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प्रभु की माया


*एक राजा था | उसका मंत्री बहुत बुद्धिमान था | एक बार राजा ने अपने मंत्री से प्रश्न किया – “ मंत्री जी! भेड़ों और कुत्तों की पैदा होने कि दर में तो कुत्ते भेड़ों से बहुत आगे हैं, लेकिन भेड़ों के झुंड के झुंड देखने में आते हैं और कुत्ते कहीं-कहीं एक आध ही नजर आते है | इसका क्या कारण हो सकता है ?”*


*मंत्री बोला – “ महाराज! इस प्रश्न का उत्तर आपको कल सुबह मिल जायेगा |”*  


*राजा के सामने उसी दिन शाम को मंत्री ने एक कोठे में बीस कुत्ते बंद करवा दिये और उनके बीच रोटियों से भरी एक टोकरी रखवा दी |”*


*दूसरे कोठे में बीस भेड़े बंद करवा दी और चारे की एक टोकरी उनके बीच में रखवा दी | दोनों कोठों को बाहर से बंद करवाकर, वे दोनों लौट गये |*


*सुबह होने पर मंत्री राजा को साथ लेकर वहां आया | उसने पहले कुत्तों वाला कोठा खुलवाया | राजा को यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि बीसो कुत्ते आपस का लड़-लड़कर अपनी जान दे चुके हैं और रोटियों की टोकरी ज्यों की त्यों रखी है | कोई कुत्ता एक भी रोटी नहीं खा सका था |*


*इसके पश्चात मंत्री राजा के साथ भेड़ों वाले कोठे में पहुंचा | कोठा खोलने के पश्चात राजा ने देखा कि बीसो भेड़े एक दूसरे के गले पर मुंह रखकर बड़े ही आराम से सो रही थी और उनकी चारे की टोकरी एकदम खाली थी |*


*मंत्री राजा से बोला – महाराज! कुत्ते एक भी रोटी नहीं खा सके तथा आपस में लड़-लड़कर मर गये | उधर भेड़ों ने बड़े ही प्रेम से मिलकर चारा खाया और एक दूसरे के गले लगकर सो गयी | यही कारण है, कि भेड़ों के वंश में वृद्धि है | समृद्धि है | उधर कुत्ते हैं, जो एक-दूसरे को सहन नहीं कर सकते | जिस बिरादरी में इतनी घृणा तथा द्वेष होगा | उसकी वृद्धि भला कैसे हो सकती है |*


*राजा मंत्री की बात से पूरी तरह संतुष्ट हो गया | उसने उसे बहुत-सा पुरस्कार दिया | वह मान गया था, कि आपसी प्रेम तथा भाईचारे से ही वंश वृद्धि होती है | मंत्री ने इस संबंध में राजा को एक कहानी सुनायी* 


*एक बार ब्रह्मा ने देवता तथा असुरों की एक सभा बुलवायी | सभी देवता तथा दानव ब्रह्मा के दरबार में उपस्थित हुये | ब्रह्मा ने वैसे तो दोनों ही समुदाय की बड़ी आवभगत की, लेकिन देवताओं के प्रति उनके मन में अधिक श्रद्धा तथा सम्मान था |*


*दानवों ने इस बात को भाप लिया की, ब्रह्मा के मन में देवताओं के प्रति अधिक मान-सम्मान है | दिखाने के लिए वे बराबर का बर्ताव कर रहे हैं | दानवों ने राजा से कहा – “ ब्रह्मा जी! देखिये आप देवताओं को अधिक महत्व दे रहे हैं | उनके प्रति आपके ह्रदय में अधिक सम्मान है | अगर ऐसा ही है, तो फिर हमें यहां क्यों बुलवाया |”*


*ब्रह्मा ने बहुत समझाया बुझाया; किंतु दानवों का क्रोध कम नहीं हुआ | अब तो ब्रह्मा ने संकल्प लिया कि दानवों को इस बात का बोध कराना ही होगा कि वे देवताओं की बराबरी नहीं कर सकते | ब्रह्मा ने असुरों के राजा से कहा – “ मुझे प्रसन्नता होगी | यदि आप देवताओं के समान बन जाये, उनसे पीछे न रहे |”*


*“ हम तो पहले ही उनसे बहुत आगे हैं |” असुरों के राजा ने अकड़कर कहा |*


*“ बुरा ना माने तो, मैं आपकी परीक्षा ले लूं |” ब्रह्मा ने पूछा |*


*“ठीक है | हो जाये परीक्षा |” दानवों के राजा ने कहा |*


*रात के भोजन में ब्रह्मा ने देवताओं दानवो सबके हाथों पर उंगलियों तक डंडे बधवा दिये | जिससे दोनों हाथ मूड़ न सके | सबसे पहले ब्रह्मा ने असुरों के आगे लड्डूओ के बड़े-बड़े थाल परोसे और कहा कि “ जो अधिक लड्डू खायेगा।वही श्रेष्ठ होगा।” दानवों ने लड्डू उठा तो लिये; किंतु हाथ में डंडे बंधे होने के कारण वे लड्डूओं को अपने मुंह तक नहीं ले जा सके।यह एक विकट समस्या उत्पन्न हो गयी।बहुत प्रयास करने के पश्चात भी कोई भी दानव लड्डू खाने में सफल नहीं हो सका।सभी उठ गये।*


*अब देवताओं की बारी आयी।उनके हाथ पर भी उसी प्रकार डंडे बांधे गये।उनके हाथ भी मूड नहीं सकते थे।पंक्ति में बैठे सभी देवताओं के सम्मुख लड्डू परोसे गये।देवताओं ने दो-दो जोड़ी बना ली।एक देवता दूसरे देवता को लड्डू खिला रहा था।सभी दानव यह तमाशा देख रहे थे।उन्हें मानना पड़ा कि वास्तव में देवता दानवों से श्रेष्ठ है।*


*राजा को मंत्री की कहानी बहुत पसंद आयी।वह मान गया कि वास्तव में एकता द्वारा कुछ भी कार्य किया जा सकता है..!!*


अच्छा पड़ोसी:


एक समय की बात है, वहाँ दो पड़ोसी रहते थे। एक था कासिम और दूसरा था फहिन. कासिम के पास अकूत संपत्ति थी लेकिन फ़ाहिन को अपनी रोज़ी रोटी के लिए संघर्ष करना पड़ता था। इसलिए फाहिन को अपने पड़ोसी की संपत्ति से ईर्ष्या होती थी। दिन-ब-दिन ईर्ष्या और भी बढ़ती गई और अंततः वह वास्तविक घृणा के रूप में बदल गई। इसलिए फाहिन ने स्वाभाविक रूप से कासिम के खिलाफ साजिश रचने की योजना बनाई। चूँकि कासिम बुद्धिमान था इसलिए वह फाहिन की मानसिकता को जानता था।


फ़ाहिन ने कासिम को हानि पहुँचाने की एक योजना सोची। पूरा दिन उसने बिना कोई काम किए कोई योजना बनाने में बर्बाद कर दिया। कासिम जानता था कि फाहिन उसकी दौलत से जल रहा है और उसके खिलाफ साजिश रचने में समय बर्बाद कर रहा है।


कासिम अपनी दौलत से अपने पड़ोसी को परेशान नहीं करना चाहता था। उस ने फहीम के घर से कहीं दूर अपना ठिकाना बदलने की योजना बनाई. इसलिये वह दूर देश में चला गया और वहीं बस गया। वहाँ वे सद्भावना के शिक्षक के रूप में आराम से बस गये। हर समय उनकी बातें सुनने के लिए लोग घिरे रहते थे। जैसे-जैसे दिन बीतते गए, वहां रहने वाले लोगों द्वारा उन्हें एक पवित्र व्यक्ति माना जाने लगा। उनके नाम की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल गई।


यह खबर फाहिन को भी लग गयी. इसलिए वह उसे जल्द ही देखने के लिए बहुत उत्सुक था। अगली सुबह वह कासिम को व्यक्तिगत रूप से देखने के लिए दुष्ट विचारों के साथ अपनी यात्रा पर निकल पड़ा। कासिम को पहले फ़ाहिन की नफरत से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा, उसने फ़ाहिन का गर्मजोशी से स्वागत किया।


फ़ाहिन ने ऐसा व्यवहार किया मानो वह कासिम का घनिष्ठ मित्र हो, लेकिन उसके मन में एक गुप्त योजना थी। कासिम ने फ़ाहिन को बढ़िया डिनर दिया, डिनर के बाद दोनों उसके घर के बाहर निकले।


आँगन में वसीयत थी। जब वे कुएं के पास टहल रहे थे तो फहीन ने अचानक कासिम को कुएं में धक्का दे दिया। कासिम को तैरना नहीं आता था इसलिए वह कुएं में डूब गया। लेकिन वह बहुत भाग्यशाली था. उसने कुएं के नीचे एक नया साम्राज्य देखा। जब उसने नये राज्य में प्रवेश किया तो राजा के सेवक उसे राजा के सामने ले आये। दरबार में एक मंत्री ने कासिम को एक पवित्र व्यक्ति के रूप में पहचाना और उसने राजा को इस बारे में सूचित किया।


जब राजा ने यह समाचार सुना तो वह बहुत प्रसन्न हुआ। उसने मन ही मन सोचा, "मेरी बेटी को काफी समय से एक अजीब बीमारी है। कोई भी उसे ठीक नहीं कर पाया। क्या वह उसकी बीमारी ठीक कर सकता है?"


इसलिए उसने कासिम से उसकी बेटी की बीमारी ठीक करने का अनुरोध किया। उसने उससे वादा किया कि अगर वह उसकी अजीब बीमारी ठीक कर देगा तो उसे अच्छा इनाम मिलेगा।


कासिम ने कुछ देर सोचा और फिर अपनी विशेष शक्ति से राज्य की राजकुमारी बेटी को ठीक कर दिया। राजकुमारी खुश थी. यह देखकर राजा ने कासिम का स्वागत किया और उसे अपना बुद्धिमान बना लिया। अत: कासिम महल में सुखपूर्वक रहने लगा।


कुछ समय बाद कासिम अपने पुराने राज्य में वापस चला गया। जब वह पुरानी जगह की ओर चला तो उसे एक भिखारी दिखाई दिया। जब उसने उसे करीब से देखा तो पाया कि वह कोई और नहीं बल्कि उसका पुराना पड़ोसी फहिन था। उसने फ़ाहिन से पूछा, "क्या तुम मुझे पहचान सकते हो?"


फ़हिन! तुम्हें क्या हुआ!" "मैं कासिम हूं"। कासिम ने कहा. अब फ़ाहिन ने आश्चर्य से धीरे से मुँह खोला और कहा, “आप! तुम कासिम! मैंने पहले ही तुम्हें तुम्हारे बगीचे के कुएं में धकेल दिया था। कासिम ने उत्तर दिया कि उसने केवल उसके साथ अच्छा किया है, उसे आश्चर्य हुआ कि वह एक नए राज्य में पहुंच गया और अब राजा का वजीर बन गया है। कासिम ने फाहिन की ओर इशारा करते हुए कहा, "तुम्हारी ईर्ष्या ने ऐसा किया मैं वजीर हूं और इसने तुम्हें भिखारी बना दिया। आपको इसके लिए भुगतान करना होगा"।


अब फ़ाहिन दुःख से सिर झुकाकर कुछ देर तक रोता रहा। फ़ाहिन ने कहा, "कासिम मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है। अब मुझे तुमसे ईर्ष्या नहीं है। तुम्हारे प्रति मेरे पापों को क्षमा कर दो।"


कासिम प्रभावित हुआ और उसने फहीम को गले लगा लिया, उसने उसे फिर से व्यवसाय शुरू करने के लिए पर्याप्त धन दिया।‌‌


The Good Neighbour:


Once upon a time there lived two neighbours. One was Kasim and the other was Fahin. Kasim had enormous wealth but Fahin had to fight for his daily bread. So Fahin was jealous of his neighbour’s wealth. Day by day the jealousy grew further more and finally it changed as real hatred. So Fahin naturally planned to plot against Kasim. As Kasim was intelligent he knew the mentality of Fahin.


Fahin thought of a plan to do harm to Kasim. For the whole day he wasted to make a plan without doing any work. Kasim knew that Fahin was jealous on his wealth and was wasting the time to plot against him.


Kasim did not want to disturb his neighbour by his wealth. He planned to change his place far away from Fahim’s place. So he went to a distant land and settled there. There he settled comfortably as a teacher of goodwill. All the time he was surrounded by people to listen to his words. As days passed he was considered as a holy man by the people who lived there. His name fame spread to far away places.


This news was heard by Fahin also. So he was very curious to see him soon. The Very next morning he started on his journey with wicked thoughts to see Kasim personally. Kasim didn’t mind the hatred of Fahin before, he welcomed Fahin warmly.


Fahin acted as if he were a close friend of Kasim, but he had a secret plan in his mind. Kasim gave a nice dinner to Fahin, After the dinner both went out for yard of his house.


There was a will in the yard. When they were walking near the well, Fahin suddenly pushed Kasim into the well. As Kasim didn’t know swimming he was drowned in the well. But he was very lucky. He saw a new kingdom under the well. When he entered the new kingdom, the servants of the king brought him before the king. In the court, one of the ministers recognized Kasim as a holy man and he informed the king about this.


When the king heard the news, he was very happy. He wondered in his mind," My daughter has a strange illness for a long time. No one was able to make her fine. Can he cure her of the illness?".


So he requested Kasim to cure his daughter’s illness. He promised him a fine reward, If he cured her strange disease.


Kasim thought for a while and then cured the daughter, the princess of the kingdom with his special power. The Princess was happy. On seeing this, the king welcomed Kasim and made him as his wiser. So Kasim lived in the palace happily.


After some time Kasim went back to his old Kingdom. When he walked towards the old place, he saw a beggar. As he closely watched him he found that he was none but his old neighbour Fahin. He asked Fahin“Can you recognize me?"


Fahin! What happed to you!" “I am Kasim". Said Kasim. Now Fahin opened his mouth slowly with wonder and said, “You! You Kasim!. I already pushed you into the well in your garden". Kasim replied that he had only done him good for to his surprise he reached a new Kingdom and now had become a Wazir of the King. Kasim pointed out to Fahin saying "Your jealousy made me a wazir and it made you a begger. You had to pay for it".


Now Fahin bent down his head with sorrow and wept for a while. Fahin said,"Kasim I have realized my mistake. I am no more jealous of you. Forgive me for my sins against you."


Kasim was moved and he embraced Fahim, He gave him enough money to start a business again.‌‌


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