राजकुमार और मटर
एक बार की बात है, एक ऐसे राज्य में, जो सर्पिल टावरों और सितारों की टेपेस्ट्री से सुशोभित था, एक राजकुमार था जो अपने राज्य को साझा करने के लिए एक सच्ची राजकुमारी की तलाश कर रहा था। कई लोगों ने इस उपाधि का दावा किया, फिर भी कोई भी वास्तविक साबित नहीं हुआ। राजकुमार किसी ऐसे व्यक्ति की चाहत रखता था जिसका दिल उसकी नसों में बहने वाले खून की तरह शाही हो।
एक तूफानी रात, जब बारिश महल की दीवारों पर बरस रही थी और गरज के साथ जोरदार ताली बज रही थी, तो हॉल में दस्तक की आवाज़ गूंजी। राजा ने अपने हाथ में लालटेन लेकर गेट खोला और देखा कि एक युवती सिर से पैर तक भीगी हुई थी, उसकी आँखें उम्मीद से चमक रही थीं।
“मैं एक राजकुमारी हूँ,” उसने घोषणा की, “तूफान से आश्रय की तलाश में।”
रानी, बुद्धिमान और समझदार, यह साबित करने के लिए एक परीक्षण पर विचार कर रही थी कि युवती का दावा सच था या नहीं। "हम देखेंगे," उसने फुसफुसाते हुए कहा, बीस गद्दों और बीस पंखों के नीचे एक मटर रखते हुए - एक परीक्षण जिसे केवल सच्चे राजघराने की संवेदनशीलता ही पहचान सकती है।
राजकुमारी और मटर भव्य बिस्तर पर। छवि
राजकुमारी को भव्य बिस्तर दिया गया, और वह ऊंचे ढेर पर चढ़ गई और सोने के लिए लेट गई। फिर भी, जब भोर ने पर्दे के पीछे से झाँका, तो वह थकी हुई और थकी हुई लग रही थी।
"आप कैसे सोए, प्रिय अतिथि?" रानी ने नाश्ते की मेज पर पूछा, उसकी आँखें सच्चाई की तलाश कर रही थीं।
"ओह, मैंने पूरी रात अपनी आँखें मुश्किल से बंद कीं!" राजकुमारी ने कहा। "मैं किसी सख्त चीज़ पर लेटी थी जिससे मेरा शरीर काला और नीला हो गया। यह बहुत भयानक था!"
उसके शब्दों पर, राजकुमार का दिल भोर में एक लार्क की तरह उछल पड़ा। केवल एक असली राजकुमारी ही ऐसी नाजुक संवेदनशीलता रख सकती है। मटर उनका सबूत था, वह छोटा गोला जो उसकी प्रामाणिकता की बात करता था।
उनका विवाह राज्य के उल्लास के बीच हुआ, मटर को शाही संग्रहालय में रखा गया। और इस प्रकार, "राजकुमारी और मटर" की कहानी पीढ़ियों से चली आ रही कहानी बन गई, जो सच्चाई और अच्छाई को परिभाषित करने वाली सूक्ष्मताओं की याद दिलाती है, और यह विचार कि कभी-कभी, यह सबसे छोटी चीजें होती हैं जो सबसे बड़ी सच्चाई रखती हैं।
कहानी का नैतिक पाठ
राजकुमारी और मटर" सिखाता है कि संवेदनशीलता और बड़प्पन जैसे सच्चे गुण अक्सर सतह के नीचे छिपे होते हैं, इस धारणा को चुनौती देते हैं कि दिखावट ही किसी के सच्चे स्वभाव का एकमात्र संकेतक है।
कहानी छोटी चीज़ों के महत्व पर ज़ोर देती है, यह सुझाव देते हुए कि छोटी-छोटी बातें भी गहरा प्रभाव डाल सकती हैं। इसके अतिरिक्त, यह मनमाने मानकों और मानदंडों की सूक्ष्मता से आलोचना करती है, इस बात की बेतुकीता को उजागर करती है कि समाज कभी-कभी मूल्य और प्रामाणिकता का कैसे न्याय करता है।
अनुवर्ती प्रश्न
मटर को महसूस करना: आपको क्यों लगता है कि राजकुमारी उन सभी गद्दों के नीचे मटर को महसूस कर सकती थी? क्या आपने कभी कुछ छोटा महसूस किया है जो आपको सोने की कोशिश करते समय परेशान करता है?
The Princes and The Pea
Once upon a time, in a kingdom graced with spiraling towers and tapestries of stars, there was a prince who sought a true princess to share his realm. Many claimed the title, yet none proved genuine. The prince longed for someone with a heart as royal as the blood that coursed through his veins.
One stormy night, as rain lashed the castle walls and thunder clapped its mighty hands, a knock echoed through the halls. The king, with a lantern in his hand, opened the gate to find a young lady drenched from head to toe, her eyes gleaming with hope.
“I am a princess,” she declared, “seeking shelter from the storm.”
The queen, wise and discerning, pondered a test to prove if the maiden’s claim was true. “We shall see,” she whispered, placing a single pea beneath twenty mattresses and twenty featherbeds—a test only the sensitivity of true royalty could detect.
The princess and the pea in the grand bed. Image
The princess was offered the grand bed, and she climbed the lofty pile and lay down to sleep. Yet, when dawn peered through the curtains, she looked weary and worn.
“How did you sleep, dear guest?” inquired the queen at the breakfast table, her eyes searching for truth.
“Oh, I scarcely closed my eyes all night!” the princess exclaimed. “I lay upon something hard so that I am black and blue all over. It was quite dreadful!”
At her words, the prince’s heart soared like a lark at daybreak. Only a real princess could possess such delicate sensitivity. The pea was their proof, the small orb that spoke of her authenticity.
They were married amidst the jubilation of the kingdom, the pea was placed in the royal museum. And thus, the tale of “The Princess and the Pea” became a story passed through generations, a reminder of the subtleties that define the true and the good, and the idea that sometimes, it’s the smallest things that hold the greatest truths.
Moral of the Story
The Princess and the Pea” teaches that true qualities, such as sensitivity and nobility, often lie beneath the surface, challenging the notion that appearances are the sole indicator of one’s true nature.
The story emphasizes the significance of small things, suggesting that even minor details can have a profound impact. Additionally, it subtly critiques arbitrary standards and norms, highlighting the absurdity of how society sometimes judges worth and authenticity.
Follow Up Questions
Feeling the Pea: Why do you think the princess could feel the pea under all those mattresses? Have you ever felt something small that bothered you while trying to sleep?
भक्त_के_वश_में_हैभगवान
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किसी समय एक गांव में भागवत कथा का आयोजन किया गया, एक पंडित जी भागवत कथा सुनाने आए।
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पूरे सप्ताह कथा वाचन चला। पूर्णाहुति पर दान दक्षिणा की सामग्री इक्ट्ठा कर घोड़े पर बैठकर पंडित जी रवाना होने लगे।
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उसी गांव में एक सीधा-सादा गरीब किसान भी रहता था जिसका नाम था धन्ना जाट।
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धन्ना जाट ने उनके पांव पकड़ लिए। वह बोला- पंडित जी महाराज ! आपने कहा था कि जो ठाकुर जी की सेवा करता है उसका बेड़ा पार हो जाता है।
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आप तो जा रहे है। मेरे पास न तो ठाकुर जी हैं, न ही मैं उनकी सेवा पूजा की विधि जानता हूँ। इसलिए आप मुझे ठाकुर जी देकर पधारें।
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पंडित जी ने कहा- चौधरी, तुम्हीं ले आना।
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धन्ना जाट ने कहा - मैंने तो कभी ठाकुर जी देखे ही नहीं, लाऊंगा कैसे ?
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पंडित जी को घर जाने की जल्दी थी। उन्होंने पिण्ड छुड़ाने को अपना भंग घोटने का सिलबट्टा उसे दिया और बोले- ये ठाकुर जी है। इनकी सेवा पूजा करना।
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धन्ना जाट ने कहा, महाराज में सेवा पूजा का तरीका भी नहीं जानता। आप ही बताएं।
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पंडित जी ने कहा - पहले खुद नहाना फिर ठाकुर जी को नहलाना। इन्हें भोग चढ़ाकर फिर खाना।
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इतना कहकर पंडित जी ने घोड़े के एड़ लगाई व चल दिए।
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धन्ना सीधा एवं सरल आदमी था। पंडित जी के कहे अनुसार सिलबट्टे को बतौर ठाकुर जी अपने घर में स्थापित कर दिया। दूसरे दिन स्वयं स्नान कर सिलबट्टे रूप ठाकुर जी को नहलाया।
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विधवा मां का बेटा था। खेती भी ज्यादा नहीं थी। इसलिए भोग में अपने हिस्से का बाजरी का टिक्कड़ एवं मिर्च की चटनी रख दी।
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ठाकुर जी से धन्ना ने कहा, पहले आप भोग लगाओ फिर मैं खाऊंगा।
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जब ठाकुर जी ने भोग नहीं लगाया तो बोला- पंडित जी तो धनवान थे। खीर- पूड़ी एवं मोहन भोग लगाते थे। मैं तो गरीब जाट का बेटा हूं,
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इसलिए मेरी रोटी चटनी का भोग आप कैसे लगाएंगे ? पर साफ-साफ सुन लो मेरे पास तो यही भोग है। खीर पूड़ी मेरे बस की नहीं है।
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ठाकुर जी ने भोग नहीं लगाया तो धन्ना भी सारा दिन भूखा रहा।
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इसी तरह वह रोज का एक बाजरे का ताजा टिक्कड़ एवं मिर्च की चटनी रख देता एवं भोग लगाने की अरजी करता।
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ठाकुर जी तो पसीज ही नहीं रहे थे। यह क्रम निरंतर छह दिन तक चलता रहा।
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छठे दिन धन्ना बोला, ठाकुर जी, चटनी रोटी खाते क्यों शर्माते हो ? आप कहो तो मैं आंखें मूंद लू फिर खा लो।
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ठाकुर जी ने फिर भी भोग नहीं लगाया तो नहीं लगाया।
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धन्ना भी भूखा प्यासा था। 7वें दिन धन्ना जट बुद्धि पर उतर आया। फूट-फूट कर रोने लगा एवं कहने लगा कि सुना था आप दीन-दयालु हो, पर आप भी गरीब की कहां सुनते हो।
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मेरा रखा यह टिक्कड़ एवं चटनी आकर नहीं खाते हो तो मत खाओ। अब मुझे भी नहीं जीना है ।
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इतना कह उसने सिलबट्टा उठाया और सिर फोड़ने को तैयार हुआ ।
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अचानक सिलबट्टे से एक प्रकाश पुंज प्रकट हुआ एवं धन्ना का हाथ पकड़ कहा, देख धन्ना मैं तेरा चटनी टिक्कड़ा खा रहा हूं।
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ठाकुर जी बाजरे का टिक्कड़ एवं मिर्च की चटनी मजे से खा रहे थे।
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जब आधा टिक्कड़ खा लिया तो धन्ना बोला, क्या ठाकुर जी मेरा पूरा टिक्कड़ खा जाओगे ? मैं भी छह दिन से भूखा प्यासा हूं। आधा टिक्कड़ तो मेरे लिए भी रखो।
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ठाकुर जी ने कहा - तुम्हारी चटनी रोटी बडी मीठी लग रही है तू दूसरी खा लेना।
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धन्ना ने कहा - प्रभु ! मां मुझे एक ही रोटी देती है। यदि मैं दूसरी लूंगा तो मां भूखी रह जाएगी।
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प्रभु ने कहा-फिर ज्यादा क्यों नहीं बनाता।
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धन्ना ने कहा - खेत छोटा सा है और मैं अकेला।
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ठाकुर जी ने कहा - नौकर रख ले।
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धन्ना बोला, प्रभु, मेरे पास बैल थोड़े ही हैं मैं तो खुद जुतता हूं।
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ठाकुर जी ने कहा, और खेत जोत ले।
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धन्ना ने कहा-प्रभु, आप तो मेरी मजाक उड़ा रहे हो। नौकर रखने की हैसियत हो तो दो वक्त रोटी ही न खा लें हम मां-बेटे।
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इस पर ठाकुर जी ने कहा - चिन्ता मत कर मैं तेरी सहायता करूंगा।
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कहते है तबसे ठाकुर जी ने धन्ना का साथी बनकर उसकी सहायता करनी शुरू की।
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धन्ना के साथ खेत में कामकाज कर उसे अच्छी जमीन एवं बैलों की जोड़ी दिलवा दी।
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कुछे अर्से बाद घर में गाय भी आ गई। मकान भी पक्का बन गया। सवारी के लिए घोड़ा आ गया।
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धन्ना एक अच्छा खासा जमींदार बन गया।
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कई साल बाद पंडित जी पुनः धन्ना के गांव भागवत कथा करने आए। धन्ना भी उनके दर्शन को गया।
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प्रणाम कर बोला, पंडित जी, आप जो ठाकुर जी देकर गए थे वे छह दिन तो भूखे प्यासे रहे एवं मुझे भी भूखा प्यासा रखा।
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सातवें दिन उन्होंने भूख के मारे परेशान होकर मुझ गरीब की रोटी खा ही ली।
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उनकी इतनी कृपा है कि खेत में मेरे साथ कंधे से कंधा मिलाकर हर काम में मदद करते है।
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अब तो घर में गाय भी है। सात दिन का घी-दूध का ‘सीधा‘ यानी बंदी का घी- दूध मैं ही भेजूंगा।
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पंडित जी ने सोचा मूर्ख आदमी है। मैं तो भांग घोटने का सिलबट्टा देकर गया था।
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गांव में पूछने पर लोगों ने बताया कि चमत्कार तो हुआ है। धन्ना अब वह गरीब नहीं रहा। जमींदार बन गया है।
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दूसरे दिन पंडित जी ने धन्ना से कहा, कल कथा सुनने आओ तो अपने साथ अपने उस साथी को ले कर आना जो तुम्हारे साथ खेत में काम करता है।
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घर आकर धन्ना ने प्रभु से निवेदन किया कि कथा में चलो तो प्रभु ने कहा, मैं नहीं चलता तुम जाओ।
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धन्ना बोला - तब क्या उन पंडित जी को आपसे मिलाने घर ले आऊँ।
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प्रभु ने कहा - बिल्कुल नहीं। मैं झूठी कथा कहने वालों से नहीं मिलता।
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जो मुझसे सच्चा प्रेम करता है और जो अपना काम मेरी पूजा समझ करता है मैं उसी के साथ रहता हूं।
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सत्य ही कहा गया है, "भगत के वश में है भगवान्"
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