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बहादुरी और साहस पर कहानी:


एक कायर व्यक्ति मार्शल आर्ट के उस्ताद के पास आया और उसे बहादुरी सिखाने के लिए कहा। गुरु ने उसकी ओर देखा और कहा:


मैं तुम्हें केवल एक शर्त के साथ सिखाऊंगा: एक महीने के लिए तुम्हें एक बड़े शहर में रहना होगा और रास्ते में मिलने वाले हर व्यक्ति को बताना होगा कि तुम कायर हो। आपको इसे ज़ोर से, खुलकर और सीधे सामने वाले की आँखों में देखते हुए कहना होगा।


वह व्यक्ति बहुत दुखी हो गया, क्योंकि यह काम उसे बहुत डरावना लग रहा था. कुछ दिनों तक वह बहुत दुखी और विचारशील रहा, लेकिन अपनी कायरता के साथ रहना इतना असहनीय हो गया कि उसने अपने मिशन को पूरा करने के लिए शहर की ओर कूच कर दिया।


सबसे पहले, राहगीरों से मिलते समय, वह काँपने लगा, उसकी वाणी बिगड़ गई और वह किसी से संपर्क नहीं कर सका। लेकिन उसे मालिक का काम पूरा करना था, इसलिए उसने खुद पर काबू पाना शुरू कर दिया। जब वह अपने पहले राहगीर के पास अपनी कायरता के बारे में बताने आया, तो उसे ऐसा लगा कि वह डर से मर जाएगा। लेकिन हर गुज़रते दिन के साथ उनकी आवाज़ तेज़ और अधिक आत्मविश्वास भरी लगती गई। अचानक एक क्षण आया, जब आदमी ने खुद को यह सोचते हुए पाया कि अब उसे डर नहीं है, और जितना आगे वह मालिक का काम करता रहा, उतना ही अधिक उसे विश्वास होता गया कि डर उसका साथ छोड़ रहा है। इस तरह एक महीना बीत गया. वह व्यक्ति वापस गुरु के पास आया, उन्हें प्रणाम किया और कहा:


धन्यवाद शिक्षक। मैंने आपका काम पूरा कर दिया. अब मुझे कोई डर नहीं है. लेकिन तुम्हें कैसे पता चला कि यह अजीब काम मेरी मदद करेगा?


बात ये है कि कायरता तो बस एक आदत है. और जो चीजें हमें डराती हैं, उन्हें करके हम रूढ़िवादिता को नष्ट कर सकते हैं और उस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं जिस पर आप पहुंचे थे। और अब आप जानते हैं कि बहादुरी भी एक आदत है। और यदि आप बहादुरी को अपना हिस्सा बनाना चाहते हैं तो आपको डर की ओर आगे बढ़ना होगा। तब भय दूर हो जाएगा और उसका स्थान वीरता ले लेगी।‌‌


Story On Bravery And Courage: 

 

One cowardly person came to a master of martial arts and asked to teach him bravery. The master looked at him and said: 

 

I will teach you only with one condition: one month you will have to live in a big city and tell every person that you meet on your way that you are a coward. You will have to say it loudly, openly and looking straight into the person’s eyes. 

 

The person got really sad, because this task seemed very scary to him. For a couple of days he was very sad and thoughtful, but to live with his cowardice was so unbearable that he travelled to the city to accomplish his mission. 

 

At first, when meeting the passers, he quailed, lost his speech and couldn’t contact anyone. But he needed to finish the master’s task, so he began to overcome himself. When he came up to his first passer to tell about his cowardice, it seemed to him that he would die from fear. But his voice sounded louder and more confident with every passing day. Suddenly came a moment, when the man caught himself thinking that he’s not scared anymore, and the further he continued doing the master’s task, the more convinced he was that the fear was abandoning him. That way a month had passed. The person came back to the master, bowed to him and said: 

 

Thank you, teacher. I finished your task. Now I’m not afraid anymore. But how did you know that this strange task will help me? 

 

The thing is that cowardice is only a habit. And by doing the things that scare us, we can destroy the stereotypes and come to a conclusion that you came to. And now you know that bravery – is also a habit. And if you want to make bravery a part of yourself- you need to move forward into the fear. Then the fear will go away, and bravery will take its place.‌‌


एक राजा ने सलाहकार के सामने अचानक 3 प्रश्न उछाल

दिये। 


प्रश्न थे-

'ईश्वर कहाँ रहता है?

वह कैसे मिलता है

और वह करता क्या है?''


सलाहकार इन प्रश्नों को सुनकर सकपका गये और बोले-

''महाराज ! इन प्रश्नों के उत्तर मैं कल आपको दूँगा।"


जब सलाहकार घर पहुँचे तो वह बहुत उदास थे।


उनके पुत्र ने जब उनसे पूछा तो उन्होंने बताया-

''बेटा! आज राजा ने मुझसे एक साथ तीन

प्रश्न

'ईश्वर कहाँ रहता है?

वह कैसे मिलता है?

और वह करता क्या है?'

पूछे हैं।


मुझे उनके उत्तर सूझ नही रहे हैं और कल दरबार

में इनका उत्तर देना है।''


सलाहकार के पुत्र ने कहा-''पिता जी!

कल आप मुझे दरबार में अपने साथ ले चलना मैं राजा के प्रश्नों के उत्तर दूँगा।''


पुत्र की हठ के कारण सलाहकार अगले

दिन अपने पुत्र को साथ लेकर दरबार में पहुँचे।


सलाहकार को देख कर राजा ने कहा-

''सलाहकार मेरे प्रश्नों के उत्तर दो।


सलाहकार ने कहा- राजा आपके प्रश्नों के

उत्तर तो मेरा पुत्र भी दे सकता है।''


राजा ने सलाहकार के पुत्र से पहला प्रश्न पूछा-

''बताओ! 'ईश्वर कहाँ रहता है?''


सलाहकार के पुत्र ने एक गिलास शक्कर मिला हुआ दूध

राजा से मँगवाया

और कहा-

महाराजा दूध कैसा है?


राजा ने दूध चखा और कहा कि ये मीठा है।


परन्तु क्या आपको इसमें शक्कर दिखाई दे रही है।


राजा बोले.... नही वह तो घुल गयी।


जी हाँ, ! ईश्वर भी

इसी प्रकार संसार की हर वस्तु में रहता

है। जैसे शक्कर दूध में घुल गयी है परन्तु वह दिखाई

नही दे रही है।


राजा ने सन्तुष्ट होकर अब दूसरे प्रश्न का उत्तर पूछा-

''बताओ! ईश्वर मिलता केसे है?''


बालक ने कहा-

''राजा थोड़ा दही मँगवाइए।''

राजा ने दही मँगवाया तो सलाहकार के

पुत्र ने कहा-

'महाराज क्या आपको इसमें मक्खन दिखाई दे रहा है।


राजा ने कहा-

''मक्खन तो दही में है पर इसको मथने पर

ही दिखाई देगा।


'' बालक ने कहा-

''महाराज! मन्थन करने पर ही ईश्वर के दर्शन

हो सकते हैं।''


राजा ने सन्तुष्ट होकर अब

अन्तिम प्रश्न का उत्तर पूछा-

''बताओ! ईश्वर करता क्या है?''


सलाहकार के पुत्र ने कहा-

''महाराज! इसके लिए आपको मुझे अपना गुरू स्वीकार

करना पड़ेगा।''


राजा बोले-

''ठीक है,

तुम गुरू और मैं तुम्हारा शिष्य।''


अब बालक ने कहा-

''महाराज गुरू तो ऊँचे आसन पर बैठता है और शिष्य

नीचे।''


राजा ने बालक के लिए सिंहासन खाली कर दिया और

स्वयं नीचे बैठ गये।


अब बालक ने सिंहासन पर बैठ कर कहा-

''महाराज! आपके अन्तिम प्रश्न का उत्तर तो यही

है।''


राजा बोले- ''क्या मतलब?

मैं कुछ समझा नहीं।''


बालक ने कहा-

''महाराज! ईश्वर यही तो करता है।

"पल भर में राजा को रंक बना देता है और भिखारी को

सम्राट बना देता है।

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