बेटा, बात शौक की नहीं है। अम्मा भी सुहागन है, इसलिए उसका मन नहीं मानता। सिर्फ दस रुपये ही तो माँग रहा हूँ। अन्दर जाकर दे दूँगा।"

"कहाँ से दे दोगे ? जो पैसे देंगे, वह भी तो मेरे पति की ही कमाई है। मेरे पास कोई पैसे नहीं हैं।"

इतना कहकर बहू बड़बड़ाती हुई अन्दर आ गई। अम्मा ने खाट पर लेटे-लेटे ही बाबा को इशारा किया।

बाबा ने पलटकर बिन्दी फेरी में वापस रख दी और लाठी टेकते हुए अम्मा के पास आकर बैठ गए। बाबा ने देखा अम्मा की आँखों में आँसू थे।

"माफ करना पार्वती! मैं तेरी छोटी सी इच्छा भी पूरी नहीं कर पाया।"

"रहने दो जी, बेचारी बहू भी परेशान हो जाती होगी। काहे दिल पर ले कर बैठ जाते हो ? बिन्दी ही तो थी।"

"हाँ हाँ बिन्दी ही थी। कौन सी हज़ारों रुपये की आ रही थी।" बाबा ने व्यंग्य से हँसते हुए कहा।

"बिन्दी ही तो लगानी है जी। एक काम करो, पूजा घर में से हिंगलू ले आओ। उसी से लगा देना। पर आज अपने हाथों से बिन्दी लगा दो।"

बाबा ने अम्मा की बात सुनी और फिर लाठी टेकते हुए पूजा घर में गये। थोड़ी देर बाद बाबा हाथ में हिंगलू लिए अम्मा के पास पहुँचे।

"लो पार्वती! उठो, मैं तुम्हें बिन्दी लगा देता हूँ।"

पर अम्मा में कोई हलचल न दिखी।

बाबा ने दोबारा कहा--"पार्वती, ओ पार्वती! सो गई क्या ? तेरी बड़ी इच्छा थी ना--बड़ी सी लाल बिन्दी लगाने की। ले देख, मैं हिंगलू ले आया हूँ। अब बड़ी सी लाल बिन्दी लगा दूँगा। पर तू बैठ तो सही।"


पर अम्मा बिल्कुल शिथिल पड़ी हुई थीं। शरीर में कोई हलचल न थी। बाबा का दिल बैठ गया। हाथ में हिंगलू लिए अम्मा के पास ही बैठ गए। आँखों से झर-झर आँसू बह रहे थे, पर एक भी बोल न फूटा।


एक देवरानी और जेठानी में किसी बात पर जोरदार बहस हुई और दोनो में बात इतनी बढ़ गई कि दोनों ने एक दूसरे का मुँह तक न देखने की कसम खा ली और अपने-अपने कमरे में जा कर दरवाजा बंद कर लिया।। परन्तु थोड़ी देर बाद जेठानी के कमरे के दरवाजे पर खट-खट हुई। जेठानी तनिक ऊँची आवाज में बोली कौन है, बाहर से आवाज आई दीदी मैं ! जेठानी ने जोर से दरवाजा खोला और बोली अभी तो बड़ी कसमें खा कर गई थी। अब यहाँ क्यों आई हो ?_


_★देवरानी ने कहा दीदी सोच कर तो वही गई थी, परंतु माँ की कही एक बात याद आ गई कि जब कभी किसी से कुछ कहा सुनी हो जाए तो उसकी अच्छाइयों को याद करो और मैंने भी वही किया और मुझे आपका दिया हुआ प्यार ही प्यार याद आया और मैं आपके लिए चाय ले कर आ गई। बस फिर क्या था दोनों रोते रोते, एक दूसरे के गले लग गईं और साथ बैठ कर चाय पीने लगीं।_


★जीवन में क्रोध को क्रोध से नहीं जीता जा सकता, प्यार से जीता जा सकता है।

●क्योंकि

★अग्नि अग्नि से नहीं बुझती बल्कि जल से बुझती है।

★समझदार व्यक्ति बड़ी से बड़ी बिगड़ती स्थितियों को दो शब्द प्रेम के बोलकर संभाल लेते हैं। हर स्थिति में संयम और बड़ा दिल रखना ही श्रेष्ठ है ll


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