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भीड़ से बाहर निकलें और नई ऊंचाइयों तक पहुंचें:


जॉन और उसके दोस्त हर साल एक बार पर्वतारोहण के लिए जाते थे। इस बार उन्होंने स्विस आल्प्स में पहाड़ों पर चढ़ने का फैसला किया है।


वे स्विस आल्प्स के प्रसिद्ध पर्वत स्थान पर पहुँचे और कई लोगों को पहाड़ों पर चढ़ते देखकर आश्चर्यचकित रह गए।


जॉन और उसके दोस्तों ने पहाड़ पर चढ़ने का सारा सामान पहनना शुरू कर दिया और चढ़ना शुरू कर दिया। कुछ ही देर में वे पहाड़ी की चोटी पर पहुँच गये।


वहां पहुंचकर दोस्तों ने वहीं डेरा डालने का फैसला किया.


फिर जॉन ने एक और पहाड़ देखा जहां केवल कुछ मुट्ठी भर लोग ही चढ़ने की कोशिश कर रहे थे।


उसने अपने दोस्तों से कहा, “चलो हम भी उस पहाड़ पर चढ़ें। यहां कैंपिंग करने के बजाय यह मजेदार और चुनौतीपूर्ण होगा।''


एक मित्र ने उत्तर दिया, “बिल्कुल नहीं, मैंने लोगों को उस पर्वत के बारे में बात करते हुए सुना है। ऐसा लगता है कि रास्ते पर चढ़ना कठिन है, और केवल कुछ ही लोग चढ़ पाते हैं।”


बातचीत सुनकर आस-पास के लोगों ने जॉन का मज़ाक उड़ाया और कहा, "अगर चढ़ना आसान था, तो हम यहाँ बेकार क्यों बैठे थे।"


उनकी बात सुनकर जॉन ने उसे एक चुनौती के रूप में लिया और अकेले ही चोटी पर चढ़ने की ओर चल पड़े।


दो घंटे बाद वह पहाड़ी की चोटी पर पहुंच गया। वहां पहले से मौजूद लोगों ने तालियां बजाकर जॉन का स्वागत किया.


जॉन शिखर पर चढ़कर खुश था। वह ऊपर से प्रकृति के खूबसूरत नज़ारे देख सकता था।


उन्होंने लोगों से बातचीत शुरू की और उनसे पूछा, “इस चोटी पर चढ़ते समय मुझे लगा कि यह इतना कठिन नहीं है। फिर यहाँ केवल मुट्ठी भर लोग ही क्यों?


यदि लोग नीचे की चोटी पर चढ़ सकते हैं, तो वे कुछ प्रयास करने पर यहां भी चढ़ सकते हैं।”


एक अनुभवी पर्वतारोही ने उत्तर दिया, “वहां मौजूद भीड़ में से अधिकांश लोग जो आसान पाते हैं उससे खुश हैं। वे कभी नहीं सोचते कि उनमें और अधिक हासिल करने की क्षमता है।


जो लोग वहां खुश नहीं हैं वे भी कोई जोखिम नहीं लेना चाहते. वे सोचते हैं कि यदि हम जोखिम लेंगे, तो वे वह खो देंगे जो उनके पास पहले से है।


लेकिन एक नए शिखर पर पहुंचने के लिए हमें अपना प्रयास करना होगा।


इनमें से कई लोग हिम्मत नहीं दिखा पाते और पूरी जिंदगी भीड़ का हिस्सा बने रहते हैं.


और मुट्ठी भर साहसी लोगों के बारे में शिकायत करते रहो और उन्हें भाग्यशाली कहते रहो।”


यह सुनकर, जॉन ने हमारे जीवन में साहस के महत्व को समझाने के लिए अनुभवी को धन्यवाद दिया।


कहानी की नीति:

हममें से कई लोग अपने जीवन में अपने कम्फर्ट जोन में रहते हैं। लेकिन कुछ बड़ा हासिल करने के लिए हमें प्रयास और साहस की जरूरत होती है।


हमें कभी रुकना नहीं चाहिए, खुद को भीड़ से बाहर निकालने का साहस रखना चाहिए।


उन मुट्ठी भर लोगों की ओर बढ़ने पर ध्यान केंद्रित करें, जिन्हें लोग साहसी लोग कहते थे।‌‌



Get out of the Crowd and Reach New Heights: 

 

John and his friends used to go mountain climbing once every year. This time they have decided to climb mountains in the Swiss Alps. 

 

They reached the famous mountain spot in the Swiss Alps and were surprised to see many people climbing the mountains. 

 

John and his friends started wearing all the mountain climbing gear and started climbing. In no time, they reached the top of the hill. 

 

After reaching there, friends decided to camp there. 

 

Then John saw another mountain where only a handful of people were trying to climb it. 

 

He told his friends, “Let us go and climb that mountain also. It will be fun and challenging instead of camping here.” 

 

A friend replied, “No way, I have heard people talking about that mountain. It seems the path is difficult to climb, and only a few people can able to climb.” 

 

People nearby hearing the conversation made fun of John and said, “If it was easy to climb, why we were sitting idle here.” 

 

Hearing them, John took that as a challenge and went alone towards climbing the peak. 

 

Two hours later, he reached the top of the hill. People who were already there welcomed John with a round of applause. 

 

John was happy having climbed the peak. He could see the beautiful views of nature from the top. 

 

He started a conversation with people and asked them, “While climbing this peak, I felt it was not so difficult. Then why only a handful of people here? 

 

If people could climb the below peak, they can climb here also if they put in some effort.” 

 

A veteran climber replied, “Most people in the crowd right there are happy with what they find easy. They never think that they have the potential to achieve more. 

 

Even people who are not happy there do not want to take any risk. They think if we take risks, they will lose what they already have. 

 

But to reach a new peak, we need to put in our effort. 

 

Many of them do not show any courage, and they remain part of the crowd the whole life. 

 

And keep complaining about the handful of courageous people and call them lucky.” 

 

Hearing this, John thanked the veteran for explaining the importance of courage in our life. 

 

Moral of the story: 

In our life, many of us stay in our comfort zone. But to achieve something big, we need effort and courage. 

 

We should never stop, have the courage to push ourselves out of the crowd.  

 

Focus on moving to the handful of people, whom the people called Courageous People.‌‌


                            आज की कहानी 

जिंदगी का सबक


जीवन के 20 साल हवा की तरह उड़ गए । फिर शुरू हुई नोकरी की खोज । ये नहीं वो, दूर नहीं पास । ऐसा करते करते 2 3 नोकरियाँ छोड़ते एक तय हुई। थोड़ी स्थिरता की शुरुआत हुई।


फिर हाथ आया पहली तनख्वाह का चेक। वह बैंक में जमा हुआ और शुरू हुआ अकाउंट में जमा होने वाले शून्यों का अंतहीन खेल। 2- 3 वर्ष और निकल गए। बैंक में थोड़े और शून्य बढ़ गए। उम्र 25 हो गयी।


और फिर विवाह हो गया। जीवन की राम कहानी शुरू हो गयी। शुरू के एक 2 साल गुलाबी, सपनीले गुजरे । हाथो में हाथ डालकर घूमना फिरना, रंग बिरंगे सपने। पर ये दिन जल्दी ही उड़ गए।


और फिर बच्चे के आने ही आहट हुई। वर्ष भर में पालना झूलने लगा। अब सारा ध्यान बच्चे पर केन्द्रित हो गया। उठना बैठना खाना पीना लाड दुलार ।


समय कैसे फटाफट निकल गया, पता ही नहीं चला।

इस बीच कब मेरा हाथ उसके हाथ से निकल गया, बाते करना घूमना फिरना कब बंद हो गया दोनों को पता ही न चला।


बच्चा बड़ा होता गया। वो बच्चे में व्यस्त हो गयी, मैं अपने काम में । घर और गाडी की क़िस्त, बच्चे की जिम्मेदारी, शिक्षा और भविष्य की सुविधा और साथ ही बैंक में शुन्य बढाने की चिंता। उसने भी अपने आप काम में पूरी तरह झोंक दिया और मेने भी


इतने में मैं 35 का हो गया। घर, गाडी, बैंक में शुन्य, परिवार सब है फिर भी कुछ कमी है ? पर वो है क्या समझ नहीं आया। उसकी चिड चिड बढती गयी, मैं उदासीन होने लगा।


इस बीच दिन बीतते गए। समय गुजरता गया। बच्चा बड़ा होता गया। उसका खुद का संसार तैयार होता गया। कब 10वि आई और चली गयी पता ही नहीं चला। तब तक दोनों ही चालीस बयालीस के हो गए। बैंक में शुन्य बढ़ता ही गया।


एक नितांत एकांत क्षण में मुझे वो गुजरे दिन याद आये और मौका देख कर उस से कहा " अरे जरा यहाँ आओ, पास बैठो। चलो हाथ में हाथ डालकर कही घूम के आते हैं।"


उसने अजीब नजरो से मुझे देखा और कहा कि "तुम्हे कुछ भी सूझता है यहाँ ढेर सारा काम पड़ा है तुम्हे बातो की सूझ रही है ।"

कमर में पल्लू खोंस वो निकल गयी।


तो फिर आया पैंतालिसवा साल, आँखों पर चश्मा लग गया, बाल काला रंग छोड़ने लगे, दिमाग में कुछ उलझने शुरू हो गयी।


बेटा उधर कॉलेज में था, इधर बैंक में शुन्य बढ़ रहे थे। देखते ही देखते उसका कॉलेज ख़त्म। वह अपने पैरो पे खड़ा हो गया। उसके पंख फूटे और उड़ गया परदेश।


उसके बालो का काला रंग भी उड़ने लगा। कभी कभी दिमाग साथ छोड़ने लगा। उसे चश्मा भी लग गया। मैं खुद बुढा हो गया। वो भी उमरदराज लगने लगी।


दोनों पचपन से साठ की और बढ़ने लगे। बैंक के शून्यों की कोई खबर नहीं। बाहर आने जाने के कार्यक्रम बंद होने लगे।


अब तो गोली दवाइयों के दिन और समय निश्चित होने लगे। बच्चे बड़े होंगे तब हम साथ रहेंगे सोच कर लिया गया घर अब बोझ लगने लगा। बच्चे कब वापिस आयेंगे यही सोचते सोचते बाकी के दिन गुजरने लगे।


एक दिन यूँ ही सोफे पे बेठा ठंडी हवा का आनंद ले रहा था। वो दिया बाती कर रही थी। तभी फोन की घंटी बजी। लपक के फोन उठाया। दूसरी तरफ बेटा था। जिसने कहा कि उसने शादी कर ली और अब परदेश में ही रहेगा।


उसने ये भी कहा कि पिताजी आपके बैंक के शून्यों को किसी वृद्धाश्रम में दे देना। और आप भी वही रह लेना। कुछ और ओपचारिक बाते कह कर बेटे ने फोन रख दिया।


मैं पुन: सोफे पर आकर बेठ गया। उसकी भी दिया बाती ख़त्म होने को आई थी। मैंने उसे आवाज दी "चलो आज फिर हाथो में हाथ लेके बात करते हैं "

वो तुरंत बोली " अभी आई"।


मुझे विश्वास नहीं हुआ। चेहरा ख़ुशी से चमक उठा।आँखे भर आई। आँखों से आंसू गिरने लगे और गाल भीग गए । अचानक आँखों की चमक फीकी पड़ गयी और मैं निस्तेज हो गया। हमेशा के लिए !!


उसने शेष पूजा की और मेरे पास आके बैठ गयी "बोलो क्या बोल रहे थे?"


लेकिन मेने कुछ नहीं कहा। उसने मेरे शरीर को छू कर देखा। शरीर बिलकुल ठंडा पड गया था। मैं उसकी और एकटक देख रहा था।


क्षण भर को वो शून्य हो गयी।

" क्या करू ? "


उसे कुछ समझ में नहीं आया। लेकिन एक दो मिनट में ही वो चेतन्य हो गयी। धीरे से उठी पूजा घर में गयी। एक अगरबत्ती की। इश्वर को प्रणाम किया। और फिर से आके सोफे पे बैठ गयी।


मेरा ठंडा हाथ अपने हाथो में लिया और बोली

"चलो कहाँ घुमने चलना है तुम्हे ? क्या बातें करनी हैं तुम्हे ?" बोलो !!

ऐसा कहते हुए उसकी आँखे भर आई !!......

वो एकटक मुझे देखती रही। आँखों से अश्रु धारा बह निकली। मेरा सर उसके कंधो पर गिर गया। ठंडी हवा का झोंका अब भी चल रहा था।


क्या ये ही जिन्दगी है ? नहीं ??


सब अपना नसीब साथ लेके आते हैं इसलिए कुछ समय अपने लिए भी निकालो । जीवन अपना है तो जीने के तरीके भी अपने रखो। शुरुआत आज से करो। क्यूंकि कल कभी नहीं आएगा।......


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