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निष्कासित बेटे ने अपने भाइयों को बचाया:



अरब में एक समृद्ध राज्य था। इस पर एक सुल्तान का शासन था जिसकी तीन रानियाँ थीं। परन्तु किसी ने उसे बच्चा पैदा नहीं किया। सुल्तान चिंतित था क्योंकि उसका कोई उत्तराधिकारी नहीं था। एक रात जब वह सो रहा था तो उसके सपने में एक अच्छी परी प्रकट हुई और बोली, "यदि तुम अपनी रानियों को अनार के बीज दोगे, तो वे तुम्हारे लिए पुत्र पैदा करेंगी।"


सुल्तान अचानक जाग गया। "क्या यह सच है, मैं कोशिश क्यों नहीं करता" उसने सोचा।


अगली सुबह, सुल्तान ने तीनों रानियों को अनार दिए। तीनों रानियों ने अनार खाये। केवल दो रानियों ने बच्चों को जन्म दिया। तीसरी गर्भवती नहीं हुई. इसलिए सुल्तान उस पर क्रोधित हो गया और उसे पास के जंगल में निर्वासित कर दिया। लेकिन कुछ महीनों के बाद तीसरी रानी ने भी जंगल में एक बच्चे को जन्म दिया। उसने उसका नाम अहमद रखा।


जैसे-जैसे दिन और साल बीतते गए, अहमद जवान होता गया और वह एक अच्छा योद्धा बन गया। उन्होंने युद्ध कौशल का प्रशिक्षण प्राप्त किया और अपने ज्ञान में सुधार किया। एक बार उसने अपनी मां से पूछा. 'मेरे पिता कौन हैं?" उसकी माँ ने उत्तर दिया कि राज्य का सुल्तान उसका पिता था और वह उससे नफरत करता था क्योंकि उस समय उसकी कोई संतान नहीं थी।


अहमद ने कहा, "आप चिंता न करें। मैं अपने पिता के पास जाऊंगा और उनका दिल जीतूंगा और फिर उन्हें बताऊंगा। मैं कौन हूं।"


इसलिए उन्होंने सेना में शामिल होने का फैसला किया. उसने साहसी कार्यों से सुल्तान का दिल जीत लिया। उसने सुल्तान के लिए कई लड़ाइयाँ जीतीं। अतः सुल्तान ने उसे अपनी सेना में ऊँचा स्थान दिया।


दोनों राजकुमारियाँ, उसके भाई, अहमद से ईर्ष्या करने लगे। इसलिए उन्होंने उसके पिता से बहस की कि अहमद को अधिक महत्व न दें। एक दिन दोनों राजकुमार जंगल में शिकार के लिए गये। देर शाम तक वे नहीं आए। सुल्तान चिंतित हो गया और उसने सभी दिशाओं में सैनिक भेज दिये। लेकिन वे राजकुमार के बिना ही लौट आये। इसलिए सुल्तान ने अहमद को किसी भी कीमत पर अपने दोनों राजकुमारों को खोजने के लिए कहा।


अहोमूद दोनों राजकुमारों की खोज में निकला। वह घने जंगल और कंटीली झाड़ियों से होकर गुजरा और रास्ते में उसे कई जंगली जानवरों से लड़ना पड़ा। जंगल में उसकी नजर एक पेड़ के नीचे बैठी एक खूबसूरत युवती पर पड़ी। वह रो रही थी और उसका चेहरा डरा हुआ लग रहा था। वह उसके पास गया और पूछा। "आप कौन हैं? आप यहाँ क्यों हैं'"


उसने उत्तर दिया, "मैं काहिरा राज्य की राजकुमारी हूं। एक दुष्ट जादूगर ने मुझे पकड़ लिया और यहां कैद कर दिया और मेरी रक्षा करता है।"


अहोमूद ने उससे कहा, 'हे राजकुमारी तुम चिंता मत करो। मैं उससे युद्ध करूंगा और तुम्हें यहां से मुक्त कराऊंगा।”


उसने उससे चले जाने को कहा क्योंकि वह क्रूर था और उसे भी पकड़ लेगा। अचानक उसे अपने पीछे एक अजीब सी आवाज़ सुनाई दी। इसलिए वह एक पेड़ के पीछे छिप गया और इंतजार करने लगा।


जादूगर गुस्से में आया और युवती से पूछा। "क्या कोई यहाँ आया था?"


अचानक अहमद ने कोई जादुई पानी छिड़का और अपनी तलवार से उसे मार डाला। उसने युवती से कहा. "जल्दी आओ! हम तेजी से आगे बढ़ेंगे"।


लेकिन युवा युवती वहां से नहीं हिली. "कई अन्य लोग पास की गुफा में बंदी के रूप में हैं। आप उन्हें भी मुक्त कर दें", उसने विनती की।


अहमद तेजी से गुफा की ओर भागा और गुफा के अंदर सभी को मुक्त कर दिया। उनमें से, उसने दो राजकुमारों, अपने दो भाइयों को पाया। वह बहुत खुश हुआ और बोला, "तुम्हारे पिता। सुल्तान ने मुझे तुम्हारे लिए भेजा है। चलो जल्दी चलें और उन्हें खुश करें।"


जब अहमद दोनों राजकुमारों के साथ वापस आया, तो सुल्तान भय से मुक्त हो गया। दोनों राजकुमारों ने कहा, "हम आपके बहुत आभारी हैं अहमद। हम आपसे ईर्ष्या करते थे। लेकिन आपने हमें बचा लिया।" "ये रहे आपके तीन बेटे ओह...सुल्तान"अहमद ने ऊंची आवाज में चिल्लाकर कहा, तीसरा कौन है7"सुल्तान ने आश्चर्य से कहा...अहमद ने कहा। “महामहिम आपके सामने. हे पिता मैं आपका तीसरा पुत्र हूं। मैं उस तीसरी रानी का पुत्र हूँ जिसे आपने निर्वासित कर दिया था। मैं तुमसे जंगल में पैदा हुआ था।


सुल्तान थोड़ी देर के लिए हैरान हो गया और बोला, "मैं जल्दबाजी और निर्दयी था। मैं खुद पर शर्मिंदा हूं। मुझे माफ कर दो बेटा। तुम्हारी मां कहां है... मेरी तीसरी रानी?" तभी तीसरी रानी महल में पहुंची और सुल्तान के परिवार में शामिल हो गई।


अहमद ने जंगल में जो कुछ हुआ था, वह सब बताया। वह काहिरा की राजकुमारी को अपने साथ लाया था। उसने उनसे कहा कि वह उनकी सहमति से उससे शादी करना चाहता है। जल्द ही उन्होंने शादी कर ली और लंबे समय तक खुशी-खुशी जीवन व्यतीत किया!


Banished Son Saves His Brothers:


In Arabia there was a prosperous kingdom. It was ruled by a Sultan who had three queens. But no one bore him a child. The Sultan was worried as he had no heir. One night when he was sleeping a good fairy appeared before him in his dream and said, "If you give the seeds of the pomegranate to your queens, they will give birth to sons to you".


The Sultan woke up suddenly. "Is it true, why not I try" he thought.


The next morning, the Sultan gave the three queens pomegranates. All the three queens ate the pomegranates. Only two queens gave birth to children. The third one did not become pregnant. So the Sultan got angry on her and banished her to the forest nearby. But after some months the third queen also gave birth to a hand some child in the forest. She named him as Ahamud.


As days and years passed, Ahamud grew young and he became a good fighter. He got training in war fare and improved his knowledge. Once he asked his mother. 'Who is my father?" His mother replied that the Sultan of the kingdom was his father and that he hated her as she had no child then.


"You don't worry. I will go to my father and win his heart and then tell him. Who I am," Ahamud said.


So he decided to join the army. He won the heart of the Sultan by doing courageous deeds. He won many battles for the Sultan. So the Sultan gave him a high position in his army.


The two princesses, his brothers, became jealous of Ahamud. So they argued with his father not go give more importance to Ahamud. One day the two princes went for hunting in the forest. They didn't turn up late in the evening. The Sultan got worried and sent soldiers in all directrons. But they returned without the prince. So Sultan asked Ahamud to find his two princes at any cost.


Ahomud went out in search of the two princes. He went through the thick forest and thorny bushes and on the way he had to fight with many wild animals. In the forest he happened to see a young beautiful maiden sitting under a tree. She was weeping and her face looked terrified. He moved near her and asked. "Who are you? Why are you here’"


She replied, “I am the princess of Cairo kingdom A wicked wizard captured me imprisoned me here and guards me."


Ahomud said to her, 'O princess you don't worry. I will fight with him and free you from here."


She asked him to go away because he was cruel and would capture him also. Suddenly he heard a strange noise behind him. So he hid himself behind a tree and waited.


The wizard came with anger and asked the maiden. "Did any body come here?"


Suddenly Ahamud sprinkled some magic water and killed him with his sword. He said to the maiden. "Come quick! We shall move fast".


But the young maiden didn't move from there. "Many others are in the near by cave as captives. You free them also", she pleaded.


Ahamud ran fast to the cave and freed all inside the cave. Amoung them, he found the two princes, his two brothers. He became very happy and said, "Your father. Sultan sent me for you. Let us go quickly and make him happy."


When Ahamud came back with the two princes, the Sultan became relieved of fear. The two princes said, "We are so grateful to you Ahamud. We were jealous of you. But you have saved us". “Here are your three sons Oh…Sultan"Ahamud cried in a loud voice Who is the third7" the Sultan said in wonder… Ahamud said. “In front of you your majesty. O father I am the third son of you. I am the son of the third queen that you banished. I was born to you in the forest.".


Sultan looked puzzled for a while and said, "I was hasty and merciless. I am ashamed of myself. Forgive me son. Where is your mother…my third queen?" Just then the third queen reached the palace and joined the sultan's family.


Ahamud narrated all that had happened in the forest He had brought the princess of Cairo with him. He fold them that he wanted to marry her with their consent. Soon they got married and lived happily for a long time.


प्रेरणादायक कहानि प्रस्तुत है वो कहानी जो मेरे अंतर्मन को छू गई 

साभार. . . जैसी प्राप्त हुई -


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मार्मिक कथा

शहर के एक अन्तरराष्ट्रीय प्रसिद्धि के विद्यालय के बग़ीचे में तेज़ धूप और गर्मी की परवाह किये बिना, बड़ी लग्न से पेड़ - पौधों की काट छाँट में लगा था कि तभी विद्यालय के चपरासी की आवाज़ सुनाई दी, "गंगादास! तुझे प्रधानाचार्या जी तुरंत बुला रही हैं।"

     गंगादास को आख़िरी के पांँच शब्दों में काफ़ी तेज़ी महसूस हुई और उसे लगा कि कोई महत्त्वपूर्ण बात हुई है जिसकी वज़ह से प्रधानाचार्या जी ने उसे तुरंत ही बुलाया है।

      शीघ्रता से उठा, अपने हाथों को धोकर साफ़ किया और चल दिया, द्रुत गति से प्रधानाचार्या के कार्यालय की ओर। 

       उसे प्रधानाचार्या महोदया के कार्यालय की दूरी मीलों की लग रही थी जो ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही थी। उसकी हृदयगति बढ़ गई थी। सोच रहा था कि उससे क्या ग़लत हो गया जो आज उसको प्रधानाचार्या महोदया ने तुरंत ही अपने कार्यालय में आने को कहा।

      वह एक ईमानदार कर्मचारी था और अपने कार्य को पूरी निष्ठा से पूर्ण करता था। पता नहीं क्या ग़लती हो गयी। वह इसी चिंता के साथ प्रधानाचार्या के कार्यालय पहुँचा......

       "मैडम, क्या मैं अंदर आ जाऊँ? आपने मुझे बुलाया था।"

       "हाँ। आओ और यह देखो" प्रधानाचार्या महोदया की आवाज़ में कड़की थी और उनकी उंगली एक पेपर पर इशारा कर रही थी। 

       "पढ़ो इसे" प्रधानाचार्या ने आदेश दिया।

       "मैं, मैं, मैडम! मैं तो इंग्लिश पढ़ना नहीं जानता मैडम!" गंगादास ने घबरा कर उत्तर दिया। 

     *"मैं आपसे क्षमा चाहता हूँ मैडम यदि कोई गलती हो गयी हो तो।* मैं आपका और विद्यालय का पहले से ही बहुत ऋणी हूँ। क्योंकि आपने मेरी बिटिया को इस विद्यालय में निःशुल्क पढ़ने की इज़ाज़त दी। मुझे कृपया एक और मौक़ा दें मेरी कोई ग़लती हुई है तो सुधारने का। मैं आप का सदैव ऋणी रहूंँगा।" गंगादास बिना रुके घबरा कर बोलता चला जा रहा था।

      उसे प्रधानाचार्या ने टोका "तुम बिना वज़ह अनुमान लगा रहे हो। थोड़ा इंतज़ार करो, मैं तुम्हारी बिटिया की कक्षा-अध्यापिका को बुलाती हूँ।"

      वे पल जब तक उसकी बिटिया की कक्षा-अध्यापिका प्रधानाचार्या के कार्यालय में पहुँची बहुत ही लंबे हो गए थे गंगादास के लिए। सोच रहा था कि क्या उसकी बिटिया से कोई ग़लती हो गयी, कहीं मैडम उसे विद्यालय से निकाल तो नहीं रहीं। उसकी चिंता और बढ़ गयी थी।

      कक्षा-अध्यापिका के पहुँचते ही प्रधानाचार्या महोदया ने कहा, "हमने तुम्हारी बिटिया की प्रतिभा को देखकर और परख कर ही उसे अपने विद्यालय में पढ़ने की अनुमति दी थी। अब ये मैडम इस पेपर में जो लिखा है उसे पढ़कर और हिंदी में तुम्हें सुनाएँगी, ग़ौर से सुनो।"


      कक्षा-अध्यापिका ने पेपर को पढ़ना शुरू करने से पहले बताया, "आज मातृ दिवस था और आज मैंने कक्षा में सभी बच्चों को अपनी अपनी माँ के बारे में एक लेख लिखने को कहा। तुम्हारी बिटिया ने जो लिखा उसे सुनो।" 

      उसके बाद कक्षा- अध्यापिका ने पेपर पढ़ना शुरू किया।

      "मैं एक गाँव में रहती थी, एक ऐसा गाँव जहाँ शिक्षा और चिकित्सा की सुविधाओं का आज भी अभाव है। चिकित्सक के अभाव में कितनी ही माँयें दम तोड़ देती हैं बच्चों के जन्म के समय। मेरी माँ भी उनमें से एक थीं। उन्होंने मुझे छुआ भी नहीं कि चल बसीं। मेरे पिता ही वे पहले व्यक्ति थे मेरे परिवार के जिन्होंने मुझे गोद में लिया। पर सच कहूँ तो मेरे परिवार के वे अकेले व्यक्ति थे जिन्होंने मुझे गोद में उठाया था। बाक़ी की नज़र में तो मैं अपनी माँ को खा गई थी। मेरे पिताजी ने मुझे माँ का प्यार दिया। मेरे दादा - दादी चाहते थे कि मेरे पिताजी दुबारा विवाह करके एक पोते को इस दुनिया में लायें ताकि उनका वंश आगे चल सके। परंतु मेरे पिताजी ने उनकी 

एक न सुनी और दुबारा विवाह करने से मना कर दिया। इस वज़ह से मेरे दादा - दादीजी ने उनको अपने से अलग कर दिया और पिताजी सब कुछ, ज़मीन, खेती बाड़ी, घर सुविधा आदि छोड़ कर मुझे साथ लेकर शहर चले आये और इसी विद्यालय में माली का कार्य करने लगे। मुझे बहुत ही लाड़ प्यार से बड़ा करने लगे। मेरी ज़रूरतों पर माँ की तरह हर पल उनका ध्यान रहता है।"

    "आज मुझे समझ आता है कि वे क्यों हर उस चीज़ को जो मुझे पसंद थी ये कह कर खाने से मना कर देते थे कि वह उन्हें पसंद नहीं है, क्योंकि वह आख़िरी टुकड़ा होती थी। आज मुझे बड़ा होने पर उनके इस त्याग के महत्त्व पता चला।"

     "मेरे पिता ने अपनी क्षमताओं में मेरी हर प्रकार की सुख - सुविधाओं का ध्यान रखा और मेरे विद्यालय ने उनको यह सबसे बड़ा पुरस्कार दिया जो मुझे यहाँ निःशुल्क पढ़ने की अनुमति मिली। उस दिन मेरे पिता की ख़ुशी का कोई ठिकाना न था।"

"यदि माँ, प्यार और देखभाल करने का नाम है तो मेरी माँ मेरे पिताजी हैं।" 

       "यदि दयाभाव, माँ को परिभाषित करता है तो मेरे पिताजी उस परिभाषा के हिसाब से पूरी तरह मेरी माँ हैं।"

      "यदि त्याग, माँ को परिभाषित करता है तो मेरे पिताजी इस वर्ग में भी सर्वोच्च स्थान पर हैं।"

      "यदि संक्षेप में कहूँ कि प्यार, देखभाल, दयाभाव और त्याग माँ की पहचान है तो मेरे पिताजी उस पहचान पर खरे उतरते हैं और मेरे पिताजी विश्व की सबसे अच्छी माँ हैं।"

      आज मातृ दिवस पर मैं अपने पिताजी को शुभकामनाएँ दूँगी और कहूँगी कि आप संसार के सबसे अच्छे पालक हैं। बहुत गर्व से कहूँगी कि ये जो हमारे विद्यालय के परिश्रमी माली हैं, मेरे पिता हैं।"

     "मैं जानती हूँ कि मैं आज की लेखन परीक्षा में असफल हो जाऊँगी। क्योंकि मुझे माँ पर लेख लिखना था और मैंने पिता पर लिखा,पर यह बहुत ही छोटी सी क़ीमत होगी उस सब की जो मेरे पिता ने मेरे लिए किया। धन्यवाद"। 

      आख़िरी शब्द पढ़ते - पढ़ते अध्यापिका का गला भर आया था और प्रधानाचार्या के कार्यालय में शांति छा गयी थी।

      इस शांति में केवल गंगादास के सिसकने की आवाज़ सुनाई दे रही थी। बग़ीचे में धूप की गर्मी उसकी कमीज़ को गीला न कर सकी पर उस पेपर पर बिटिया के लिखे शब्दों ने उस कमीज़ को पिता के आँसुओं से गीला कर दिया था। वह केवल हाथ जोड़ कर वहाँ खड़ा था।  

      उसने उस पेपर को अध्यापिका से लिया और अपने हृदय से लगाया और रो पड़ा।

      प्रधानाचार्या ने खड़े होकर उसे एक कुर्सी पर बैठाया और एक गिलास पानी दिया तथा कहा, "गंगादास तुम्हारी बिटिया को इस लेख के लिए पूरे 10/10 नम्बर दिए गए है। यह लेख मेरे अब तक के पूरे विद्यालय जीवन का सबसे अच्छा मातृ दिवस का लेख है। हम कल मातृ दिवस अपने विद्यालय में बड़े ज़ोर - शोर से मना रहे हैं। इस दिवस पर विद्यालय एक बहुत बड़ा कार्यक्रम आयोजित करने जा रहा है। विद्यालय की प्रबंधक कमेटी ने आपको इस कार्यक्रम का मुख्य अतिथि बनाने का निर्णय लिया है। यह सम्मान होगा उस प्यार, देखभाल, दयाभाव और त्याग का जो एक आदमी अपने बच्चे के पालन के लिए कर सकता है। यह सिद्ध करता है कि आपको एक औरत होना आवश्यक नहीं है एक पालक बनने के लिए। साथ ही यह अनुशंषा करता है उस विश्वाश का जो विश्वास आपकी बेटी ने आप पर दिखाया। हमें गर्व है कि संसार का सबसे अच्छा पिता हमारे विद्यालय में पढ़ने वाली बच्ची का पिता है जैसा कि आपकी बिटिया ने अपने लेख में लिखा। गंगादास हमें गर्व है कि आप एक माली हैं और सच्चे अर्थों में माली की तरह न केवल विद्यालय के बग़ीचे के फूलों की देखभाल की बल्कि अपने इस घर के फूल को भी सदा ख़ुशबूदार बनाकर रखा जिसकी ख़ुशबू से हमारा विद्यालय महक उठा। तो क्या आप हमारे विद्यालय के इस मातृ दिवस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बनेंगे?"

      रो पड़ा गंगादास और दौड़ कर बिटिया की कक्षा के बाहर से आँसू भरी आँखों से निहारता रहा , अपनी प्यारी बिटिया को।


संसार की समस्त प्यारी - प्यारी बेटियों को समर्पित l


या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

पंचायत -3

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