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फाल्कन ने अपने मित्र राजा को बचाया:


एक समय वर्तमान तुर्की देश में एक राजा राज्य करता था। उन्हें शिकार का बहुत शौक था. वह राज्य का एक प्रसिद्ध शिकारी था। उसके देश में शिकार में उसे मात देने वाला कोई न था।


राजा के पास एक वफादार और बुद्धिमान पालतू बाज़ था। वह जहाँ भी शिकार के लिए जाता बाज़ को अपने साथ ले जाता। ऐसे ही एक शिकार अभियान पर, जब राजा घने जंगल में चला गया तो बाज़ उसके कंधे पर बैठ गया। नौकर भी बाज़ को गंभीरता से देखते हुए उसके पीछे-पीछे चल दिए।


एक जगह वह रुका और बड़े कौतूहल से देखने लगा। उसे एक अजीब सी आवाज सुनाई दी. वहाँ उसने एक हिरण को देखा और कहा, "यह कितना सुंदर है!"


वह उसकी सुंदर चाल और लंबे, पतले सींगों से बहुत आकर्षित हुआ। अचानक उसने अपना धनुष-बाण उठाया और जानवर पर निशाना साधा। लेकिन जानवर तेजी से उस जगह से भाग गया। राजा और सेवकों ने उसका जंगल में पीछा किया। लेकिन जानवर उन्हें चकमा देकर भाग गया। वह पेड़ों और झाड़ियों के बीच से निकला और घने जंगल में भाग गया।


लेकिन जब राजा ने पीछा करना जारी रखा तो नौकर उसका पीछा नहीं कर सके और वहीं रुक गये। राजा अपने घोड़े और बाज़ के साथ अपने सेवकों से अलग हो गया था। शाम हो गयी. राजा को बहुत थकान महसूस हुई और प्यास भी लगी।


वह चिल्लाया “पानी! कृपया पानी दीजिए!"


वह पानी की तलाश में इधर-उधर घूमने लगा। वह भी रास्ता भटक गया.


आख़िरकार वह थोड़े से पानी वाले एक तालाब के पास आया। उसने जल्दी से अपना घड़ा उठाया और उसमें पानी भर दिया। चूँकि वह बहुत थक गया था इसलिए वह घड़ा अपने मुँह के पास लाया, बाज़ ने अपने पंख फड़फड़ाये। जार के पास लगे पंखों के कारण जार फिसल गया और पानी बहकर जमीन पर गिर गया।


वह चिल्लाया'' ''तुमने क्या किया?'' क्या तुम नहीं जानते, मैं अब प्यासा हूं!''


राजा धैर्यपूर्वक नीचे झुका और पीने के लिए अपने घड़े में पानी भर लिया। जब उसने दोबारा पानी पीने की कोशिश की तो बाज़ फिर से फड़फड़ाया और पानी जमीन पर गिरा दिया। अब राजा क्रोधित हो गया और बोला, "क्या तुम पागल हो! क्या तुम मेरी प्यास नहीं जानते? लेकिन बाज़ ने राजा के चारों ओर फड़फड़ाना जारी रखा। इसलिए उसने सोचा कि बाज़ एक कृतघ्न पक्षी है। इसलिए उसने अपनी तलवार राजा के पास से खींच ली बाज़ को मारने के लिए कवर करें।


लेकिन बाज़ चिल्लाया और राजा की ओर देखा। राजा को लगा कि चिड़िया कुछ बताना चाहती है।


तो राजा ने ऊपर देखा और वहां उसे पेड़ की शाखाओं पर कुछ जहरीले सांप दिखाई दिए। तब उसे मालूम हुआ कि तालाब का पानी साँपों के मुँह से निकलने वाले जहर से भरा है। यदि राजा ने पानी पी लिया तो वह मर जायेगा। लेकिन बाज़ ने अपने मालिक को ज़हरीला पानी पीने से रोक दिया।


तो राजा को एहसास हुआ कि वफादार बाज़ ने उसकी जान बचाई है। तो वह पक्षी को देखकर मुस्कुराया और बुदबुदाया, "तुम मेरे अच्छे दोस्त हो।"


उसे भी खुशी हुई कि उसके मालिक ने उसकी नेक मंशा को समझा।‌‌



Falcon saved His Friend The King:


Once upon a time in the country of present Turkey, a king ruled a kingdom. He was very fond of hunting. He was a famous hunter in the kingdom. There was no one to beat him in hunting in his country.


The King had a loyal and intelligent pet Falcon. He took the falcon wherever he went for hunting. On one such hunting expedition, the falcon sat on the king's shoulder when he rode into the thick forest. The servants also rode behind him watching the falcon seriously.


At a place he stopped and watched very curiously. He heard a strange noise. There he saw a gazelle and said “How beautiful it is!"


He was very much attracted by the its gracefull walk and the long, slender antlers. Suddenly he took his bow and arrow and aimed at the animal. But the animal quickly sped away from that place. The King and the servants chased it into the forest. But the animal dodged them to escape. It sprang between the trees and bushes and ran away into the thick forest.


But when the king continued his chasing, the servants could not follow him and stayed back. The king was isolated from his servants with his horse and falcon. The evening came. The King felt very tired and he was also thirsty.


He cried “Water! Water please!"


He moved here and there in search of water. He lost his way also.


Finally he came near a pond with little water. He quickly took his jar and filled it with water. As he was exhausted very much he brought the jar near his mouth, the falcon flapped its wings. The wings, which flung near the jar made the jar to slip and the water flowed out to the ground.


He cried’ “What did you do?" can’t you know, I am thirsty now!"


The King patiently bent down and refilled his jar with water to drink. When he tried again to drink the falcon again fluttered and spilled the water in the ground. Now the King got angry and said," Are you mad! Don’t you know my thirst? But the falcon continued its flapping around the king. So he thought that the falcon was an ungrateful bird. So he drew out his sward from the cover to kill the falcon.


But the falcon screamed and looked at the king. The King felt that the bird wanted to tell something.


So the king looked up and, there he saw some poisonous snakes on the branches of the tree. Then he knew that the water in the pond was full of poison dropping from the mouth of snakes. If the King drank the water he would be dead. But the falcon prevented its master from drinking the poisonous water.


So the King realized that the faithful falcon had saved his life. So he smiled at the bird and murmured, “ You are my good friend."


It also felt glad that his master understood its' good intention.


सबक

एक औरत अपने परिवार के सदस्यों के लिए रोज़ाना भोजन पकाती थी और एक रोटी वह वहाँ से गुजरने वाले किसी भी भूखे के लिए पकाती थी। वह उस रोटी को खिड़की के सहारे रख दिया करती थी, जिसे कोई भी ले सकता था ?


एक कुबड़ा व्यक्ति रोज़ उस रोटी को ले जाता और बजाय धन्यवाद देने के अपने रास्ते पर चलता हुआ वह कुछ इस तरह बड़बड़ाता - "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आयेगा ?"


दिन गुजरते गये और ये सिलसिला चलता रहा... वो कुबड़ा रोज रोटी लेकर जाता रहा और इन्हीं शब्दों को बड़बड़ाता- "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आयेगा।"


वह औरत उसकी इस हरकत से तंग आ गयी और मन ही मन खुद से कहने लगी कि- "कितना अजीब है यह व्यक्ति, एक शब्द धन्यवाद का तो देता नहीं है, और न जाने क्या-क्या बड़बड़ाता रहता है , मतलब क्या है इसका ?"


एक दिन क्रोधित होकर उसने एक निर्णय लिया और बोली- "मैं इस कुबड़े से निजात पाकर रहूंगी।" और उसने उस रोटी में ज़हर मिला दिया , जो वो रोज़ उसके लिए बनाती थी और जैसे ही उसने रोटी को खिड़की पर रखने की कोशिश की, कि अचानक उसके हाथ कांपने लगे और वह रुक गई और वह बोली- "हे भगवान! मैं ये क्या करने जा रही थी?" और उसने तुरंत उस रोटी को चूल्हे की आँच में जला दिया। एक ताजी रोटी बनायी और खिड़की के सहारे रख दी।


हर रोज़ की तरह वह कुबड़ा आया और रोटी लेके, "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आयेगा" बड़बड़ाता हुआ चला गया।


इस बात से बिलकुल बेख़बर कि उस महिला के दिमाग में क्या चल रहा है..।


हर रोज़ जब वह महिला खिड़की पर रोटी रखती थी तो वह भगवान से अपने पुत्र की सलामती और अच्छी सेहत और घर वापसी के लिए प्रार्थना करती थी, जो कि अपने सुन्दर भविष्य के निर्माण के लिए कहीं बाहर गया हुआ था। लेकिन पिछले कई महीनों से उसकी कोई ख़बर नहीं मिल रही थी। अपने बेटे की खबर पाने के लिये वह महिला दिन-रात भगवान से प्रार्थना करती रहती थी कि हे भगवान जहां भी मेरा बच्चा हो, सही सलामत हो और वह घर वापस लौट आये ?


ठीक उसी शाम को उसके दरवाज़े पर एक दस्तक हुई। उसने दरवाजा खोला, दरवाजा खोलते ही वह और भौंचक्की रह गई ? उसका अपना बेटा उसकी आंखों के सामने खड़ा था ? लेकिन वह सूखकर बहुत ही दुबला हो गया था। उसके कपड़े फटे हुये थे और वह बहुत भूखा था। कई महीनों से भरपेट भोजन न मिलने के कारण वह बहुत कमज़ोर हो गया था ?


जैसे ही उसने अपनी माँ को देखा, उसने कहा- "माँ, यह एक चमत्कार है कि आज मैं यहाँ हूँ। मां आज जब मैं घर से एक मील दूर था, मैं इतना भूखा था कि मैं गिर गया, मैं मर गया होता। लेकिन तभी एक कुबड़ा वहां से गुज़र रहा था, उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और उसने मुझे अपनी गोद में उठा लिया। भूख के मारे मेरे प्राण निकल रहे थे, मैंने उससे खाने को कुछ माँगा, उसने नि:संकोच अपनी रोटी मुझे यह कहकर दे दी कि- "मैं हर रोज़ यही खाता हूँ, लेकिन आज इसकी जरूरत मुझसे ज़्यादा तुम्हें है। सो ये लो और अपनी भूख को तृप्त करो ?"


जैसे ही माँ ने यह बात सुनी, माँ का चेहरा पीला पड़ गया और अपने आप को सँभालने के लिये उसने दरवाज़े का सहारा लिया। उसके मस्तिष्क में वह बात घूमने लगी कि कैसे उसने सुबह रोटी में जहर मिलाया था। अगर उसने वह रोटी आग में जलाकर नष्ट नहीं की होती तो उसका बेटा उस रोटी को खा लेता और अंजाम होता उसकी मौत?


और इसके बाद उसे कुबड़े द्वारा रोज कहे गये उन शब्दों का मतलब बिल्कुल स्पष्ट समझ में आ गया था कि -


*"जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आयेगा ।"*


सीख : हमेशा अच्छा करो और अच्छा करने से अपने आप को कभी मत रोको। फिर चाहे उसके लिए उस समय आपकी सराहना या प्रशंसा हो या ना हो..!!

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